संकटग्रस्त श्रीलंका के अल्पसंख्यक द्वेष की राजनीति से भारत को सीख लेने की जरूरत

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: May 23, 2022
आज दुनिया भर की नजर भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका पर है. इस देश के साथ भारत के संबंध भौगोलिक, कुटनीतिक, सामरिक, व्यापारिक व् रणनीतिक तौर पर बहुत अहम् हैं. श्रीलंका आज नाजुक आर्थिक संकट से गुजर रहा है जिसके कारण वहां गहरा राजनीतिक संकट पैदा हो चुका है. इस देश की बहुसंख्यक आबादी सिंहली (74%) और दूसरी बड़ी आबादी तमिल (18%) की है. आज कोई भी देश यह नहीं चाहता होगा कि उसकी दुर्दशा श्रीलंका जैसी हो. 



वर्षों तक जातीय संघर्ष और गृह युद्ध को झेल चुका यह देश आज विकराल आर्थिक संकट का शिकार हो चुका है. ऊपर से दिखने में यह आर्थिक संकट लगता है लेकिन इसकी जड़ें हमें श्रीलंका की सत्ता पर काबिज महिंदा राजपक्षे की बहुसंख्यक तुष्टिकरण और अल्पसंख्यक द्वेष की राजनीति में दिखाई देती है. तुष्टिकरण की इस राजनीति की झलक भारत में भी बड़े पैमाने पर देखी जा सकती है. साल 2014 से भारत में चल रही राजनीति की दिशा महिंदा राजपक्षे की राजनीति से काफी मिलती-जुलती है.  

साल 2009 में चले श्रीलंका के गृह युद्ध में महिंदा राजपक्षे की सरकार ने बहुसंख्यक जाति सिंहली के बीच राजनीति में अपनी पैठ बनाने के लिए तमिलों का नरसंहार करवाया. तमिल और सिंहली समुदाय का यह विश्व प्रसिद्ध युद्ध वर्षों तक कत्लेआम और बलात्कार की कहानी बयां करता है जिसके कारण पूरी दुनिया से श्रीलंका की सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा. किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए उसकी अल्पसंख्यक जनता के हितों को ध्यान में रखना सिर्फ जरूरी नहीं बल्कि परम कर्तव्य होता है. श्रीलंकाई तमिल जनता में LTTE जैसे कुछ आतंकवादी तत्व थे लेकिन उनके नाम पर लाखों तमिल जनता को इसके लिए जिम्मेदार मान कर दंडित करना यह फासीवादी चरित्र है. 

श्रीलंका की बहुसंख्यक जनता इस राजनीति में फंस गई और उन्होंने महिंदा राजपक्षे को लगातार दो बार अध्यक्ष पद के लिए चुना. लेकिन उसकी आर्थिक नीतियों को नजरअंदाज किया. महिंदा राजपक्षे ने सत्ता में काबिज होकर सभी पदों पर अपने सगे भाई और उनके बेटों को नियुक्त करवाया. श्रीलंका को आजादी मिलने के बाद कभी भी इस तरह के आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ा है. श्रीलंका देश के आने वाले कई पीढ़ियों को इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे. श्रीलंका जैसी राजनीतिक परिस्थितियां भारत जैसे देश में भी पैदा हो सकती हैं. जिस तरीके से सार्वजनिक संपत्तियों का निजीकरण, नोटबंदी, कोरोना संकट में आर्थिक अव्यवस्था, महंगाई, बेरोजगारी जैसी समस्याओं को जनता पर लगातार थोपा जा रहा है और इस से ध्यान भटकाने के लिए अल्पसंख्यकों के खिलाफ देश की जनता को भड़काया जा रहा है. 

श्रीलंकाई जनता महंगाई, दवाइयों की किल्लत, अनाज की किल्लत, पेट्रोल, डीजल एवं गैस सिलेंडर की कमी और बिजली की आपूर्ति में कमी जैसी समस्याओं के चलते संकट की खाई में गिरती चली जा रही है. महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद पर बैठकर अपने भाई गोटबाया को राष्ट्रपति बनाया. सिर्फ यहां तक उनकी महत्वाकांक्षा नहीं थमी, उन्होंने अपने और 4 भाइयों को मंत्री बनाया. इस तरह से श्रीलंका के कुल बजट में से 75 फ़ीसदी बजट का खर्चा राजपक्षे भाइयों के हाथ में ही था. श्रीलंका जब कर्ज के बोझ तले दब गया है, ऐसे में आम जनता सड़क पर उतर कर आंदोलन कर रही है. देश के हालात से परेशान श्रीलंका की जनता पर महिंदा राजपक्षे ने अपने 3000 से ज्यादा राजनीतिक गुंडों द्वारा हमले करवाए. इससे परिस्थितियां बेकाबू हो गईं जिसकी कल्पना शायद प्रधानमंत्री राजपक्षे ने नहीं की थी. जनता का आन्दोलन आखिर में राजपक्षे सरकार के इस्तीफे के साथ समाप्त हुआ. जैसे भारत में संवैधानिक संस्थाओं तथा संघीय राज्य प्रणाली को कमजोर बना कर भारत के राजनीतिक नेता अपने हाथ में सत्ता का केंद्रीकरण कर रहे हैं वैसे ही श्रीलंका में अक्टूबर 2021 में संविधान में 28 वां संशोधन करवा कर संसद को बर्खास्त करने का अपने पास कोई भी मंत्रालय रखने का और स्वायत्त संस्थाओं के पदों पर अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार राष्ट्रपति गोटाबाया ने अपने हाथ में लिया था.

महिंदा राजपक्षे ने 19 नवंबर, 2005 को राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. 2007 से 2009 तक युद्ध बंदी का वादा तोड़ते हुए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सूचनाओं की अनदेखी कर तमिल विद्रोहियों पर और उसी के साथ तमिल जनता पर भी अनेक संहारक शास्त्रों से हमले किए. इसमें लगभग एक लाख तमिल लोग मारे गए. तमिल महिलाओं का बलात्कार किया गया, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार किया गया. इस दौरान 40000 लोग लापता घोषित किए गए. श्रीलंकाई सेना द्वारा जो लोग मारे गए थे लेकिन उनके शव भी उनके रिश्तेदारों को सौंपे नहीं गए. आज भी कोलंबो की सड़कों पर इनके रिश्तेदारों द्वारा आंदोलन किए जाते हैं लेकिन सरकार के पास इन 40000 लोगों का कोई पता नहीं. इस तरीके से मानव अधिकारों का उल्लंघन किए जाने पर जनता को ऐसी सरकार और राजनेताओं को चुनाव में हराना चाहिए था लेकिन 2010 के चुनाव में महिंदा राजपक्षे फिर से चुन के आए. इससे पता चलता है की अल्पसंख्यक तमिल लोगों के खिलाफ बहुसंख्यक जनता को बरगलाया गया जिससे जनता द्वारा राजपक्षे परिवार के राजनीतिक व् आर्थिक निर्णयों की आलोचना नहीं की गयी. 

साल 2010 में, विकीलीक्स ने 2009 और 2010 के दौरान भेजे गए अमेरिकी संदेशों को सार्वजनिक रूप से वर्गीकृत किया, जिसमें कहा गया था कि श्रीलंका में अमेरिकी राजदूत पेट्रीसिया ए बुटेनिस सहित अमेरिकी राजनयिकों का मानना था कि राजपक्षे तमिल नागरिकों के नरसंहार के लिए जिम्मेदार थे और अंत में लिट्टे सेनानियों को पकड़ लिया. अनेक संस्थाओं ने कई कथित अपराधों की जिम्मेदारी राष्ट्रपति राजपक्षे, उनके भाइयों और जनरल फोन्सेका सहित देश के वरिष्ठ नागरिक और सैन्य नेतृत्व पर डाली है. 

अप्रैल 2011 में, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ‘बान की मून’ ने विशेषज्ञों के संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त पैनल द्वारा एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि तमिल टाइगर्स और सत्ता के बीच युद्ध के अंतिम हफ्तों में 40,000 लोग मारे गए थे. ब्रिटेन के चैनल फॉर न्यूज जैसे कई विदेशी पत्रकारों और समाचार टीमों ने नागरिकों को लक्षित गोलाबारी, फांसी और अत्याचार के सबूतों को रिपोर्ट किया और फिल्माया है. उन्होंने लिखा है कि मृत महिला तमिल लड़ाकों के साथ बलात्कार किया गया या उनका यौन उत्पीड़न किया गया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और उनकी हत्या कर दी गई. लेकिन इस सार्वजनिक सच का राजपक्षे और उनकी सरकार ने युद्ध अपराधों के सभी आरोपों से इनकार किया है. उसी समय, उन्होंने सिंहल बौद्ध चरमपंथियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, उनके भाई, गोटाभाया राजपक्षे पर चरमपंथी बोडु बाला सेना का समर्थन करने का आरोप लगा था, लेकिन बाद में उन्होंने संगठन से खुद को दूर कर लिया, यह आरोप लगाते हुए कि यह एक "पश्चिमी साजिश" है.

राष्ट्रपति राजपक्षे ने श्रीलंकाई गान के तमिल संस्करण पर एक अनौपचारिक प्रतिबंध भी लगाया, यह गान 1948 से अस्तित्व में है और 1949 स्वतंत्रता दिवस सहित विभिन्न कार्यक्रमों में गाया गया है. तमिल भाषी क्षेत्रों में राज्य प्रशासकों ने गान के तमिल संस्करण को अवरुद्ध कर दिया और कुछ मामलों में रोकने के लिए सुरक्षा बलों का इस्तेमाल किया. उन्होंने गान के तमिल संस्करण के खिलाफ अपना रुख जारी रखा और अपने उत्तराधिकारियों को प्रतिबंध हटाने और स्वतंत्रता दिवस पर इसे फिर से गाने के लिए नारा दिया, यह दावा करते हुए कि "राष्ट्रगान एक भाषा में गाया जाना चाहिए, न कि दो या तीन भाषाओं में"; राजपक्षे समर्थक संयुक्त विपक्ष ने भी इस आयोजन का बहिष्कार किया. राजपक्षे सरकार की उनके भ्रष्टाचार के लिए आलोचना की गई है. उनके नेतृत्व के दौरान, श्रीलंका ने ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल करप्शन इंडेक्स में बेहद कम स्तर दिए गए. 

राज्य द्वारा संचालित इंडिपेंडेंट टेलीविज़न नेटवर्क (ITN) द्वारा किए गए कथित वित्तीय नुकसान को लेकर धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग, राज्य संसाधनों और विशेषाधिकारों (PRECIFAC) के गंभीर कृत्यों की जांच और जांच करने के लिए राष्ट्रपति के जांच आयोग द्वारा राजपक्षे की जांच की जा रही थी. राजपक्षे के 2015 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान प्रसारित विज्ञापनों के लिए भुगतान करने में उनके अभियान की विफलता और सितंबर 2014 में ITN अध्यक्ष की नियुक्ति पर भी. हालांकि, राजपक्षे ने PRECIFAC पर असंवैधानिक होने का आरोप लगाया है, और राजपक्षे के वकीलों ने इसकी संरचना पर आपत्ति जताई है.

16 जनवरी 2015 को, सिरिसेना सरकार ने घोषणा की कि वह चीन और अन्य देशों के साथ राजपक्षे के सौदों की जांच करेगी जिसमें कथित तौर पर रिश्वत और मेगा-प्रोजेक्ट सौदे शामिल थे. इसके अलावा, सरकार ने कहा कि जांच पूरी होने तक सौदों को निलंबित कर दिया जाएगा। जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) ने घोषणा की कि उन्होंने रिश्वत और भ्रष्टाचार आयोग में राजपक्षे भाइयों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप दायर किए हैं और मांग की है कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के लिए 11 व्यक्तियों और एक संस्था की जांच की जानी चाहिए. इस बीच, सांसद मर्विन सिल्वा ने भी महिंदा के भाइयों, गोटबाया राजपक्षे और बासिल राजपक्षे के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप दायर किए. सिल्वा ने मानवाधिकारों के उल्लंघन और लसंथा विक्रमतुंगे की मौत के लिए पूर्व रक्षा सचिव गोटाबाया राजपक्षे की आलोचना की. प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी इकाई में भ्रष्ट भूमि लेनदेन, शेयर बाजार मूल्य-निर्धारण, और राजपक्षे परिवार द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए राज्य के धन के दुरुपयोग को देखने के लिए एक उच्च अधिकार वाली "त्वरित प्रतिक्रिया टीम" शामिल थी.

श्रीलंका वायु सेना ने घोषणा की कि महिंदा राजपक्षे और उनके परिवार ने राष्ट्रपति चुनाव अभियान के लिए सैन्य विमान का इस्तेमाल किया था, जिसमें सार्वजनिक धन के 17,300 डॉलर (2,278,000 रुपये) का इस्तेमाल पूरे द्वीप में यात्रा करने के लिए किया गया था. राजपक्षे और उनका परिवार संगठनों और चुनाव मॉनिटरों से कई राज्य संसाधनों के दुरुपयोग की शिकायतों का विषय था, जिसमें धोखाधड़ी, शक्तियों के दुरुपयोग, हत्या और मनी-लॉन्ड्रिंग गतिविधियों में शामिल होने के दावे शामिल थे जो लगभग 5.31 बिलियन डॉलर था. अवैध रूप से सेंट्रल बैंक के माध्यम से राजपक्षे के श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के पूर्व गवर्नर अजित निवार्ड काबराल के साथ घनिष्ठ संबंध का उपयोग करते हुए भ्रष्टाचार किया.

राजपक्षे को अपने समय का सबसे लोकप्रिय श्रीलंकाई राजनेता माना जाता है. हालाँकि, राजपक्षे पर गृहयुद्ध की जीत और सिंहल अंधराष्ट्रवाद का उपयोग करके अपने चारों ओर व्यक्तित्व का पंथ बनाने का आरोप है. उनके कुछ समर्थकों द्वारा उन्हें "राजा" के रूप में संदर्भित किया गया था, और उन्होंने खुद को एक मजबूत व्यक्ति के रूप में चित्रित करने के लिए मीडिया का इस्तेमाल किया. सत्ता में रहते हुए, उनकी तस्वीरें बसों, होर्डिंग और सभी प्रकार के मीडिया पर दिखाई जाती थीं. टेलीविजन विज्ञापन जहां स्कूली बच्चों द्वारा उनकी रैलियों में गाने गाए जाते थे, उन्हें "हमारे पिता" और "देश के पिता" के रूप में जाना जाता था. राजपक्षे ने मुद्रा पर अपनी तस्वीर भी छापी और बजट एयरलाइन का नाम मिहिन लंका रखा. राजपक्षे ने सोचा कि उनका नाम आकाश में होने से उन्हें सौभाग्य प्राप्त होगा.  

मटाला राजपक्षे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, मगमपुरा महिंदा राजपक्षे बंदरगाह, नीलम पोकुना महिंदा राजपक्षे थिएटर, और महिंदा राजपक्षे अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम, राजपक्षे द्वारा उनके प्रशासन के दौरान शुरू की गई और उनके नाम पर सभी हाई-प्रोफाइल भव्य बुनियादी ढांचा परियोजनाएं बनायीं गयी. भारत की सत्ता में काबिज नेताओं की कार्य और खुद के नाम पर भवन निर्माण की प्रवृति राजपक्षे के सोच से बहुत अलग नहीं है. श्रीलंका में आलोचकों ने राजपक्षे पर संकीर्णतावादी होने का आरोप लगाया है और भारत की सरकार भी खुद की गौरव गाथा लिखे जाने के लिए आलोचना का सामना कर रहे हैं.                      
                 
श्रीलंका के इन राजनेताओं के कई सारे चरित्र भारत के वर्तमान राजनीति में भी दिखाई देते हैं. बहुसंख्यकों का तुष्टिकरण और अल्पसंख्यक समुदाय से द्वेष भारत में भी साफ़ नजर आ रहा है जो दोनों देशों की सोच में समानता को दिखाता है. यह सच है कि भारत और श्रीलंका के आर्थिक क्षमता में कहीं तुलना नहीं हो सकती लेकिन भारत के अर्थव्यवस्था में पिछले कुछ सालों में जिस तरीके से दिशाहीन निर्णय लिए गए हैं वह लम्बे समय में गंभीर परिणाम देगा. आज इस कगार पर भारतीय अर्थव्यवस्था खड़ी है अगर उसके नीतियों में बदलाव नहीं लाया तो उसको श्रीलंका जैसे संकट की तरफ बढ़ने में देर नहीं लगेगी. 

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