बीजेपी सांसद ने कहा कि हमले में जिन महिलाओं ने अपने पति खोए, अगर उन्होंने होलकर का इतिहास पढ़ा होता तो कोई भी व्यक्ति उनके सामने उनके पति को इस तरह नहीं मार पाता।

राज्यसभा सांसद राम चंदर जांगड़ा ने शनिवार को उस समय बड़ा विवाद खड़ा कर दिया, जब उन्होंने कहा कि पहलगाम में मारे गए पर्यटकों को आतंकियों से लड़ना चाहिए था और जिन महिलाओं ने इस हमले में अपने पति खो दिए, उनमें 'वीरांगना' जैसी भावना की कमी थी।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जांगड़ा ने कहा, "वहां जो हमारी वीरांगनाएं बहनें थीं, जिनकी मांग का सिंदूर छीन लिया गया, उनमें वीरांगना का भाव नहीं था, जोश नहीं था, जज़्बा नहीं था, दिल नहीं था, इसलिए वे हाथ जोड़कर गोलियों का शिकार हो गईं।"
उन्होंने आगे कहा, "लेकिन हाथ जोड़ने से कोई छोड़ता नहीं। हमारे लोग वहां हाथ जोड़कर मारे गए।"
हरियाणा से बीजेपी सांसद राम चंदर जांगड़ा ने भिवानी में अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि जिन महिलाओं ने इस हमले में अपने पति खोए, अगर उन्होंने अहिल्याबाई होलकर का इतिहास पढ़ा होता तो कोई भी उनके सामने इस तरह उनके पतियों को नहीं मार सकता था।
उन्होंने कहा, "अगर यात्रियों ने ट्रेनिंग ली होती, तो तीन उग्रवादी 26 लोगों को नहीं मार सकते थे।"
अग्निवीर योजना का ज़िक्र करते हुए बीजेपी सांसद ने कहा कि अगर हर पर्यटक ने अग्निवीर की ट्रेनिंग ली होती, तो वे आतंकियों को घेर सकते थे और जान-माल का नुकसान भी कम होता। बाद में जांगड़ा ने दोहराया कि पर्यटकों को आतंकियों से मुकाबला करना चाहिए था।
"बिल्कुल लड़ना चाहिए था, और अगर लड़ते तो कम शहादत होती और कम लोग मारे जाते। हाथ जोड़ने से कौन छोड़ता है? वे तो मारने के लिए आए थे… वे तो आतंकी थे। उनके दिल में दया थोड़ी थी।"
ज्ञात हो कि 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन में हुए आतंकी हमले ने पूरे इलाके को दहला दिया। इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई और हर तरफ़ दुख, ग़ुस्से और डर का माहौल बन गया। लेकिन इस मुश्किल वक्त में भी कश्मीर के लोगों ने इंसानियत की एक बड़ी मिसाल पेश की। सैयद आदिल हुसैन शाह और सज्जाद भट जैसे बहादुर लोगों ने अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की मदद की। धर्म या जाति की परवाह किए बिना सभी ने मिलकर एक-दूसरे का साथ दिया। कश्मीर के लोगों ने दिखा दिया कि नफ़रत और हिंसा चाहे जितनी भी हो, प्यार, भाईचारा और इंसानियत उससे कहीं ज़्यादा ताकतवर हैं।
इस हमले की अफ़रातफरी के बीच जो पहली बहादुरी की कहानी सामने आई, वह थी सैयद आदिल हुसैन शाह की। एक स्थानीय टट्टूवाला, जो निहत्था था, लेकिन हिम्मत और इंसानियत में सबसे आगे निकला। जब गोलियां चल रही थीं, तब आदिल न भागा, न ही छिपा। उसने हमलावरों का सामना किया, उनसे उनके जुल्म पर सवाल पूछे और पुणे के दो डरे हुए पर्यटकों – कौस्तुभ गणबोटे और संतोष जगदाले – को बचाने की कोशिश की। इसी दौरान उसे चार गोलियां लगीं—दो सीने में, एक पेट में और एक शरीर के दूसरे हिस्से में। वह वहीं ज़मीन पर गिर पड़ा—उसी ज़मीन पर, जहां वह रोज़ सैकड़ों लोगों को घोड़े पर बैठाकर सैर कराता था।
आदिल की कुर्बानी के अलावा, उस जगह पर जो तस्वीर उभरी, वह नफरत फैलाने वाली खबरों से बिल्कुल अलग थी। तमाम सनसनीखेज़ दावों और शोर मचाते टीवी चैनलों से दूर, बिना किसी भेदभाव के, पूरी इंसानियत और एकजुटता के साथ वहां कई लोग थे जो पीड़ितों की मदद के लिए आगे आए।
हालांकि ज़्यादातर मीडिया ने इस तरह की कहानियों को नज़रअंदाज़ किया, लेकिन स्थानीय लोगों की मदद और सहानुभूति ने एक अलग ही सच दिखाया। कश्मीर और उसके लोगों के ख़िलाफ़ नफरत भरी बातें फैलती रहीं, लेकिन घाटी ने फिर साबित किया कि वह मोहब्बत, अमन और भाईचारे की मिट्टी है – जिसने हमेशा अपने मेहमानों का खुले दिल से स्वागत किया है और उसी परंपरा को इस मुश्किल वक़्त में भी निभाया।
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जांगड़ा ने कहा, "वहां जो हमारी वीरांगनाएं बहनें थीं, जिनकी मांग का सिंदूर छीन लिया गया, उनमें वीरांगना का भाव नहीं था, जोश नहीं था, जज़्बा नहीं था, दिल नहीं था, इसलिए वे हाथ जोड़कर गोलियों का शिकार हो गईं।"
उन्होंने आगे कहा, "लेकिन हाथ जोड़ने से कोई छोड़ता नहीं। हमारे लोग वहां हाथ जोड़कर मारे गए।"
हरियाणा से बीजेपी सांसद राम चंदर जांगड़ा ने भिवानी में अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि जिन महिलाओं ने इस हमले में अपने पति खोए, अगर उन्होंने अहिल्याबाई होलकर का इतिहास पढ़ा होता तो कोई भी उनके सामने इस तरह उनके पतियों को नहीं मार सकता था।
उन्होंने कहा, "अगर यात्रियों ने ट्रेनिंग ली होती, तो तीन उग्रवादी 26 लोगों को नहीं मार सकते थे।"
अग्निवीर योजना का ज़िक्र करते हुए बीजेपी सांसद ने कहा कि अगर हर पर्यटक ने अग्निवीर की ट्रेनिंग ली होती, तो वे आतंकियों को घेर सकते थे और जान-माल का नुकसान भी कम होता। बाद में जांगड़ा ने दोहराया कि पर्यटकों को आतंकियों से मुकाबला करना चाहिए था।
"बिल्कुल लड़ना चाहिए था, और अगर लड़ते तो कम शहादत होती और कम लोग मारे जाते। हाथ जोड़ने से कौन छोड़ता है? वे तो मारने के लिए आए थे… वे तो आतंकी थे। उनके दिल में दया थोड़ी थी।"
ज्ञात हो कि 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन में हुए आतंकी हमले ने पूरे इलाके को दहला दिया। इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई और हर तरफ़ दुख, ग़ुस्से और डर का माहौल बन गया। लेकिन इस मुश्किल वक्त में भी कश्मीर के लोगों ने इंसानियत की एक बड़ी मिसाल पेश की। सैयद आदिल हुसैन शाह और सज्जाद भट जैसे बहादुर लोगों ने अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की मदद की। धर्म या जाति की परवाह किए बिना सभी ने मिलकर एक-दूसरे का साथ दिया। कश्मीर के लोगों ने दिखा दिया कि नफ़रत और हिंसा चाहे जितनी भी हो, प्यार, भाईचारा और इंसानियत उससे कहीं ज़्यादा ताकतवर हैं।
इस हमले की अफ़रातफरी के बीच जो पहली बहादुरी की कहानी सामने आई, वह थी सैयद आदिल हुसैन शाह की। एक स्थानीय टट्टूवाला, जो निहत्था था, लेकिन हिम्मत और इंसानियत में सबसे आगे निकला। जब गोलियां चल रही थीं, तब आदिल न भागा, न ही छिपा। उसने हमलावरों का सामना किया, उनसे उनके जुल्म पर सवाल पूछे और पुणे के दो डरे हुए पर्यटकों – कौस्तुभ गणबोटे और संतोष जगदाले – को बचाने की कोशिश की। इसी दौरान उसे चार गोलियां लगीं—दो सीने में, एक पेट में और एक शरीर के दूसरे हिस्से में। वह वहीं ज़मीन पर गिर पड़ा—उसी ज़मीन पर, जहां वह रोज़ सैकड़ों लोगों को घोड़े पर बैठाकर सैर कराता था।
आदिल की कुर्बानी के अलावा, उस जगह पर जो तस्वीर उभरी, वह नफरत फैलाने वाली खबरों से बिल्कुल अलग थी। तमाम सनसनीखेज़ दावों और शोर मचाते टीवी चैनलों से दूर, बिना किसी भेदभाव के, पूरी इंसानियत और एकजुटता के साथ वहां कई लोग थे जो पीड़ितों की मदद के लिए आगे आए।
हालांकि ज़्यादातर मीडिया ने इस तरह की कहानियों को नज़रअंदाज़ किया, लेकिन स्थानीय लोगों की मदद और सहानुभूति ने एक अलग ही सच दिखाया। कश्मीर और उसके लोगों के ख़िलाफ़ नफरत भरी बातें फैलती रहीं, लेकिन घाटी ने फिर साबित किया कि वह मोहब्बत, अमन और भाईचारे की मिट्टी है – जिसने हमेशा अपने मेहमानों का खुले दिल से स्वागत किया है और उसी परंपरा को इस मुश्किल वक़्त में भी निभाया।
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