“इस विषय पर मंदिर के दावे के साथ एक मुकदमा 1978 में मुरादाबाद जिला न्यायालय में दायर किया गया था। इस मुकदमे का फैसला संभल की शाही मस्जिद के पक्ष में हुआ था। मंदिर के दावेदारों ने इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की थी। उनकी यह अपील खारिज हो गई थी।”
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उत्तर प्रदेश के संभल में आम हिंदू और मुस्लिम समाज में किसी प्रकार के द्वेष, तनाव या वैमनस्य जैसी कोई स्थिति नहीं है। मुस्लिम मोहल्लों की गरीब जनता में पुलिस की दहशत है। आशंका है कि पुलिस कभी भी किसी निर्दोष को गिरफ्तार कर थाने में अत्यधिक मारपीट कर सकती है और उसे मुकदमे में फर्जी तरीके से फंसा कर जेल भेज सकती है। पुलिस के भय और खौफ से कई लोगों ने नाम न बताने की शर्त पर अपनी बातें साझा की हैं।” ये शब्द पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टिज (पीयूसीएल) ने अपनी जांच रिपोर्ट 'सांप्रदायिक हिंसा नहीं, संभल में पुलिस राज' में कथित तौर पर लिखे हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह 'पुलिस फायरिंग पर पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट' है।
ज्ञात हो कि पिछले साल 24 नवंबर को संभल में हुई पुलिस फायरिंग में कुछ लोगों की मौत हो गई थी, वहीं कई लोग घायल हो गए थे। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कथित इस फायरिंग में समुदाय विशेष से संबंधित पांच व्यक्ति मारे गए, वहीं इस मामले में छह दर्जन से अधिक समुदाय विशेष के व्यक्ति संगीन अपराधों में जेल में बंद हैं, साथ ही अन्य सैंकड़ों अज्ञात व्यक्तियों पर मामला दर्ज है। इस पुस्तक में फैक्ट फाइंडिंग टीम के हवाले से लिखा गया है कि उसने इस घटना में पांचों मृतकों के परिजनों से मुलाकात की। सभी का कहना है कि पुलिस के दौरान सभी को गोली लगी थी। इसमें आगे कहा गया है कि पुलिस प्रशासन 24 नवंबर 2024 को हुई घटना के दौरान केवल चार व्यक्तियों की मौत ही मान रहा है, जबकि रोमान खान की मौत को कबूल नहीं किया जा रहा है। हालांकि, सभी समाचार पत्रों में फायरिंग के दौरान रोमान खान की मौत की खबर छपी थी। इसमें लिखा गया है कि पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई ने रोमान के बारे में बताया, “पुलिस ने रोमान के परिवार वालों से पूछताछ की थी, परंतु उन्होंने किसी प्रकार की शिकायत दर्ज करने से इंकार किया है। अगर कोई शिकायत दर्ज कराता है, तो हम जांच करने के लिए तैयार हैं; पुलिस ने केवल चार शव बरामद किए हैं और उनका पोस्टमार्टम हो चुका है। चारों की मौत गोली लगने (Firearm Injury) से हुई है, लेकिन पुलिस फायरिंग में एक भी व्यक्ति नहीं मरा है। फोरेंसिक जांच की रिपोर्ट नहीं आई है।”
मृतकों के परिजनों के बयान
1. मृतक अयान (19 वर्ष)
ढाबे पर काम करने वाले मृतक अयान (पुत्र हनीफ, निवासी मोहल्ला कोटगर्वी, मौलवी साहब की मस्जिद, संभल) की विधवा मां नफीसा ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि, "अयान मोहल्ला चौधरी सराय में शान-ए-दरबार नामक एक छोटे से होटल में वेटर था। वह रोज की तरह 24 नवंबर को घर से सुबह करीब 8:30 बजे काम के लिए निकला। आधे घंटे बाद मालूम हुआ कि उसे पुलिस फायरिंग के दौरान गोली लग गई है और कुछ लोग उसे अस्पताल ले गए हैं। हम लोग अस्पताल पहुंचे तो देखा कि वह खून से लथपथ था। अयान ने बताया था कि पुलिस ने ही उस पर गोली चलाई थी। नफीसा ने कहा कि बेटे की मौत के बाद हम और हमारे आस-पास के पड़ोसी और मोहल्ले वाले काफी डरे हुए हैं। पुलिस अक्सर आती है, दबाव डालकर बयान ले रही है और निर्दोषों को पकड़ने की धमकी देती रहती है।"
2. मृतक नईम (35 वर्ष)
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने मृतक नईम (पुत्र रईश दूल्हा, निवासी मोहल्ला कोटगर्वी, इमामबाड़ा वाली गली, संभल) के भाई तसलीम से बात की। उन्होंने बताया कि, “नईम एक दुकान किराए पर लेकर मिठाई बनाकर आजीविका चलाते थे। घटना के दिन, नईम सुबह रिफाइंड तेल का डिब्बा लेने जनरल स्टोर गए थे। जामा मस्जिद की तरफ से भागकर आ रहे लोगों ने बताया कि नईम भाई को पुलिस ने गोली मार दी है। घायल नईम को तसलीम ने नजदीकी शरवंजा अस्पताल ले जाया। डॉक्टरों ने बताया कि वह मर चुका है, लेकिन हमें तसल्ली नहीं हुई। उसे डॉ. वसीम की क्लीनिक में ले गए। नईम मर चुका था। पुलिस उसे पहले सरकारी अस्पताल ले गई थी, फिर लाश का पोस्टमार्टम कराने के लिए जिला मुख्यालय बहजोई ले गई। रात 11 बजे पोस्टमार्टम हुआ। कब्रिस्तान तक हम सब पुलिस की सख्त निगरानी में रहे।”
तसलीम ने आगे कहा कि, “पुलिस ने हमें धमकाते हुए कहा था कि अपनी तरफ से कोई बयान नहीं देना। पुलिस जामा मस्जिद के करीब 400 मीटर की दूरी से गोली चला रही थी। बाद में पुलिस ने हमें थाने बुलाया था, लेकिन हम नहीं गए।”
नईम की मां इदरीसा (50 वर्ष) ने बताया कि, “मेरे बेटे को गोली लगी थी। हम बहुत कुछ झेल रहे हैं। नईम के चार छोटे-छोटे मासूम बच्चे हैं। वह अकेला कमाने वाला था। हम बहुत गरीब हैं। बमुश्किल दो समय की रोटी का इंतजाम हो पाता है। अब हम कैसे जिएंगे? हमारे पास मुकदमा लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं। हम न्याय के बारे में कैसे सोच सकते हैं?”
3. मोहम्मद कैफ (17 वर्ष)
80 वर्षीय बुजुर्ग महिला कैफ की दादी की आंखों में कैफ का जिक्र करते हुए आंसू आ जाते हैं। वह रूंधे गले से फैक्ट फाइंडिंग टीम को कहती हैं, "उस दिन (24 नवंबर) कैफ रोज की तरह बाजार में खरीदारी करने गया था। फिर वह नहीं लौटा।"
मृतक कैफ के चाचा मारूफ ने टीम को बताया, "कैफ इतवार के बाजार में सड़क पर फड़ लगाकर प्लास्टिक के खिलौने बेचा करता था। घटना के दिन वह थोक मार्केट में दुकान से खिलौने खरीदने के लिए गया था। उसकी मौत सीने में गोली लगने से हुई थी। लाश मस्जिद के पीछे बाजार की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर मिली थी। कैफ की लाश के चेहरे पर नकाब था। कैफ को अपराधी साबित करने के लिए पुलिस ने ही उसे नकाब पहनाया होगा।”
मृतक मोहम्मद कैफ की मां अनीश बेगम ने कहा, “जिसने भी मेरे बच्चे को मारा है, उसे सजा मिलनी चाहिए। पुलिस ने ही मेरे मासूम बेटे को मारा है।” यह कहते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगी और बोली, “चाहे लाठी मार देते लेकिन जिंदा छोड़ देते, मारते तो नहीं।”
4. बिलाल अंसारी उर्फ वसीम (22 वर्ष)
मृतक बिलाल अंसारी के भाई सलमान ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया, “बिलाल अंसारी मस्जिद के पीछे (घटना स्थल के पास) बाजार में रेडिमेड कपड़े की दुकान में कपड़े बेचा करता था। सुबह करीब 10:30 बजे एक अज्ञात व्यक्ति ने फोन किया कि बिलाल को गोली लग गई है और वह हसीना बेगम अस्पताल में भर्ती है। हम वहां पहुंचे, बिलाल को सीने में गोली लगी थी। अस्पताल में डॉक्टरों ने इसे मुरादाबाद के अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। मुरादाबाद जाते समय एंबुलेंस में बिलाल ने बताया था कि जिस समय मस्जिद में हंगामा, पत्थरबाजी और पुलिस फायरिंग हुई, उस दौरान ही उसे पुलिस की गोली लगी है। संभल में हसीना बेगम अस्पताल में उसका कोई इलाज नहीं किया गया। अगले दिन (25 नवंबर को) हमने पुलिस अधिकारियों को लिखित शिकायत में कहा था कि मरने से पहले बिलाल ने एंबुलेंस में बताया था कि हंगामे के दौरान पुलिस ने गोली चलाई थी। पुलिस की गोली उसे लगी थी। मुकदमा दर्ज करने की भी दरख्वास्त की थी। पुलिस ने हमारी रिपोर्ट दर्ज करने की बजाय उलटा धमकाया। हमारी दरख्वास्त में से पुलिस द्वारा फायरिंग और पुलिस की गोली से मौत की बात हटाने के लिए कहा। फिर पुलिस ने खुद शिकायत लिखवाई और उस पर जबरदस्ती मेरे हस्ताक्षर करवाए। यह भी कहा कि अगर हम नहीं माने तो हमें भी किसी फर्जी मामले में फंसा दिया जाएगा। हमारे परिवार की महिलाओं को महिला गार्ड पकड़ कर थाने ले जाएगी।”
5. रोमान खाना (45 वर्ष)
मृतक रोमान खान (पुत्र छोटे खान, निवासी मोहल्ला पठान वाला हयातनगर, संभल) के बेटे अदनान ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया, “वालिद साहब साइकल पर बच्चों के कपड़े (रेडीमेड गार्मेंट) फेरी लगाकर बेचा करते थे। रोजाना की तरह वे 24 नवंबर को सुबह करीब आठ-साढ़े आठ बजे घर से फेर पर निकले थे। वे बाजार में थोक की दुकान से कपड़े खरीद कर सड़कों पर घूम-घूम कर बेचा करते थे। हमारे नाना यासीन के जरिए वालिद के मारे जाने की सूचना मिली थी। वालिद की मौत गोली लगने से हुई थी। काफी देर तक उनकी लाश सड़क पर पड़ी रही। शिनाख्त होने पर मौजूद लोगों ने हमारे नानिहाल नखासा में उन्हें पहुंचाया।”
अदनान ने कहा, "हम लगभग 12 बजे पहुंचे, देखा उनके माथे और सिर पर चोट के निशान थे। चोट और नाक से खून बह रहा था। गोली सीने पर लगी थी। उनकी साइकिल जिस पर वे कपड़े बांध कर बेचा करते थे, कपड़ों की गठरी, कुछ भी नहीं था। यहां तक वे जो शर्ट पहने थे वह भी बदन पर नहीं थी। हमारा पूरा परिवार बेहद दुखी था और डर भी गया था। इसलिए हमने पुलिस में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई, क्योंकि पुलिस ने ही उनकी हत्या की थी। वे पुलिस की गोली से ही मरे थे। पुलिस ने उनकी मौत तक दर्ज नहीं की है, पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ है...हमें न्याय मिलनी चाहिए। वालिद के हत्यारों को सजा मिलनी चाहिए।"
जेल में बंद आरोपियों के परिजनों की आपबीती
जेल में बंद कुछ आरोपियों के परिजनों से पीयूसीएल की जांच टीम ने मुलाकात कर जानकारी हासिल की। इनमें मोहम्मद हुसैन, अमन और जैद तीनों नाबालिग हैं और मुरादाबाद जेल के बच्चों वाले सेल में हैं। तीनों एक ही मोहल्ले के निवासी हैं। पुलिस ने तीनों को अलग-अलग गिरफ्तार कर, गैरकानूनी रूप से तीन दिन तक हिरासत में रखा और फिर उनका चालान किया। कानून के अनुसार, पुलिस अधिकतम 24 घंटे तक गिरफ्तार व्यक्ति को हिरासत में रख सकती है।
मोहम्मद हुसैन (15 वर्ष)
मोहम्मद हुसैन (निवासी मोहल्ला महमूद सराय, संभल) की मां शबनम बेगम ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया, “हुसैन जामा...को 24 नवंबर को सवेरे सब्जी लेने के लिए भेजा था। पुलिस लाठीचार्ज और फायरिंग से माहौल में अफरा-तफरी होने लगी तब घबरा कर उसे ढूंढा गया तो पता चला पुलिस ने उसे पकड़ लिया है और मारपीट कर थाने ले जाकर बंद कर दिया। दरियाफ्त करने पर पहले तो पुलिस ने साफ इनकार कर दिया कि थाने में नहीं है। लेकिन हमने इसे कोतवाली में देख लिया था, फिर भी पुलिस ने मिलने नहीं दिया।...हुसैन को पुलिस ने डंडे से काफी पीटा था। उसके सिर पर चोट थी जिस पर पट्टी बंधी थी, डंडे की मार से हाथ की मुट्ठी बंद नहीं हो पा रही थी।...किसी तरह की कोई शिकायत करने से हुसैन को रोकते हुए कहा कि पुलिस ने कहा है कि ऐसा किया गया तो जमानत नहीं हो पाएगी और लंबी सजा हो जाएगी।”
मोहम्मद हसन (17 वर्ष)
मोहम्मद हसन की मां मुजाहिरा ने जांच टीम को बताया कि, “हसन दिल्ली में काम करता था। मेरा दूसरा बेटा हाशिम सवेरे अपने वालिद के मजार पर नमाज अदा करने के लिए गया था।...मैंने हसन को हाशिम की तलाश में भेजा था। इस बीच पुलिस द्वारा आंसू गैस और फायरिंग होने लगी।...हाशिम की तलाश में हसन फिर बाहर निकल गया। इस बार वह चपेट में आ गया। उसकी बांह से पुलिस की गोली आर-पार गुजर गई। हम थाने गए तो दारोगा ने कहा कि हसन को छोड़ देंगे परंतु तुम लोगों को लिख कर देना पड़ेगा कि गोली पुलिस ने नहीं मारी है, पत्थरबाजी के दौरान पब्लिक में से किसी ने मारी है।...थाने में लगभग 40 पुलिसकर्मियों ने उसे और उसके साथ बंद और लोगों को बेरहमी के साथ पीटा है। मारते समय वे कह रहे थे 10 और लोगों के नाम बताओ। यह भी कह रहे थे अगर यह कहा कि गोली पुलिस ने मारी है तो मार-मार कर जान से मार देंगे और लाश का पता तक नहीं चलेगा। यह भी कहा कि तुम लोग पाकिस्तानी हो वहीं क्यों नहीं चले जाते।”
पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग टीम के अनुसार, शाही मस्जिद सर्वे के मामले में वादी हरिशंकर जैन ने 24 नवंबर की घटना के लिए मुस्लिम समुदाय को दोषी बताते हुए कहा, “सब कुछ सोच समझकर किया गया था। पहली बार 19 नवंबर के दिन 3:30 पर सिविल जज (सीनियर डिवीजन) आदित्य सिंह के आदेश के अनुसार सर्वे के लिए नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव के साथ शाम लगभग 6 बजे मौके पर पहुंचे। वीडियोग्राफी की गई, तस्वीरें ली गई। सर्वे टीम के साथ डीएम राजेंद्र पेसिया, एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई पुलिस फोर्स के साथ थे। रात दो-ढाई घंटे तक सर्वे टीम वहां रही।”
“...24 नवंबर सुबह वादी के वकील विष्णु शंकर जैन, सरकारी वकील पीयूष शर्मा, पुरातत्व विभाग के वकील विष्णु शर्मा, अधिवक्ता कमिश्नर के साथ कोतवाली पहुंचे। वहां मस्जिद कमेटी के चफर अली भी मौजूद थे। हम सब सुबह 7:15 पर मस्जिद पहुंचे थे। (मस्जिद संबोधन के साथ श्री हरि शंकर जैन ने स्पष्टीकरण यह भी दिया कि उनके अनुसार वह मस्जिद नहीं है बल्कि हरिहर मंदिर है।) सबके फोन कोतवाली में जमा करा लिए गए। जफर अली साहब इस दौरान 15 मिनट के लिए बाहर गए थे। उनके आने के 35 से 40 मिनट बाद सड़क पर भारी भीड़ जमा हो गई। अल्लाह ओ अकबर नारों के साथ भीड़ ने पत्थर फेंकने शुरू कर दिए। इमारत के भीतर तक पत्थर आ रहे थे। इसी दौरान भीड़ ने गाड़ियों में आग लगा दी। इसके बाद फायरिंग की आवाज सुनाई पड़ी। गोली कौन चला लहा था यह तो पुलिस ही बता सकती है। इस माहौल में सर्वे कार्यवाही रोकनी पड़ी। सर्वे टीम को पुलिस संरक्षण में वहां से निकाल कर पुलिस कोतवाली लाया गया। हिंदू इलाकों में टीम पहुंचने पर जय श्री राम हर हर महादेव जैसे नारे लगे थे। यह गलत अफवाह मुसलमानों ने फैलाई है कि जय श्री राम और हर हर महादेव के नारों की वजह से माहौल हिंसात्मक हुआ था। जय श्री राम उत्तेनात्मक नारा कैसे हो सकता है? श्री राम तो भारत की राष्ट्रीयता के प्रतीक हैं। देश के हर नागरिक के हैं श्री राम…”
जैन ने टीम को कहा, “माहौल को सांप्रदायिक बनाने में समाजवादी पार्टी की भूमिका है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने चुनावी मकसद से भाजपा को दोषी बता रहे हैं। मामले का राजनीतिकरण किया जा रहा है।”
जांच टीम द्वारा यह पूछे जाने पर कि नियम के अनुसार सर्वे सूरज ढलने के बाद रात में नहीं किया जा सकता तो इस पर जैन ने कहा, “ऐसा कोई नियम नहीं है। सर्वे किसी भी समय, देर रात भी किया जा सकता है...।” जब जैन ने रक्षात्मक स्वर टीम से कहा कि "दंगाई को कोई मजहब नहीं होता” तो इस पर टीम ने जैन से कहा कि आपने खुद अपने सवाल का जवाब दे दिया। "आप मुसलमानों को ही दोष क्यों देते हैं?”
प्रतिवादी मुकदमा जफर साहब का बयान
जफर साहब ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि, "19 नवंबर को शाम 3:30 बजे अदालत के आदेश के बाद, शाम को एडवोकेट कमिश्नर परवाना लेकर पुलिस फोर्स के साथ मस्जिद पहुंचे। वीडियोग्राफी करते हुए अंधेरा होने लगा। नियमानुसार, सर्वे की कार्यवाही केवल सवेरे 10 बजे से शाम 5 बजे तक ही की जा सकती है, अंधेरे में नहीं। सर्वे के आदेश के अनुसार, केवल स्थल निरीक्षण (Spot Verification) का आदेश था। इसमें खुदाई करने या इमारत में किसी प्रकार के परिवर्तन या छेड़छाड़ करने के लिए कुछ नहीं कहा गया था। अदालत द्वारा नियुक्त अधिवक्ता कमिश्नर को सिर्फ वीडियोग्राफी, तस्वीरें लेने और स्थल का निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने का कार्य सौंपा गया था। यह काम 19 नवंबर को शांतिपूर्वक बिना किसी रुकावट के पूरा हो गया था। अचानक, 23 तारीख को शाम लगभग 8 से 8:15 बजे के बीच एसडीएम और सीओ संभल मेरे घर आए और अदालत द्वारा नियुक्त अधिवक्ता कमिश्नर द्वारा अगले दिन, 24 तारीख को फिर से सर्वे किए जाने की लिखित सूचना मुझे दी। इसमें लिखा था कि 24 तारीख को सुबह 6-7 बजे सर्वे फिर से किया जाना है। इस सूचना की प्राप्ति के लिए मुझ पर दबाव डालकर मेरे हस्ताक्षर कराए गए थे। यह भी कहा गया कि सर्वे सवेरे ही होगा, लेकिन यह पूरी तरह तय नहीं है, समय बदल भी सकता है। फिर भी 24 को सर्वे किया जाना था। निश्चित समय की सूचना रात 11 बजे तक दी जाएगी। यह भी कहा गया कि इस बारे में मैं किसी को कुछ न बताऊं, क्योंकि इससे अनावश्यक भीड़ इकट्ठा हो जाएगी। रात 11 बजे तक सीओ या एसडीएम का कोई फोन नहीं आया। 24 नवंबर को सुबह 6:45 बजे इंस्पेक्टर संभल का फोन आया कि सर्वे के लिए वादी पक्ष से विष्णु शंकर और अधिवक्ता कमिश्नर आ चुके हैं, मुझे भी मौके पर हाजिर होने के लिए कहा गया। मैं पहुंचा, एडवोकेट कमिश्नर ने सर्वे के आदेश का नोटिस थमाया। मैंने नाइत्तफाकी दर्ज करने के लिए नोटिस पर लिखने के लिए कलम कागज पर टिकाई, तो एसडीएम वंदना मिश्रा ने तुरंत मेरे हाथ से नोटिस छीन लिया और कहा कि रात में नोटिस तामील हो चुका है, अब इसकी जरूरत नहीं है।"
उन्होंने कहा, "वादी मुकदमा, वादी पक्ष से विष्णु शर्मा और प्रिंस शर्मा के साथ, संभल के जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, एसडीएम, सीओ, कोतवाली इंस्पेक्टर और भारी पुलिस फोर्स की नाकेबंदी के बीच सर्वे की कार्यवाही शुरू की गई। वादीगण के समर्थक लोग जय श्री राम और हर हर महादेव के नारे लगा रहे थे। एसडीएम वंदना मिश्रा ने हौज का जल निकाल कर उसे खाली करने और गहराई जानने की बात कही। जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने कहा कि हौज को खाली कराने की जरूरत नहीं है, डंडे से गहराई मापी जा सकती है। सीनियर अधिकारियों के एतराज के बावजूद, एसडीएम मिश्रा ने कहा कि हौज की तलहटी का निरीक्षण भी जरूरी है। हौज को खाली करते समय ऊंचाई से पानी तेज धार में निकला। आम लोगों को लगा कि हौज को खाली करके तलहटी खोदी जाएगी और मस्जिद पर कब्जा किया जाएगा। इस वक्त सवेरे 8:30 बज चुके थे। जनता पूछने लगी कि हौज किस मकसद से खाली किया जा रहा है, क्या खुदाई की जाएगी? सवाल-जवाब और तकरार के साथ पुलिस और पब्लिक के बीच तनातनी होने लगी। झड़प के बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जवाब में जनता ने पथराव किया, फिर पुलिस ने आंसू गैस और फायरिंग की।"
टीम द्वारा मस्जिद बनाम हरिहर मंदिर विवाद के बारे में पूछने पर, जफर अली साहब ने बताया, "इस विषय पर मंदिर के दावे के साथ एक मुकदमा 1978 में मुरादाबाद जिला न्यायालय में दायर किया गया था। इस मुकदमे का फैसला संभल की शाही मस्जिद के पक्ष में हुआ था। मंदिर के दावेदारों ने इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की थी, जो खारिज हो गई।"
प्रशासन का पक्ष
पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने जब पुलिस अधीक्षक बिश्नोई से पूछा कि पहले सर्वे को शांतिपूर्वक संपन्न किया गया था, तो 24 नवंबर को दूसरे सर्वे के दौरान पुलिस ने फायरिंग क्यों की? इस पर पुलिस अधीक्षक ने कहा, "हम सर्वे टीम के साथ मस्जिद पहुंचे। मस्जिद तक तीन रास्तों से पहुंचा जा सकता है। मस्जिद के दाहिने और बाएं हिस्से में मुस्लिम आबादी है, जबकि सामने की तरफ हिंदू आबादी अधिक है। खतरा मुस्लिम आबादी की तरफ से था। हमने वहां सुरक्षा बलों को तैनात किया था। 400 वर्ग मीटर के इस क्षेत्र में अत्यधिक घनी आबादी है, और यहां गलियों का मकड़जाल है। एक रास्ते को बंद करें तो लोग कहीं और से निकल आते हैं।"
जब टीम ने पुलिस अधीक्षक से दो सर्वे में हुए अंतराल के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा, “20 नवंबर को कुंदरकी विधानसभा के उपचुनाव के लिए मतदान होना था, और 23 नवंबर को चुनाव परिणाम घोषित होने थे। इस बीच, पीस कमेटी की बैठक और 22 नवंबर को जुमा था, इसलिए नमाजियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सर्वे की तारीख तय की गई। 24 नवंबर को अल-सुबर से पीएसी और भारी पुलिस बल की तैनाती के साथ सर्वे की योजना बनाई गई, ताकि अचानक कार्रवाई की जा सके और भीड़ जमा न हो सके। सर्वे सुबह जल्दी संपन्न करने का उद्देश्य था, ताकि दिन की नमाज से पहले कार्यवाही पूरी हो जाए।”
"तनाव और फायरिंग की नौबत कैसे आ गई?" के जवाब में पुलिस अधीक्षक बिश्नोई ने कहा, "सवेरे 8:30 बजे से 10 बजे तक कार्यवाही चली। तनाव की शुरुआत 9 बजे के बाद हुई थी। मस्जिद के पीछे मुस्लिम इलाके से भीड़ जमा हो रही थी। धीरे-धीरे लगभग 5000 लोग इकट्ठा हो गए। तनाव बढ़ता जा रहा था। 10:30 तक लाउडस्पीकर से ऐलान करने के बावजूद स्थिति बिगड़ती गई, और पथराव होने लगा। समझाइश के लिए मस्जिद कमेटी के सदर, जफर साहब को भेजा गया। सुरक्षा के मद्देनजर उन्हें हेलमेट दिया गया। उनकी अपील के बावजूद भीड़ शांत नहीं हुई। पथराव न रुकने पर, एडवोकेट कमिश्नर, वादीगण और जफर साहब सहित सर्वे टीम को सुरक्षाबल की सहायता से निकाला गया। जब टीम हिंदू इलाके में पहुंची, तो भावुकता में जय श्री राम, हर हर महादेव जैसे नारे लगे थे, लेकिन हिंदू पक्ष से कोई उत्तेजक या उग्र कार्रवाई नहीं हुई थी। नारे सर्वेक्षण टीम के आगमन के दौरान नहीं, बल्कि उनके लौटने और हिंदू इलाके में पहुंचने के बाद लगे थे।"
पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट में भाजपा नेता के पक्ष को भी शामिल किया गया है। टीम ने पार्टी नेता राजेश सिंघल से पूछा कि संभल में यह मंदिर-मस्जिद विवाद क्या है? इसके जवाब में उन्होंने कहा, "संभल में शाही जामा मस्जिद असल में हरिहर मंदिर है। अयोध्या में श्रीराम जन्मस्थली पर मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने से पहले, संभल में भगवान विष्णु का हरिहर मंदिर था, जिसे मुगलों ने मस्जिद में बदल दिया, जिसे शाही जामा मस्जिद कहा जाता है। मुस्लिम शासकों ने देश भर में हजारों मंदिर तोड़े और उनकी जगह मस्जिद बनाई।"
जब उनसे यह पूछा गया कि क्या उन सभी जगहों पर फिर से मंदिर बनाए जाने चाहिए, तो उन्होंने कहा, "क्यों नहीं? हमारी संस्कृति और गौरव के लिए यह जरूरी है।"
नागरिक प्रतिक्रिया
भगवान दास
82 वर्षीय सेवानिवृत्त प्राध्यापक भगवान दास से पीयूसीएल की टीम ने पूछा कि "कथित शाही जामा मस्जिद-हरिहर मंदिर विवाद और 24 नवंबर की हिंसा पर आपकी राय क्या है?" तो उन्होंने कहा, "सब कुछ प्रायोजित था। 19 नवंबर को सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर होती है, उसी दिन विपक्ष को सूचित किए बिना एक्स पार्टी सर्वे का आदेश और कमिश्नर के लिए अधिवक्ता की नियुक्ति भी हो जाती है। सांझ ढलते, एडवोकेट कमिश्नर, वादीगण, प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस बल के साथ सर्वे के लिए मस्जिद पहुंच जाते हैं। क्या यह सब प्रायोजित नहीं लगता? यह सरकार के निर्देश पर सोची-समझी योजना के तहत हुआ है। 1991 का पूजा स्थल अधिनियम है। इस कानून के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद से पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप को यथावत रखने का प्रावधान है। संभल की जामा मस्जिद पांच सौ साल पुरानी है। तब किसी प्रकार के विवाद की गुंजाइश कहां थी! सर्वोच्च न्यायालय का वह फैसला, जिसमें कहा गया कि सर्वे पर रोक नहीं है, 1991 के कानून को निष्प्रभावी बना रहा है। संभल में मौजूदा हिंसा की जड़ वही फैसला है। अभी देखिए, इस फैसले के कारण कितने और विवाद और हिंसा होती हैं। पैंडोरा बॉक्स (Pandora Box) खुल गया है।"
संभल में सांप्रदायिकता के सवाल पर उन्होंने कहा, "विद्यार्थी जीवन से लेकर मेरी सारी जिंदगी यहां गुजरी है। दोनों ही संप्रदायों में कुछ सांप्रदायिक जहनियत के लोग जरूर हैं, लेकिन आम हिंदू-मुसलमान परस्पर प्रेम और सद्भाव के साथ मिलजुल कर रहते हैं। एक-दूसरे की खुशी और ग़म, शादी-ब्याह, ईद-दिवाली त्योहारों में सम्मिलित होते हैं। वोट की राजनीति के कारण नाइत्तफाकी छोड़ दें तो कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे सांप्रदायिकता कहा जा सके।"
1978 में दंगे में कथित तौर पर 184 हिंदुओं के मारे जाने के सवाल पर उन्होंने कहा, "यह संख्या जो बताई जा रही है, सही नहीं है।"
टीम ने जब भगवान दास से पूछा कि "कहा जा रहा है कि शाही मस्जिद कमेटी रजिस्टर्ड नहीं है, इसलिए विधिसम्मत नहीं है?" इसके जवाब में उन्होंने कहा, "रजिस्ट्रेशन! क्या आरएसएस का रजिस्ट्रेशन हुआ है? उसका कोई संविधान या नियमावली है? सदस्यता या सांगठनिक चुनाव होते हैं, सरसंघचालक तक नियुक्त होता है, चुना नहीं जाता। सरसंघचालक अपना उत्तराधिकारी मनोनित करता है। देश में कितने हजार मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च आदि हैं, उन सभी की प्रबंध समितियां क्या रजिस्टर्ड हैं? देश के संविधान में संगठन बनाना मौलिक अधिकार है। इसके लिए रजिस्ट्रेशन पूर्व शर्त नहीं है। यह संविधान सम्मत एक मौलिक अधिकार है। बैंक में किसी संगठन का खाता खोलने के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है। मस्जिद कमेटी के लिए रजिस्ट्रेशन की बात कोई ज्यादा बुद्धिमान सज्जन ही कह सकता है।"
सघीर सैफी
जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके सघीर सैफी से जब पीयूसीएल की टीम ने पूछा कि "संभल को कुछ लोग सांप्रदायिकता का गढ़ बता रहे हैं। कहा जा रहा है यहां 16 बार सांप्रदायिक दंगे हो चुके हैं। 200 से अधिक हिंदुओं की हत्या मुसलमान दंगाइयों ने की है?" इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "यह दर्ज प्राथमिकी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पुलिस जांच रिपोर्ट, आयोग की रिपोर्ट, विश्वसनीय दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर कहा जा रहा है या अफवाहों के आधार पर, देखना होगा। जहां तक 1976 के दंगे की बात है, उस समय देश में इमरजेंसी लगी हुई थी। महाशिवरात्रि के रोज कुछ उदंड युवक शाही जामा मस्जिद में घुस आए। कहने लगे यह मस्जिद नहीं, भगवान शिव का मंदिर है। हम यहां शिवलिंग स्थापित कर जल अर्पित करेंगे। रोकने पर विवाद हुआ, कुरान शरीफ की बेइज्जती और बाद में इमाम की हत्या की गई। उसके बाद दंगा हुआ, लूटपाट हुई। तीन लोगों की मौत की बात सुनी है। 1978 का दंगा बड़ा था, लेकिन 184 लोगों की बात बेबुनियाद है। मेरी जानकारी के अनुसार दर्ज दो एफआईआर में लगभग दो दर्जन की मौत बताई गई थी।"
जावेद अली खान
पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने राज्यसभा सांसद जावेद अली खान से भी बात की। टीम ने उनसे पूछा कि "बताया जा रहा है कि 1978 के दंगों के 46 साल बाद पुलिस ने भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर नाजायज कब्जे से मुक्त कराया है?" इसके जवाब में उन्होंने कहा, "यह मंदिर जिस रस्तोगी परिवार का था, उनका खुद का बयान है कि वे 2004-06 तक संभल में थे। मंदिर में पूजा होती थी। बाद में भी यह मंदिर उन्हीं की देखरेख में रहा है। अब भी मंदिर के ताले की चाबी उनके पास है। यह मुहल्ला मुस्लिम बाहुल्य है, लेकिन मंदिर जिन रस्तोगी साहब का है, उन्होंने ही अब मंदिर का ताला खोलकर उसकी चाबी प्रशासन को सौंपी है। मंदिर में किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं हुई है, दानपत्र में सिक्के आदि भी ज्यों के त्यों पाए गए हैं। प्रशासन और मीडिया इस सद्भाव को प्रचारित करने की जगह इसे इस रूप में पेश कर रहा है जैसे कि मंदिर पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया था और इसे 1978 के दंगों से जोड़कर फर्जी नैरेटिव बनाया जा रहा है, जबकि जिनका मंदिर था, रस्तोगी परिवार खुद कह रहा है कि वे 2004-06 तक मंदिर की देखभाल करते रहे हैं। इसके बाद जब लोग पूजा करने आ नहीं रहे थे, पुजारी भी नहीं मिल पा रहा था, मंदिर को रस्तोगी परिवार ने ताला लगाया था, तब से अभी तक उस ताले की चाबी उन्हीं के पास थी।"
टीम ने जब पूछा कि "इस मंदिर का शाही जामा मस्जिद से कोई संबंध नहीं है, फिर भी इसे दोनों अंतर्संबंधित माना जा रहा है?" इसके जवाब में उन्होंने कहा, "अलग-अलग बातों को मिक्स करके फर्जी कहानी बनाई जा रही है। शाही जामा मस्जिद से लगभग एक किलोमीटर (700 मीटर) की दूरी पर यह मंदिर है। शाही जामा मस्जिद से इसका कोई लेना-देना नहीं है। अलग-अलग चीजों को मिक्स किया जा रहा है। इस मंदिर की कहानी की तरह ही एक बावड़ी की खुदाई भी चल रही है और इसे इस तरह पेश किया जा रहा है कि वही शाही जामा मस्जिद के साथ जुड़ा मामला है, जबकि वह बावड़ी शाही जामा मस्जिद से लगभग 30 किलोमीटर दूर हिंदू बहुल चंदौसी कस्बे में है। सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में यह सब कर रही है। इसके लिए हिंदू-मुस्लिम विभाजन और हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करना जरूरी है। इस मकसद से मनगढ़ंत कहानियां प्रचारित की जा रही हैं। उसकी यह कोशिश चल नहीं पा रही है। उसका बनाया नैरेटिव उसके ही खिलाफ बढ़ रहा है। वे खुद एक्सपोज हो रहे हैं।"
सुनील सौरभ
उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता सुनील सौरभ से टीम ने पूछा कि, "संभल में यह मंदिर-मस्जिद का क्या मामला है, जिसके बारे में इतना तूफान हो रहा है?" इस पर उन्होंने कहा, "संभल में यह कोई मसला है ही नहीं। इसे तो क्रिएट किया जा रहा है। शाही मस्जिद 500 साल से है। कभी इसे लेकर किसी प्रकार का दंगा-फसाद नहीं हुआ। किसी को कोई परेशानी नहीं रही है। संभल में अन्य कई मस्जिदें और मंदिर भी हैं। मंदिरों में पूजा होती है और मस्जिदों में नमाज। लोग एक-दूसरे के धर्म और आस्था का सम्मान करते हैं। ईद की सेवई हिंदू भी प्रेम से खाते हैं, रमजान के इफ्तार की दावत में शरीक होते हैं और होली की गुजिया मुसलमान प्रेम से खाते हैं, दीपावली में पटाखे ज्यादातर मुस्लिम ही बनाते हैं। यह कहना गलत है कि मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण हिंदू दबाव में रहते हैं।"
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "1947 में देश के विभाजन के समय सांप्रदायिक दंगों की आग में देश झुलस रहा था, संभल में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। यह रूहेलखंड का क्षेत्र है। यहां की सांस्कृतिक परंपरा गंगा-जमुनी है।"
1976 और 1978 के दंगों के सवाल पर उन्होंने कहा, "1976 में एक मामूली विवाद से दंगा हुआ था, जिसमें कुछ ही लोग मारे गए थे। 1978 में उस मस्जिद के इमाम की हत्या कर दी गई थी, कुछ लोग मारे गए थे, लेकिन 184 लोग नहीं मरे थे।"
तनाव और दंगों की वजह पर सवाल पूछने पर सुनील सौरभ ने पीयूसीएल की टीम को बताया, "मुख्य समस्या रोटी-रोजी है। असंतोष से ध्यान हटाने के लिए दंगे करवाए जाते हैं। दंगाई न तो हिंदू होता है, न मुसलमान। उसका कोई धर्म या ईमान नहीं होता। दंगाई सिर्फ दंगाई होता है। दंगे पुलिस और हिंदू तथा मुस्लिम समुदायों के कट्टरपंथी करते हैं। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के सहयोग और उनकी कर्तव्य विमुखता के बिना कभी कोई दंगा मुमकिन नहीं है।"
निष्कर्ष
जांच कमेटी ने निष्कर्ष में पाया कि संभल जिला प्रशासन सिविल जज के सर्वे के आदेश का शांतिपूर्वक अनुपालन करने में असफल रहा। प्रशासन ने अदूरदर्शिता का परिचय दिया, विषय की संवेदनशीलता को नहीं समझा, और जनता को विश्वास में लेने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। अत्यधिक पुलिस और अर्द्ध-सैन्य बल के जरिए भय और आतंक का सहारा लेने की गलती की गई।
संभल के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) आदित्य कुमार सिंह ने 19 नवंबर 2024 को एकतरफा आदेश में सर्वे के लिए नौ दिन का समय दिया था, जिसे बढ़ाया जा सकता था। इस मामले में ऐसी कोई त्वरित अनिवार्यता नहीं थी। जिला प्रशासन ने जल्दबाजी की और उसी दिन अधिवक्ता कमिश्नर के नियुक्त होते ही भारी पुलिस बल के साथ शाम 6 बजे सर्वे के लिए मस्जिद पहुंच गए। उसी दिन सर्वे न कराके पहले नागरिकों को विश्वास में लेने के लिए पर्याप्त समय था, जिसका उपयोग नहीं किया गया।
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उत्तर प्रदेश के संभल में आम हिंदू और मुस्लिम समाज में किसी प्रकार के द्वेष, तनाव या वैमनस्य जैसी कोई स्थिति नहीं है। मुस्लिम मोहल्लों की गरीब जनता में पुलिस की दहशत है। आशंका है कि पुलिस कभी भी किसी निर्दोष को गिरफ्तार कर थाने में अत्यधिक मारपीट कर सकती है और उसे मुकदमे में फर्जी तरीके से फंसा कर जेल भेज सकती है। पुलिस के भय और खौफ से कई लोगों ने नाम न बताने की शर्त पर अपनी बातें साझा की हैं।” ये शब्द पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टिज (पीयूसीएल) ने अपनी जांच रिपोर्ट 'सांप्रदायिक हिंसा नहीं, संभल में पुलिस राज' में कथित तौर पर लिखे हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह 'पुलिस फायरिंग पर पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट' है।
ज्ञात हो कि पिछले साल 24 नवंबर को संभल में हुई पुलिस फायरिंग में कुछ लोगों की मौत हो गई थी, वहीं कई लोग घायल हो गए थे। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कथित इस फायरिंग में समुदाय विशेष से संबंधित पांच व्यक्ति मारे गए, वहीं इस मामले में छह दर्जन से अधिक समुदाय विशेष के व्यक्ति संगीन अपराधों में जेल में बंद हैं, साथ ही अन्य सैंकड़ों अज्ञात व्यक्तियों पर मामला दर्ज है। इस पुस्तक में फैक्ट फाइंडिंग टीम के हवाले से लिखा गया है कि उसने इस घटना में पांचों मृतकों के परिजनों से मुलाकात की। सभी का कहना है कि पुलिस के दौरान सभी को गोली लगी थी। इसमें आगे कहा गया है कि पुलिस प्रशासन 24 नवंबर 2024 को हुई घटना के दौरान केवल चार व्यक्तियों की मौत ही मान रहा है, जबकि रोमान खान की मौत को कबूल नहीं किया जा रहा है। हालांकि, सभी समाचार पत्रों में फायरिंग के दौरान रोमान खान की मौत की खबर छपी थी। इसमें लिखा गया है कि पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई ने रोमान के बारे में बताया, “पुलिस ने रोमान के परिवार वालों से पूछताछ की थी, परंतु उन्होंने किसी प्रकार की शिकायत दर्ज करने से इंकार किया है। अगर कोई शिकायत दर्ज कराता है, तो हम जांच करने के लिए तैयार हैं; पुलिस ने केवल चार शव बरामद किए हैं और उनका पोस्टमार्टम हो चुका है। चारों की मौत गोली लगने (Firearm Injury) से हुई है, लेकिन पुलिस फायरिंग में एक भी व्यक्ति नहीं मरा है। फोरेंसिक जांच की रिपोर्ट नहीं आई है।”
मृतकों के परिजनों के बयान
1. मृतक अयान (19 वर्ष)
ढाबे पर काम करने वाले मृतक अयान (पुत्र हनीफ, निवासी मोहल्ला कोटगर्वी, मौलवी साहब की मस्जिद, संभल) की विधवा मां नफीसा ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि, "अयान मोहल्ला चौधरी सराय में शान-ए-दरबार नामक एक छोटे से होटल में वेटर था। वह रोज की तरह 24 नवंबर को घर से सुबह करीब 8:30 बजे काम के लिए निकला। आधे घंटे बाद मालूम हुआ कि उसे पुलिस फायरिंग के दौरान गोली लग गई है और कुछ लोग उसे अस्पताल ले गए हैं। हम लोग अस्पताल पहुंचे तो देखा कि वह खून से लथपथ था। अयान ने बताया था कि पुलिस ने ही उस पर गोली चलाई थी। नफीसा ने कहा कि बेटे की मौत के बाद हम और हमारे आस-पास के पड़ोसी और मोहल्ले वाले काफी डरे हुए हैं। पुलिस अक्सर आती है, दबाव डालकर बयान ले रही है और निर्दोषों को पकड़ने की धमकी देती रहती है।"
2. मृतक नईम (35 वर्ष)
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने मृतक नईम (पुत्र रईश दूल्हा, निवासी मोहल्ला कोटगर्वी, इमामबाड़ा वाली गली, संभल) के भाई तसलीम से बात की। उन्होंने बताया कि, “नईम एक दुकान किराए पर लेकर मिठाई बनाकर आजीविका चलाते थे। घटना के दिन, नईम सुबह रिफाइंड तेल का डिब्बा लेने जनरल स्टोर गए थे। जामा मस्जिद की तरफ से भागकर आ रहे लोगों ने बताया कि नईम भाई को पुलिस ने गोली मार दी है। घायल नईम को तसलीम ने नजदीकी शरवंजा अस्पताल ले जाया। डॉक्टरों ने बताया कि वह मर चुका है, लेकिन हमें तसल्ली नहीं हुई। उसे डॉ. वसीम की क्लीनिक में ले गए। नईम मर चुका था। पुलिस उसे पहले सरकारी अस्पताल ले गई थी, फिर लाश का पोस्टमार्टम कराने के लिए जिला मुख्यालय बहजोई ले गई। रात 11 बजे पोस्टमार्टम हुआ। कब्रिस्तान तक हम सब पुलिस की सख्त निगरानी में रहे।”
तसलीम ने आगे कहा कि, “पुलिस ने हमें धमकाते हुए कहा था कि अपनी तरफ से कोई बयान नहीं देना। पुलिस जामा मस्जिद के करीब 400 मीटर की दूरी से गोली चला रही थी। बाद में पुलिस ने हमें थाने बुलाया था, लेकिन हम नहीं गए।”
नईम की मां इदरीसा (50 वर्ष) ने बताया कि, “मेरे बेटे को गोली लगी थी। हम बहुत कुछ झेल रहे हैं। नईम के चार छोटे-छोटे मासूम बच्चे हैं। वह अकेला कमाने वाला था। हम बहुत गरीब हैं। बमुश्किल दो समय की रोटी का इंतजाम हो पाता है। अब हम कैसे जिएंगे? हमारे पास मुकदमा लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं। हम न्याय के बारे में कैसे सोच सकते हैं?”
3. मोहम्मद कैफ (17 वर्ष)
80 वर्षीय बुजुर्ग महिला कैफ की दादी की आंखों में कैफ का जिक्र करते हुए आंसू आ जाते हैं। वह रूंधे गले से फैक्ट फाइंडिंग टीम को कहती हैं, "उस दिन (24 नवंबर) कैफ रोज की तरह बाजार में खरीदारी करने गया था। फिर वह नहीं लौटा।"
मृतक कैफ के चाचा मारूफ ने टीम को बताया, "कैफ इतवार के बाजार में सड़क पर फड़ लगाकर प्लास्टिक के खिलौने बेचा करता था। घटना के दिन वह थोक मार्केट में दुकान से खिलौने खरीदने के लिए गया था। उसकी मौत सीने में गोली लगने से हुई थी। लाश मस्जिद के पीछे बाजार की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर मिली थी। कैफ की लाश के चेहरे पर नकाब था। कैफ को अपराधी साबित करने के लिए पुलिस ने ही उसे नकाब पहनाया होगा।”
मृतक मोहम्मद कैफ की मां अनीश बेगम ने कहा, “जिसने भी मेरे बच्चे को मारा है, उसे सजा मिलनी चाहिए। पुलिस ने ही मेरे मासूम बेटे को मारा है।” यह कहते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगी और बोली, “चाहे लाठी मार देते लेकिन जिंदा छोड़ देते, मारते तो नहीं।”
4. बिलाल अंसारी उर्फ वसीम (22 वर्ष)
मृतक बिलाल अंसारी के भाई सलमान ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया, “बिलाल अंसारी मस्जिद के पीछे (घटना स्थल के पास) बाजार में रेडिमेड कपड़े की दुकान में कपड़े बेचा करता था। सुबह करीब 10:30 बजे एक अज्ञात व्यक्ति ने फोन किया कि बिलाल को गोली लग गई है और वह हसीना बेगम अस्पताल में भर्ती है। हम वहां पहुंचे, बिलाल को सीने में गोली लगी थी। अस्पताल में डॉक्टरों ने इसे मुरादाबाद के अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। मुरादाबाद जाते समय एंबुलेंस में बिलाल ने बताया था कि जिस समय मस्जिद में हंगामा, पत्थरबाजी और पुलिस फायरिंग हुई, उस दौरान ही उसे पुलिस की गोली लगी है। संभल में हसीना बेगम अस्पताल में उसका कोई इलाज नहीं किया गया। अगले दिन (25 नवंबर को) हमने पुलिस अधिकारियों को लिखित शिकायत में कहा था कि मरने से पहले बिलाल ने एंबुलेंस में बताया था कि हंगामे के दौरान पुलिस ने गोली चलाई थी। पुलिस की गोली उसे लगी थी। मुकदमा दर्ज करने की भी दरख्वास्त की थी। पुलिस ने हमारी रिपोर्ट दर्ज करने की बजाय उलटा धमकाया। हमारी दरख्वास्त में से पुलिस द्वारा फायरिंग और पुलिस की गोली से मौत की बात हटाने के लिए कहा। फिर पुलिस ने खुद शिकायत लिखवाई और उस पर जबरदस्ती मेरे हस्ताक्षर करवाए। यह भी कहा कि अगर हम नहीं माने तो हमें भी किसी फर्जी मामले में फंसा दिया जाएगा। हमारे परिवार की महिलाओं को महिला गार्ड पकड़ कर थाने ले जाएगी।”
5. रोमान खाना (45 वर्ष)
मृतक रोमान खान (पुत्र छोटे खान, निवासी मोहल्ला पठान वाला हयातनगर, संभल) के बेटे अदनान ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया, “वालिद साहब साइकल पर बच्चों के कपड़े (रेडीमेड गार्मेंट) फेरी लगाकर बेचा करते थे। रोजाना की तरह वे 24 नवंबर को सुबह करीब आठ-साढ़े आठ बजे घर से फेर पर निकले थे। वे बाजार में थोक की दुकान से कपड़े खरीद कर सड़कों पर घूम-घूम कर बेचा करते थे। हमारे नाना यासीन के जरिए वालिद के मारे जाने की सूचना मिली थी। वालिद की मौत गोली लगने से हुई थी। काफी देर तक उनकी लाश सड़क पर पड़ी रही। शिनाख्त होने पर मौजूद लोगों ने हमारे नानिहाल नखासा में उन्हें पहुंचाया।”
अदनान ने कहा, "हम लगभग 12 बजे पहुंचे, देखा उनके माथे और सिर पर चोट के निशान थे। चोट और नाक से खून बह रहा था। गोली सीने पर लगी थी। उनकी साइकिल जिस पर वे कपड़े बांध कर बेचा करते थे, कपड़ों की गठरी, कुछ भी नहीं था। यहां तक वे जो शर्ट पहने थे वह भी बदन पर नहीं थी। हमारा पूरा परिवार बेहद दुखी था और डर भी गया था। इसलिए हमने पुलिस में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई, क्योंकि पुलिस ने ही उनकी हत्या की थी। वे पुलिस की गोली से ही मरे थे। पुलिस ने उनकी मौत तक दर्ज नहीं की है, पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ है...हमें न्याय मिलनी चाहिए। वालिद के हत्यारों को सजा मिलनी चाहिए।"
जेल में बंद आरोपियों के परिजनों की आपबीती
जेल में बंद कुछ आरोपियों के परिजनों से पीयूसीएल की जांच टीम ने मुलाकात कर जानकारी हासिल की। इनमें मोहम्मद हुसैन, अमन और जैद तीनों नाबालिग हैं और मुरादाबाद जेल के बच्चों वाले सेल में हैं। तीनों एक ही मोहल्ले के निवासी हैं। पुलिस ने तीनों को अलग-अलग गिरफ्तार कर, गैरकानूनी रूप से तीन दिन तक हिरासत में रखा और फिर उनका चालान किया। कानून के अनुसार, पुलिस अधिकतम 24 घंटे तक गिरफ्तार व्यक्ति को हिरासत में रख सकती है।
मोहम्मद हुसैन (15 वर्ष)
मोहम्मद हुसैन (निवासी मोहल्ला महमूद सराय, संभल) की मां शबनम बेगम ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया, “हुसैन जामा...को 24 नवंबर को सवेरे सब्जी लेने के लिए भेजा था। पुलिस लाठीचार्ज और फायरिंग से माहौल में अफरा-तफरी होने लगी तब घबरा कर उसे ढूंढा गया तो पता चला पुलिस ने उसे पकड़ लिया है और मारपीट कर थाने ले जाकर बंद कर दिया। दरियाफ्त करने पर पहले तो पुलिस ने साफ इनकार कर दिया कि थाने में नहीं है। लेकिन हमने इसे कोतवाली में देख लिया था, फिर भी पुलिस ने मिलने नहीं दिया।...हुसैन को पुलिस ने डंडे से काफी पीटा था। उसके सिर पर चोट थी जिस पर पट्टी बंधी थी, डंडे की मार से हाथ की मुट्ठी बंद नहीं हो पा रही थी।...किसी तरह की कोई शिकायत करने से हुसैन को रोकते हुए कहा कि पुलिस ने कहा है कि ऐसा किया गया तो जमानत नहीं हो पाएगी और लंबी सजा हो जाएगी।”
मोहम्मद हसन (17 वर्ष)
मोहम्मद हसन की मां मुजाहिरा ने जांच टीम को बताया कि, “हसन दिल्ली में काम करता था। मेरा दूसरा बेटा हाशिम सवेरे अपने वालिद के मजार पर नमाज अदा करने के लिए गया था।...मैंने हसन को हाशिम की तलाश में भेजा था। इस बीच पुलिस द्वारा आंसू गैस और फायरिंग होने लगी।...हाशिम की तलाश में हसन फिर बाहर निकल गया। इस बार वह चपेट में आ गया। उसकी बांह से पुलिस की गोली आर-पार गुजर गई। हम थाने गए तो दारोगा ने कहा कि हसन को छोड़ देंगे परंतु तुम लोगों को लिख कर देना पड़ेगा कि गोली पुलिस ने नहीं मारी है, पत्थरबाजी के दौरान पब्लिक में से किसी ने मारी है।...थाने में लगभग 40 पुलिसकर्मियों ने उसे और उसके साथ बंद और लोगों को बेरहमी के साथ पीटा है। मारते समय वे कह रहे थे 10 और लोगों के नाम बताओ। यह भी कह रहे थे अगर यह कहा कि गोली पुलिस ने मारी है तो मार-मार कर जान से मार देंगे और लाश का पता तक नहीं चलेगा। यह भी कहा कि तुम लोग पाकिस्तानी हो वहीं क्यों नहीं चले जाते।”
पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग टीम के अनुसार, शाही मस्जिद सर्वे के मामले में वादी हरिशंकर जैन ने 24 नवंबर की घटना के लिए मुस्लिम समुदाय को दोषी बताते हुए कहा, “सब कुछ सोच समझकर किया गया था। पहली बार 19 नवंबर के दिन 3:30 पर सिविल जज (सीनियर डिवीजन) आदित्य सिंह के आदेश के अनुसार सर्वे के लिए नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव के साथ शाम लगभग 6 बजे मौके पर पहुंचे। वीडियोग्राफी की गई, तस्वीरें ली गई। सर्वे टीम के साथ डीएम राजेंद्र पेसिया, एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई पुलिस फोर्स के साथ थे। रात दो-ढाई घंटे तक सर्वे टीम वहां रही।”
“...24 नवंबर सुबह वादी के वकील विष्णु शंकर जैन, सरकारी वकील पीयूष शर्मा, पुरातत्व विभाग के वकील विष्णु शर्मा, अधिवक्ता कमिश्नर के साथ कोतवाली पहुंचे। वहां मस्जिद कमेटी के चफर अली भी मौजूद थे। हम सब सुबह 7:15 पर मस्जिद पहुंचे थे। (मस्जिद संबोधन के साथ श्री हरि शंकर जैन ने स्पष्टीकरण यह भी दिया कि उनके अनुसार वह मस्जिद नहीं है बल्कि हरिहर मंदिर है।) सबके फोन कोतवाली में जमा करा लिए गए। जफर अली साहब इस दौरान 15 मिनट के लिए बाहर गए थे। उनके आने के 35 से 40 मिनट बाद सड़क पर भारी भीड़ जमा हो गई। अल्लाह ओ अकबर नारों के साथ भीड़ ने पत्थर फेंकने शुरू कर दिए। इमारत के भीतर तक पत्थर आ रहे थे। इसी दौरान भीड़ ने गाड़ियों में आग लगा दी। इसके बाद फायरिंग की आवाज सुनाई पड़ी। गोली कौन चला लहा था यह तो पुलिस ही बता सकती है। इस माहौल में सर्वे कार्यवाही रोकनी पड़ी। सर्वे टीम को पुलिस संरक्षण में वहां से निकाल कर पुलिस कोतवाली लाया गया। हिंदू इलाकों में टीम पहुंचने पर जय श्री राम हर हर महादेव जैसे नारे लगे थे। यह गलत अफवाह मुसलमानों ने फैलाई है कि जय श्री राम और हर हर महादेव के नारों की वजह से माहौल हिंसात्मक हुआ था। जय श्री राम उत्तेनात्मक नारा कैसे हो सकता है? श्री राम तो भारत की राष्ट्रीयता के प्रतीक हैं। देश के हर नागरिक के हैं श्री राम…”
जैन ने टीम को कहा, “माहौल को सांप्रदायिक बनाने में समाजवादी पार्टी की भूमिका है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने चुनावी मकसद से भाजपा को दोषी बता रहे हैं। मामले का राजनीतिकरण किया जा रहा है।”
जांच टीम द्वारा यह पूछे जाने पर कि नियम के अनुसार सर्वे सूरज ढलने के बाद रात में नहीं किया जा सकता तो इस पर जैन ने कहा, “ऐसा कोई नियम नहीं है। सर्वे किसी भी समय, देर रात भी किया जा सकता है...।” जब जैन ने रक्षात्मक स्वर टीम से कहा कि "दंगाई को कोई मजहब नहीं होता” तो इस पर टीम ने जैन से कहा कि आपने खुद अपने सवाल का जवाब दे दिया। "आप मुसलमानों को ही दोष क्यों देते हैं?”
प्रतिवादी मुकदमा जफर साहब का बयान
जफर साहब ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि, "19 नवंबर को शाम 3:30 बजे अदालत के आदेश के बाद, शाम को एडवोकेट कमिश्नर परवाना लेकर पुलिस फोर्स के साथ मस्जिद पहुंचे। वीडियोग्राफी करते हुए अंधेरा होने लगा। नियमानुसार, सर्वे की कार्यवाही केवल सवेरे 10 बजे से शाम 5 बजे तक ही की जा सकती है, अंधेरे में नहीं। सर्वे के आदेश के अनुसार, केवल स्थल निरीक्षण (Spot Verification) का आदेश था। इसमें खुदाई करने या इमारत में किसी प्रकार के परिवर्तन या छेड़छाड़ करने के लिए कुछ नहीं कहा गया था। अदालत द्वारा नियुक्त अधिवक्ता कमिश्नर को सिर्फ वीडियोग्राफी, तस्वीरें लेने और स्थल का निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने का कार्य सौंपा गया था। यह काम 19 नवंबर को शांतिपूर्वक बिना किसी रुकावट के पूरा हो गया था। अचानक, 23 तारीख को शाम लगभग 8 से 8:15 बजे के बीच एसडीएम और सीओ संभल मेरे घर आए और अदालत द्वारा नियुक्त अधिवक्ता कमिश्नर द्वारा अगले दिन, 24 तारीख को फिर से सर्वे किए जाने की लिखित सूचना मुझे दी। इसमें लिखा था कि 24 तारीख को सुबह 6-7 बजे सर्वे फिर से किया जाना है। इस सूचना की प्राप्ति के लिए मुझ पर दबाव डालकर मेरे हस्ताक्षर कराए गए थे। यह भी कहा गया कि सर्वे सवेरे ही होगा, लेकिन यह पूरी तरह तय नहीं है, समय बदल भी सकता है। फिर भी 24 को सर्वे किया जाना था। निश्चित समय की सूचना रात 11 बजे तक दी जाएगी। यह भी कहा गया कि इस बारे में मैं किसी को कुछ न बताऊं, क्योंकि इससे अनावश्यक भीड़ इकट्ठा हो जाएगी। रात 11 बजे तक सीओ या एसडीएम का कोई फोन नहीं आया। 24 नवंबर को सुबह 6:45 बजे इंस्पेक्टर संभल का फोन आया कि सर्वे के लिए वादी पक्ष से विष्णु शंकर और अधिवक्ता कमिश्नर आ चुके हैं, मुझे भी मौके पर हाजिर होने के लिए कहा गया। मैं पहुंचा, एडवोकेट कमिश्नर ने सर्वे के आदेश का नोटिस थमाया। मैंने नाइत्तफाकी दर्ज करने के लिए नोटिस पर लिखने के लिए कलम कागज पर टिकाई, तो एसडीएम वंदना मिश्रा ने तुरंत मेरे हाथ से नोटिस छीन लिया और कहा कि रात में नोटिस तामील हो चुका है, अब इसकी जरूरत नहीं है।"
उन्होंने कहा, "वादी मुकदमा, वादी पक्ष से विष्णु शर्मा और प्रिंस शर्मा के साथ, संभल के जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, एसडीएम, सीओ, कोतवाली इंस्पेक्टर और भारी पुलिस फोर्स की नाकेबंदी के बीच सर्वे की कार्यवाही शुरू की गई। वादीगण के समर्थक लोग जय श्री राम और हर हर महादेव के नारे लगा रहे थे। एसडीएम वंदना मिश्रा ने हौज का जल निकाल कर उसे खाली करने और गहराई जानने की बात कही। जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने कहा कि हौज को खाली कराने की जरूरत नहीं है, डंडे से गहराई मापी जा सकती है। सीनियर अधिकारियों के एतराज के बावजूद, एसडीएम मिश्रा ने कहा कि हौज की तलहटी का निरीक्षण भी जरूरी है। हौज को खाली करते समय ऊंचाई से पानी तेज धार में निकला। आम लोगों को लगा कि हौज को खाली करके तलहटी खोदी जाएगी और मस्जिद पर कब्जा किया जाएगा। इस वक्त सवेरे 8:30 बज चुके थे। जनता पूछने लगी कि हौज किस मकसद से खाली किया जा रहा है, क्या खुदाई की जाएगी? सवाल-जवाब और तकरार के साथ पुलिस और पब्लिक के बीच तनातनी होने लगी। झड़प के बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जवाब में जनता ने पथराव किया, फिर पुलिस ने आंसू गैस और फायरिंग की।"
टीम द्वारा मस्जिद बनाम हरिहर मंदिर विवाद के बारे में पूछने पर, जफर अली साहब ने बताया, "इस विषय पर मंदिर के दावे के साथ एक मुकदमा 1978 में मुरादाबाद जिला न्यायालय में दायर किया गया था। इस मुकदमे का फैसला संभल की शाही मस्जिद के पक्ष में हुआ था। मंदिर के दावेदारों ने इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की थी, जो खारिज हो गई।"
प्रशासन का पक्ष
पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने जब पुलिस अधीक्षक बिश्नोई से पूछा कि पहले सर्वे को शांतिपूर्वक संपन्न किया गया था, तो 24 नवंबर को दूसरे सर्वे के दौरान पुलिस ने फायरिंग क्यों की? इस पर पुलिस अधीक्षक ने कहा, "हम सर्वे टीम के साथ मस्जिद पहुंचे। मस्जिद तक तीन रास्तों से पहुंचा जा सकता है। मस्जिद के दाहिने और बाएं हिस्से में मुस्लिम आबादी है, जबकि सामने की तरफ हिंदू आबादी अधिक है। खतरा मुस्लिम आबादी की तरफ से था। हमने वहां सुरक्षा बलों को तैनात किया था। 400 वर्ग मीटर के इस क्षेत्र में अत्यधिक घनी आबादी है, और यहां गलियों का मकड़जाल है। एक रास्ते को बंद करें तो लोग कहीं और से निकल आते हैं।"
जब टीम ने पुलिस अधीक्षक से दो सर्वे में हुए अंतराल के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा, “20 नवंबर को कुंदरकी विधानसभा के उपचुनाव के लिए मतदान होना था, और 23 नवंबर को चुनाव परिणाम घोषित होने थे। इस बीच, पीस कमेटी की बैठक और 22 नवंबर को जुमा था, इसलिए नमाजियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सर्वे की तारीख तय की गई। 24 नवंबर को अल-सुबर से पीएसी और भारी पुलिस बल की तैनाती के साथ सर्वे की योजना बनाई गई, ताकि अचानक कार्रवाई की जा सके और भीड़ जमा न हो सके। सर्वे सुबह जल्दी संपन्न करने का उद्देश्य था, ताकि दिन की नमाज से पहले कार्यवाही पूरी हो जाए।”
"तनाव और फायरिंग की नौबत कैसे आ गई?" के जवाब में पुलिस अधीक्षक बिश्नोई ने कहा, "सवेरे 8:30 बजे से 10 बजे तक कार्यवाही चली। तनाव की शुरुआत 9 बजे के बाद हुई थी। मस्जिद के पीछे मुस्लिम इलाके से भीड़ जमा हो रही थी। धीरे-धीरे लगभग 5000 लोग इकट्ठा हो गए। तनाव बढ़ता जा रहा था। 10:30 तक लाउडस्पीकर से ऐलान करने के बावजूद स्थिति बिगड़ती गई, और पथराव होने लगा। समझाइश के लिए मस्जिद कमेटी के सदर, जफर साहब को भेजा गया। सुरक्षा के मद्देनजर उन्हें हेलमेट दिया गया। उनकी अपील के बावजूद भीड़ शांत नहीं हुई। पथराव न रुकने पर, एडवोकेट कमिश्नर, वादीगण और जफर साहब सहित सर्वे टीम को सुरक्षाबल की सहायता से निकाला गया। जब टीम हिंदू इलाके में पहुंची, तो भावुकता में जय श्री राम, हर हर महादेव जैसे नारे लगे थे, लेकिन हिंदू पक्ष से कोई उत्तेजक या उग्र कार्रवाई नहीं हुई थी। नारे सर्वेक्षण टीम के आगमन के दौरान नहीं, बल्कि उनके लौटने और हिंदू इलाके में पहुंचने के बाद लगे थे।"
पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट में भाजपा नेता के पक्ष को भी शामिल किया गया है। टीम ने पार्टी नेता राजेश सिंघल से पूछा कि संभल में यह मंदिर-मस्जिद विवाद क्या है? इसके जवाब में उन्होंने कहा, "संभल में शाही जामा मस्जिद असल में हरिहर मंदिर है। अयोध्या में श्रीराम जन्मस्थली पर मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने से पहले, संभल में भगवान विष्णु का हरिहर मंदिर था, जिसे मुगलों ने मस्जिद में बदल दिया, जिसे शाही जामा मस्जिद कहा जाता है। मुस्लिम शासकों ने देश भर में हजारों मंदिर तोड़े और उनकी जगह मस्जिद बनाई।"
जब उनसे यह पूछा गया कि क्या उन सभी जगहों पर फिर से मंदिर बनाए जाने चाहिए, तो उन्होंने कहा, "क्यों नहीं? हमारी संस्कृति और गौरव के लिए यह जरूरी है।"
नागरिक प्रतिक्रिया
भगवान दास
82 वर्षीय सेवानिवृत्त प्राध्यापक भगवान दास से पीयूसीएल की टीम ने पूछा कि "कथित शाही जामा मस्जिद-हरिहर मंदिर विवाद और 24 नवंबर की हिंसा पर आपकी राय क्या है?" तो उन्होंने कहा, "सब कुछ प्रायोजित था। 19 नवंबर को सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर होती है, उसी दिन विपक्ष को सूचित किए बिना एक्स पार्टी सर्वे का आदेश और कमिश्नर के लिए अधिवक्ता की नियुक्ति भी हो जाती है। सांझ ढलते, एडवोकेट कमिश्नर, वादीगण, प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस बल के साथ सर्वे के लिए मस्जिद पहुंच जाते हैं। क्या यह सब प्रायोजित नहीं लगता? यह सरकार के निर्देश पर सोची-समझी योजना के तहत हुआ है। 1991 का पूजा स्थल अधिनियम है। इस कानून के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद से पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप को यथावत रखने का प्रावधान है। संभल की जामा मस्जिद पांच सौ साल पुरानी है। तब किसी प्रकार के विवाद की गुंजाइश कहां थी! सर्वोच्च न्यायालय का वह फैसला, जिसमें कहा गया कि सर्वे पर रोक नहीं है, 1991 के कानून को निष्प्रभावी बना रहा है। संभल में मौजूदा हिंसा की जड़ वही फैसला है। अभी देखिए, इस फैसले के कारण कितने और विवाद और हिंसा होती हैं। पैंडोरा बॉक्स (Pandora Box) खुल गया है।"
संभल में सांप्रदायिकता के सवाल पर उन्होंने कहा, "विद्यार्थी जीवन से लेकर मेरी सारी जिंदगी यहां गुजरी है। दोनों ही संप्रदायों में कुछ सांप्रदायिक जहनियत के लोग जरूर हैं, लेकिन आम हिंदू-मुसलमान परस्पर प्रेम और सद्भाव के साथ मिलजुल कर रहते हैं। एक-दूसरे की खुशी और ग़म, शादी-ब्याह, ईद-दिवाली त्योहारों में सम्मिलित होते हैं। वोट की राजनीति के कारण नाइत्तफाकी छोड़ दें तो कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे सांप्रदायिकता कहा जा सके।"
1978 में दंगे में कथित तौर पर 184 हिंदुओं के मारे जाने के सवाल पर उन्होंने कहा, "यह संख्या जो बताई जा रही है, सही नहीं है।"
टीम ने जब भगवान दास से पूछा कि "कहा जा रहा है कि शाही मस्जिद कमेटी रजिस्टर्ड नहीं है, इसलिए विधिसम्मत नहीं है?" इसके जवाब में उन्होंने कहा, "रजिस्ट्रेशन! क्या आरएसएस का रजिस्ट्रेशन हुआ है? उसका कोई संविधान या नियमावली है? सदस्यता या सांगठनिक चुनाव होते हैं, सरसंघचालक तक नियुक्त होता है, चुना नहीं जाता। सरसंघचालक अपना उत्तराधिकारी मनोनित करता है। देश में कितने हजार मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च आदि हैं, उन सभी की प्रबंध समितियां क्या रजिस्टर्ड हैं? देश के संविधान में संगठन बनाना मौलिक अधिकार है। इसके लिए रजिस्ट्रेशन पूर्व शर्त नहीं है। यह संविधान सम्मत एक मौलिक अधिकार है। बैंक में किसी संगठन का खाता खोलने के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है। मस्जिद कमेटी के लिए रजिस्ट्रेशन की बात कोई ज्यादा बुद्धिमान सज्जन ही कह सकता है।"
सघीर सैफी
जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके सघीर सैफी से जब पीयूसीएल की टीम ने पूछा कि "संभल को कुछ लोग सांप्रदायिकता का गढ़ बता रहे हैं। कहा जा रहा है यहां 16 बार सांप्रदायिक दंगे हो चुके हैं। 200 से अधिक हिंदुओं की हत्या मुसलमान दंगाइयों ने की है?" इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "यह दर्ज प्राथमिकी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पुलिस जांच रिपोर्ट, आयोग की रिपोर्ट, विश्वसनीय दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर कहा जा रहा है या अफवाहों के आधार पर, देखना होगा। जहां तक 1976 के दंगे की बात है, उस समय देश में इमरजेंसी लगी हुई थी। महाशिवरात्रि के रोज कुछ उदंड युवक शाही जामा मस्जिद में घुस आए। कहने लगे यह मस्जिद नहीं, भगवान शिव का मंदिर है। हम यहां शिवलिंग स्थापित कर जल अर्पित करेंगे। रोकने पर विवाद हुआ, कुरान शरीफ की बेइज्जती और बाद में इमाम की हत्या की गई। उसके बाद दंगा हुआ, लूटपाट हुई। तीन लोगों की मौत की बात सुनी है। 1978 का दंगा बड़ा था, लेकिन 184 लोगों की बात बेबुनियाद है। मेरी जानकारी के अनुसार दर्ज दो एफआईआर में लगभग दो दर्जन की मौत बताई गई थी।"
जावेद अली खान
पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने राज्यसभा सांसद जावेद अली खान से भी बात की। टीम ने उनसे पूछा कि "बताया जा रहा है कि 1978 के दंगों के 46 साल बाद पुलिस ने भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर नाजायज कब्जे से मुक्त कराया है?" इसके जवाब में उन्होंने कहा, "यह मंदिर जिस रस्तोगी परिवार का था, उनका खुद का बयान है कि वे 2004-06 तक संभल में थे। मंदिर में पूजा होती थी। बाद में भी यह मंदिर उन्हीं की देखरेख में रहा है। अब भी मंदिर के ताले की चाबी उनके पास है। यह मुहल्ला मुस्लिम बाहुल्य है, लेकिन मंदिर जिन रस्तोगी साहब का है, उन्होंने ही अब मंदिर का ताला खोलकर उसकी चाबी प्रशासन को सौंपी है। मंदिर में किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं हुई है, दानपत्र में सिक्के आदि भी ज्यों के त्यों पाए गए हैं। प्रशासन और मीडिया इस सद्भाव को प्रचारित करने की जगह इसे इस रूप में पेश कर रहा है जैसे कि मंदिर पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया था और इसे 1978 के दंगों से जोड़कर फर्जी नैरेटिव बनाया जा रहा है, जबकि जिनका मंदिर था, रस्तोगी परिवार खुद कह रहा है कि वे 2004-06 तक मंदिर की देखभाल करते रहे हैं। इसके बाद जब लोग पूजा करने आ नहीं रहे थे, पुजारी भी नहीं मिल पा रहा था, मंदिर को रस्तोगी परिवार ने ताला लगाया था, तब से अभी तक उस ताले की चाबी उन्हीं के पास थी।"
टीम ने जब पूछा कि "इस मंदिर का शाही जामा मस्जिद से कोई संबंध नहीं है, फिर भी इसे दोनों अंतर्संबंधित माना जा रहा है?" इसके जवाब में उन्होंने कहा, "अलग-अलग बातों को मिक्स करके फर्जी कहानी बनाई जा रही है। शाही जामा मस्जिद से लगभग एक किलोमीटर (700 मीटर) की दूरी पर यह मंदिर है। शाही जामा मस्जिद से इसका कोई लेना-देना नहीं है। अलग-अलग चीजों को मिक्स किया जा रहा है। इस मंदिर की कहानी की तरह ही एक बावड़ी की खुदाई भी चल रही है और इसे इस तरह पेश किया जा रहा है कि वही शाही जामा मस्जिद के साथ जुड़ा मामला है, जबकि वह बावड़ी शाही जामा मस्जिद से लगभग 30 किलोमीटर दूर हिंदू बहुल चंदौसी कस्बे में है। सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में यह सब कर रही है। इसके लिए हिंदू-मुस्लिम विभाजन और हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करना जरूरी है। इस मकसद से मनगढ़ंत कहानियां प्रचारित की जा रही हैं। उसकी यह कोशिश चल नहीं पा रही है। उसका बनाया नैरेटिव उसके ही खिलाफ बढ़ रहा है। वे खुद एक्सपोज हो रहे हैं।"
सुनील सौरभ
उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता सुनील सौरभ से टीम ने पूछा कि, "संभल में यह मंदिर-मस्जिद का क्या मामला है, जिसके बारे में इतना तूफान हो रहा है?" इस पर उन्होंने कहा, "संभल में यह कोई मसला है ही नहीं। इसे तो क्रिएट किया जा रहा है। शाही मस्जिद 500 साल से है। कभी इसे लेकर किसी प्रकार का दंगा-फसाद नहीं हुआ। किसी को कोई परेशानी नहीं रही है। संभल में अन्य कई मस्जिदें और मंदिर भी हैं। मंदिरों में पूजा होती है और मस्जिदों में नमाज। लोग एक-दूसरे के धर्म और आस्था का सम्मान करते हैं। ईद की सेवई हिंदू भी प्रेम से खाते हैं, रमजान के इफ्तार की दावत में शरीक होते हैं और होली की गुजिया मुसलमान प्रेम से खाते हैं, दीपावली में पटाखे ज्यादातर मुस्लिम ही बनाते हैं। यह कहना गलत है कि मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण हिंदू दबाव में रहते हैं।"
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "1947 में देश के विभाजन के समय सांप्रदायिक दंगों की आग में देश झुलस रहा था, संभल में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। यह रूहेलखंड का क्षेत्र है। यहां की सांस्कृतिक परंपरा गंगा-जमुनी है।"
1976 और 1978 के दंगों के सवाल पर उन्होंने कहा, "1976 में एक मामूली विवाद से दंगा हुआ था, जिसमें कुछ ही लोग मारे गए थे। 1978 में उस मस्जिद के इमाम की हत्या कर दी गई थी, कुछ लोग मारे गए थे, लेकिन 184 लोग नहीं मरे थे।"
तनाव और दंगों की वजह पर सवाल पूछने पर सुनील सौरभ ने पीयूसीएल की टीम को बताया, "मुख्य समस्या रोटी-रोजी है। असंतोष से ध्यान हटाने के लिए दंगे करवाए जाते हैं। दंगाई न तो हिंदू होता है, न मुसलमान। उसका कोई धर्म या ईमान नहीं होता। दंगाई सिर्फ दंगाई होता है। दंगे पुलिस और हिंदू तथा मुस्लिम समुदायों के कट्टरपंथी करते हैं। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के सहयोग और उनकी कर्तव्य विमुखता के बिना कभी कोई दंगा मुमकिन नहीं है।"
निष्कर्ष
जांच कमेटी ने निष्कर्ष में पाया कि संभल जिला प्रशासन सिविल जज के सर्वे के आदेश का शांतिपूर्वक अनुपालन करने में असफल रहा। प्रशासन ने अदूरदर्शिता का परिचय दिया, विषय की संवेदनशीलता को नहीं समझा, और जनता को विश्वास में लेने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। अत्यधिक पुलिस और अर्द्ध-सैन्य बल के जरिए भय और आतंक का सहारा लेने की गलती की गई।
संभल के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) आदित्य कुमार सिंह ने 19 नवंबर 2024 को एकतरफा आदेश में सर्वे के लिए नौ दिन का समय दिया था, जिसे बढ़ाया जा सकता था। इस मामले में ऐसी कोई त्वरित अनिवार्यता नहीं थी। जिला प्रशासन ने जल्दबाजी की और उसी दिन अधिवक्ता कमिश्नर के नियुक्त होते ही भारी पुलिस बल के साथ शाम 6 बजे सर्वे के लिए मस्जिद पहुंच गए। उसी दिन सर्वे न कराके पहले नागरिकों को विश्वास में लेने के लिए पर्याप्त समय था, जिसका उपयोग नहीं किया गया।
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