गुड़गांव : बांग्ला भाषी प्रवासी मजदूर रिहा, ‘बांग्लादेशी’ बताए गए दस लोग अभी भी हिरासत में

Written by sabrang india | Published on: July 29, 2025
असम और पश्चिम बंगाल के सैकड़ों बांग्लाभाषी प्रवासी मज़दूरों को गुड़गांव में हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने करीब करीब सभी को रिहा कर दिया है। पुलिस का दावा है कि अब केवल 10 लोग हिरासत में हैं। इन्हें वह ‘बांग्लादेशी नागरिक’ बता रही है।


फोटो साभार : द वायर

गुड़गांव में हाल ही में असम और पश्चिम बंगाल के बांग्ला भाषी प्रवासी मजदूरों को हिरासत में लिया गया, लेकिन कुछ दिनों बाद उनमें से अधिकांश को रिहा कर दिया गया। हिरासत में लिए गए सैकड़ों प्रवासियों में कचरा बीनने वाले, सफाईकर्मी और घरेलू कामगार शामिल थे। हालांकि, प्रशासन ने दस लोगों को ‘बांग्लादेशी नागरिक’ बताते हुए रिहा नहीं किया है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, गुड़गांव पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) संदीप कुमार ने पुष्टि की कि दस लोगों को छोड़कर बाकी सभी को रिहा कर दिया गया है।. उनका दावा है कि ये दस लोग बांग्लादेश से आए बिना दस्तावेज वाले अवैध प्रवासी हैं और उनके देश वापसी की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

उन्होंने कहा, ‘हिरासत में अब सिर्फ दस लोग बचे हैं, जिनकी पहचान बांग्लादेशी नागरिकों के रूप में हुई है।’

जब द वायर ने पूछा कि किन आधारों पर इन दस लोगों को अवैध प्रवासी माना गया जबकि बाकी को रिहा कर दिया गया, तब संदीप कुमार ने बताया, ‘इन दस लोगों के पास कुछ दस्तावेज हैं जो साबित करते हैं कि वे बांग्लादेश से हैं।’

जब उनसे पूछा गया कि क्या अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान और निर्वासन की यह कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी, तो उन्होंने कहा, “सत्यापन की प्रक्रिया जारी है, और केवल उन्हीं लोगों को हिरासत में लिया जाएगा जो संदेह के दायरे में हैं।”

जब उनसे यह पूछा गया कि जिन ‘सैकड़ों लोगों’ को पहले हिरासत में लिया गया और बाद में रिहा कर दिया गया, क्या वे भी ‘बेहद संदिग्ध’ थे, तो कुमार ने इस आंकड़े पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि यह संख्या कहां से आई। उन्होंने कहा कि अभियान अभी जारी है और फिलहाल कोई आधिकारिक आंकड़ा साझा नहीं किया जा सकता।

रिहाई की प्रक्रिया को लेकर उन्होंने बताया, “हमने उन जिलों के प्रशासन से संपर्क किया, जिनके निवासी होने का दावा हिरासत में लिए गए व्यक्तियों ने किया था। संबंधित जिला अधिकारियों द्वारा उनकी नागरिकता की पुष्टि के बाद ही उन्हें रिहा किया गया।”

यह रिहाई विपक्षी नेताओं और नागरिक समाज की ओर से इस कार्रवाई की आलोचना और लगातार सवाल उठाए जाने के बीच हुई है।

गुड़गांव में हुई इस कार्रवाई को ‘भाषाई आतंकवाद’ (linguistic terrorism) बताते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि वह इन ‘डबल इंजन की सरकारों द्वारा बंगालियों पर किए जा रहे भयानक अत्याचारों’ को देखकर हैरान हैं। उन्होंने कहा, ‘आप क्या साबित करना चाहते हैं? यह बेहद अमानवीय और भयावह है। हम इसे सहन नहीं करेंगे।’

एक वीडियो संदेश में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस अभियान की तुलना ‘नाजी जर्मनी में जीने’ से की।

एआईएमएआईएम प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इन हिरासतों को अवैध करार देते हुए सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, “यह सरकार कमजोरों के प्रति सख्त और ताकतवरों के प्रति नरम है। जिन लोगों को ‘अवैध प्रवासी’ कहा जा रहा है, वे समाज के सबसे गरीब वर्ग से हैं। झुग्गीवासियों, सफाईकर्मियों, घरेलू सहायकों और कूड़ा बीनने वालों को बार-बार निशाना बनाया जाता है क्योंकि वे पुलिस की ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाने में असमर्थ होते हैं।”

शुक्रवार को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने गुड़गांव में बांग्लाभाषी प्रवासियों से मुलाकात की।

हाल में हुई इस कार्रवाई के बाद बड़ी संख्या में बांग्ला भाषी प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्य असम और पश्चिम बंगाल लौट चुके हैं।

जब द वायर की टीम गुड़गांव के असमिया मुस्लिम बहुल मुहल्ला खटोला गांव पहुंची, तब पूरा मोहल्ला लगभग खाली हो चुका था। वहां के स्थानीय लोगों के अनुसार, पहले यहां करीब 2000 लोग रहते थे। वहां केवल कुछ महिलाएं बची थीं, जो अपने हिरासत में लिए गए अपने-अपने पति और पुरुष रिश्तेदारों से मिलने जा रहीं थीं।

हाल में की गई इस कार्रवाई के बाद, लगभग पूरा मोहल्ला पलायन कर चुका है।

जब हिरासत में लिए गए लोगों को रिहा किया जा रहा है, तब सायरा बानो और उनका परिवार समेत बचे सभी लोग असम लौट रहे हैं।

द वायर की पिछली रिपोर्ट में शामिल सभी प्रवासी मजदूरों को रिहा कर दिया गया है।

हिरासत में लिए गए हाफिज़ुर शेख के भाई अमानूर शेख ने बताया कि उनके भाई को रिहा कर दिया गया है, लेकिन परिवार अब भी डर के साए में जी रहा है।

रफुकुल इस्लाम को 23 जुलाई को रिहा किया गया, जहां उन्हें पांच दिनों से ज्यादा समय तक हिरासत में रखा गया था। उन्हें 18 जुलाई को हिरासत में लिया गया था और बसापुर सिटी सेंटर स्थित वोट कैंप ले जाया गया था, जिसे पुलिस ‘होल्डिंग सेंटर’ बताती है।

रफुकुल के अनुसार, उस सेंटर में करीब 150 लोगों को रखा गया था। उन्होंने बताया कि उनमें से 15-16 लोग हिंदू थे, जिन्हें पहले ही रिहा कर दिया गया था, जबकि बाकी सभी असम और बंगाल के मुस्लिम थे।

उन्होंने कहा, “हमारे साथ 27 ऐसे लोग थे जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। हम सभी को एक ही मोहल्ले से हिरासत में लिया गया था। अब पुलिस ने हम सभी को रिहा कर दिया है।”

यह पूछे जाने पर की रिहाई के दौरान पुलिस ने उनसे क्या कहा, तो रफुकुल ने जवाब दिया, ‘कुछ नहीं, बस कुछ कागजों पर साइन करवाए और बोले, ‘तुम लोग अब जाओ यहां से, तुम्हारा हो गया अभी।’

उन्होंने यह भी दावा किया कि पुलिस ने सभी के मोबाइल फोन जब्त कर लिए थे। “कुछ लोगों को फोन वापस मिले, लेकिन मुझे और कई अन्य लोगों को अब तक वापस नहीं मिले हैं।”

रिहाई के बाद रफुकुल और अन्य सभी लोग एनसीआर छोड़कर अपने-अपने गांव लौट गए। रफुकुल असम के कोकराझार जिले के रहने वाले हैं।

उन्होंने कहा, “जब हालात सामान्य हो जाएंगे, तब हम फिर से लौटेंगे। रोज़ी-रोटी वहीं है, ज्यादा दिन दूर रहकर कैसे गुज़ारा होगा? लेकिन फिलहाल हम गुड़गांव में नहीं रह सकते... पता नहीं फिर कब पुलिस हमें उठा ले।”

जब उनसे पूछा गया कि पुलिस ने उन्हें किन आधारों पर हिरासत में लिया था, तो रफुकुल ने बताया, “पुलिस ने पूछा कि तुम लोग कहां से हो। जब हमने कहा कि हम असम से हैं, तो उन्होंने कहा, ‘नहीं-नहीं, तुम लोग बांग्लादेश से हो, चलो गाड़ी में बैठो,’ और फिर हमें सेंटर ले जाया गया।”

Related

गुरुग्राम के ‘होल्डिंग सेंटर’ में बंद बांग्लाभाषी मुस्लिम: ‘केवल भाषा के कारण हमें हिरासत में लिया गया’ 

असम : याचिकाकर्ताओं ने दोबारा हिरासत में लिए जाने को दी चुनौती, राज्य सरकार के हलफनामे को बताया "अस्पष्ट और अपर्याप्त"

बाकी ख़बरें