साधो, पिछले कुछ दिनों में बहुत सी घटनाएं हो गईं देश में। कहीं CBI गिरफ्तार हुई तो कहीं कोई धरने पर बैठा, किसी ने फुटेज न मिलने पर अनशन तोड़ दिया। देश हर खबर को चटखारे लेकर देख, सुन, गुन रहा था। कुछ युवा भारत की T20 में न्यूजीलैंड से हार से दुःखी थे। यह हार वाली खबर अखबारों में हेडलाइन बनी थी। बननी भी चाहिए। अखबार वही छापेगा जो बिकता है। वह उनका धंधा है। अब खबरें धंधा हो गयी हैं। लोग मीडिया को चौथा स्तंभ बताते थे पर वह धंधा है।
साधो, इन्हीं खबरों में एक बात और हो गयी थी। इलाहाबाद (माफी, गलती हुई, अब प्रयागराज) में लगे कुम्भ में सफाई कर्मियों को उचित वेतन और जरूरी सामग्री मसलन दस्ताने वगैरह ठीक से मिले इसकी मांग कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता अंशु मालवीय को गिरफ्तार कर लिया गया। खबर तो यह भी मिल रही थी कि कुम्भ मेला प्रशासन ने उनके साथ मारपीट भी की थी। हालांकि उन्हें दूसरे दिन छोड़ दिया गया था।
साधो, बड़ी अचरज वाली बात है। मैं उन दिनों को याद कर रहा हूँ जब दो साल पहले गोरखपुर में एक हॉस्पिटल में सैकड़ों बच्चों की मौत महज इसलिए हो गयी थी कि सरकार ने ऑक्सीजन सप्लाई वाले को पैसे नहीं दिए थे और उसनें ऑक्सीजन सप्लाई रोक दी थी। कितने मासूम थे वे जो सिस्टम का शिकार हो गए। वे नन्हें जिन्होंने दुनिया ठीक से नहीं देखी थी सरकार की नीति का शिकार हो गए। कुछ दिन हल्ला हुआ फिर सब नॉर्मल हो गया। सबने संतोष कर लिया। कुछ कहने लगे- शायद यही ईश्वर की मर्जी थी। बच्चों ने सरकार की लापरवाही से दम तोड़ा और परिजन भगवान की मर्जी बताकर संतोष कर गए। यही इस देश की खासियत है। जब हमें किसी चीज पर एक्शन नहीं लेना होता तो हम उसे ईश्वर की मर्जी मान लेते हैं।
साधो, उस घटना को कई साल बीत गए हैं। प्रयाग में कुम्भ चल रहा है। पूरे देश में लाइव प्रसारण हो रहा है। जो नहीं पहुंच सकते इस ठंड में रजाई के अंदर बैठे उसका आनंद उठा सकते हैं। तकनीकी रूप से पाप धो सकते हैं। मेरे जानने वाले कुछ लोग प्रयागराज में रहते हैं। कहते हैं- आ जाओ, देख लो कुम्भ का मेला। ऐसा मेला कभी न लगा। सरकार ने करोड़ो खर्च किए हैं। मैं पूछता हूँ- क्या अपनी मेहनत की कमाई के खर्च किए हैं ?
कुछ जानने वाले लोग योगी और भाजपा की इस कुम्भ के लिए सराहना किए जा रहे हैं। कुछ तो सरकार की जय जयकार भी कर रहे हैं।
साधो, मन बहुत दुखी है। कुम्भ की भव्यता आंखों में चुभ रही है। जब मैं कुम्भ के बारे में सोचता हूँ तो रोते बिलखते माँ बाप, मार दिए गए बच्चे ही नजर आते हैं। यह कुम्भ मुझे उन बच्चों की कब्रों पर बना नजर आ आता है।
साधो, इस कुम्भ का हजारों करोड़ में बजट है। हो सकता है इससे सरकार को आमदनी भी हो। लेकिन साधो, जो लाखों लोग प्रतिदिन इस कुम्भ क्षेत्र में मल त्याग रहे, गंदगी कर रहे, कूड़ा कर रहे उसकी सफाई करने वालों को कम मेहनताना देना कहाँ तक सही है! खबर तो यह भी मिल रही है कि समय पर वेतन भी नहीं दिया जा रहा है। कुछ दिन पहले खबर यह भी आई थी कि कुछ साधुओं और सफाई कर्मियों में झड़प हो गयी थी। एक सफाई कर्मी की मौत भी हो चुकी है। कुछ दिन पहले सरकार ने साधुओं को पेंशन देने की बात कही। मैं सोचता हूँ, ये सरकार वोट और हिंदुत्व की राजनीति में कितने हद तक गिर सकती है! सफाई कर्मियों को देने को पर्याप्त धन नहीं है इनके पास और साधुओं को पेंशन बांट रहे हैं।
साधो, यह कैसी सरकार है जो मेहनत का पैसा मांगने वालों को गिरफ्तार करवा लेती है? परजीवी साधुओं को पेंशन बाटने की बात करती है। बच्चों की जान बचाने के लिए पैसे नहीं थे और दुनिया को दिखाने के लिए कुम्भ पर करोड़ों लुटा रही है।
मैं देश के बारे में सोचता हूँ। मैं सोचता हूँ, शायद लोगों की संवेदना का स्तर इतना गिर चुका है कि वे कुम्भ जैसे चोंचलों के आदि हो चुके हैं और मूलभूत चीजों को छोड़ सरकार के कुम्भी जाल में फंस गए हैं। इसीलिए तो उन्हें सफाई कर्मचारियों की मांगें, बच्चों की चीखें सुनाई नहीं देतीं।
साधो, इन्हीं खबरों में एक बात और हो गयी थी। इलाहाबाद (माफी, गलती हुई, अब प्रयागराज) में लगे कुम्भ में सफाई कर्मियों को उचित वेतन और जरूरी सामग्री मसलन दस्ताने वगैरह ठीक से मिले इसकी मांग कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता अंशु मालवीय को गिरफ्तार कर लिया गया। खबर तो यह भी मिल रही थी कि कुम्भ मेला प्रशासन ने उनके साथ मारपीट भी की थी। हालांकि उन्हें दूसरे दिन छोड़ दिया गया था।
साधो, बड़ी अचरज वाली बात है। मैं उन दिनों को याद कर रहा हूँ जब दो साल पहले गोरखपुर में एक हॉस्पिटल में सैकड़ों बच्चों की मौत महज इसलिए हो गयी थी कि सरकार ने ऑक्सीजन सप्लाई वाले को पैसे नहीं दिए थे और उसनें ऑक्सीजन सप्लाई रोक दी थी। कितने मासूम थे वे जो सिस्टम का शिकार हो गए। वे नन्हें जिन्होंने दुनिया ठीक से नहीं देखी थी सरकार की नीति का शिकार हो गए। कुछ दिन हल्ला हुआ फिर सब नॉर्मल हो गया। सबने संतोष कर लिया। कुछ कहने लगे- शायद यही ईश्वर की मर्जी थी। बच्चों ने सरकार की लापरवाही से दम तोड़ा और परिजन भगवान की मर्जी बताकर संतोष कर गए। यही इस देश की खासियत है। जब हमें किसी चीज पर एक्शन नहीं लेना होता तो हम उसे ईश्वर की मर्जी मान लेते हैं।
साधो, उस घटना को कई साल बीत गए हैं। प्रयाग में कुम्भ चल रहा है। पूरे देश में लाइव प्रसारण हो रहा है। जो नहीं पहुंच सकते इस ठंड में रजाई के अंदर बैठे उसका आनंद उठा सकते हैं। तकनीकी रूप से पाप धो सकते हैं। मेरे जानने वाले कुछ लोग प्रयागराज में रहते हैं। कहते हैं- आ जाओ, देख लो कुम्भ का मेला। ऐसा मेला कभी न लगा। सरकार ने करोड़ो खर्च किए हैं। मैं पूछता हूँ- क्या अपनी मेहनत की कमाई के खर्च किए हैं ?
कुछ जानने वाले लोग योगी और भाजपा की इस कुम्भ के लिए सराहना किए जा रहे हैं। कुछ तो सरकार की जय जयकार भी कर रहे हैं।
साधो, मन बहुत दुखी है। कुम्भ की भव्यता आंखों में चुभ रही है। जब मैं कुम्भ के बारे में सोचता हूँ तो रोते बिलखते माँ बाप, मार दिए गए बच्चे ही नजर आते हैं। यह कुम्भ मुझे उन बच्चों की कब्रों पर बना नजर आ आता है।
साधो, इस कुम्भ का हजारों करोड़ में बजट है। हो सकता है इससे सरकार को आमदनी भी हो। लेकिन साधो, जो लाखों लोग प्रतिदिन इस कुम्भ क्षेत्र में मल त्याग रहे, गंदगी कर रहे, कूड़ा कर रहे उसकी सफाई करने वालों को कम मेहनताना देना कहाँ तक सही है! खबर तो यह भी मिल रही है कि समय पर वेतन भी नहीं दिया जा रहा है। कुछ दिन पहले खबर यह भी आई थी कि कुछ साधुओं और सफाई कर्मियों में झड़प हो गयी थी। एक सफाई कर्मी की मौत भी हो चुकी है। कुछ दिन पहले सरकार ने साधुओं को पेंशन देने की बात कही। मैं सोचता हूँ, ये सरकार वोट और हिंदुत्व की राजनीति में कितने हद तक गिर सकती है! सफाई कर्मियों को देने को पर्याप्त धन नहीं है इनके पास और साधुओं को पेंशन बांट रहे हैं।
साधो, यह कैसी सरकार है जो मेहनत का पैसा मांगने वालों को गिरफ्तार करवा लेती है? परजीवी साधुओं को पेंशन बाटने की बात करती है। बच्चों की जान बचाने के लिए पैसे नहीं थे और दुनिया को दिखाने के लिए कुम्भ पर करोड़ों लुटा रही है।
मैं देश के बारे में सोचता हूँ। मैं सोचता हूँ, शायद लोगों की संवेदना का स्तर इतना गिर चुका है कि वे कुम्भ जैसे चोंचलों के आदि हो चुके हैं और मूलभूत चीजों को छोड़ सरकार के कुम्भी जाल में फंस गए हैं। इसीलिए तो उन्हें सफाई कर्मचारियों की मांगें, बच्चों की चीखें सुनाई नहीं देतीं।