22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन में हुए एक आतंकी हमले ने पूरे इलाके को दहला दिया। इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई और हर तरफ़ दुख, ग़ुस्से और डर का माहौल बन गया। लेकिन इस मुश्किल वक्त में भी कश्मीर के लोगों ने इंसानियत की एक बड़ी मिसाल पेश की। सैयद आदिल हुसैन शाह और सज्जाद भट जैसे बहादुर लोगों ने अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की मदद की। धर्म या जाति की परवाह किए बिना सभी ने मिलकर एक-दूसरे का साथ दिया। कश्मीर के लोगों ने दिखा दिया कि नफ़रत और हिंसा चाहे जितनी भी हो, प्यार, भाईचारा और इंसानियत उससे कहीं ज़्यादा ताक़तवर हैं।

"ज़मीन पर अगर कहीं जन्नत है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।" फारसी में लिखी ये मशहूर पंक्तियाँ अमीर खुसरो की मानी जाती हैं, जो सदियों से कश्मीर की जादुई खूबसूरती और यहाँ के लोगों की मेहमाननवाज़ी को बयां करती आई हैं। लेकिन 22 अप्रैल को उस जन्नत की शांति को एक डरावने सच ने तोड़ दिया। एक खूबसूरत और मशहूर टूरिस्ट जगह, पहलगाम में गोलियों की आवाज़ और लोगों की चीखें गूंज उठीं। चार हमलावरों ने आतंक का खेल खेलते हुए बेगुनाह टूरिस्टों को निशाना बनाया। इस कायराना हमले में 26 मासूम लोगों की जान चली गई। एक ऐसी जगह, जो सुकून और प्यार के लिए जानी जाती है, वहाँ एक पल में मातम छा गया।
इस हमले के तुरंत बाद एक और दिल दहला देने वाली बात सामने आई। रिपोर्ट के अनुसार, आतंकियों ने हमला करने से पहले पीड़ितों से उनका धर्म पूछा और फिर सिर्फ हिंदू बहुल समुदाय के लोगों को निशाना बनाया। इस डरावनी और परेशान कर देने वाली खबर ने सोशल मीडिया पर तेजी से आग की तरह फैलकर एक नया विभाजन पैदा कर दिया। कश्मीर और वहाँ के मुस्लिम समुदाय के खिलाफ़ नफ़रत भरी बातें और ट्रोलिंग का सिलसिला शुरू हो गया, जिसने लोगों को और भी ज़्यादा बाँटने का काम किया।
इस हमले की अफरातफरी के बीच जो पहली बहादुरी की कहानी सामने आई, वो थी सैयद आदिल हुसैन शाह की। एक स्थानीय टट्टूवाला, जो निहत्था था, लेकिन हिम्मत और इंसानियत में सबसे आगे निकला। जब गोलियाँ चल रही थीं, तो आदिल न भागा और न ही छिपा। उसने हमलावरों का सामना किया, उनसे उनके जुल्म पर सवाल पूछा और पुणे के दो डरे हुए पर्यटकों, कौस्तुभ गणबोटे और संतोष जगदाले को बचाने की कोशिश की। इसी दौरान उसे चार गोलियाँ लगीं—दो सीने में, एक पेट में और एक शरीर के दूसरे हिस्से में। वह वहीं ज़मीन पर गिर पड़ा—उसी ज़मीन पर, जहाँ वो रोज़ सैकड़ों लोगों को घोड़े पर बैठाकर सैर कराता था।
आदिल की कुर्बानी के अलावा, उस जगह पर जो तस्वीर उभरी, वो नफ़रत फैलाने वाली खबरों से बिल्कुल अलग थी। तमाम सनसनीखेज़ दावों और शोर मचाते टीवी चैनलों से दूर, बिना किसी भेदभाव के, पूरी इंसानियत और एकजुटता के साथ वहाँ कई लोग थे जो पीड़ितों की मदद के लिए आगे आए।
हालाँकि ज़्यादातर मीडिया ने इस तरह के नैरेटिव को नज़रअंदाज़ किया, लेकिन स्थानीय लोगों की मदद और सहानुभूति ने एक अलग ही सच दिखाया। कश्मीर और उसके लोगों के खिलाफ़ नफ़रत भरी बातें फैलती रहीं, लेकिन घाटी ने फिर साबित किया कि वो मोहब्बत, अमन और भाईचारे की मिट्टी है। जिसने हमेशा अपने मेहमानों का खुले दिल से स्वागत किया है और उसी परंपरा को इस मुश्किल वक़्त में भी निभाया।
जब कश्मीर के सज्जाद ने गोलियों की बौछार से एक बच्चे की जान बचाई
पहलगाम के बैसरन इलाके में हुए आतंकी हमले के दौरान, कश्मीर के रहने वाले सज्जाद भट ने बहादुरी दिखाते हुए एक छोटे बच्चे को गोलियों की बौछार से बचाया। सज्जाद ने बिना कुछ सोचे-समझे अपनी जान जोखिम में डाल दी और ज़ख्मी टूरिस्ट बच्चे को अपनी पीठ पर उठाकर सुरक्षित जगह तक पहुँचाया।

एक निस्वार्थ बचाव का दृश्य
सज्जाद भट, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की मदद की, बाद में इस भयावह अनुभव और स्थानीय लोगों की त्वरित एकजुटता को याद करते हुए बताया कि हालात कितने मुश्किल थे। उन्होंने कहा, “बैसरन घाटी बहुत बड़ी है। जब हमने वहाँ घायल लोगों को देखा, तो सबसे पहले हमारे दिमाग में यही था कि उन्हें जल्दी से जल्दी अस्पताल कैसे पहुँचाया जाए और मदद कैसे की जाए। बहुत से टट्टूवाले भी घायलों को घोड़े पर बिठाकर अस्पताल तक ले गए।” सज्जाद की ये बात एक तस्वीर पेश करती है कि जहाँ डर और अफरातफरी के बीच, कश्मीरी लोगों ने मिलकर बिना किसी भेदभाव के इंसानियत दिखाते हुए मदद के लिए हाथ बढ़ाया।

"एक बच्चा चिल्ला रहा था, 'अंकल, अंकल! बचाओ, बचाओ!'": सज्जाद भट
सज्जाद भट ने उस पल का दर्दनाक ज़िक्र करते हुए बताया कि उन्होंने कैसे एक घायल बच्चे की जान बचाई। उन्होंने कहा, "मेरे साथ और भी लोग थे जो घायलों को अपने कंधों पर उठाकर अस्पताल तक ले जा रहे थे। मैंने एक बच्चे को देखा, जो चिल्ला रहा था, 'अंकल, अंकल! बचाओ, बचाओ!' वो बहुत डरा हुआ था। मैंने बिना सोचे अपनी जान दाँव पर लगाई, उसे अपने कंधे पर उठाया और सीधा अस्पताल की ओर भागा। रास्ते भर मैं उसे दिलासा देता रहा, कहता रहा कि डरो मत, कुछ नहीं होगा। बीच-बीच में उसे पानी भी पिलाया और जैसे-तैसे अस्पताल पहुँचाया।"
सज्जाद भट ने कहा कि घायलों की मदद करना स्थानीय लोगों की ज़िम्मेदारी थी। घायलों के बारे में बात करते हुए सज्जाद ने स्पष्ट किया, "जब पहला हमला हुआ, मैं वहाँ नहीं था। हम बाद में बचाव के लिए पहुँचे। यहाँ के स्थानीय लोगों की यह ज़िम्मेदारी थी कि हम वहाँ जाकर घायलों की मदद करें।"
इंसानियत और शांति की अपील: ‘हम आपके साथ हैं, डरीए मत; कृपया कश्मीर आइए’
भट ने उस डरावनी घटना को याद करते हुए कहा, "यह एक ख़ौफ़नाक दृश्य था। हम भी अपनी जगहों पर डर रहे थे, सोच रहे थे कि क्या हो रहा है। कोई नज़र नहीं आ रहा था; कुछ पर्यटक और कुछ घुड़सवार इधर-उधर भाग रहे थे, लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे थे।"
उन्होंने स्थिति की गंभीरता का ज़िक्र करते हुए गहरे दुख के साथ कहा, "हमारा उद्देश्य यह है कि इंसानियत की हत्या की गई है; पूरे कश्मीरियों की हत्या की गई है। यह नहीं होना चाहिए था; ऐसा कभी नहीं होना चाहिए।"
दिल से अपील करते हुए भट ने विनम्रता से कहा, "हम बस यही चाहते हैं कि आप डरे नहीं। कृपया आइए, आप हमारे मेहमान हैं, आप हमारे भाई हैं। हम आपके साथ हैं। डरीए मत; कृपया कश्मीर आइए।"

जब एक हिंदू व्यक्ति ने पुंछ में बमबारी के बीच मौलवी और मदरसा छात्र को बचाया
पुंछ में सीमा पार से होने वाली गोलाबारी के बाद एक बेमिसाल घटना सामने आई जहाँ धर्म और राजनीति की दीवारों को पार करते हुए एकता और बहादुरी की मिसाल पेश की गई। पूर्व बीजेपी विधायक प्रदीप शर्मा (51) को एक हीरो के रूप में सराहा गया, जिन्होंने प्रभावित लोगों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली।
इंडिया टुडे (आईटी) की रिपोर्ट के अनुसार, जब मोर्टार गोले जामिया ज़िया उल उलूम मदरसे में गिरे, जहाँ 1,200 से ज़्यादा छात्र रहते थे और जिसका संचालन उनके बचपन के दोस्त सैयद हबीब द्वारा किया जाता था, वहाँ प्रदीप शर्मा तुरंत मौके पर पहुँच गए।

संकट में बनी दोस्ती
शर्मा का यह कार्य उनके और सैयद हबीब के बीच की दशकों पुरानी दोस्ती से प्रेरित था, जो तब शुरू हुई जब वे कक्षा 9 में पुंछ सरकारी स्कूल में मिले थे। भले ही उनका धार्मिक और राजनीतिक मार्ग अलग-अलग था, लेकिन उनकी दोस्ती हमेशा मजबूत रही।
आईटी की रिपोर्ट के अनुसार, यह पुरानी दोस्ती एक बार फिर से इन दोनों को एक साथ लायी जब शहर भर में कई इमारतों पर गोले गिरने लगे। वायरल वीडियो में शर्मा को घायल बच्चों को सुरक्षित स्थान पर ले जाते हुए देखा गया और पुंछ के लोग उन्हें "गार्जियन एंजल" कहने लगे। इस हमले में एक मौलवी की दुखद मृत्यु हो गई और तीन बच्चे घायल हो गए।
इन पलों को याद करते हुए शर्मा कहते हैं, "मौलवी साहब मेरी बाहों में मरे। मैंने उनकी गाल पर कपड़ा रखा, लेकिन उन्हें नहीं बचा सका।" उन्होंने आगे कहा, "फिर मैं तीन बच्चों को बचाने के लिए दौड़ा। अस्पताल भर चुका था, तो मैंने उन्हें तब तक पकड़े रखा जब तक स्ट्रेचर नहीं मिल गया।" जब शर्मा से अपनी जान बचाने के लिए कहा गया, तो उनका जवाब था, "मैंने उन्हें कहा कि गोले मेरे लिए नहीं थे, कम से कम आज तो नहीं।"
"मेरे साथ हिंदू, मुस्लिम और सिख थे, सभी मिलकर मदद करने में जुटे थे": शर्मा
शर्मा ने उस पल की भावना को बताया, "मेरे साथ हिंदू, मुस्लिम और सिख थे—सभी मिलकर मदद करने में जुटे थे। उस वक्त कुछ भी मायने नहीं रखता था, बस उन बच्चों को बचाना था।" सैयद हबीब ने भी यही दोहराया और कहा, "मैंने एक पल भी नहीं सोचा। मैंने प्रदीप भाई को बुलाया। मुझे पता था वो आएंगे और उन्होंने किया।" जबकि शर्मा घायल लोगों की मदद कर रहे थे, सैयद हबीब एक हज़ार से ज़्यादा बच्चों की सुरक्षा पर नज़र रख रहे थे।
"अगर कोई मुसीबत के वक्त भी धर्म देखे, तो उससे बुरा इंसान कोई नहीं": शर्मा
शर्मा ने उस वक्त की इंसानियत और एकता को लेकर साफ़ शब्दों में कहा, "अगर किसी को ऐसे वक्त में भी सिर्फ हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई दिखते हैं, तो वो सबसे घटिया सोच वाला इंसान है। जब गोलियाँ चल रही हों, लोग मर रहे हों, घायल हो रहे हों और आप उस वक्त भी धर्म की बातें करें, तो फिर आपको इंसान कहलाने का हक़ नहीं है।" इंडियन एक्सप्रेस ने इसे प्रकाशित किया।
शर्मा चार दिन तक लगातार सड़कों पर उतरे रहे, घायलों को अस्पताल पहुंचाने में जुटे रहे
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, शर्मा चार दिनों तक अपनी टीम के साथ सड़कों पर सक्रिय रहे और घायलों को अस्पताल पहुँचाने में लगातार मदद करते रहे। उन्होंने बताया कि 6 और 7 मई की दरमियानी रात को जब गोलाबारी शुरू हुई, तो परिवार ने उन्हें उठाया। शर्मा ने कहा, "मैं ज़ोर-ज़ोर से धमाके सुन रहा था। तब मेरे मन में बस एक ही बात आई—इन हालात में जो लोग फंसे हैं, उनके लिए कुछ करना चाहिए।"
"हिंदू और मुस्लिम एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं, पहलगाम हमले के बाद समाज को किसी भी हाल में बंटने नहीं देना चाहिए": पूजा जाधव
कश्मीर घूमने आई पर्यटक पूजा जाधव ने कश्मीर और मुसलमानों को लेकर फैल रही नकारात्मक बातों को साफ़ तौर पर नकारते हुए कहा, "मैं यहाँ छुट्टियाँ मनाने आई हूं और अपनी आँखों से देख रही हूं कि हिंदू और मुस्लिम मिलकर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं।"
उन्होंने लोगों से अपील की कि "पहलगाम में जो हुआ वो बहुत दुखद है, लेकिन ऐसे वक्त में समाज को बाँटने की नहीं, साथ आने की ज़रूरत है।"
यह वीडियो तब और ज़्यादा वायरल हो गया जब पूर्व बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सांसद कुंवर दानिश अली ने इसे सोशल मीडिया पर शेयर किया। उनके ज़रिए यह वीडियो और भी बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचा, जिससे बँटवारे की सोच के खिलाफ़ एक मज़बूत संदेश गया और लोगों को कश्मीर की ज़मीनी सच्चाई जानने का मौका मिला।

स्थानीय कश्मीरी लोगों ने आतंक के शिकार लोगों के लिए कैंडल मार्च किया
हमले वाले दिन 22 अप्रैल की शाम को कश्मीर के आम लोग सड़कों पर उतरे और मोमबत्तियाँ जलाकर पहलगाम हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी। इस मार्च में हर धर्म और तबके के लोग शामिल हुए। सबके चेहरों पर दुख था, लेकिन साथ ही आतंकवाद के खिलाफ़ ग़ुस्सा और मज़बूती भी दिखी।
लोगों ने बैनर निकाले और आवाज़ बुलंद की कि अब और खामोश नहीं रहेंगे। सबने मिलकर कहा कि आतंकवाद का यहाँ कोई काम नहीं और कश्मीर अब अमन और इंसानियत की तरफ़ बढ़ना चाहता है। स्थानीय लोगों ने स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद के लिए इस समाज में कोई जगह नहीं है।

इस कैंडल मार्च में शामिल लोगों ने साफ़ कहा, "जिसने यह हमला किया, उसे सज़ा मिलनी ही चाहिए।" हर तरफ़ एक ही बात हो रही थी—हिंसा अब बंद होनी चाहिए और कश्मीर में हमेशा के लिए अमन लौटना चाहिए। लोगों ने बताया कि वो अब डर और दहशत से भरी ज़िंदगी नहीं जीना चाहते। उन्हें सुरक्षा चाहिए, चैन चाहिए और ऐसा भविष्य चाहिए जहाँ बच्चे भी बिना डर के जी सकें। इस मार्च के ज़रिए लोगों ने सरकार को भी सीधा संदेश दिया कि अब इंसाफ़ जल्दी मिलना चाहिए और ऐसी दर्दनाक घटनाएँ फिर कभी नहीं होनी चाहिए।
"करीब 100 लोग फंसे थे, तब स्थानीय आदिल भाई ने हमारी मदद की": पुणे से आई पर्यटक, पहलगाम में अनुभव साझा करती हैं
पुणे से आई एक और पर्यटक ने पहलगाम में अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि कैसे स्थानीय आदिल भाई ने उनकी मदद की, जब करीब 100 लोग हमले के दौरान फंसे हुए थे। उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर में हिंदू-मुस्लिम एकता गहरी है और यहां के लोग एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
पहलगाम में एक स्थानीय कैब ड्राइवर आदिल ने मुसीबत के वक्त महाराष्ट्र से आई एक फैमिली को अपने घर में रखा। उन्होंने सिर्फ खाना और रहने का इंतजाम ही नहीं किया, बल्कि उन लोगों को सुरक्षा का एहसास भी दिलाया जब वे डर और अनिश्चितता में थे। आदिल के ये सरल और मददगार कदम किसी भी बड़े नारे से कहीं ज्यादा असरदार थे। उनके इस विनम्र व्यवहार ने यह साबित किया कि इंसानियत से बढ़कर कुछ नहीं, और धर्म से ऊपर हमारी साझा मानवता है।

उन्होंने कहा और इस एकता को खुद अपनी आंखों से देखा कि, "जब हिंदू मुसीबत में होते हैं, तो मुस्लिम उनकी मदद करने के लिए आगे आते हैं।"
आदिल ने भी बहुत सादगी से कहा, "एक इंसान ने गलती की, लेकिन पूरे कश्मीर को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। हम इसका समर्थन नहीं करते। यह तो पूरी इंसानियत का कत्ल है।"
जब तनाव समाज को बांटने की कोशिश करता है, तो आदिल जैसी आवाज़ें और उनके जैसे कदम यह याद दिलाते हैं कि कश्मीर में भाईचारे की भावना आज भी मजबूत है।
पहलगाम हमले के बाद, कश्मीरी परिवारों ने पर्यटकों के लिए अपने दिल और घर खोल दिए
कश्मीरियों ने यह दिखाया कि मुश्किल वक्त में वे एक-दूसरे की मदद करने और मेहमाननवाजी के अपने पुराने रूप को कायम रखने में विश्वास रखते हैं।
पुणे से आईं एक अन्य पर्यटक, रुपाली पाटिल ने बताया कि जब हमले की खबर आई, तो वे डर के मारे अपने होटल के कमरे से बाहर भी नहीं निकल पाईं। उन्होंने कहा, "पहले तो मुझे डर था कि बाहर न जाऊं, लेकिन इस अफरातफरी में मुझे और बाकी लोगों को कश्मीरी परिवारों के घरों में शरण मिली, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना हमें सुरक्षा दी। कुछ लोग तो हमारे समूह के उन लोगों को भी लाने गए जो दूसरे इलाकों में फंसे हुए थे।"
टीएमसी सांसद सागरिका घोष ने X (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, "पहलगाम आतंक हमले के दौरान और बाद में कश्मीरियों ने हर कदम पर पीड़ितों और उनके परिवारों की मदद की। एक घोड़ा चालक अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों को बचाते हुए शहीद हो गया, कश्मीरी परिवारों ने अपने घर खोले, और कई लोगों ने पर्यटकों को हमले के बाद वहां से सुरक्षित बाहर निकालने में मदद की। कश्मीर के लोग हमारे बड़े भारतीय परिवार का हिस्सा हैं। आतंकवादी हमें एक-दूसरे से अलग करना चाहते हैं और कश्मीरी-विरोधी गुस्सा फैलाना चाहते हैं। हमें उनके इस बुरे एजेंडे का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।"

हमले के बाद: कश्मीर से एकजुट आवाज
पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद कश्मीर से एक मजबूत और एकजुट आवाज़ उठी। यह सिर्फ दुख की नहीं, बल्कि साथ मिलकर खड़े होने, सहनशीलता और उन खास चीज़ों की बात थी जो कश्मीर को सच में पहचान देती हैं।
"कश्मीरियों ने खुद पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद कहा," एक पर्यवेक्षक ने सुना। स्थानीय लोग इकट्ठे हुए, जो चौंक गए थे, लेकिन फिर भी एकजुट थे, और उनकी बातें घाटी से बहुत दूर तक गूंज उठीं।
"हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी भाई हैं," उन्होंने विश्वास के साथ कहा। यह एक याद दिलाने वाली बात थी कि यहां धार्मिक सद्भाव सिर्फ एक नारा नहीं है, बल्कि यह एक जीती-जागती हकीकत है, जो रोज़मर्रा के
रिश्तों और साझा अनुभवों में गहरी जड़ें जमाए हुए है।

हम एक हैं, हम आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हैं: कश्मीरियों ने आतंक के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई
एक और मजबूत और साहसिक कदम उठाते हुए, अनंतनाग के कश्मीरी मुसलमानों ने पहलगाम हमले के खिलाफ अपना विरोध जताया। वे सड़कों पर निकले और आतंकवाद के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने हिंसा के खिलाफ अपनी नफरत ज़ाहिर की और शांति की बात की।

यही है असली भारत, जहां धर्म हमें बांटता नहीं, और इंसानियत सबसे बड़ी पहचान होती है।
यह तस्वीरें कुछ लोगों को शायद अच्छी न लगें, और हो सकता है मुख्य मीडिया इन्हें नजरअंदाज करे, लेकिन जो असल सच्चाई है, वह किसी भी नैरेटिव से ज्यादा ज़ोर से बोलती है।
फिर भी, जो भी विभाजनकारी बातें सामने आईं, कश्मीर के लोगों ने शांति, प्यार और मेहमाननवाजी के अपने रास्ते को मजबूती से अपनाया। सज्जाद भट जैसे लोग, जिन्होंने पर्यटकों को बचाने के लिए अपनी जान खतरे में डाली, और प्रदीप शर्मा जैसे लोग, जो धर्म और राजनीति से ऊपर उठकर दूसरों की मदद करते हैं—उन्होंने कश्मीर की असली एकता को दिखाया। स्थानीय लोगों की वो कहानियां, जिन्होंने परेशान पर्यटकों को अपने घर में शरण दी और उनकी मदद की—यह दिखाती हैं कि कश्मीर का असली मतलब सिर्फ सुर्खियों से नहीं, बल्कि उन रिश्तों से है जो मुश्किल वक्त में एक-दूसरे के साथ होते हैं। जैसे-जैसे कश्मीर के लोग आतंकवाद और नफरत के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं, वे हमें यह याद दिलाते हैं कि मानवता और शांति हमेशा जीतनी चाहिए, चाहे जो भी ताकतें हमें बांटने की कोशिश करें।
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"ज़मीन पर अगर कहीं जन्नत है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।" फारसी में लिखी ये मशहूर पंक्तियाँ अमीर खुसरो की मानी जाती हैं, जो सदियों से कश्मीर की जादुई खूबसूरती और यहाँ के लोगों की मेहमाननवाज़ी को बयां करती आई हैं। लेकिन 22 अप्रैल को उस जन्नत की शांति को एक डरावने सच ने तोड़ दिया। एक खूबसूरत और मशहूर टूरिस्ट जगह, पहलगाम में गोलियों की आवाज़ और लोगों की चीखें गूंज उठीं। चार हमलावरों ने आतंक का खेल खेलते हुए बेगुनाह टूरिस्टों को निशाना बनाया। इस कायराना हमले में 26 मासूम लोगों की जान चली गई। एक ऐसी जगह, जो सुकून और प्यार के लिए जानी जाती है, वहाँ एक पल में मातम छा गया।
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इस हमले की अफरातफरी के बीच जो पहली बहादुरी की कहानी सामने आई, वो थी सैयद आदिल हुसैन शाह की। एक स्थानीय टट्टूवाला, जो निहत्था था, लेकिन हिम्मत और इंसानियत में सबसे आगे निकला। जब गोलियाँ चल रही थीं, तो आदिल न भागा और न ही छिपा। उसने हमलावरों का सामना किया, उनसे उनके जुल्म पर सवाल पूछा और पुणे के दो डरे हुए पर्यटकों, कौस्तुभ गणबोटे और संतोष जगदाले को बचाने की कोशिश की। इसी दौरान उसे चार गोलियाँ लगीं—दो सीने में, एक पेट में और एक शरीर के दूसरे हिस्से में। वह वहीं ज़मीन पर गिर पड़ा—उसी ज़मीन पर, जहाँ वो रोज़ सैकड़ों लोगों को घोड़े पर बैठाकर सैर कराता था।
आदिल की कुर्बानी के अलावा, उस जगह पर जो तस्वीर उभरी, वो नफ़रत फैलाने वाली खबरों से बिल्कुल अलग थी। तमाम सनसनीखेज़ दावों और शोर मचाते टीवी चैनलों से दूर, बिना किसी भेदभाव के, पूरी इंसानियत और एकजुटता के साथ वहाँ कई लोग थे जो पीड़ितों की मदद के लिए आगे आए।
हालाँकि ज़्यादातर मीडिया ने इस तरह के नैरेटिव को नज़रअंदाज़ किया, लेकिन स्थानीय लोगों की मदद और सहानुभूति ने एक अलग ही सच दिखाया। कश्मीर और उसके लोगों के खिलाफ़ नफ़रत भरी बातें फैलती रहीं, लेकिन घाटी ने फिर साबित किया कि वो मोहब्बत, अमन और भाईचारे की मिट्टी है। जिसने हमेशा अपने मेहमानों का खुले दिल से स्वागत किया है और उसी परंपरा को इस मुश्किल वक़्त में भी निभाया।
जब कश्मीर के सज्जाद ने गोलियों की बौछार से एक बच्चे की जान बचाई
पहलगाम के बैसरन इलाके में हुए आतंकी हमले के दौरान, कश्मीर के रहने वाले सज्जाद भट ने बहादुरी दिखाते हुए एक छोटे बच्चे को गोलियों की बौछार से बचाया। सज्जाद ने बिना कुछ सोचे-समझे अपनी जान जोखिम में डाल दी और ज़ख्मी टूरिस्ट बच्चे को अपनी पीठ पर उठाकर सुरक्षित जगह तक पहुँचाया।

एक निस्वार्थ बचाव का दृश्य
सज्जाद भट, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की मदद की, बाद में इस भयावह अनुभव और स्थानीय लोगों की त्वरित एकजुटता को याद करते हुए बताया कि हालात कितने मुश्किल थे। उन्होंने कहा, “बैसरन घाटी बहुत बड़ी है। जब हमने वहाँ घायल लोगों को देखा, तो सबसे पहले हमारे दिमाग में यही था कि उन्हें जल्दी से जल्दी अस्पताल कैसे पहुँचाया जाए और मदद कैसे की जाए। बहुत से टट्टूवाले भी घायलों को घोड़े पर बिठाकर अस्पताल तक ले गए।” सज्जाद की ये बात एक तस्वीर पेश करती है कि जहाँ डर और अफरातफरी के बीच, कश्मीरी लोगों ने मिलकर बिना किसी भेदभाव के इंसानियत दिखाते हुए मदद के लिए हाथ बढ़ाया।

"एक बच्चा चिल्ला रहा था, 'अंकल, अंकल! बचाओ, बचाओ!'": सज्जाद भट
सज्जाद भट ने उस पल का दर्दनाक ज़िक्र करते हुए बताया कि उन्होंने कैसे एक घायल बच्चे की जान बचाई। उन्होंने कहा, "मेरे साथ और भी लोग थे जो घायलों को अपने कंधों पर उठाकर अस्पताल तक ले जा रहे थे। मैंने एक बच्चे को देखा, जो चिल्ला रहा था, 'अंकल, अंकल! बचाओ, बचाओ!' वो बहुत डरा हुआ था। मैंने बिना सोचे अपनी जान दाँव पर लगाई, उसे अपने कंधे पर उठाया और सीधा अस्पताल की ओर भागा। रास्ते भर मैं उसे दिलासा देता रहा, कहता रहा कि डरो मत, कुछ नहीं होगा। बीच-बीच में उसे पानी भी पिलाया और जैसे-तैसे अस्पताल पहुँचाया।"
सज्जाद भट ने कहा कि घायलों की मदद करना स्थानीय लोगों की ज़िम्मेदारी थी। घायलों के बारे में बात करते हुए सज्जाद ने स्पष्ट किया, "जब पहला हमला हुआ, मैं वहाँ नहीं था। हम बाद में बचाव के लिए पहुँचे। यहाँ के स्थानीय लोगों की यह ज़िम्मेदारी थी कि हम वहाँ जाकर घायलों की मदद करें।"
इंसानियत और शांति की अपील: ‘हम आपके साथ हैं, डरीए मत; कृपया कश्मीर आइए’
भट ने उस डरावनी घटना को याद करते हुए कहा, "यह एक ख़ौफ़नाक दृश्य था। हम भी अपनी जगहों पर डर रहे थे, सोच रहे थे कि क्या हो रहा है। कोई नज़र नहीं आ रहा था; कुछ पर्यटक और कुछ घुड़सवार इधर-उधर भाग रहे थे, लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे थे।"
उन्होंने स्थिति की गंभीरता का ज़िक्र करते हुए गहरे दुख के साथ कहा, "हमारा उद्देश्य यह है कि इंसानियत की हत्या की गई है; पूरे कश्मीरियों की हत्या की गई है। यह नहीं होना चाहिए था; ऐसा कभी नहीं होना चाहिए।"
दिल से अपील करते हुए भट ने विनम्रता से कहा, "हम बस यही चाहते हैं कि आप डरे नहीं। कृपया आइए, आप हमारे मेहमान हैं, आप हमारे भाई हैं। हम आपके साथ हैं। डरीए मत; कृपया कश्मीर आइए।"

जब एक हिंदू व्यक्ति ने पुंछ में बमबारी के बीच मौलवी और मदरसा छात्र को बचाया
पुंछ में सीमा पार से होने वाली गोलाबारी के बाद एक बेमिसाल घटना सामने आई जहाँ धर्म और राजनीति की दीवारों को पार करते हुए एकता और बहादुरी की मिसाल पेश की गई। पूर्व बीजेपी विधायक प्रदीप शर्मा (51) को एक हीरो के रूप में सराहा गया, जिन्होंने प्रभावित लोगों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली।
इंडिया टुडे (आईटी) की रिपोर्ट के अनुसार, जब मोर्टार गोले जामिया ज़िया उल उलूम मदरसे में गिरे, जहाँ 1,200 से ज़्यादा छात्र रहते थे और जिसका संचालन उनके बचपन के दोस्त सैयद हबीब द्वारा किया जाता था, वहाँ प्रदीप शर्मा तुरंत मौके पर पहुँच गए।

संकट में बनी दोस्ती
शर्मा का यह कार्य उनके और सैयद हबीब के बीच की दशकों पुरानी दोस्ती से प्रेरित था, जो तब शुरू हुई जब वे कक्षा 9 में पुंछ सरकारी स्कूल में मिले थे। भले ही उनका धार्मिक और राजनीतिक मार्ग अलग-अलग था, लेकिन उनकी दोस्ती हमेशा मजबूत रही।
आईटी की रिपोर्ट के अनुसार, यह पुरानी दोस्ती एक बार फिर से इन दोनों को एक साथ लायी जब शहर भर में कई इमारतों पर गोले गिरने लगे। वायरल वीडियो में शर्मा को घायल बच्चों को सुरक्षित स्थान पर ले जाते हुए देखा गया और पुंछ के लोग उन्हें "गार्जियन एंजल" कहने लगे। इस हमले में एक मौलवी की दुखद मृत्यु हो गई और तीन बच्चे घायल हो गए।
इन पलों को याद करते हुए शर्मा कहते हैं, "मौलवी साहब मेरी बाहों में मरे। मैंने उनकी गाल पर कपड़ा रखा, लेकिन उन्हें नहीं बचा सका।" उन्होंने आगे कहा, "फिर मैं तीन बच्चों को बचाने के लिए दौड़ा। अस्पताल भर चुका था, तो मैंने उन्हें तब तक पकड़े रखा जब तक स्ट्रेचर नहीं मिल गया।" जब शर्मा से अपनी जान बचाने के लिए कहा गया, तो उनका जवाब था, "मैंने उन्हें कहा कि गोले मेरे लिए नहीं थे, कम से कम आज तो नहीं।"
"मेरे साथ हिंदू, मुस्लिम और सिख थे, सभी मिलकर मदद करने में जुटे थे": शर्मा
शर्मा ने उस पल की भावना को बताया, "मेरे साथ हिंदू, मुस्लिम और सिख थे—सभी मिलकर मदद करने में जुटे थे। उस वक्त कुछ भी मायने नहीं रखता था, बस उन बच्चों को बचाना था।" सैयद हबीब ने भी यही दोहराया और कहा, "मैंने एक पल भी नहीं सोचा। मैंने प्रदीप भाई को बुलाया। मुझे पता था वो आएंगे और उन्होंने किया।" जबकि शर्मा घायल लोगों की मदद कर रहे थे, सैयद हबीब एक हज़ार से ज़्यादा बच्चों की सुरक्षा पर नज़र रख रहे थे।
"अगर कोई मुसीबत के वक्त भी धर्म देखे, तो उससे बुरा इंसान कोई नहीं": शर्मा
शर्मा ने उस वक्त की इंसानियत और एकता को लेकर साफ़ शब्दों में कहा, "अगर किसी को ऐसे वक्त में भी सिर्फ हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई दिखते हैं, तो वो सबसे घटिया सोच वाला इंसान है। जब गोलियाँ चल रही हों, लोग मर रहे हों, घायल हो रहे हों और आप उस वक्त भी धर्म की बातें करें, तो फिर आपको इंसान कहलाने का हक़ नहीं है।" इंडियन एक्सप्रेस ने इसे प्रकाशित किया।
शर्मा चार दिन तक लगातार सड़कों पर उतरे रहे, घायलों को अस्पताल पहुंचाने में जुटे रहे
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, शर्मा चार दिनों तक अपनी टीम के साथ सड़कों पर सक्रिय रहे और घायलों को अस्पताल पहुँचाने में लगातार मदद करते रहे। उन्होंने बताया कि 6 और 7 मई की दरमियानी रात को जब गोलाबारी शुरू हुई, तो परिवार ने उन्हें उठाया। शर्मा ने कहा, "मैं ज़ोर-ज़ोर से धमाके सुन रहा था। तब मेरे मन में बस एक ही बात आई—इन हालात में जो लोग फंसे हैं, उनके लिए कुछ करना चाहिए।"
"हिंदू और मुस्लिम एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं, पहलगाम हमले के बाद समाज को किसी भी हाल में बंटने नहीं देना चाहिए": पूजा जाधव
कश्मीर घूमने आई पर्यटक पूजा जाधव ने कश्मीर और मुसलमानों को लेकर फैल रही नकारात्मक बातों को साफ़ तौर पर नकारते हुए कहा, "मैं यहाँ छुट्टियाँ मनाने आई हूं और अपनी आँखों से देख रही हूं कि हिंदू और मुस्लिम मिलकर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं।"
उन्होंने लोगों से अपील की कि "पहलगाम में जो हुआ वो बहुत दुखद है, लेकिन ऐसे वक्त में समाज को बाँटने की नहीं, साथ आने की ज़रूरत है।"
यह वीडियो तब और ज़्यादा वायरल हो गया जब पूर्व बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सांसद कुंवर दानिश अली ने इसे सोशल मीडिया पर शेयर किया। उनके ज़रिए यह वीडियो और भी बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचा, जिससे बँटवारे की सोच के खिलाफ़ एक मज़बूत संदेश गया और लोगों को कश्मीर की ज़मीनी सच्चाई जानने का मौका मिला।

स्थानीय कश्मीरी लोगों ने आतंक के शिकार लोगों के लिए कैंडल मार्च किया
हमले वाले दिन 22 अप्रैल की शाम को कश्मीर के आम लोग सड़कों पर उतरे और मोमबत्तियाँ जलाकर पहलगाम हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी। इस मार्च में हर धर्म और तबके के लोग शामिल हुए। सबके चेहरों पर दुख था, लेकिन साथ ही आतंकवाद के खिलाफ़ ग़ुस्सा और मज़बूती भी दिखी।
लोगों ने बैनर निकाले और आवाज़ बुलंद की कि अब और खामोश नहीं रहेंगे। सबने मिलकर कहा कि आतंकवाद का यहाँ कोई काम नहीं और कश्मीर अब अमन और इंसानियत की तरफ़ बढ़ना चाहता है। स्थानीय लोगों ने स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद के लिए इस समाज में कोई जगह नहीं है।

इस कैंडल मार्च में शामिल लोगों ने साफ़ कहा, "जिसने यह हमला किया, उसे सज़ा मिलनी ही चाहिए।" हर तरफ़ एक ही बात हो रही थी—हिंसा अब बंद होनी चाहिए और कश्मीर में हमेशा के लिए अमन लौटना चाहिए। लोगों ने बताया कि वो अब डर और दहशत से भरी ज़िंदगी नहीं जीना चाहते। उन्हें सुरक्षा चाहिए, चैन चाहिए और ऐसा भविष्य चाहिए जहाँ बच्चे भी बिना डर के जी सकें। इस मार्च के ज़रिए लोगों ने सरकार को भी सीधा संदेश दिया कि अब इंसाफ़ जल्दी मिलना चाहिए और ऐसी दर्दनाक घटनाएँ फिर कभी नहीं होनी चाहिए।
"करीब 100 लोग फंसे थे, तब स्थानीय आदिल भाई ने हमारी मदद की": पुणे से आई पर्यटक, पहलगाम में अनुभव साझा करती हैं
पुणे से आई एक और पर्यटक ने पहलगाम में अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि कैसे स्थानीय आदिल भाई ने उनकी मदद की, जब करीब 100 लोग हमले के दौरान फंसे हुए थे। उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर में हिंदू-मुस्लिम एकता गहरी है और यहां के लोग एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
पहलगाम में एक स्थानीय कैब ड्राइवर आदिल ने मुसीबत के वक्त महाराष्ट्र से आई एक फैमिली को अपने घर में रखा। उन्होंने सिर्फ खाना और रहने का इंतजाम ही नहीं किया, बल्कि उन लोगों को सुरक्षा का एहसास भी दिलाया जब वे डर और अनिश्चितता में थे। आदिल के ये सरल और मददगार कदम किसी भी बड़े नारे से कहीं ज्यादा असरदार थे। उनके इस विनम्र व्यवहार ने यह साबित किया कि इंसानियत से बढ़कर कुछ नहीं, और धर्म से ऊपर हमारी साझा मानवता है।

उन्होंने कहा और इस एकता को खुद अपनी आंखों से देखा कि, "जब हिंदू मुसीबत में होते हैं, तो मुस्लिम उनकी मदद करने के लिए आगे आते हैं।"
आदिल ने भी बहुत सादगी से कहा, "एक इंसान ने गलती की, लेकिन पूरे कश्मीर को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। हम इसका समर्थन नहीं करते। यह तो पूरी इंसानियत का कत्ल है।"
जब तनाव समाज को बांटने की कोशिश करता है, तो आदिल जैसी आवाज़ें और उनके जैसे कदम यह याद दिलाते हैं कि कश्मीर में भाईचारे की भावना आज भी मजबूत है।
पहलगाम हमले के बाद, कश्मीरी परिवारों ने पर्यटकों के लिए अपने दिल और घर खोल दिए
कश्मीरियों ने यह दिखाया कि मुश्किल वक्त में वे एक-दूसरे की मदद करने और मेहमाननवाजी के अपने पुराने रूप को कायम रखने में विश्वास रखते हैं।
पुणे से आईं एक अन्य पर्यटक, रुपाली पाटिल ने बताया कि जब हमले की खबर आई, तो वे डर के मारे अपने होटल के कमरे से बाहर भी नहीं निकल पाईं। उन्होंने कहा, "पहले तो मुझे डर था कि बाहर न जाऊं, लेकिन इस अफरातफरी में मुझे और बाकी लोगों को कश्मीरी परिवारों के घरों में शरण मिली, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना हमें सुरक्षा दी। कुछ लोग तो हमारे समूह के उन लोगों को भी लाने गए जो दूसरे इलाकों में फंसे हुए थे।"
टीएमसी सांसद सागरिका घोष ने X (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, "पहलगाम आतंक हमले के दौरान और बाद में कश्मीरियों ने हर कदम पर पीड़ितों और उनके परिवारों की मदद की। एक घोड़ा चालक अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों को बचाते हुए शहीद हो गया, कश्मीरी परिवारों ने अपने घर खोले, और कई लोगों ने पर्यटकों को हमले के बाद वहां से सुरक्षित बाहर निकालने में मदद की। कश्मीर के लोग हमारे बड़े भारतीय परिवार का हिस्सा हैं। आतंकवादी हमें एक-दूसरे से अलग करना चाहते हैं और कश्मीरी-विरोधी गुस्सा फैलाना चाहते हैं। हमें उनके इस बुरे एजेंडे का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।"

हमले के बाद: कश्मीर से एकजुट आवाज
पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद कश्मीर से एक मजबूत और एकजुट आवाज़ उठी। यह सिर्फ दुख की नहीं, बल्कि साथ मिलकर खड़े होने, सहनशीलता और उन खास चीज़ों की बात थी जो कश्मीर को सच में पहचान देती हैं।
"कश्मीरियों ने खुद पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद कहा," एक पर्यवेक्षक ने सुना। स्थानीय लोग इकट्ठे हुए, जो चौंक गए थे, लेकिन फिर भी एकजुट थे, और उनकी बातें घाटी से बहुत दूर तक गूंज उठीं।
"हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी भाई हैं," उन्होंने विश्वास के साथ कहा। यह एक याद दिलाने वाली बात थी कि यहां धार्मिक सद्भाव सिर्फ एक नारा नहीं है, बल्कि यह एक जीती-जागती हकीकत है, जो रोज़मर्रा के
रिश्तों और साझा अनुभवों में गहरी जड़ें जमाए हुए है।

हम एक हैं, हम आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हैं: कश्मीरियों ने आतंक के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई
एक और मजबूत और साहसिक कदम उठाते हुए, अनंतनाग के कश्मीरी मुसलमानों ने पहलगाम हमले के खिलाफ अपना विरोध जताया। वे सड़कों पर निकले और आतंकवाद के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने हिंसा के खिलाफ अपनी नफरत ज़ाहिर की और शांति की बात की।

यही है असली भारत, जहां धर्म हमें बांटता नहीं, और इंसानियत सबसे बड़ी पहचान होती है।
यह तस्वीरें कुछ लोगों को शायद अच्छी न लगें, और हो सकता है मुख्य मीडिया इन्हें नजरअंदाज करे, लेकिन जो असल सच्चाई है, वह किसी भी नैरेटिव से ज्यादा ज़ोर से बोलती है।
फिर भी, जो भी विभाजनकारी बातें सामने आईं, कश्मीर के लोगों ने शांति, प्यार और मेहमाननवाजी के अपने रास्ते को मजबूती से अपनाया। सज्जाद भट जैसे लोग, जिन्होंने पर्यटकों को बचाने के लिए अपनी जान खतरे में डाली, और प्रदीप शर्मा जैसे लोग, जो धर्म और राजनीति से ऊपर उठकर दूसरों की मदद करते हैं—उन्होंने कश्मीर की असली एकता को दिखाया। स्थानीय लोगों की वो कहानियां, जिन्होंने परेशान पर्यटकों को अपने घर में शरण दी और उनकी मदद की—यह दिखाती हैं कि कश्मीर का असली मतलब सिर्फ सुर्खियों से नहीं, बल्कि उन रिश्तों से है जो मुश्किल वक्त में एक-दूसरे के साथ होते हैं। जैसे-जैसे कश्मीर के लोग आतंकवाद और नफरत के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं, वे हमें यह याद दिलाते हैं कि मानवता और शांति हमेशा जीतनी चाहिए, चाहे जो भी ताकतें हमें बांटने की कोशिश करें।
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