केंद्र सरकार का लक्ष्य प्रतिवर्ष 13 लाख बंधुआ मजदूरों का पुनर्वास करना था लेकिन केवल 468 मजदूरों का पुनर्वास हो पाया

Written by sabrang india | Published on: May 2, 2025
केंद्र सरकार द्वारा साल 2030 तक 1.84 करोड़ बंधुआ मजदूरों की मुक्ति व पुनर्वास का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन 2023-24 में केवल 468 मज़दूरों का ही पुनर्वास हो पाया है।



केंद्र सरकार ने साल 2016 में 2030 तक 1.84 करोड़ बंधुआ मजदूरों की मुक्ति और पुनर्वास का लक्ष्य रखा था।

हालांकि, बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने का केंद्र सरकार का यह ‘संकल्प’ कोई नया नहीं है। 1976 में सरकार ने बंधुआ मज़दूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम पारित कर इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया था। लेकिन आज भी यह भारतीय समाज में मौजूद है।

सोनीपत का ईंट भट्टा

पिछले साल दस हजार रुपये एडवांस के एवज में यूपी के बागपत जिले के एक परिवार के आठ सदस्यों को सोनीपत के ईंट भट्टे पर 5 माह 15 दिन तक बंधुआ मजदूर बनाकर रखा गया। इन आठ में से चार नाबालिग थे, एक बच्ची की उम्र तो महज एक वर्ष थी। द वायर ने इसे प्रकाशित किया।

मजदूरों और नाबालिगों से जबरन काम लिया गया। काम के बदले वेतन नहीं दिया गया। खाना भी सिर्फ इतना दिया जाता कि वह जिंदा रह सके। एक रोज भूख से बेहाल एक सदस्य वहां से भाग निकला। दूसरे दिन परिवार के अन्य सदस्य भी अपना सामान वगैरह छोड़ वहां से भाग निकले। त्रासदी देखिये, जैसे-तैसे यह परिवार लंबा रास्ता तय कर अपने शहर पहुंचा, लेकिन रास्ते में ही परिवार की एक महिला सदस्य की तबियत बिगड़ने लगी और अपने घार आते ही मौत हो गई।

मुजफ्फरनगर की गुड़ फैक्ट्री

साल 2021 में सड़क हादसे में घायल अपने नाबालिग बेटे के इलाज के लिए एक पिता ने अपने क्षेत्र के एक गुड़ फैक्ट्री मालिक से दस हज़ार रुपये का कर्ज लिया। जब 2023 तक वह कर्ज नहीं चुका सका, तो फैक्ट्री मालिक ने उससे, उसकी पत्नी और पांच बच्चों से फैक्ट्री में ही रहने और काम करने को कहा। बदले में 45 हजार रुपये प्रति माह देने का वादा किया गया।

पति-पत्नी और उनके दो बड़े बच्चों ने 16 अगस्त 2023 से 31 मई 2024 तक फैक्ट्री में लगातार काम किया। लेकिन जब सीजन समाप्त होने पर उन्होंने मजदूरी की मांग की, तो मालिक ने यह कहकर टाल दिया कि उनके खाने-पीने में ही सारा पैसा खर्च हो गया है, और अब केवल 45,000 रुपये बचे हैं, जो बाद में दिए जाएंगे। जब परिवार ने घर लौटने की इच्छा जताई, तो मालिक ने उनका सामान बंधक बना लिया। कुछ महीने बाद, उसने उन्हें जबरन दोबारा फैक्ट्री में लाकर न केवल अपने यहां बल्कि अन्य जगहों पर भी काम करवाया। इस दौरान उन्हें भूखा रखा गया, पीटा गया, और कर्जदार की पत्नी के साथ दुर्व्यवहार भी किया गया। अंततः अप्रैल 2025 में उन्हें बिना कोई वेतन दिए फैक्ट्री से निकाल दिया गया।

ऐसे कई और उदाहरण दिए जा सकते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों के पास इस तरह के मामलों की फाइलों का अंबार जमा है। ऊपर बताए गए तीनों मामलों में अब तक न तो पीड़ितों के बयान दर्ज किए गए हैं, न ही उन्हें रिहाई प्रमाणपत्र (रिलीज सर्टिफिकेट) मिला है, न मजदूरी का भुगतान हुआ है और न ही दोषियों के खिलाफ कोई ठोस जांच या कानूनी कार्रवाई की गई है

जबकि केंद्र सरकार के विज़न डॉक्यूमेंट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 'सज़ा सुनिश्चित करने की प्रक्रिया को मज़बूत किया जाना चाहिए ताकि नए श्रम बंधनों की रोकथाम हो सके और 100% दोषियों को दंडित किया जा सके।

पीड़ितों के बयान दर्ज न करना और उन्हें बंधुआ मज़दूर के रूप में औपचारिक रूप से चिन्हित कर रिहाई प्रमाणपत्र (रिलीज सर्टिफिकेट) न देना एक गंभीर समस्या है, जिससे उन्हें पुनर्वास सहायता प्राप्त करने में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार की एक योजना लागू है, जिसके अंतर्गत बचाए गए मज़दूर को तत्काल 30,000 रुपये की सहायता राशि प्रदान की जाती है। पुनर्वास के तहत 1 लाख, 2 लाख और 3 लाख रुपये तक की सहायता भी उपलब्ध है, जो मज़दूर की श्रेणी और उसके साथ हुए शोषण की गंभीरता पर निर्भर करती है, हालांकि यह सहायता तभी मिलती है जब मजदूरी की स्थिति को आधिकारिक रूप से बंधुआ मजदूरी के रूप में प्रमाणित किया गया हो।

हालांकि यह सहायता तभी मिल सकती है जब ज़िला मजिस्ट्रेट (डीएम) या उप ज़िला मजिस्ट्रेट (एसडीएम) बंधुआ मज़दूर के रूप में पहचान कर रिहाई प्रमाणपत्र (रिलीज सर्टिफिकेट) जारी करें। बंधुआ मज़दूरी की पहचान, बचाव और पुनर्वास के क्षेत्र में काम करने वाली राष्ट्रीय संस्था ‘नेशनल कैम्पेन कमेटी फॉर इरैडिकेशन ऑफ बॉन्डेड लेबर’ के संयोजक निर्मल गोराना ने द वायर हिंदी को बताया कि सरकारों की प्राथमिकता बंधुआ मज़दूरों की पहचान करना नहीं होती, और ज़िला प्रशासन अक्सर रिहाई प्रमाणपत्र जारी करने से कतराता है।

संसद में पेश ताजा आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023-24 में देशभर में 500 बंधुआ मजदूरों का भी पुनर्वास नहीं हो सका। जबकि केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में यह लक्ष्य निर्धारित किया था कि वर्ष 2030 तक 1.84 करोड़ बंधुआ मज़दूरों की पहचान, मुक्ति और पुनर्वास किया जाएगा। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार को हर साल औसतन करीब 13.14 लाख बंधुआ मज़दूरों का पुनर्वास करना जरूरी होगा।

5 अगस्त 2024 को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा पेश आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि पुनर्वास किए गए बंधुआ मजदूरों की संख्या साल दर साल लगातार घटती जा रही है।

आरटीआई के जरिए प्राप्त जानकारी के आधार पर अगस्त 2024 में प्रकाशित आउटलुक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास की दर में लगभग 80% की गिरावट आई है। रिपोर्ट के अनुसार, अब प्रति वर्ष औसतन केवल 900 मज़दूरों का ही पुनर्वास हो पा रहा है।

इसी प्रवृत्ति की पुष्टि करते हुए आंकड़े दिखाते हैं कि वर्ष 2023-24 में मात्र 468 बंधुआ मजदूरों का पुनर्वास किया गया।

केंद्र सरकार ने 2016 के विजन डॉक्यूमेंट में यह लक्ष्य निर्धारित किया था कि आने वाले सात वर्षों में बंधुआ मज़दूरों की संख्या को 50% तक घटा दिया जाएगा। लेकिन जिस रफ्तार से इस दिशा में काम की जा रही है, वह यह संकेत देती है कि यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। पिछले साल प्रकाशित इंडियास्पेंड की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस गति से सरकार इस काम को अंजाम दे रही है, उससे 2030 तक निर्धारित लक्ष्य का केवल 2 प्रतिशत ही हासिल हो पाएगा।

लक्ष्य से चूकने के बावजूद केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ सकती है, क्योंकि बंधुआ मज़दूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 की धारा 13 के अनुसार, राज्य सरकार को ही प्रत्येक ज़िले और उसके अधीन उप-मंडलों में सतर्कता समिति का गठन करना होता है (जैसा वह उचित समझे)। यह समिति ज़िलाधिकारी या उनके द्वारा अधिकृत अधिकारियों को इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सलाह देती है।

यही समिति मुक्त किए गए बंधुआ मजदूरों को आर्थिक व सामाजिक पुनर्वास दिलाने की जिम्मेदार भी होती है। केंद्र सरकार केवल श्रम और रोजगार मंत्रालय के माध्यम से पुनर्वास की योजना संचालित करती है, जो रिहा किए गए बंधुआ श्रमिकों के पुनर्वास में राज्य सरकारों की सहायता करती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह योजना मांग पर आधारित है। ऐसे में, यदि लक्ष्य से चूका जाता है, तो केंद्र सरकार इसकी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल सकती है।

कौन है बंधुआ मजदूर?

ग्लोबल कमीशन ऑन मॉडर्न स्लेवरी एंड ह्यूमन ट्रैफिकिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये अपराध अक्सर उन व्यक्तियों और समूहों को प्रभावित करते हैं जो पहले से ही वंचित, हाशिए पर और भेदभाव का शिकार होते हैं।

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