मुंबई के सार्वजनिक अस्पतालों के निजीकरण को रोकने के लिए नागरिकों का आह्वान

Written by sabrang india | Published on: October 27, 2025
अस्पताल बचाओ, निजीकरण हटाओ, कृति समिति और गठबंधन बनाने वाली यूनियनें भी मुंबई के सभी लोगों के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य कर्मचारियों और उन्नत सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की मांग कर रही हैं।



सामाजिक संगठनों, बीएमसी स्वास्थ्य कर्मचारी यूनियनों और स्वास्थ्य समूहों के एक बड़े गठबंधन ने मुंबई बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के तहत मुंबई के सार्वजनिक अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं के चल रहे निजीकरण को तत्काल रोकने का आह्वान करते हुए, रिक्त पदों को भरने के लिए तत्काल और नियमित भर्तियों की भी मांग की है। साथ ही मुंबई के सभी निवासियों के लिए समान, गुणवत्तापूर्ण देखभाल सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को व्यवस्थित रूप से मजबूत करने की भी मांग की है।

निजीकरण को सही ठहराने के लिए एक गढ़ा गया संकट?

बीएमसी के छह प्रमुख अस्पतालों को वर्तमान में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) व्यवस्था के तहत निजी कंपनियों को सौंपा जा रहा है। इस गठबंधन के विचारों के अनुसार, यह कदम मुफ्त सार्वजनिक सेवाओं की जगह शुल्क के साथ देखभाल को बढ़ावा देगा, जिसका सबसे ज्यादा असर मुंबई के गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों पर पड़ेगा। साथ ही, बीएमसी लगातार नियमित स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या कम कर रही है, स्थायी पदों की जगह आउटसोर्स और संविदा कर्मचारियों को रख रही है, जिससे सेवा की गुणवत्ता और कर्मचारियों की सुरक्षा दोनों ही कम हो रही है।

बीएमसी के स्वास्थ्यकर्मियों के बड़े पैमाने पर सेवानिवृत्त होने के बावजूद, नियमित पदों को भरने या बढ़ाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया है। यह एक सोची-समझी रणनीति है - उपेक्षा के जरिए सार्वजनिक प्रणाली को कमजोर करना और फिर लंबे अनुबंधों के तहत इसे निजी संचालकों को सौंप देना। इसका परिणाम है -मुफ्त इलाज पाने में कमी, कामकाज की स्थिति का बिगड़ना और सेवा की गुणवत्ता का गिरना।

बीएमसी की स्वास्थ्य सेवाओं में पीपीपी परियोजनाओं का परेशानियों वाला रिकॉर्ड

अपने आरोपों के समर्थन में विवरण देते हुए नागरिकों ने सोमवार, 7 अक्टूबर को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि मुंबई की नगर स्वास्थ्य प्रणाली में पहले से ही 20 से ज्यादा पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) परियोजनाएं चल रही हैं - जिनमें आईसीयू, डायग्नोस्टिक सेंटर, डायलिसिस यूनिट, और संपूर्ण प्रसूति गृह व अस्पताल शामिल हैं। फिर भी, ऐसा कोई स्वतंत्र प्रमाण नहीं है कि इन पीपीपी व्यवस्थाओं ने स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता या जवाबदेही में सुधार किया हो। कई पीपीपी परियोजनाएं गंभीर समस्याओं से ग्रस्त रही हैं, लेकिन ऐसे अनुभवों के बावजूद, मौजूदा परियोजनाओं का कोई व्यापक मूल्यांकन किए बिना निजीकरण की नई पहलें लगातार जारी हैं।

मुंबई और पुणे में स्वास्थ्य सेवा पीपीपी पर किए गए एक हालिया अध्ययन से निम्नलिखित चिंताजनक समस्याएं सामने आई हैं:

● आउटसोर्स किए गए आईसीयू में, यहां तक कि होम्योपैथी चिकित्सकों द्वारा संचालित आईसीयू में भी, अयोग्य डॉक्टर तैनात हैं, जिससे मरीजों की सुरक्षा खतरे में पड़ रही है और रोकी जा सकने वाली मौतें हो रही हैं। 149 मौतों का खुलासा होने के बाद कई करोड़ रुपये का एक आईसीयू अनुबंध रद्द कर दिया गया।

● पीपीपी के तहत डायग्नोस्टिक सेंटर अक्सर मरीजों से सरकारी अस्पतालों की तुलना में तीन से पंद्रह गुना ज्यादा शुल्क लेते हैं, जिससे कम आय वाले समुदायों के लिए ये केंद्र पहुंच से दूर हो जाते हैं।

● निगरानी तंत्र बहुत कमजोर है, जिससे अनुबंधों का पालन न होना, अयोग्य कर्मचारी और अनियमित सेवा वितरण संभव है। पूर्णकालिक डॉक्टरों, आवश्यक उपकरणों या बुनियादी सेवाओं की कमी के कारण, पर्याप्त बुनियादी ढांचे के बावजूद कुछ पीपीपी अस्पताल पूरी तरह से कम इस्तेमाल में आ रहे हैं।

● अनुबंध प्रक्रिया में राजनीतिक प्रभाव है, पार्षद या पूर्व पार्षद ठेके हासिल करने के लिए कंपनियां बनाते हैं या बोली लगाने वालों का पक्ष लेते हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवा प्रावधान एक राजनीतिक-व्यावसायिक उद्यम बन जाता है।

कुल मिलाकर, विभिन्न नगरपालिका सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के तहत मरीजों से ली जाने वाली दरें तुलनात्मक सार्वजनिक अस्पतालों की दरों से दो से पच्चीस गुना अधिक पाई गईं। अध्ययन का निष्कर्ष है कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) अब जनहित के साधन के बजाय निजी लाभ का साधन बन गए हैं।

असली मुद्दा: कर्मचारियों की कमी

निजीकरण की कोशिशों को सार्वजनिक अस्पतालों में अपर्याप्त क्षमता के दावों से उचित ठहराया जाता है। वास्तव में, बीएमसी ने अपनी स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार कम कर्मचारियों की नियुक्ति करके एक कृत्रिम कमी पैदा कर दी है। प्रजा फाउंडेशन की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, नगरपालिका अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए 46%, नर्सों और पैरामेडिकल कर्मचारियों के लिए 26% और श्रमिक कर्मचारियों के लिए 42% की भारी रिक्तियों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि स्वास्थ्य विभाग में कुल रिक्तियों का स्तर 36% है। भर्ती और बेहतर कामकाजी परिस्थितियों में निवेश करने के बजाय, बीएमसी संसाधनों को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) में लगा रही है - जिससे निजी ऑपरेटरों को फायदा हो रहा है और सार्वजनिक जवाबदेही को दरकिनार किया जा रहा है।

जिस बात पर जोर देना जरूरी है, वह यह है कि मुंबई में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की कोई कमी नहीं है। उपलब्ध मैनपावर को आसानी से नियुक्त किया जा सकता है और बीएमसी के सभी खाली पद तुरंत भरे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, बीएमसी में लगभग 975 चिकित्सा पद खाली हैं, जबकि केवल मुंबई के सरकारी मेडिकल कॉलेजों से हर साल लगभग 1200 एमबीबीएस डॉक्टर और करीब 1000 एमडी/एमएस डॉक्टर स्नातक होते हैं। यानी सभी खाली पदों को भरने के लिए पर्याप्त डॉक्टर, नर्सें और स्वास्थ्यकर्मी उपलब्ध हैं।

समुदाय, स्वास्थ्यकर्मी और जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ अपनी आवाज उठा रहे

मुंबई के विभिन्न हिस्सों में, खासकर बस्तियों और अनौपचारिक बस्तियों (informal settlements) में सामाजिक आंदोलनों और सामुदायिक संगठनों ने इस्तेमाल-शुल्क आधारित पीपीपी (Public-Private Partnership) मॉडल का विरोध किया है, क्योंकि इससे उन्हें जीवनरक्षक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित होना पड़ेगा। इस विरोध का एक प्रमुख उदाहरण “अस्पताल बचाओ, निजीकरण हटाओ क्रियान्वयन समिति” का आंदोलन है, जो एम-ईस्ट वार्ड (मानखुर्द और गोवंडी क्षेत्रों) के निवासियों के बीच सक्रिय है। यह 25 से ज्यादा संगठनों का एक गठबंधन है, जिसने जुलाई से अब तक कई बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं। उनका मुख्य मांग है - शताब्दी अस्पताल और लल्लुभाई कंपाउंड सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल के निजीकरण की प्रक्रिया को रोका जाए। यह जनआंदोलन बीएमसी के उस प्रस्ताव के प्रति एक सशक्त, जमीनी स्तर से उठी असहमति है, जिसके तहत प्रमुख सार्वजनिक अस्पतालों को बेहद समस्याग्रस्त पीपीपी मॉडल के तहत निजी कंपनियों को सौंपने की योजना है।

नगर स्वास्थ्यकर्मी यूनियनों ने भी इस आंदोलन में शामिल होकर यह उजागर किया है कि आउटसोर्सिंग और पीपीपी (Public-Private Partnership) मॉडल से स्वास्थ्यकर्मियों के लिए स्थायी रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) पर काम करने वाले कर्मचारियों को बहुत कम वेतन मिलता है, नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं होती और सामाजिक सुरक्षा के प्रावधानों से वे वंचित रहते हैं। निजीकरण के चलते अनुभवी नियमित स्वास्थ्यकर्मियों की टीमों की जगह अस्थायी संविदा कर्मियों को रखा जा रहा है, जिससे मरीजों की देखभाल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इस गठबंधन से जुड़ी सभी यूनियनें - जो मुंबई के हजारों स्वास्थ्यकर्मियों का प्रतिनिधित्व करती हैं - मांग कर रही हैं कि बीएमसी के तहत चल रहे सभी प्रकार के निजीकरण को तुरंत रोका जाए। साथ ही, मौजूदा बड़ी संख्या में रिक्त पदों को नियमित नियुक्तियों के माध्यम से शीघ्र भरा जाए और शहर की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त पद सृजित किए जाएं। इससे बीएमसी के मौजूदा स्वास्थ्यकर्मियों पर बढ़ते कार्यभार में कमी आएगी। कोविड महामारी के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और उसके कर्मचारियों की निर्णायक भूमिका इस मांग की तात्कालिकता को और भी स्पष्ट करती है।

जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ भी इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि सार्वजनिक धन से बने अस्पतालों को बिना ठोस साक्ष्यों या जवाबदेही तंत्र के निजी कंपनियों को क्यों सौंपा जा रहा है। राजनीतिक रूप से जुड़े, गैर-चिकित्सकीय संचालकों की इस क्षेत्र में प्रवेश से स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और चिकित्सा-नैतिकता पर गंभीर असर पड़ता है विशेष रूप से आईसीयू और मातृत्व सेवाओं जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में। मुंबई को इस समय जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, वह है एक सशक्त, सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित स्वास्थ्य प्रणाली - न कि ऐसा निजीकरण आधारित ढांचा जो जरूरतमंद आबादी के बड़े हिस्से को बाहर कर दे।

गठबंधन की साझा मांगें

गठबंधन बीएमसी से यह मांग करता है कि वह अपने निजीकरण और ठेकेदारी आधारित घातक नीति को तुरंत वापस ले क्योंकि इससे केवल ठेकेदारों, भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं को लाभ होता है। इसके बजाय, बीएमसी को जनहित में ठोस और त्वरित कदम उठाने चाहिए, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

● मुंबई के सभी सार्वजनिक अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए प्रस्तावित पीपीपी आधारित निजीकरण योजनाओं को तुरंत रोकना और रद्द करना तथा मौजूदा पीपीपी परियोजनाओं की एक स्वतंत्र समीक्षा कर उन्हें फिर से सार्वजनिक मैनेजमेंट के अधीन लाने की योजना बनाना।

● तत्काल भर्ती अभियान शुरू करना, ताकि डॉक्टरों, नर्सों, पैरामेडिकल स्टाफ, स्वच्छता कर्मियों और सहायक कर्मचारियों सहित सभी रिक्त पदों को नियमित नियुक्तियों के माध्यम से भरा जा सके - और साथ ही आउटसोर्सिंग को धीरे-धीरे समाप्त किया जाए।

● सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त करने के लिए एक व्यापक योजना तैयार करना, जिसमें नियमित भर्ती, जनसंख्या की जरूरतों के अनुरूप बजट में वृद्धि और बेहतर प्रबंधन शामिल हो। इस योजना को स्वास्थ्य सेवाओं के विभिन्न स्तरों और आवश्यक दवाओं की सुनिश्चित व गुणवत्तापूर्ण उपलब्धता से जोड़ा जाना चाहिए।

● पारदर्शिता और सामाजिक जवाबदेही के लिए ठोस तंत्र विकसित करना, जिसमें बीएमसी की स्वास्थ्य सेवाओं की सामुदायिक निगरानी और समुदायों, नागरिक संगठनों तथा स्वास्थ्यकर्मियों की भागीदारी से संचालित शासन-प्रणालियां शामिल हों।

संयुक्त कार्ययोजना – अस्पताल बचाओ, निजीकरण हटाओ, कृति समिति और यूनियनें

- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के लिए निविदा प्राप्त अस्पतालों के निजीकरण के खिलाफ एक व्यापक जन अभियान चलाया जाएगा।

- सार्वजनिक स्वास्थ्य परिसरों और सेवाओं में कार्यरत कर्मचारियों की पूर्ण सामाजिक सुरक्षा और अधिकारों की मांग को लेकर स्वास्थ्य कर्मचारी यूनियनों के सहयोग से एक व्यापक अभियान चलाया जाएगा। स्वास्थ्य का अधिकार कर्मचारियों के अधिकारों के बिना पूरा नहीं हो सकता।

- सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और सेवाओं की वर्तमान स्थिति पर चर्चा के लिए शहर भर में जन सुनवाई आयोजित की जाएगी।

- सभी राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों से इन दो मुद्दों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा जाएगा: "लोगों की सेवा के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य परिसरों और सेवाओं का बदलाव और स्वास्थ्य सेवाओं के किसी भी प्रकार के निजीकरण का विरोध।" जो दल या उम्मीदवार इस मुद्दे पर बिना शर्त सहमत होंगे, उन्हें "जन स्वास्थ्य के समर्थक" करार दिया जाएगा, जबकि जो सहमत नहीं होंगे, उन्हें "जन स्वास्थ्य के दुश्मन" करार दिया जाएगा और जनता उन्हें आगामी चुनावों में सबक सिखाएगी।

- 30 नवंबर को मुंबई में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण और ठेकाकरण के खिलाफ नागरिक समाज संगठनों, यूनियनों और अन्य संगठनों द्वारा एक विशाल राज्य स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।

हम हर मुंबईवासी से आह्वान करते हैं कि वह आज स्वास्थ्य सेवाओं के चल रहे निजीकरण के खिलाफ उठ खड़ा हो और आवाज उठाए जो जनता के भरोसे के साथ विश्वासघात है। यह चौंकाने वाला है कि मौजूदा बीएमसी अधिकारी, जिनके पास निर्वाचित निगम के अभाव में प्रमुख नीतिगत निर्णय लेने का कोई लोकतांत्रिक जनादेश नहीं है, स्वास्थ्य सेवाओं के बड़े पैमाने पर निजीकरण को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। आखिर में, गठबंधन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मुंबई एक ऐसी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की हकदार है जो समतामूलक, पारदर्शी और जवाबदेह हो और यह सुनिश्चित करे कि स्वास्थ्य सेवा को एक सार्वजनिक अधिकार के रूप में मजबूत किया जाए, न कि इसे निजी लाभ के लिए एक वस्तु में बदल दिया जाए।

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