"हम फ़िलिस्तीन के समर्थन में उसकी आज़ादी के लिए आज यहां जमा हुए हैं, हमें लगता है कि अगर हिंदुस्तान का एक भी बच्चा फ़िलिस्तीन के लिए बोलता है तो उसका असर ज़रूर होगा। ये सिर्फ फ़िलिस्तीन के लिए किया गया मार्च नहीं है बल्कि ये इंसानियत के लिए किया गया मार्च है।"
देश की राजधानी दिल्ली में मंगलवार, 31 अक्टूबर 2023 की शाम को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फ़िलिस्तीन के समर्थन में सॉलिडेरिटी मार्च निकाला गया। JNUSU (JNU छात्र संघ) की तरफ से दी गई इस कॉल में तमाम छात्र संगठनों के साथ बड़ी संख्या में छात्र शामिल हुए। गंगा ढाबा से साबरमती ढाबा तक निकले इस मार्च में शामिल हुए छात्रों ने ग़ज़ा-इज़राइल संघर्ष पर तुरंत विराम लगाने की मांग की।
"हम फ़िलिस्तीनी जनता के साथ खड़े हैं"
मार्च में शामिल हुए छात्रों ने फ़िलिस्तीन की आज़ादी और गज़ा में लगातार हो रहे हमलों को रोकने की मांग के साथ जमकर नारेबाज़ी की, हाथों में बैनर-पोस्टर लिए छात्रों ने ग़ज़ा में लगातार बढ़ रही मौतों पर चिंता ज़ाहिर की और पूरी दुनिया से अपील की इस युद्ध को राजनीति से ऊपर उठकर इंसानी जान-माल के नुकसान के मद्देनज़र रुकवाने की कोशिश करनी चाहिए। इस दौरान JNUSU अध्यक्ष रहीं आइशी घोष ने कहा, "आज JNU में खड़े होकर हम फ़िलिस्तीन की जनता के साथ न सिर्फ एकता दिखा रहे हैं बल्कि हम इस बात को बार-बार बताने की कोशिश कर रहे हैं कि ये प्रयास चल रहे हैं कि फ़िलिस्तीन की जनता के हकों को, उनकी पहचान को ख़त्म कर दिया जाए, हम फ़िलिस्तीनी जनता के साथ खड़े हैं और उनका जो आज़ादी का हक़ है उसके साथ खड़े हैं।"
इज़राइल की तरफ से लगातार ग़ज़ा पर हो रहे हमले के विरोध में पूरी दुनिया में विरोध मार्च निकाले जा रहे हैं, दिल्ली में भी इज़रायली दूतावास के बाहर कई बार विरोध-प्रदर्शन करने की कोशिश की गई लेकिन प्रशासन ने तुरंत ही जमा हुए छात्रों को हिरासत में लेकर प्रोटेस्ट को रद्द कर दिया।
इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष के बीच संयुक्त राष्ट्र महासभा में संघर्ष विराम के प्रस्ताव पर वोटिंग से भारत की दूरी पर आइशी घोष ने कहा कि "हिस्टॉरिकली हमारा देश फ़िलिस्तीनी जनता के अधिकारों के साथ खड़ा रहा है, लेकिन हमारे यहां पहला ट्वीट आता है कि वे इज़राइल के समर्थन में खड़ा है और जो ये साफ कर देता है कि जिस तरह से इज़राइल इतने सालों से एक पहचान को ख़त्म करने में लगा पड़ा है उसी तरीके से साफ हो जाता है कि हमारा देश किस पक्ष को चुनने की कोशिश कर रहा है। यूनाइटेड नेशन्स में जो हाल ही में वोटिंग हुई उसमें हमारे देश का क्या स्टैंड है, हमारी सरकार का क्या स्टैंड है, वो स्टैंड बहुत ही साफ तौर से हमारे सामने आ गया है, लेकिन हम मानते हैं कि इस देश की जनता, फ़िलिस्तीन की जनता के साथ खड़ी है।"
ग़ज़ा के सबसे बड़े रिफ़्यूजी कैंप जबालिया पर हमला
UN में युद्ध-विराम पर हुई वोटिंग से साफ ज़ाहिर होता है कि दुनिया के ज़्यादातर देश तुरंत सीज़फायर के हक़ में है लेकिन उन्हें नज़रअंदाज़ कर इज़राइल लगातार हमले कर रहा है। 31 अक्टूबर, 2023 को इज़राइल की तरफ से ग़ज़ा के सबसे बड़े रिफ़्यूज़ी कैंप जबालिया पर हमला किया गया, अल-जज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में क़रीब 50 लोगों की मौत हो गई जबकि डेढ़ सौ से ज़्यादा लोग घायल हो गए, मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। इसी रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया के नेताओं के लिए ये एक ‘Wake-up Call’ है, ग़ज़ा में सीज़फायर के लिए।।
तीन हज़ार से ज़्यादा बच्चे मारे गए!
ग़ज़ा में मरने वालों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है जिस पर चिंता ज़ाहिर करते हुए DSF (Democratic Students' Federation) अध्यक्ष स्वाति ने कहा कि "मान लीजिए हमास को ख़त्म करने की बात हो रही है लेकिन, हमास, फ़िलिस्तीन की सारी जनता तो नहीं है। तीन हज़ार से ज़्यादा बच्चे मारे गए हैं, जब मैंने मरने वालों का आख़िरी आंकड़ा देखा था तो वो आठ हज़ार कुछ था, तो इतने बच्चे जो मर गए तो क्या वो सारे बच्चे हमास के बच्चे थे, उनका क्या दोष था? ह्यूमैनिटेरियन ग्राउंड (मानवीय आधार पर) पर भी कैसे युद्ध को सही ठहराया जा सकता है?”
"ग़ज़ा बच्चों का कब्रिस्तान बन गया है"
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने भी बच्चों की मरने की बढ़ती संख्या पर चिंता ज़ाहिर की है। आजतक पर छपी ख़बर के मुताबिक यूनिसेफ के प्रवक्ता जेम्स एल्डर ने स्विस शहर जिनेवा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि ग़ज़ा में बच्चे न सिर्फ हवाई हमलों के कारण मर रहे हैं बल्कि मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण भी मर रहे हैं। एल्डर ने अफसोस जताते हुए कहा कि बच्चों की मौत का आंकड़ा 3,450 से ज़्यादा हो गया है, उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि "आश्चर्यजनक रूप से यह संख्या हर दिन काफी बढ़ रही है, ग़ज़ा बच्चों का कब्रिस्तान बन गया है।" इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ग़ज़ा में भयंकर पानी की किल्लत की वजह से भी बच्चों की डिहाइड्रेशन और प्यास से भी मौत हो रही है।
"ये इंसानियत के लिए किया गया मार्च है"
7 अक्टूबर को हमास ने दक्षिणी इज़राइल पर हमला कर 200 लोगों को बंधक बना लिया था जबकि इस हमले में कई लोगों की जान भी चली गई थी। जिसके बाद आक्रामक हुए इज़राइल ने हमास को तबाह करने के नाम पर फ़िलिस्तीन में अस्पतालों, स्कूल-कॉलेज और रिफ़्यूज़ी कैंप को निशाना बनाया। तमाम ह्यूमैनिटेरियन ग्रुप चिंता ज़ाहिर कर रहे हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि इज़राइल कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। वहीं JNU में हुए मार्च में शामिल हुए एक छात्र ने कहा कि "हम फ़िलिस्तीन के समर्थन में उसकी आज़ादी के लिए आज यहां जमा हुए हैं, हमें लगता है कि अगर हिंदुस्तान का एक भी बच्चा अगर फ़िलिस्तीन के लिए बोलता है तो उसका असर ज़रूर होगा। ये सिर्फ फ़िलिस्तीन के लिए किया गया मार्च नहीं है बल्कि ये इंसानियत के लिए किया गया मार्च है।"
"भारत हिस्टॉरिकली फ़िलिस्तीन के साथ ही रहा है"
वहीं मार्च में शामिल एक अन्य छात्र ने कहा कि "इस मार्च का आयोजन, फ़िलिस्तीन के लोगों के लिए , अनकंडीशनल सॉलिडेरिटी दिखाने के लिए किया गया है, साथ ही ये बताने की कोशिश की गई है कि हम यानी कि JNU के तमाम छात्र संगठन भी उनके साथ खड़े हैं। सरकार जिसके भी साथ खड़े हो लेकिन भारत हिस्टॉरिकली फ़िलिस्तीन के साथ ही रहा है।"
'फ़िलिस्तीन की आज़ादी' के नारे गूंजे
हिंदी, इंग्लिश के साथ ही उर्दू में लिखे पोस्टर थामे छात्रों ने 'फ़िलिस्तीन की आज़ादी' के नारे लगाए और साथ ही वहां हो रहे हमलों को नरसंहार बताया। फ़िलिस्तीन का झंडा लपेटे छात्रों के हाथों में एक पोस्टर था जिसपर लिखा था - "From The River To The Sea Palestine Will Be Free"
"दुनिया के सामने हज़ारों लोग मारे जा रहे"
JNUSU की सेक्रेटरी रही DSF की अनगाह प्रदीप ने कहा कि "आज दुनिया के सामने हज़ारों लोग, अपनी पहचान की वजह से मारे जा रहे हैं, इज़राइल की गवर्नमेंट के द्वारा फ़िलिस्तीन के लोगों का जातीय संहार किया जा रहा है। बाइडन और जितनी भी इंपीरियल पावर हैं, सब मिलकर फ़िलिस्तीन नाम के स्टेट को साफ कर देना चाहते हैं पर उसके साथ ही हमने ये भी देखा कि फ़िलिस्तीन की जनता किस तरह से उसका विरोध करती आ रही है। हमें याद है कि किस तरह से 75 साल से ज़्यादा हो गए लेकिन बार-बार फ़िलिस्तीन की जनता पर हमला हो रहा है, किस तरह से उनका नाम-ओ-निशान मिटाने की कोशिश हो रही है पर हमने ये भी देखा कि उन तमाम कोशिशों का फ़िलिस्तीन की जनता ने किस तरह से लगातार विरोध किया। आज जब हम यहां खड़े हैं तो हमें खुले तौर पर कहना होगा कि हम किसके साथ हैं, हमें खुले तौर पर कहना होगा कि हम फ़िलिस्तीन की जनता के साथ हैं, हम उन तमाम कोशिशों के ख़िलाफ़ आज यहां खड़े हैं, हम जानते हैं कि भारत ख़ुद एक औपनिवेशिक स्टेट था उसने हमेशा फ़िलिस्तीन का साथ दिया पर आज सोच बदल गई है।"
जिस वक़्त तमाम छात्र संगठन से जुड़े छात्र नेता अपनी बातें रख रहे थे, पीछे खड़े छात्रों के बीच भी चर्चा छिड़ी थी कि इस संघर्ष का भारत और अमेरिका के आने वाले चुनावों पर क्या असर पड़ेगा। साथ ही कुछ छात्र दो टूक कहते सुनाई दिए कि चुनाव तो होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे लेकिन इस बीच युद्ध की वजह से मारे जा रहे बच्चों की परवाह करने वाला कोई दिखाई नहीं दे रहा।
देश की राजधानी दिल्ली में मंगलवार, 31 अक्टूबर 2023 की शाम को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फ़िलिस्तीन के समर्थन में सॉलिडेरिटी मार्च निकाला गया। JNUSU (JNU छात्र संघ) की तरफ से दी गई इस कॉल में तमाम छात्र संगठनों के साथ बड़ी संख्या में छात्र शामिल हुए। गंगा ढाबा से साबरमती ढाबा तक निकले इस मार्च में शामिल हुए छात्रों ने ग़ज़ा-इज़राइल संघर्ष पर तुरंत विराम लगाने की मांग की।
"हम फ़िलिस्तीनी जनता के साथ खड़े हैं"
मार्च में शामिल हुए छात्रों ने फ़िलिस्तीन की आज़ादी और गज़ा में लगातार हो रहे हमलों को रोकने की मांग के साथ जमकर नारेबाज़ी की, हाथों में बैनर-पोस्टर लिए छात्रों ने ग़ज़ा में लगातार बढ़ रही मौतों पर चिंता ज़ाहिर की और पूरी दुनिया से अपील की इस युद्ध को राजनीति से ऊपर उठकर इंसानी जान-माल के नुकसान के मद्देनज़र रुकवाने की कोशिश करनी चाहिए। इस दौरान JNUSU अध्यक्ष रहीं आइशी घोष ने कहा, "आज JNU में खड़े होकर हम फ़िलिस्तीन की जनता के साथ न सिर्फ एकता दिखा रहे हैं बल्कि हम इस बात को बार-बार बताने की कोशिश कर रहे हैं कि ये प्रयास चल रहे हैं कि फ़िलिस्तीन की जनता के हकों को, उनकी पहचान को ख़त्म कर दिया जाए, हम फ़िलिस्तीनी जनता के साथ खड़े हैं और उनका जो आज़ादी का हक़ है उसके साथ खड़े हैं।"
इज़राइल की तरफ से लगातार ग़ज़ा पर हो रहे हमले के विरोध में पूरी दुनिया में विरोध मार्च निकाले जा रहे हैं, दिल्ली में भी इज़रायली दूतावास के बाहर कई बार विरोध-प्रदर्शन करने की कोशिश की गई लेकिन प्रशासन ने तुरंत ही जमा हुए छात्रों को हिरासत में लेकर प्रोटेस्ट को रद्द कर दिया।
इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष के बीच संयुक्त राष्ट्र महासभा में संघर्ष विराम के प्रस्ताव पर वोटिंग से भारत की दूरी पर आइशी घोष ने कहा कि "हिस्टॉरिकली हमारा देश फ़िलिस्तीनी जनता के अधिकारों के साथ खड़ा रहा है, लेकिन हमारे यहां पहला ट्वीट आता है कि वे इज़राइल के समर्थन में खड़ा है और जो ये साफ कर देता है कि जिस तरह से इज़राइल इतने सालों से एक पहचान को ख़त्म करने में लगा पड़ा है उसी तरीके से साफ हो जाता है कि हमारा देश किस पक्ष को चुनने की कोशिश कर रहा है। यूनाइटेड नेशन्स में जो हाल ही में वोटिंग हुई उसमें हमारे देश का क्या स्टैंड है, हमारी सरकार का क्या स्टैंड है, वो स्टैंड बहुत ही साफ तौर से हमारे सामने आ गया है, लेकिन हम मानते हैं कि इस देश की जनता, फ़िलिस्तीन की जनता के साथ खड़ी है।"
ग़ज़ा के सबसे बड़े रिफ़्यूजी कैंप जबालिया पर हमला
UN में युद्ध-विराम पर हुई वोटिंग से साफ ज़ाहिर होता है कि दुनिया के ज़्यादातर देश तुरंत सीज़फायर के हक़ में है लेकिन उन्हें नज़रअंदाज़ कर इज़राइल लगातार हमले कर रहा है। 31 अक्टूबर, 2023 को इज़राइल की तरफ से ग़ज़ा के सबसे बड़े रिफ़्यूज़ी कैंप जबालिया पर हमला किया गया, अल-जज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में क़रीब 50 लोगों की मौत हो गई जबकि डेढ़ सौ से ज़्यादा लोग घायल हो गए, मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। इसी रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया के नेताओं के लिए ये एक ‘Wake-up Call’ है, ग़ज़ा में सीज़फायर के लिए।।
तीन हज़ार से ज़्यादा बच्चे मारे गए!
ग़ज़ा में मरने वालों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है जिस पर चिंता ज़ाहिर करते हुए DSF (Democratic Students' Federation) अध्यक्ष स्वाति ने कहा कि "मान लीजिए हमास को ख़त्म करने की बात हो रही है लेकिन, हमास, फ़िलिस्तीन की सारी जनता तो नहीं है। तीन हज़ार से ज़्यादा बच्चे मारे गए हैं, जब मैंने मरने वालों का आख़िरी आंकड़ा देखा था तो वो आठ हज़ार कुछ था, तो इतने बच्चे जो मर गए तो क्या वो सारे बच्चे हमास के बच्चे थे, उनका क्या दोष था? ह्यूमैनिटेरियन ग्राउंड (मानवीय आधार पर) पर भी कैसे युद्ध को सही ठहराया जा सकता है?”
"ग़ज़ा बच्चों का कब्रिस्तान बन गया है"
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने भी बच्चों की मरने की बढ़ती संख्या पर चिंता ज़ाहिर की है। आजतक पर छपी ख़बर के मुताबिक यूनिसेफ के प्रवक्ता जेम्स एल्डर ने स्विस शहर जिनेवा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि ग़ज़ा में बच्चे न सिर्फ हवाई हमलों के कारण मर रहे हैं बल्कि मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण भी मर रहे हैं। एल्डर ने अफसोस जताते हुए कहा कि बच्चों की मौत का आंकड़ा 3,450 से ज़्यादा हो गया है, उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि "आश्चर्यजनक रूप से यह संख्या हर दिन काफी बढ़ रही है, ग़ज़ा बच्चों का कब्रिस्तान बन गया है।" इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ग़ज़ा में भयंकर पानी की किल्लत की वजह से भी बच्चों की डिहाइड्रेशन और प्यास से भी मौत हो रही है।
"ये इंसानियत के लिए किया गया मार्च है"
7 अक्टूबर को हमास ने दक्षिणी इज़राइल पर हमला कर 200 लोगों को बंधक बना लिया था जबकि इस हमले में कई लोगों की जान भी चली गई थी। जिसके बाद आक्रामक हुए इज़राइल ने हमास को तबाह करने के नाम पर फ़िलिस्तीन में अस्पतालों, स्कूल-कॉलेज और रिफ़्यूज़ी कैंप को निशाना बनाया। तमाम ह्यूमैनिटेरियन ग्रुप चिंता ज़ाहिर कर रहे हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि इज़राइल कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। वहीं JNU में हुए मार्च में शामिल हुए एक छात्र ने कहा कि "हम फ़िलिस्तीन के समर्थन में उसकी आज़ादी के लिए आज यहां जमा हुए हैं, हमें लगता है कि अगर हिंदुस्तान का एक भी बच्चा अगर फ़िलिस्तीन के लिए बोलता है तो उसका असर ज़रूर होगा। ये सिर्फ फ़िलिस्तीन के लिए किया गया मार्च नहीं है बल्कि ये इंसानियत के लिए किया गया मार्च है।"
"भारत हिस्टॉरिकली फ़िलिस्तीन के साथ ही रहा है"
वहीं मार्च में शामिल एक अन्य छात्र ने कहा कि "इस मार्च का आयोजन, फ़िलिस्तीन के लोगों के लिए , अनकंडीशनल सॉलिडेरिटी दिखाने के लिए किया गया है, साथ ही ये बताने की कोशिश की गई है कि हम यानी कि JNU के तमाम छात्र संगठन भी उनके साथ खड़े हैं। सरकार जिसके भी साथ खड़े हो लेकिन भारत हिस्टॉरिकली फ़िलिस्तीन के साथ ही रहा है।"
'फ़िलिस्तीन की आज़ादी' के नारे गूंजे
हिंदी, इंग्लिश के साथ ही उर्दू में लिखे पोस्टर थामे छात्रों ने 'फ़िलिस्तीन की आज़ादी' के नारे लगाए और साथ ही वहां हो रहे हमलों को नरसंहार बताया। फ़िलिस्तीन का झंडा लपेटे छात्रों के हाथों में एक पोस्टर था जिसपर लिखा था - "From The River To The Sea Palestine Will Be Free"
"दुनिया के सामने हज़ारों लोग मारे जा रहे"
JNUSU की सेक्रेटरी रही DSF की अनगाह प्रदीप ने कहा कि "आज दुनिया के सामने हज़ारों लोग, अपनी पहचान की वजह से मारे जा रहे हैं, इज़राइल की गवर्नमेंट के द्वारा फ़िलिस्तीन के लोगों का जातीय संहार किया जा रहा है। बाइडन और जितनी भी इंपीरियल पावर हैं, सब मिलकर फ़िलिस्तीन नाम के स्टेट को साफ कर देना चाहते हैं पर उसके साथ ही हमने ये भी देखा कि फ़िलिस्तीन की जनता किस तरह से उसका विरोध करती आ रही है। हमें याद है कि किस तरह से 75 साल से ज़्यादा हो गए लेकिन बार-बार फ़िलिस्तीन की जनता पर हमला हो रहा है, किस तरह से उनका नाम-ओ-निशान मिटाने की कोशिश हो रही है पर हमने ये भी देखा कि उन तमाम कोशिशों का फ़िलिस्तीन की जनता ने किस तरह से लगातार विरोध किया। आज जब हम यहां खड़े हैं तो हमें खुले तौर पर कहना होगा कि हम किसके साथ हैं, हमें खुले तौर पर कहना होगा कि हम फ़िलिस्तीन की जनता के साथ हैं, हम उन तमाम कोशिशों के ख़िलाफ़ आज यहां खड़े हैं, हम जानते हैं कि भारत ख़ुद एक औपनिवेशिक स्टेट था उसने हमेशा फ़िलिस्तीन का साथ दिया पर आज सोच बदल गई है।"
जिस वक़्त तमाम छात्र संगठन से जुड़े छात्र नेता अपनी बातें रख रहे थे, पीछे खड़े छात्रों के बीच भी चर्चा छिड़ी थी कि इस संघर्ष का भारत और अमेरिका के आने वाले चुनावों पर क्या असर पड़ेगा। साथ ही कुछ छात्र दो टूक कहते सुनाई दिए कि चुनाव तो होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे लेकिन इस बीच युद्ध की वजह से मारे जा रहे बच्चों की परवाह करने वाला कोई दिखाई नहीं दे रहा।