लोकतंत्र बचाओ अभियान (अबुआ झारखंड, अबुआ राज) ने रांची के प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता कर विधान सभा चुनाव के लिए जन घोषणा पत्र जारी किया। ये घोषणा गत 1 अक्टूबर को जारी किया गया। इस अभियान ने सांप्रदायिक सौहार्द और संवैधानिक मूल्यों में विश्वास करने वाले राजनैतिक दलों से मांग की कि वे अपने घोषणा पत्र में अभियान द्वारा उठाये गए मांगों को जोड़ें।
साभार : प्रभात खबर
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही झारखंड में अबुआ राज समेत अन्य मांगें एक बार फिर से तेज हो गई हैं। ये मांगें लंबे समय से हो रही है। वहीं चुनाव पूर्व झामुमो द्वारा किए गए वादे पूरा न करने को लेकर भी हेमंत सोरेन की आलोचना की जा रही है और उनके वादों को याद दिलाया जा रहा है। अब जबकि चुनाव नजदीक है ऐसे में राजनीतिक दल व सामाजिक संगठन की सरगर्मी तेज हो गई है और जन सरोकार से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं और आने वाली सरकार से जनता की मांगों को पूरा करने की मांग हो रही है।
इसी के मद्देनजर लोकतंत्र बचाओ अभियान (अबुआ झारखंड, अबुआ राज) ने रांची के प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता कर विधान सभा चुनाव के लिए जन घोषणा पत्र जारी किया। ये घोषणा गत 1 अक्टूबर को जारी किया गया। इस अभियान ने सांप्रदायिक सौहार्द और संवैधानिक मूल्यों में विश्वास करने वाले राजनैतिक दलों से मांग की कि वे अपने घोषणा पत्र में अभियान द्वारा उठाये गए मांगों को जोड़ें। यह भी मांग की गई कि वे मज़बूत जमीनी गठबंधन सुनिश्चित करें एवं मिलकर एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम जारी करें। प्रेस वार्ता के बाद अभियान प्रतिनिधिमंडल झामुमो व कांग्रेस के नेतृत्व से मिलकर मांग पत्र सौंपा।
ज्ञात हो कि प्रेस वार्ता में पहले हेमंत सोरेन गठबंधन सरकार के पिछले पांच साल के शासन का आकलन दिया गया। इसमें बताया गया कि गठबंधन सरकार ने जन अपेक्षा अनुरूप कई काम किये हैं जैसे सामाजिक सुरक्षा पेंशन के कवरेज में व्यापक बढ़ौतरी, मईयां सम्मान योजना, कोविड लॉकडाउन व उसके बाद प्रवासी मजदूरों को सहयोग, कृषि ऋण माफ़ी, पत्थलगड़ी आंदोलन व सीएनटी-एसपीटी आंदोलन संबंधित केसों की वापसी, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज परियोजना के अवधि विस्तार पर रोक आदि। साथ ही, राज्य की अपेक्षा अनुसार 1932 खतियान आधारित डोमिसायिल नीति, पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण व सरना धर्म कोड की अनुशंसा को विधान सभा से पारित किया।
वहीं, इसमें कहा गया कि इन सबके बावजूद गठबंधन दलों द्वारा किये गए अनेक वादे पांच साल बाद भी लंबित हैं। उदहारण के लिए भूमि बैंक व भूमि अधिग्रहण कानून संशोधन रद्द नहीं किया गया, ईचा-खरकई परियोजना रद्द नहीं हुआ, पेसा नियमावली नहीं बना, मॉब लिंचिंग कानून नहीं बना, विलय किये गए विद्यालय खोले नहीं गए आदि। साथ ही यह भी कहा गया कि वन अधिकार के अनेक दावों पर कार्रवाई नहीं हुई। इस दौरान मनरेगा समेत अन्य सरकारी योजनाओं में ज़मीनी भ्रष्टाचार पर भी अंकुश नहीं लगा। साथ ही, सरकार की कई घोषणाएं कागज़ तक ही सीमित रहे, जैसे बच्चों को आंगनवाड़ी व मध्याह्न भोजन में अंडा देना। हालांकि इन पांच सालों में मोदी सरकार और भाजपा द्वारा लगातार सरकार को गिराने की कोशिश की गयी। अनेक नीतियों को केंद्र सरकार ने भी रोक के रखा।
इस परिस्थिति का आकलन करते हुए लोकतंत्र बचाओ अभियान ने 2024 विधानसभा के लिए जन घोषणा पत्र जारी किया। अभियान का मानना है कि जिस जल, जंगल, ज़मीन, अस्तित्व, आदिवासी स्वायत्तता, पहचान व शोषण मुक्ति के लिए राज्य बना था, उन मुद्दों पर सरकार बनने के पहले 6 महीने में कार्रवाई होनी चाहिए। इसमें कहा गया कि भूमि अधिग्रहण कानून (झारखंड) संशोधन 2017 व लैंड बैंक नीति रद्द हो। ऐसे सभी परियोजनाओं को रद्द किया जाए जो ग्राम सभा की सहमति के बिना एवं भूमि कानून का उल्लंघन कर स्थापित किये जा रहे हैं। विस्थापन एवं पुनर्वास आयोग का गठन हो एवं भूमिहीनों, दलितों और गरीब किसानों को जमीन दिया जाए। सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय अनुसार राज्य सरकार तुरंत खनन पर राज्य कर लगाये एवं उसका कम-से-कम आधा हिस्सा ग्राम सभा को दे। पेसा नियमावली बने व आदिवासी सघन क्षेत्रों जैसे कोल्हान, दामिनी कोह में छटी अनुसूची अनुरूप व्यवस्था लागू हो। सरकार बनने के 3 महीने के अंदर सभी लंबित निजी व सामुदायिक वन पट्टों का वितरण हो। सरकार के एक साल पुराने आंकड़े के अनुसार राज्य में लगभग 15000 विचाराधीन कैदी हैं जिसमें अधिकांश आदिवासी, दलित, पिछड़े व मुसलमान हैं। अनेक मामले फ़र्ज़ी हैं। लंबे समय से जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की तत्काल रिहाई की जाए। फर्जी मामलों में फंसे आदिवासी-मूलवासियों व वंचितों के मामलों को बंद करने के लिए उच्च स्तरीय न्यायिक जांच का गठन हो।
मांग पत्र में कहा गया कि यह दुःख की बात है कि पिछले पांच साल रघुवर दास सरकार के झारखंड-विरोधी स्थानीय नीति अनुसार ही नियुक्ति होती रही। अगली सरकार 3 महीने में जन अपेक्षा अनुसार खतियान आधारित (भूमिहीनों के लिए विशेष व्यवस्था सहित) स्थानीय नीति लागू करे। साथ ही, हर स्तर की निजी और सरकारी नौकरियों में नेतृत्व और निर्णय पदों पर स्थानीय लोगों की अधिकांश भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए। वहीं पांचवी अनुसूची क्षेत्र के थानों और स्थानीय प्रशासन के निर्णायक पदों पर स्थानीय लोगों विशेषकर आदिवासियों को प्राथमिकता दी जाए और राज्य के लाखों भूमिहीन दलित व विस्थापित लोग जाति प्रमाण पत्र न बनने के कारण शिक्षा, रोज़गार व अन्य अधिकारों से वंचित हैं ऐसे में इनके जाति/आवासीय प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया सरल की जाए और कैंप आयोजित कर प्रमाण पत्र बांटा जाए।
मांग पत्र में यह भी कहा गया कि, राज्य में विभिन्न सांप्रदायिक संगठनों व पार्टियों द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठ, सरना-ईसाई, हिंदू-मुसलमान की राजनीति कर झारखंडी समाज के तानाबाना को ख़त्म किया जा रहा है, ऐसे में इसे रोकना अगली सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। बराबरी और सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित करने की पहली शुरुआत थाने, पुलिस कैंप व सरकारी कार्यालय में किसी भी धर्म विशेष पूजा स्थल के बनने पर रोक से हो सकती है। साथ ही, किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में सार्वजानिक स्थलों व सरकारी कार्यालयों में लगाये गए धार्मिक झंडों व प्रतीकों को कार्यक्रम ख़त्म होने के 48 घंटों के अंदर हटाया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
प्रेस वार्ता के दौरान मांग पत्र में यह भी कहा गया कि, राज्य की लचर सार्वजानिक शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करना अगली सरकार की प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए प्राथमिक विद्यालय से लेकर कॉलेज तक रिक्त पदों को भरा जाए और नियमित गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई सुनिश्चित हो। इसी प्रकार उपस्वास्थ्य केंद्र से सदर अस्पताल तक सभी रिक्तियों को भरा जाए एवं दवा व जांच आदि की व्यवस्था सुनिश्चित हो। केवल ठेकेदारी आधारित भवन निर्माण तक सीमित न रहे सरकार।
मांग पत्र मनरेगा में मजदूरी बढ़ाने को लेकर बात की गई है। इसमें कहा गया है कि राज्य में व्यापक पलायन और बेरोज़गारी को ख़त्म करने के लिए शहरी रोज़गार गारंटी कानून बने एवं मनरेगा में 800 रुपये दैनिक मज़दूरी दर किया जाए। साथ ही, वर्तमान सरकार में शुरू किये गए सामाजिक सुरक्षा के पहल को आगे बढ़ाते हुए सामाजिक पेंशन की राशी 3000 रुपये हो एवं सभी गर्भवती और धात्री महिलाओं को तमिलनाडु के तर्ज पर बिना किसी शर्त 20000 रुपये का मातृत्व लाभ मिले। साथ ही, राज्य में व्यापक कुपोषण को ख़त्म करने के लिए सरकार बनने के तीन महीने के अंदर आंगनवाड़ियों और विद्यालयों के मध्याह्न भोजन में सभी बच्चों को प्रति दिन अंडा दिया जाना सुनिश्चित हो एवं मध्याह्न भोजन में केंद्रीकृत किचन की व्यवस्था समाप्त हो।
इस मांग पत्र में जोर देकर कहा गया कि, अगली सरकार की प्राथमिकता ज़मीनी भ्रष्टाचार ख़त्म करना भी होना चाहिए जिसके लिए ठेकेदारी व्यवस्था पर तुरंत अंकुश लगे एवं सक्रिय विकेंद्रित शिकायत निवारण प्रणाली की स्थापना की जाए। वहीं सभी आयोगों – महिला आयोग, मानव अधिकार आयोग, सूचना आयुक्त आदि – में नियुक्ति कर सक्रिय किया जाए।
इस प्रेस वार्ता को अंबिका यादव, अजय एक्का, अलोका कुजूर, बासिंह हेस्सा, दिनेश मुर्मू, एलिना होरो, नंद किशोर गंझू, रिया पिंगुआ व टॉम कावला ने संबोधित किया।
साभार : प्रभात खबर
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही झारखंड में अबुआ राज समेत अन्य मांगें एक बार फिर से तेज हो गई हैं। ये मांगें लंबे समय से हो रही है। वहीं चुनाव पूर्व झामुमो द्वारा किए गए वादे पूरा न करने को लेकर भी हेमंत सोरेन की आलोचना की जा रही है और उनके वादों को याद दिलाया जा रहा है। अब जबकि चुनाव नजदीक है ऐसे में राजनीतिक दल व सामाजिक संगठन की सरगर्मी तेज हो गई है और जन सरोकार से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं और आने वाली सरकार से जनता की मांगों को पूरा करने की मांग हो रही है।
इसी के मद्देनजर लोकतंत्र बचाओ अभियान (अबुआ झारखंड, अबुआ राज) ने रांची के प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता कर विधान सभा चुनाव के लिए जन घोषणा पत्र जारी किया। ये घोषणा गत 1 अक्टूबर को जारी किया गया। इस अभियान ने सांप्रदायिक सौहार्द और संवैधानिक मूल्यों में विश्वास करने वाले राजनैतिक दलों से मांग की कि वे अपने घोषणा पत्र में अभियान द्वारा उठाये गए मांगों को जोड़ें। यह भी मांग की गई कि वे मज़बूत जमीनी गठबंधन सुनिश्चित करें एवं मिलकर एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम जारी करें। प्रेस वार्ता के बाद अभियान प्रतिनिधिमंडल झामुमो व कांग्रेस के नेतृत्व से मिलकर मांग पत्र सौंपा।
ज्ञात हो कि प्रेस वार्ता में पहले हेमंत सोरेन गठबंधन सरकार के पिछले पांच साल के शासन का आकलन दिया गया। इसमें बताया गया कि गठबंधन सरकार ने जन अपेक्षा अनुरूप कई काम किये हैं जैसे सामाजिक सुरक्षा पेंशन के कवरेज में व्यापक बढ़ौतरी, मईयां सम्मान योजना, कोविड लॉकडाउन व उसके बाद प्रवासी मजदूरों को सहयोग, कृषि ऋण माफ़ी, पत्थलगड़ी आंदोलन व सीएनटी-एसपीटी आंदोलन संबंधित केसों की वापसी, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज परियोजना के अवधि विस्तार पर रोक आदि। साथ ही, राज्य की अपेक्षा अनुसार 1932 खतियान आधारित डोमिसायिल नीति, पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण व सरना धर्म कोड की अनुशंसा को विधान सभा से पारित किया।
वहीं, इसमें कहा गया कि इन सबके बावजूद गठबंधन दलों द्वारा किये गए अनेक वादे पांच साल बाद भी लंबित हैं। उदहारण के लिए भूमि बैंक व भूमि अधिग्रहण कानून संशोधन रद्द नहीं किया गया, ईचा-खरकई परियोजना रद्द नहीं हुआ, पेसा नियमावली नहीं बना, मॉब लिंचिंग कानून नहीं बना, विलय किये गए विद्यालय खोले नहीं गए आदि। साथ ही यह भी कहा गया कि वन अधिकार के अनेक दावों पर कार्रवाई नहीं हुई। इस दौरान मनरेगा समेत अन्य सरकारी योजनाओं में ज़मीनी भ्रष्टाचार पर भी अंकुश नहीं लगा। साथ ही, सरकार की कई घोषणाएं कागज़ तक ही सीमित रहे, जैसे बच्चों को आंगनवाड़ी व मध्याह्न भोजन में अंडा देना। हालांकि इन पांच सालों में मोदी सरकार और भाजपा द्वारा लगातार सरकार को गिराने की कोशिश की गयी। अनेक नीतियों को केंद्र सरकार ने भी रोक के रखा।
इस परिस्थिति का आकलन करते हुए लोकतंत्र बचाओ अभियान ने 2024 विधानसभा के लिए जन घोषणा पत्र जारी किया। अभियान का मानना है कि जिस जल, जंगल, ज़मीन, अस्तित्व, आदिवासी स्वायत्तता, पहचान व शोषण मुक्ति के लिए राज्य बना था, उन मुद्दों पर सरकार बनने के पहले 6 महीने में कार्रवाई होनी चाहिए। इसमें कहा गया कि भूमि अधिग्रहण कानून (झारखंड) संशोधन 2017 व लैंड बैंक नीति रद्द हो। ऐसे सभी परियोजनाओं को रद्द किया जाए जो ग्राम सभा की सहमति के बिना एवं भूमि कानून का उल्लंघन कर स्थापित किये जा रहे हैं। विस्थापन एवं पुनर्वास आयोग का गठन हो एवं भूमिहीनों, दलितों और गरीब किसानों को जमीन दिया जाए। सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय अनुसार राज्य सरकार तुरंत खनन पर राज्य कर लगाये एवं उसका कम-से-कम आधा हिस्सा ग्राम सभा को दे। पेसा नियमावली बने व आदिवासी सघन क्षेत्रों जैसे कोल्हान, दामिनी कोह में छटी अनुसूची अनुरूप व्यवस्था लागू हो। सरकार बनने के 3 महीने के अंदर सभी लंबित निजी व सामुदायिक वन पट्टों का वितरण हो। सरकार के एक साल पुराने आंकड़े के अनुसार राज्य में लगभग 15000 विचाराधीन कैदी हैं जिसमें अधिकांश आदिवासी, दलित, पिछड़े व मुसलमान हैं। अनेक मामले फ़र्ज़ी हैं। लंबे समय से जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की तत्काल रिहाई की जाए। फर्जी मामलों में फंसे आदिवासी-मूलवासियों व वंचितों के मामलों को बंद करने के लिए उच्च स्तरीय न्यायिक जांच का गठन हो।
मांग पत्र में कहा गया कि यह दुःख की बात है कि पिछले पांच साल रघुवर दास सरकार के झारखंड-विरोधी स्थानीय नीति अनुसार ही नियुक्ति होती रही। अगली सरकार 3 महीने में जन अपेक्षा अनुसार खतियान आधारित (भूमिहीनों के लिए विशेष व्यवस्था सहित) स्थानीय नीति लागू करे। साथ ही, हर स्तर की निजी और सरकारी नौकरियों में नेतृत्व और निर्णय पदों पर स्थानीय लोगों की अधिकांश भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए। वहीं पांचवी अनुसूची क्षेत्र के थानों और स्थानीय प्रशासन के निर्णायक पदों पर स्थानीय लोगों विशेषकर आदिवासियों को प्राथमिकता दी जाए और राज्य के लाखों भूमिहीन दलित व विस्थापित लोग जाति प्रमाण पत्र न बनने के कारण शिक्षा, रोज़गार व अन्य अधिकारों से वंचित हैं ऐसे में इनके जाति/आवासीय प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया सरल की जाए और कैंप आयोजित कर प्रमाण पत्र बांटा जाए।
मांग पत्र में यह भी कहा गया कि, राज्य में विभिन्न सांप्रदायिक संगठनों व पार्टियों द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठ, सरना-ईसाई, हिंदू-मुसलमान की राजनीति कर झारखंडी समाज के तानाबाना को ख़त्म किया जा रहा है, ऐसे में इसे रोकना अगली सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। बराबरी और सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित करने की पहली शुरुआत थाने, पुलिस कैंप व सरकारी कार्यालय में किसी भी धर्म विशेष पूजा स्थल के बनने पर रोक से हो सकती है। साथ ही, किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में सार्वजानिक स्थलों व सरकारी कार्यालयों में लगाये गए धार्मिक झंडों व प्रतीकों को कार्यक्रम ख़त्म होने के 48 घंटों के अंदर हटाया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
प्रेस वार्ता के दौरान मांग पत्र में यह भी कहा गया कि, राज्य की लचर सार्वजानिक शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करना अगली सरकार की प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए प्राथमिक विद्यालय से लेकर कॉलेज तक रिक्त पदों को भरा जाए और नियमित गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई सुनिश्चित हो। इसी प्रकार उपस्वास्थ्य केंद्र से सदर अस्पताल तक सभी रिक्तियों को भरा जाए एवं दवा व जांच आदि की व्यवस्था सुनिश्चित हो। केवल ठेकेदारी आधारित भवन निर्माण तक सीमित न रहे सरकार।
मांग पत्र मनरेगा में मजदूरी बढ़ाने को लेकर बात की गई है। इसमें कहा गया है कि राज्य में व्यापक पलायन और बेरोज़गारी को ख़त्म करने के लिए शहरी रोज़गार गारंटी कानून बने एवं मनरेगा में 800 रुपये दैनिक मज़दूरी दर किया जाए। साथ ही, वर्तमान सरकार में शुरू किये गए सामाजिक सुरक्षा के पहल को आगे बढ़ाते हुए सामाजिक पेंशन की राशी 3000 रुपये हो एवं सभी गर्भवती और धात्री महिलाओं को तमिलनाडु के तर्ज पर बिना किसी शर्त 20000 रुपये का मातृत्व लाभ मिले। साथ ही, राज्य में व्यापक कुपोषण को ख़त्म करने के लिए सरकार बनने के तीन महीने के अंदर आंगनवाड़ियों और विद्यालयों के मध्याह्न भोजन में सभी बच्चों को प्रति दिन अंडा दिया जाना सुनिश्चित हो एवं मध्याह्न भोजन में केंद्रीकृत किचन की व्यवस्था समाप्त हो।
इस मांग पत्र में जोर देकर कहा गया कि, अगली सरकार की प्राथमिकता ज़मीनी भ्रष्टाचार ख़त्म करना भी होना चाहिए जिसके लिए ठेकेदारी व्यवस्था पर तुरंत अंकुश लगे एवं सक्रिय विकेंद्रित शिकायत निवारण प्रणाली की स्थापना की जाए। वहीं सभी आयोगों – महिला आयोग, मानव अधिकार आयोग, सूचना आयुक्त आदि – में नियुक्ति कर सक्रिय किया जाए।
इस प्रेस वार्ता को अंबिका यादव, अजय एक्का, अलोका कुजूर, बासिंह हेस्सा, दिनेश मुर्मू, एलिना होरो, नंद किशोर गंझू, रिया पिंगुआ व टॉम कावला ने संबोधित किया।