“सिस्टम जब हौसला नहीं तोड़ पाती तो वह शरीर को निशाना बनाती है”- इप्सा शताक्षी ने जेल में बंद  अपने पति पत्रकार रुपेश को लेकर कहा 

Written by sabrang india | Published on: October 25, 2025
जेल में बंद पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की पत्नी इप्सा शताक्षी ने एक भावुक पत्र में तीन साल की चुप्पी, साहस और सलाखों के पीछे धीरे-धीरे झेली गई पीड़ा के बारे में लिखा है। उनके शब्द एक ऐसे पत्रकार की तस्वीर पेश करते हैं जिसे अपराध के लिए नहीं, बल्कि ईमानदारी के लिए दंडित किया गया।



झारखंड के पत्रकार रुपेश कुमार सिंह की पत्नी इप्सा शताक्षी ने 24 अक्टूबर 2025 को एक दिल छू लेने वाला लेख लिखा। उसमें उन्होंने बताया कि पिछले तीन साल उनके परिवार के लिए कितने मुश्किल भरे रहे। उनके शब्दों में गुस्सा नहीं था, बल्कि एक शांत दर्द और सच्चाई के लिए लड़ते रहने का हौसला था। उन्होंने कहा कि वो शिकायत करने नहीं, बल्कि सबको यह याद दिलाने के लिए लिख रही हैं कि उनके पति सच, इंसाफ और हिम्मत के लिए खड़े थे।

झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रुपेश जुलाई 2022 से जेल में बंद हैं। उन्हें यूएपीए (Unlawful Activities Prevention Act, 1967) के तहत गिरफ्तार किया गया था। इससे पहले भी उन्हें कई बार परेशान किया गया था, खासकर तब जब उन्होंने जमीन अधिग्रहण, खनन से विस्थापन, आदिवासी अधिकारों और मानवाधिकार उल्लंघनों पर रिपोर्टिंग की थी।

वह गिरफ्तारी जिसने सबकुछ बदल दिया

17 जुलाई 2022 की सुबह, पुलिस झारखंड के रामगढ़ स्थित पत्रकार रुपेश कुमार सिंह के घर पहुंची। करीब नौ घंटे तक घर की पूरी तलाशी ली गई। उनका लैपटॉप, मोबाइल फोन और कई दस्तावेज जब्त कर लिए गए।

उनकी पत्नी इप्सा शताक्षी ने बाद में लिखा, “उनके पास बस एक ही हथियार था- उनकी कलम। लेकिन पुलिस ने उसे भी खतरा मान लिया।”

बाद में पुलिस ने रुपेश कुमार सिंह पर माओवादी संबंधों के आरोप लगाए, जबकि शुरुआत में दर्ज एफआईआर में उनका नाम तक नहीं था। बाद में इन आरोपों को बढ़ाकर यूएपीए (UAPA) के तहत शामिल कर लिया गया जिससे जमानत मिलना लगभग नामुमकिन हो गया।

“आज बात हो पाई…”

इप्सा ने उस पल का जिक्र किया जब कई हफ्तों की चुप्पी के बाद आखिरकार उन्हें अपने पति से बात करने का मौका मिला: 

उन्होंने लिखा, “आज यानी 24 अक्टूबर 2025 को सुबह 10 बजे के लगभग पटना के बेऊर जेल के एसटीडी से रूपेश से बात हुई। बीच में विडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बात हुई थी पर एसटीडी खराब था। 
एसटीडी ठीक होने पर बात हो गई। रूपेश को भागलपुर से 23 सितम्बर को वापस बेऊर जेल लाया गया है।” 

उन्होंने बताया कि रूपेश को 23 सितंबर को फिर से बेउर जेल लाया गया था -लगभग दो साल भागलपुर जेल में रहने के बाद, जहां उन्हें मनमाने और बेबुनियाद आरोपों के तहत सजा के तौर पर भेजा गया था।

उन्होंने लिखा, “कहा गया था कि यह तबादला छह महीने के लिए है, लेकिन उन्हें वहां बीस महीने तक रखा गया।”

रूपेश को सजा के तौर पर भागलपुर भेजा गया

अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि उस दौरान रूपेश की सेहत बहुत बिगड़ गई। आगे उन्होंने लिखा, “भागलपुर जेल में रूपेश की तबियत काफी खराब हो गई थी। उसके ट्राइग्लिसराइड्स और वीएलडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ गया था और रीढ़ की हड्डी की एक नस दब गई थी। हमने अदालत में याचिका दायर की और कोर्ट के आदेश पर उसका इलाज हुआ। कुछ समय बाद रिपोर्ट्स बेहतर आईं। डॉक्टरों ने नियमित जांच और सही खानपान की सलाह दी थी।” 

उन्होंने लिखा, लेकिन पटना वापसी के बाद से कोर्ट के आदेश के बावजूद रूपेश को बुनियादी इलाज तक नहीं मिल रहा है।

बिना वजह बंद रखा गया है सेल में

आगे उन्होंने कहा, “बेउर जेल लौटने के बाद से रूपेश को बिना किसी कारण के सेल में बंद रखा गया है।”

“पहले, जब उन्हें भागलपुर नहीं भेजा गया था, तब वह सामान्य वार्ड में थे।”

ईप्सा ने जेल प्रशासन की लापरवाही को लेकर साफ शब्दों में लिखा - “उन्हें डॉक्टरों ने स्पेशल डाइट की जरूरत बताई है, लेकिन जेल मैन्युअल में तय साधारण खाना भी ठीक से नहीं दिया जा रहा। स्पेशल डाइट या देखरेख की तो बात ही छोड़ दीजिए। उन्की पुरानी बीमारी को लेकर अब तक कोई मेडिकल जांच नहीं कराई गई, जबकि उनकी सेहत पहले ही खतरनाक स्तर तक बिगड़ चुकी थी।”


अपनी पिछली वीडियो कॉल में ईप्सा ने देखा कि रूपेश अब पहले से ज्यादा दुबले और कमजोर लग रहे थे। उन्होंने लिखा “लेकिन जो इंसान हिम्मत से जीना सीख चुका हो, उसके चेहरे पर जज़्बा हमेशा दिखता है - वह खुद को मजबूत रखने की कोशिश करता है। फिर भी उसकी सेहत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।” 

जब हौसला नहीं टूटता, तो यह व्यवस्था शरीर तोड़ने पर उतर आती है

ईप्सा के शब्द अब सिर्फ बयान नहीं, बल्कि प्रतिरोध बन जाते हैं - “हम सब जानते हैं कि जब यह अमानवीय व्यवस्था किसी जनपक्षधर और लोकप्रिय व्यक्ति का हौसला नहीं तोड़ पाती, तो वह मानसिक प्रताड़ना का सहारा लेती है। उसकी सेहत को निशाना बनाकर उसे कमजोर करने की कोशिश करती है।”

उन्होंने लिखा कि रूपेश के साथ भी यही किया जा रहा है।

उन्होंने आगे लिखा, “अगर वह इन मनमानी नियमों का विरोध करते हैं या अपने अधिकारों की मांग करते हैं, तो फिर वही आरोप लगाया जाएगा कि उन्होंने जेल का अनुशासन भंग किया और उन्हें कहीं और ट्रांसफर कर दिया जाएगा, जैसा पहले भी किया गया था।” 

उसका लहजा शांत है, लेकिन उतना ही तीखा भी

इप्सा ने आगे कहा, “यह सब सिर्फ मानसिक उत्पीड़न का प्रयास है। एक जनपक्षीय पत्रकार और लेखक को पहले ही झूठे आरोपों पर तीन साल से ज्यादा समय से कैद में रखा गया है। अब वे उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा, यहां तक कि खाना भी सजा के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

मानसिक और शारीरिक यातना के बारे में बताते हुए, इप्सा ने लिखा कि अब तो रोजमर्रे का अभाव भी एक सुनियोजित क्रूरता का रूप ले चुकी है।


उसने कहा, “बीयूर जेल, जो बिहार की सबसे भ्रष्ट जेलों में से एक मानी जाती है, वहां अधिकारियों का रवैया स्पष्ट रूप से नुकसान पहुंचाने की नीयत दर्शाता है। वे जानबूझकर उनकी चिकित्सीय जरूरतों और खाने संबंधी जरूरतों को नजरअंदाज कर रहे हैं।”

फिर धीमे, पर दबे गुस्से में उन्होंने आगे कहा, “अब यह कानून का मामला नहीं रहा; यह बदले की कहानी बन चुकी है।”

तीन साल का इंतज़ार

कई बार जमानत की अर्जी दी गई, मगर हर बार खारिज कर दी गई।

यहां तक कि सिंह का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकीलों ने भी केस की कार्यवाही पर सवाल उठाए हैं।

“हर तारीख एक नई देरी बन जाती है। हर अस्वीकृति एक नई चुप्पी। पर चुप्पी का मतलब स्वीकृति नहीं होता।”

अब शायद हमें हाई कोर्ट का रुख करना पड़ेगा

उसका हालिया बयान निराशा में नहीं, बल्कि दृढ़ निश्चय में समाप्त होता है। उन्होंने लिखा, “बेउर जेल के व्यवहार को देखकर - जो भ्रष्टाचार के लिए बदनाम है - अब लगता है कि हमें हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल करनी होगी। रूपेश की सेहत के साथ जो किया जा रहा है, वह अस्वीकार्य है। यह उस व्यक्ति के अधिकारों पर हमला है, जिसने हमेशा मानवाधिकारों के लिए लिखा, बोला और संघर्ष किया।”

उन्होंने पत्र के आखिर में बस इतना लिखा -
“— इप्सा शताक्षी (जीवन साथी, पत्रकार रूपेश कुमार सिंह), 24 अक्टूबर 2025।”

एक परिवार के संघर्ष से परे

रूपेश कुमार सिंह की कहानी सिर्फ एक केस फाइल नहीं है बल्कि यह स्वतंत्र पत्रकारिता के सिमटते दायरे और पीछे छूट जाने वालों की शांत दृढ़ता का आईना है।

मामले की पृष्ठभूमि

झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह जुलाई 2022 से गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत हिरासत में हैं। उन पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से कथित संबंध रखने और उनके लिए धन जुटाने का आरोप है। उनकी गिरफ्तारी से पहले, वे वर्षों तक आदिवासी विस्थापन, औद्योगिक प्रदूषण और कथित पुलिस ज्यादती जैसे मुद्दों पर ग्राउंड रिपोर्टिंग करते रहे -ऐसे विषय जिनके बारे में माना जाता है कि अपनी पत्रकारिता के खिलाफ सरकारी प्रतिशोध को भड़काया।

हालांकि शुरुआती प्राथमिकी (FIR) में सिंह का नाम नहीं था, लेकिन बाद में उन्हें एक सह-आरोपी के डिवाइस से कथित रूप से बरामद इलेक्ट्रॉनिक डेटा के आधार पर मामले में फंसाया गया। उनकी ओर से कहा गया है कि उनके घर से कोई भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली और प्रस्तुत डिजिटल सबूत अविश्वसनीय हैं। इससे पहले 2019 में भी सिंह को यूएपीए (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था, लेकिन पुलिस समय पर आरोपपत्र दाखिल करने में असफल रही, जिसके कारण उन्हें डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा कर दिया गया था।

सिंह की मौजूदा गिरफ्तारी ठीक उन दिनों हुई जब उन्होंने झारखंड में पर्यावरणीय विनाश पर एक ट्विटर थ्रेड पोस्ट किया था जिससे आलोचनात्मक पत्रकारों पर निगरानी और डराने-धमकाने की आशंकाएं और गहरी हो गईं। उनका मामला उन अन्य व्यक्तियों की स्थिति की याद दिलाता है -जैसे उमर खालिद, खालिद सैफ़ी और दिवंगत फादर स्टैन स्वामी -जो लंबे समय से यूएपीए के तहत हिरासत में हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

27 जनवरी 2025 को न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की खंडपीठ ने झारखंड हाईकोर्ट द्वारा जमानत अस्वीकार किए जाने के खिलाफ रूपेश कुमार सिंह की विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) खारिज कर दी। अदालत ने “हस्तक्षेप करने इंकार कर दिया।” फैसले में कोई विस्तृत कारण नहीं दिया गया, जिससे मुकदमे के बिना ही सिंह की लंबी कैद जारी रहने का रास्ता बन गया।
हमने तब बताया था कि यह फैसला यूएपीए जमानत न्यायशास्त्र में न्यायिक सम्मान और असंगतता का उदाहरण है - जहां दोषी होने की धारणा निर्दोष होने की धारणा की जगह ले लेती है और पत्रकारों के संवैधानिक अधिकारों को राज्य के राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक दावों के सामने ग्रहण लगा दिया जाता है।
 
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