जेएनयू शैक्षणिक सत्र 2025-26 में केवल दो पीएचडी कोर्स सिनेमा स्टडीज और कोरियन स्टडीज के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करेगा। कुछ विभाग भी प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के पक्ष में थे लेकिन इसमें फंड की समस्याएं बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई हैं।

फोटो साभार : इंडिया टुडे
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) शैक्षणिक सत्र 2025-26 में पीएचडी के लिए केवल दो पाठ्यक्रमों यानी सिनेमा स्टडीज और कोरियन स्टडीज के लिए ही प्रवेश परीक्षा आयोजित करेगा।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यूनिवर्सिटी के कुछ स्कूल जेएनयू द्वारा प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के पक्ष में थे लेकिन इसमें वित्तीय समस्याएं एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है।
स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स (एसएए) की डीन प्रोफेसर पारुल दवे मुखर्जी ने न्यूज पेपर को बताया कि उन्हें सूचित किया गया था कि हमारे लिए इन-हाउस परीक्षा आयोजित करना आर्थिक रूप से व्यावहार्य नहीं है। इसके बाद डीन ने यूजीसी-नेट मोड के माध्यम से आगे बढ़ने पर सहमति जताई। कुछ महीने पहले हुई एक बैठक में ये बात हुई थी।"
बताया गया कि जुलाई 2024 में कुलपति शांतिश्री धुलीपुडी पंडित की अध्यक्षता में एक बैठक की गई थी, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि जेएनयू को प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करने के लिए केंद्रीय निकाय से वित्तीय सहायता प्राप्त नहीं मिलेगी। इसके बाद डीन और विभागाध्यक्षों को कहा गया कि वे फैकल्टी मेंबर्स से परामर्श करें और इन-हाउस परीक्षा को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए एक प्रस्ताव प्रस्तुत करें।
हालांकि, स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स (एसएए) और स्कूल ऑफ लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चर स्टडीज (एसएलएल एंड सीएस) दोनों ने विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र भेजकर जेएनयूईई मॉडल पर ही वापसी की मांग की थी।
प्रवेश परीक्षा पर विभाग की सहमति
इस मामले में 9 जुलाई 2024 को लिखे गए एक पत्र में स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स (एसएए) की पूर्व डीन उर्मिमाला सरकार मुन्सी ने यह तर्क दिया था कि नेट-जेआरएफ और बहुविकल्पीय प्रश्नों (एमसीक्यू) पर आधारित प्रारूप दृश्य अध्ययन और सिनेमा अध्ययन जैसे विषयों में आवश्यक शोध के लिए 'उपयुक्त नहीं' हैं। इस पत्र में वित्तीय सीमाओं को स्वीकार करते हुए एक किफायती मॉडल विकसित करने के लिए प्रशासन के साथ सहयोग करने का प्रस्ताव भी रखा था।
पत्र में यह भी जिक्र किया गया था, 'हम इस विषय पर आगे चर्चा कर सर्वोत्तम संभव समाधान सुनिश्चित कर सकते हैं...' इसी तरह, 22 जुलाई 2024 को स्कूल ऑफ लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चर स्टडीज (एसएलएल एंड सीएस) की अध्यक्षीय बैठक में भी जेएनयूईई मॉडल के पक्ष में सामूहिक सहमति बनी।
बैठक के विवरण में कहा गया है कि फैकल्टी मेंबर्स की राय है कि जेएनयू को अपने सभी अध्ययन कार्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करनी चाहिए… ऐसे कदम से फंड जुटाने में भी मदद मिल मिलेगी।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि शिक्षाविद प्रवेश मॉडल का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन इसकी वित्तीय व्यवहार्यता का मूल्यांकन सक्षम प्राधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए।
जब इस विषय में न्यूज पेपर ने स्कूल ऑफ लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चर स्टडीज (एसएलएल एंड सीएस) की डीन, प्रोफेसर शोभा शिवशंकरन से संपर्क किया, तो उन्होंने कॉल या संदेशों का कोई जवाब नहीं दिया।
विश्वविद्यालय के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि जेएनयू प्रशासन विकेंद्रीकृत और लोकतांत्रिक है। सभी डीन ने सीयूईटी और नेट के माध्यम से प्रवेश प्रक्रिया को स्वीकार कर लिया है, जिन पर उनके हस्ताक्षर भी मौजूद हैं, इसलिए इसे लागू किया गया है। जेएनयूईई प्रवेश परीक्षा केवल सिनेमा स्टडीज और कोरियन स्टडीज के पीएचडी कार्यक्रमों के लिए आयोजित की जा रही है, जैसा कि डीन और विभागाध्यक्षों ने अनुशंसित किया है। प्रशासन छात्रों को प्रवेश देने के लिए सभी विकल्पों के प्रति खुला है और संकाय, केंद्राध्यक्षों एवं डीन द्वारा लिए गए निर्णयों का सम्मान करता है।
पहले प्रवेश परीक्षा होती थी, बाद में सीयूईटी हुआ लागू
ज्ञात हो कि जेएनयू पहले अपने सभी कार्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करता था। हालांकि, स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) की शुरुआत के साथ और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुरूप, यह पीएचडी प्रवेश के लिए यूजीसी-नेट स्कोर पर निर्भर हो गया।
पिछले वर्ष यूनिवर्सिटी ने यूजीसी-नेट के अंतर्गत न आने वाले कुछ विषयों जैसे कोरियाई भाषा, कला एवं सौंदर्यशास्त्र और श्रम अध्ययन के लिए जेएनयूईई परीक्षा को बहाल करने की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए एक समिति भी गठित की गई थी।
जेएनयूईई के लिए दबाव तब शुरू हुआ जब पेपर लीक के आरोपों के कारण यूजीसी-नेट को रद्द कर दिया गया, जिससे कुलपति ने जेएनयूईई को बहाल करने पर हितधारक परामर्श के लिए खुलापन व्यक्त किया।
प्रवेश परीक्षा के पक्ष में छात्रसंघ
उधर, जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने 28 जून को लिखे पत्र में बातचीत के विचार का स्वागत किया लेकिन जेएनयूईई के लिए यूनिवर्सिटी के लागत अनुमान को चुनौती दी। इस मामले को लेकर अध्यक्ष नीतीश कुमार, उपाध्यक्ष मनीषा और महासचिव मुन्तेहा फातिमा द्वारा हस्ताक्षर किए गए एक पत्र में कहा गया कि ‘अधिकांश डीन और अध्यक्षों ने जेएनयूईई को बहाल करने का समर्थन किया है।’
इस पत्र में डीन ऑफ स्टूडेंट्स द्वारा बताए गए पांच हजार रुपये प्रति छात्र के खर्च पर भी सवाल उठाया गया और जेएनयू शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) के रिप्रेजेंटेटिव और ‘सभी संबंधित अधिकारियों’ के साथ एक संयुक्त बैठक की मांग की गई।
अपने जवाब में कुलपति शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने लिखा, "यह आपका संगठन, जेएनयूएसयू और आपकी जिम्मेदारी है कि आप समावेशी रहें, चाहे वे सहमत हों या नहीं। समावेशी होना एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है।” उन्होंने हितधारकों की बैठक के लिए सहमति जताई, लेकिन कहा कि यदि जेएनयूटीए (JNUTA) के सदस्यों को शामिल किया जाता है, तो संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए जेएनयू टीचर्स फेडरेशन (JNUTF) और छात्रसंघ के सभी 4 सदस्यों को भी आमंत्रित किया जाना चाहिए।
तब से जेएनयूएसयू भूख हड़ताल पर है (जो अब अपने पांचवें दिन में है) और जेएनयूईई को फिर से शुरू करने समेत कई मुद्दों की मांग कर रहा है। जब पूछा गया कि एबीवीपी के संयुक्त सचिव वैभव मीणा इस प्रदर्शन में क्यों शामिल नहीं हुए, तो जेएनयूएसयू के अध्यक्ष नितीश कुमार ने कहा, “संयुक्त सचिव एनटीए के माध्यम से प्रवेश प्रक्रिया कराने के पक्ष में हैं।”
एबीवीपी के एक सूत्र ने कहा, ‘जेएनयूईई सब्जेक्टिव होती है और इनक्लूसिव नहीं है। परीक्षा में आने वाले प्रश्न भी काफी पक्षपातपूर्ण होते हैं। यही कारण है कि एबीवीपी इनहाउस परीक्षा के पक्ष में नहीं है। यूजीसी नेट तुलनात्मक रूप से ज्यादा इनक्लूसिव है और हमने परिसर में आने वाले छात्रों में काफी ज्यादा विविधता देखी है।’
यह पहली बार नहीं है जब छात्रसंघ के भीतर वैचारिक मतभेद सामने आए हैं। 2015 में भी इसी तरह का विभाजन देखने को मिला था, जब चार सदस्यीय पैनल में एबीवीपी ने एक सीट जीती थी, जिससे सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में तनाव पैदा हो गया था।
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यूनिवर्सिटी के कुछ स्कूल जेएनयू द्वारा प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के पक्ष में थे लेकिन इसमें वित्तीय समस्याएं एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है।
स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स (एसएए) की डीन प्रोफेसर पारुल दवे मुखर्जी ने न्यूज पेपर को बताया कि उन्हें सूचित किया गया था कि हमारे लिए इन-हाउस परीक्षा आयोजित करना आर्थिक रूप से व्यावहार्य नहीं है। इसके बाद डीन ने यूजीसी-नेट मोड के माध्यम से आगे बढ़ने पर सहमति जताई। कुछ महीने पहले हुई एक बैठक में ये बात हुई थी।"
बताया गया कि जुलाई 2024 में कुलपति शांतिश्री धुलीपुडी पंडित की अध्यक्षता में एक बैठक की गई थी, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि जेएनयू को प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करने के लिए केंद्रीय निकाय से वित्तीय सहायता प्राप्त नहीं मिलेगी। इसके बाद डीन और विभागाध्यक्षों को कहा गया कि वे फैकल्टी मेंबर्स से परामर्श करें और इन-हाउस परीक्षा को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए एक प्रस्ताव प्रस्तुत करें।
हालांकि, स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स (एसएए) और स्कूल ऑफ लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चर स्टडीज (एसएलएल एंड सीएस) दोनों ने विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र भेजकर जेएनयूईई मॉडल पर ही वापसी की मांग की थी।
प्रवेश परीक्षा पर विभाग की सहमति
इस मामले में 9 जुलाई 2024 को लिखे गए एक पत्र में स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स (एसएए) की पूर्व डीन उर्मिमाला सरकार मुन्सी ने यह तर्क दिया था कि नेट-जेआरएफ और बहुविकल्पीय प्रश्नों (एमसीक्यू) पर आधारित प्रारूप दृश्य अध्ययन और सिनेमा अध्ययन जैसे विषयों में आवश्यक शोध के लिए 'उपयुक्त नहीं' हैं। इस पत्र में वित्तीय सीमाओं को स्वीकार करते हुए एक किफायती मॉडल विकसित करने के लिए प्रशासन के साथ सहयोग करने का प्रस्ताव भी रखा था।
पत्र में यह भी जिक्र किया गया था, 'हम इस विषय पर आगे चर्चा कर सर्वोत्तम संभव समाधान सुनिश्चित कर सकते हैं...' इसी तरह, 22 जुलाई 2024 को स्कूल ऑफ लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चर स्टडीज (एसएलएल एंड सीएस) की अध्यक्षीय बैठक में भी जेएनयूईई मॉडल के पक्ष में सामूहिक सहमति बनी।
बैठक के विवरण में कहा गया है कि फैकल्टी मेंबर्स की राय है कि जेएनयू को अपने सभी अध्ययन कार्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करनी चाहिए… ऐसे कदम से फंड जुटाने में भी मदद मिल मिलेगी।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि शिक्षाविद प्रवेश मॉडल का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन इसकी वित्तीय व्यवहार्यता का मूल्यांकन सक्षम प्राधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए।
जब इस विषय में न्यूज पेपर ने स्कूल ऑफ लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चर स्टडीज (एसएलएल एंड सीएस) की डीन, प्रोफेसर शोभा शिवशंकरन से संपर्क किया, तो उन्होंने कॉल या संदेशों का कोई जवाब नहीं दिया।
विश्वविद्यालय के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि जेएनयू प्रशासन विकेंद्रीकृत और लोकतांत्रिक है। सभी डीन ने सीयूईटी और नेट के माध्यम से प्रवेश प्रक्रिया को स्वीकार कर लिया है, जिन पर उनके हस्ताक्षर भी मौजूद हैं, इसलिए इसे लागू किया गया है। जेएनयूईई प्रवेश परीक्षा केवल सिनेमा स्टडीज और कोरियन स्टडीज के पीएचडी कार्यक्रमों के लिए आयोजित की जा रही है, जैसा कि डीन और विभागाध्यक्षों ने अनुशंसित किया है। प्रशासन छात्रों को प्रवेश देने के लिए सभी विकल्पों के प्रति खुला है और संकाय, केंद्राध्यक्षों एवं डीन द्वारा लिए गए निर्णयों का सम्मान करता है।
पहले प्रवेश परीक्षा होती थी, बाद में सीयूईटी हुआ लागू
ज्ञात हो कि जेएनयू पहले अपने सभी कार्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करता था। हालांकि, स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) की शुरुआत के साथ और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुरूप, यह पीएचडी प्रवेश के लिए यूजीसी-नेट स्कोर पर निर्भर हो गया।
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प्रवेश परीक्षा के पक्ष में छात्रसंघ
उधर, जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने 28 जून को लिखे पत्र में बातचीत के विचार का स्वागत किया लेकिन जेएनयूईई के लिए यूनिवर्सिटी के लागत अनुमान को चुनौती दी। इस मामले को लेकर अध्यक्ष नीतीश कुमार, उपाध्यक्ष मनीषा और महासचिव मुन्तेहा फातिमा द्वारा हस्ताक्षर किए गए एक पत्र में कहा गया कि ‘अधिकांश डीन और अध्यक्षों ने जेएनयूईई को बहाल करने का समर्थन किया है।’
इस पत्र में डीन ऑफ स्टूडेंट्स द्वारा बताए गए पांच हजार रुपये प्रति छात्र के खर्च पर भी सवाल उठाया गया और जेएनयू शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) के रिप्रेजेंटेटिव और ‘सभी संबंधित अधिकारियों’ के साथ एक संयुक्त बैठक की मांग की गई।
अपने जवाब में कुलपति शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने लिखा, "यह आपका संगठन, जेएनयूएसयू और आपकी जिम्मेदारी है कि आप समावेशी रहें, चाहे वे सहमत हों या नहीं। समावेशी होना एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है।” उन्होंने हितधारकों की बैठक के लिए सहमति जताई, लेकिन कहा कि यदि जेएनयूटीए (JNUTA) के सदस्यों को शामिल किया जाता है, तो संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए जेएनयू टीचर्स फेडरेशन (JNUTF) और छात्रसंघ के सभी 4 सदस्यों को भी आमंत्रित किया जाना चाहिए।
तब से जेएनयूएसयू भूख हड़ताल पर है (जो अब अपने पांचवें दिन में है) और जेएनयूईई को फिर से शुरू करने समेत कई मुद्दों की मांग कर रहा है। जब पूछा गया कि एबीवीपी के संयुक्त सचिव वैभव मीणा इस प्रदर्शन में क्यों शामिल नहीं हुए, तो जेएनयूएसयू के अध्यक्ष नितीश कुमार ने कहा, “संयुक्त सचिव एनटीए के माध्यम से प्रवेश प्रक्रिया कराने के पक्ष में हैं।”
एबीवीपी के एक सूत्र ने कहा, ‘जेएनयूईई सब्जेक्टिव होती है और इनक्लूसिव नहीं है। परीक्षा में आने वाले प्रश्न भी काफी पक्षपातपूर्ण होते हैं। यही कारण है कि एबीवीपी इनहाउस परीक्षा के पक्ष में नहीं है। यूजीसी नेट तुलनात्मक रूप से ज्यादा इनक्लूसिव है और हमने परिसर में आने वाले छात्रों में काफी ज्यादा विविधता देखी है।’
यह पहली बार नहीं है जब छात्रसंघ के भीतर वैचारिक मतभेद सामने आए हैं। 2015 में भी इसी तरह का विभाजन देखने को मिला था, जब चार सदस्यीय पैनल में एबीवीपी ने एक सीट जीती थी, जिससे सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में तनाव पैदा हो गया था।
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