सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने सीजेआई को लेकर टिप्पणी के लिए भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है। निशिकांत दुबे ने वक्फ संशोधन अधिनियम में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के मामले में 19 अप्रैल को कहा था कि देश में सभी ‘गृह युद्धों’ के लिए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी के भागलपुर के सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की, जिसमें उन्होंने दावा किया कि देश में सभी ‘गृह युद्धों/धार्मिक युद्धों’ के लिए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं। उन्होंने कुछ और टिप्पणियां भी कीं, जिसको लेकर एसोसिएशन ने कहा कि ये “न केवल अपमानजनक हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना भी है।” लाइव लॉ ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
बयान में कहा गया, "एक संस्था के रूप में सर्वोच्च न्यायालय और भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना पर एक व्यक्ति के रूप में यह हमला अस्वीकार्य है और इससे कानून के अनुसार निपटा जाना चाहिए।"
एसोसिएशन ने अटॉर्नी जनरल से दुबे के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया। पहले ही एक अधिवक्ता अनंस तनवीर ने अवमानना कार्यवाही शुरू करने की याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिस पर न्यायमूर्ति गवई की अगुवाई वाली अदालत की एक खंडपीठ ने अधिवक्ता से अटॉर्नी जनरल (एजी) से संपर्क करने को कहा है। इस पर सुनवाई अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध की गई है क्योंकि एजी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
रिपोर्ट के अनुसार, 1971 के न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत, कोई व्यक्ति अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की मंजूरी के बाद ही सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट को लिखे अपने पत्र में तनवीर ने तर्क दिया था कि दुबे के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए, क्योंकि उन्होंने सीजेआई पर “बेहद निंदनीय” और “भ्रामक” बयान दिए थे, जिनका उद्देश्य “न्यायालय की गरिमा और अधिकार को कम करना” था।
एससीबीए ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि “एक संस्था के रूप में सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना पर एक व्यक्ति के रूप में यह हमला अस्वीकार्य है और इससे कानून के अनुसार निपटा जाना चाहिए।”
प्रस्ताव को यहां पढ़ा जा सकता है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, बार एसोसिएशन के अलावा सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने भी मंगलवार को दुबे की टिप्पणी की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
प्रस्ताव में कहा गया है, “इस तरह की टिप्पणियां न केवल तथ्यात्मक रूप से निराधार और बेहद गैर-जिम्मेदाराना हैं, बल्कि वे हमारे देश के सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय की स्वतंत्रता, गरिमा और महिमा पर सीधा और अनुचित हमला भी हैं।” एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने कहा कि दुबे के बयान “अपमानजनक प्रकृति के थे और जनता की नजर में न्यायपालिका के अधिकार को कम करने की कोशिश करते हैं”।
प्रस्ताव में लोकतंत्र में न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया गया और कहा गया कि अदालत के फैसलों से असहमति स्वीकार्य है, लेकिन उन्हें सम्मानपूर्वक और कानूनी सीमाओं के भीतर व्यक्त किया जाना चाहिए।
एसोसिएशन ने जन प्रतिनिधियों से “संयम बरतने, संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने और न्यायपालिका की गरिमा का सम्मान करने” का भी आग्रह किया।



सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी के भागलपुर के सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की, जिसमें उन्होंने दावा किया कि देश में सभी ‘गृह युद्धों/धार्मिक युद्धों’ के लिए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं। उन्होंने कुछ और टिप्पणियां भी कीं, जिसको लेकर एसोसिएशन ने कहा कि ये “न केवल अपमानजनक हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना भी है।” लाइव लॉ ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
बयान में कहा गया, "एक संस्था के रूप में सर्वोच्च न्यायालय और भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना पर एक व्यक्ति के रूप में यह हमला अस्वीकार्य है और इससे कानून के अनुसार निपटा जाना चाहिए।"
एसोसिएशन ने अटॉर्नी जनरल से दुबे के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया। पहले ही एक अधिवक्ता अनंस तनवीर ने अवमानना कार्यवाही शुरू करने की याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिस पर न्यायमूर्ति गवई की अगुवाई वाली अदालत की एक खंडपीठ ने अधिवक्ता से अटॉर्नी जनरल (एजी) से संपर्क करने को कहा है। इस पर सुनवाई अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध की गई है क्योंकि एजी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
रिपोर्ट के अनुसार, 1971 के न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत, कोई व्यक्ति अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की मंजूरी के बाद ही सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट को लिखे अपने पत्र में तनवीर ने तर्क दिया था कि दुबे के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए, क्योंकि उन्होंने सीजेआई पर “बेहद निंदनीय” और “भ्रामक” बयान दिए थे, जिनका उद्देश्य “न्यायालय की गरिमा और अधिकार को कम करना” था।
एससीबीए ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि “एक संस्था के रूप में सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना पर एक व्यक्ति के रूप में यह हमला अस्वीकार्य है और इससे कानून के अनुसार निपटा जाना चाहिए।”
प्रस्ताव को यहां पढ़ा जा सकता है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, बार एसोसिएशन के अलावा सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने भी मंगलवार को दुबे की टिप्पणी की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
प्रस्ताव में कहा गया है, “इस तरह की टिप्पणियां न केवल तथ्यात्मक रूप से निराधार और बेहद गैर-जिम्मेदाराना हैं, बल्कि वे हमारे देश के सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय की स्वतंत्रता, गरिमा और महिमा पर सीधा और अनुचित हमला भी हैं।” एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने कहा कि दुबे के बयान “अपमानजनक प्रकृति के थे और जनता की नजर में न्यायपालिका के अधिकार को कम करने की कोशिश करते हैं”।
प्रस्ताव में लोकतंत्र में न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया गया और कहा गया कि अदालत के फैसलों से असहमति स्वीकार्य है, लेकिन उन्हें सम्मानपूर्वक और कानूनी सीमाओं के भीतर व्यक्त किया जाना चाहिए।
एसोसिएशन ने जन प्रतिनिधियों से “संयम बरतने, संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने और न्यायपालिका की गरिमा का सम्मान करने” का भी आग्रह किया।

