ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि महाकुंभ से पहले गो हत्या को दंडनीय अपराध बनाया जाए। उन्होंने वाराणसी में कहा कि बंटोगे तो कटोगे का नारा देने वाले गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित करें। इसके साथ ही कहा कि मुसलमान महाकुंभ से दूर रहें।
फोटो साभार : अमर उजाला
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि महाकुंभ से पहले गो हत्या को दंडनीय अपराध बनाया जाए। आगे उन्होंने कहा कि, बंटोगे तो कटोगे का नारा देने वाले गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित करें। इसके साथ ही कहा कि मुसलमान महाकुंभ से दूर रहें। ये बात उन्होंने वाराणसी में कही।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि गाय कटती रहे और हम महाकुंभ का उत्सव मनाते रहें। यह कहां का नियम है। इसलिए महाकुंभ से पहले गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित करके गोहत्या को दंडनीय अपराध करने की जरूरत है। महाकुंभ में गो प्रतिष्ठा महायज्ञ के जरिये सनातन धर्मावलंबियों को जागरूक करेंगे।
केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में शंकराचार्य ने कहा कि जो कह रहे हैं बंटोगे तो कटोगे उनको तत्काल गाय को राष्ट्रमाता घोषित कर देना चाहिए। मैं नारा देने वालों से पूछना चाहता हूं कि तुम्हारे मुंह से गाय के लिए मां शब्द क्यों नहीं निकलता? नारा तो दे दिया, लेकिन मां को मां कहने में देर क्यों लग रही है? गाय सभी को बंटने से बचाती है, लेकिन आज उसकी दशा हमारे देश में क्या है।
उन्होंने कहा कि डॉलर कमाने के लिए हमारी मां काटी जा रही है। भारत से गोमांस के निर्यात में वृद्धि होती जा रही है। यह असहनीय है। महाकुंभ के दौरान मेला क्षेत्र से मुस्लिमों के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग का समर्थन करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि मुस्लिम धर्म के तीर्थ स्थल मक्का-मदीना के 40 किमी पर ही हिंदुओं को रोक दिया जाता है।
शंकराचार्य ने आगे कहा कि, मक्का में जाने से रोकने पर मुस्लिम कहते हैं कि यह मुस्लिमों का तीर्थ है, तुम्हारा क्या काम है। तो ठीक है, कुंभ भी हमारा है तो तुम्हारा क्या काम है? मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है? तो हमारा भी आंगन है हमें अभी अपने ढंग से जी लेने दो।
उन्होंने गोमाता को राष्ट्रमाता का दर्जा दिए जाने को लेकर कहा कि, 78 साल में किसी ने गाय को माता कहने की हिम्मत नहीं की, लेकिन महाराष्ट्र सीएम ने गाय को माता का दर्जा दिया। ऐसे में इस सरकार के समर्थन में खड़े होना चाहिए और दूसरी बार एकनाथ शिंदे को सीएम चुनना चाहिए।
जनवरी में प्रयागराज के संगम पर महाकुंभ 2025 की तैयारियों के बीच, इस आयोजन में मुसलमानों की संभावित भागीदारी को लेकर विवाद सामने आया है। ज्ञात हो कि कुछ दिन पहले आगामी महाकुंभ को देखते हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने मांग की है कि मेला क्षेत्र में किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को दुकान आवंटित न की जाए। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी का कहना है कि जिन संस्थाओं या दुकानदारों के प्रमुख हिंदू सिख, जैन या बौद्ध नहीं हैं। उनको महाकुंभ में शिविर स्थापित करने या भूमि की सुविधा नहीं दी जानी चाहिए।
समाज को जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम
ज्ञात हो कि कुंभ मेले में मुसलमान के एंट्री पर बैन की मांग को लेकर कई लोगों ने इसका विरोध भी किया है। अमृत विचार की खबर के अनुसार, कुंभ मेले में अखाड़ा परिषद की तरफ से मुसलमानों की एंट्री पर बैन लगाने की मांग के जवाब में ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि हैरत की बात है कि धर्म के प्रचारक ही नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं। ये बयान उन्होंने कुछ सप्ताह पहले दिया था।
मौलाना ने कहा कि ये लोग समाज को जोड़ने काम नहीं कर रहे बल्कि समाज को तोड़ने का काम कर रहे हैं। ये देश के हित में नहीं बल्कि ये उन लोगों के साथ खड़े हैं जो देश के खिलाफ काम कर रहे हैं। उन्होंने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि ये किस तरह के मजहबी लोग हैं जो समाज में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। जबकि होना ये चाहिए था कि उन्हें प्रेम की भावना से काम करते और लोगों के दिलों को तोड़ने के बजाए जोड़ने का काम करना चाहिए।
मालूम हो कि भारत गंगा-जमुनी तहजीब का देश है जहां एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों के साथ वर्षों रह रहे हैं। एक-दूसरे के दुख-सुख और खुशी-त्योहार में शामिल होते रहे हैं। लेकिन सत्ता के भूख की राजनीति को अब इस तरह के मिल-मिलाप पसंद नहीं है। राजनेता अपनी रोटी सेंकने के लिए इस ताने-बाने को तोड़ रहे हैं। इन्हीं सबके बीच समय-समय पर एक-दूसरे धर्म के लोगों के साथ प्यार-मोहब्बत की खबरें सुनने या पढ़ने को मिल जाती हैं जिससे मानवता के पैरोकारों को सुकून मिलती है।
बता दें कि पिछले महीने लाटभैरव मंदिर की फर्श पर जहां एक तरफ मगरिब की नमाज की अजान दी गई, वहीं दूसरी ओर ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच मानस का दोहा "मंगल भवन अमंगल हारी" हवा में गूंज रहा था।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा-जमुनी तहजीब की एक मिसाल देखने को मिली थी। शाम को लाटभैरव में रामलीला का आयोजन किया गया। यहां की फर्श पर एक तरफ मगरिब की नमाज की अजान दी गई, वहीं दूसरी ओर ढोलक और मंजीरे के साथ मानस का दोहा गूंज रहा था।
नमाजी जहां नमाज पढ़ने में व्यस्त थे, वहीं रामलीला के पात्र अपनी भूमिका निभाने में तल्लीन थे। अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, इस रामलीला में 481 वर्षों की परंपरा और भारत की विविधता में एकता का संदेश भी मुखर हुआ। तुलसी के दौर से चली आ रही बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की यह मिसाल लाटभैरव मंदिर-मस्जिद के विशाल फर्श पर मंचित हुई। मगरिब की नमाज और जयंत नेत्रभंग की लीला एक साथ हुई।
ज्ञात हो कि अपने देश में सामाजिक ताने-बाने को मजबूत बनाए रखने की एक नहीं सैंकड़ों मिसालें हैं। कुल्लू के खूबसूरत शहर में एक अनोखी शख्सियत सुरेंद्र मेहता हैं, जिन्हें प्यार से भाई जी के नाम से जाना जाता है। कई वर्षों से उनका हिंदू परिवार पीर बाबा लाला वाले की दरगाह पर समाज की सेवा करने के लिए समर्पित है। यह दरगाह केवल पूजा की जगह नहीं है, बल्कि आस्था, एकता, और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि यह हर भक्त की इच्छा पूरी करती है जो सच्चे दिल से यहां आता है।
कुल्लू के अखाड़ा बाजार के निवासी सुरेंद्र भाई इस पवित्र दरगाह के रखवाले हैं। यह कार्य उनके परिवार में पीढ़ियों से प्रेम और श्रद्धा से किया जा रहा है। सुरेंद्र मेहता कहते हैं, "हमारा परिवार 1908 में कुल्लू आया था। मेरे दादाजी की इस दरगाह के प्रति गहरी श्रद्धा थी और तब से हमारा परिवार बाबा के प्रति समर्पित है।" सभी धर्मों के लोगों के लिए दरगाह को खोलकर उनकी भक्ति की विरासत को बनाए रखा गया है, जिससे साझा आध्यात्मिकता और समुदाय की भावना को बढ़ावा मिला है।
फोटो साभार : अमर उजाला
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि महाकुंभ से पहले गो हत्या को दंडनीय अपराध बनाया जाए। आगे उन्होंने कहा कि, बंटोगे तो कटोगे का नारा देने वाले गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित करें। इसके साथ ही कहा कि मुसलमान महाकुंभ से दूर रहें। ये बात उन्होंने वाराणसी में कही।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि गाय कटती रहे और हम महाकुंभ का उत्सव मनाते रहें। यह कहां का नियम है। इसलिए महाकुंभ से पहले गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित करके गोहत्या को दंडनीय अपराध करने की जरूरत है। महाकुंभ में गो प्रतिष्ठा महायज्ञ के जरिये सनातन धर्मावलंबियों को जागरूक करेंगे।
केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में शंकराचार्य ने कहा कि जो कह रहे हैं बंटोगे तो कटोगे उनको तत्काल गाय को राष्ट्रमाता घोषित कर देना चाहिए। मैं नारा देने वालों से पूछना चाहता हूं कि तुम्हारे मुंह से गाय के लिए मां शब्द क्यों नहीं निकलता? नारा तो दे दिया, लेकिन मां को मां कहने में देर क्यों लग रही है? गाय सभी को बंटने से बचाती है, लेकिन आज उसकी दशा हमारे देश में क्या है।
उन्होंने कहा कि डॉलर कमाने के लिए हमारी मां काटी जा रही है। भारत से गोमांस के निर्यात में वृद्धि होती जा रही है। यह असहनीय है। महाकुंभ के दौरान मेला क्षेत्र से मुस्लिमों के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग का समर्थन करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि मुस्लिम धर्म के तीर्थ स्थल मक्का-मदीना के 40 किमी पर ही हिंदुओं को रोक दिया जाता है।
शंकराचार्य ने आगे कहा कि, मक्का में जाने से रोकने पर मुस्लिम कहते हैं कि यह मुस्लिमों का तीर्थ है, तुम्हारा क्या काम है। तो ठीक है, कुंभ भी हमारा है तो तुम्हारा क्या काम है? मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है? तो हमारा भी आंगन है हमें अभी अपने ढंग से जी लेने दो।
उन्होंने गोमाता को राष्ट्रमाता का दर्जा दिए जाने को लेकर कहा कि, 78 साल में किसी ने गाय को माता कहने की हिम्मत नहीं की, लेकिन महाराष्ट्र सीएम ने गाय को माता का दर्जा दिया। ऐसे में इस सरकार के समर्थन में खड़े होना चाहिए और दूसरी बार एकनाथ शिंदे को सीएम चुनना चाहिए।
जनवरी में प्रयागराज के संगम पर महाकुंभ 2025 की तैयारियों के बीच, इस आयोजन में मुसलमानों की संभावित भागीदारी को लेकर विवाद सामने आया है। ज्ञात हो कि कुछ दिन पहले आगामी महाकुंभ को देखते हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने मांग की है कि मेला क्षेत्र में किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को दुकान आवंटित न की जाए। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी का कहना है कि जिन संस्थाओं या दुकानदारों के प्रमुख हिंदू सिख, जैन या बौद्ध नहीं हैं। उनको महाकुंभ में शिविर स्थापित करने या भूमि की सुविधा नहीं दी जानी चाहिए।
समाज को जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम
ज्ञात हो कि कुंभ मेले में मुसलमान के एंट्री पर बैन की मांग को लेकर कई लोगों ने इसका विरोध भी किया है। अमृत विचार की खबर के अनुसार, कुंभ मेले में अखाड़ा परिषद की तरफ से मुसलमानों की एंट्री पर बैन लगाने की मांग के जवाब में ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि हैरत की बात है कि धर्म के प्रचारक ही नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं। ये बयान उन्होंने कुछ सप्ताह पहले दिया था।
मौलाना ने कहा कि ये लोग समाज को जोड़ने काम नहीं कर रहे बल्कि समाज को तोड़ने का काम कर रहे हैं। ये देश के हित में नहीं बल्कि ये उन लोगों के साथ खड़े हैं जो देश के खिलाफ काम कर रहे हैं। उन्होंने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि ये किस तरह के मजहबी लोग हैं जो समाज में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। जबकि होना ये चाहिए था कि उन्हें प्रेम की भावना से काम करते और लोगों के दिलों को तोड़ने के बजाए जोड़ने का काम करना चाहिए।
मालूम हो कि भारत गंगा-जमुनी तहजीब का देश है जहां एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों के साथ वर्षों रह रहे हैं। एक-दूसरे के दुख-सुख और खुशी-त्योहार में शामिल होते रहे हैं। लेकिन सत्ता के भूख की राजनीति को अब इस तरह के मिल-मिलाप पसंद नहीं है। राजनेता अपनी रोटी सेंकने के लिए इस ताने-बाने को तोड़ रहे हैं। इन्हीं सबके बीच समय-समय पर एक-दूसरे धर्म के लोगों के साथ प्यार-मोहब्बत की खबरें सुनने या पढ़ने को मिल जाती हैं जिससे मानवता के पैरोकारों को सुकून मिलती है।
बता दें कि पिछले महीने लाटभैरव मंदिर की फर्श पर जहां एक तरफ मगरिब की नमाज की अजान दी गई, वहीं दूसरी ओर ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच मानस का दोहा "मंगल भवन अमंगल हारी" हवा में गूंज रहा था।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा-जमुनी तहजीब की एक मिसाल देखने को मिली थी। शाम को लाटभैरव में रामलीला का आयोजन किया गया। यहां की फर्श पर एक तरफ मगरिब की नमाज की अजान दी गई, वहीं दूसरी ओर ढोलक और मंजीरे के साथ मानस का दोहा गूंज रहा था।
नमाजी जहां नमाज पढ़ने में व्यस्त थे, वहीं रामलीला के पात्र अपनी भूमिका निभाने में तल्लीन थे। अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, इस रामलीला में 481 वर्षों की परंपरा और भारत की विविधता में एकता का संदेश भी मुखर हुआ। तुलसी के दौर से चली आ रही बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की यह मिसाल लाटभैरव मंदिर-मस्जिद के विशाल फर्श पर मंचित हुई। मगरिब की नमाज और जयंत नेत्रभंग की लीला एक साथ हुई।
ज्ञात हो कि अपने देश में सामाजिक ताने-बाने को मजबूत बनाए रखने की एक नहीं सैंकड़ों मिसालें हैं। कुल्लू के खूबसूरत शहर में एक अनोखी शख्सियत सुरेंद्र मेहता हैं, जिन्हें प्यार से भाई जी के नाम से जाना जाता है। कई वर्षों से उनका हिंदू परिवार पीर बाबा लाला वाले की दरगाह पर समाज की सेवा करने के लिए समर्पित है। यह दरगाह केवल पूजा की जगह नहीं है, बल्कि आस्था, एकता, और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि यह हर भक्त की इच्छा पूरी करती है जो सच्चे दिल से यहां आता है।
कुल्लू के अखाड़ा बाजार के निवासी सुरेंद्र भाई इस पवित्र दरगाह के रखवाले हैं। यह कार्य उनके परिवार में पीढ़ियों से प्रेम और श्रद्धा से किया जा रहा है। सुरेंद्र मेहता कहते हैं, "हमारा परिवार 1908 में कुल्लू आया था। मेरे दादाजी की इस दरगाह के प्रति गहरी श्रद्धा थी और तब से हमारा परिवार बाबा के प्रति समर्पित है।" सभी धर्मों के लोगों के लिए दरगाह को खोलकर उनकी भक्ति की विरासत को बनाए रखा गया है, जिससे साझा आध्यात्मिकता और समुदाय की भावना को बढ़ावा मिला है।