एक के बाद एक अत्याचार की घटनाओं ने दलितों को जगा दिया है। उन्हें अब भाजपा का असली चरित्र दिखने लगा है।
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दलित हनुमानों की बेशर्मी
भाजपा ने तीनों दलित रामों को सफलतापूर्वक हनुमान बना लिया है। अपनी बात कहने के लिए उन्होंने कुछ कथित दलित बुद्धिजीवियों को अपने पाले में कर लिया है। यह भी बेशर्मी की हद है कि एक तरफ जहां पूरे देश में ऊना कांड को लेकर जबरदस्त गुस्सा हैं वहीं ऐसे कथित दलित बुद्धिजीवी कह रहे हैं कि गुजरात को दलित अत्याचार से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। उनकी बेहयाई और बौद्धिक बेईमानी का आलम यह कि वह नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के दलित दमन और अत्याचार के आंकड़ों का संदर्भ से काट कर हवाला दे रहे हैं। एक पैनल डिस्कशन में जब अन्य गैर दलित वक्ता गुजरात में दलितों की पिटाई की आलोचना कर रहे थे तो यह महाशय बड़े ही अजीब ढंग से गुजरात की तुलना अन्य राज्यों से करने में लगे थे। उनका कहना था कि दूसरे राज्यों की तुलना में तो गुजरात में दलितों पर काफी कम अत्याचार के मामले में होते हैं।
जबकि सच्चाई यह है कि गुजरात दलितों पर अत्याचार के मामले में देश के शीर्ष पांच राज्यों में शामिल है। वर्ष 2013 में जब लोकसभा चुनावों से पहले की गहमागहमी और वाइब्रेंट गुजरात अपने चरम पर था और नरेंद्र मोदी को देश के अगले पीएम के तौर पर देखा जा रहा था तो गुजरात में दलितों पर होने वाले अत्याचार भी उफान पर थे। 2013 में अनुसूचित जाति के एक लाख लोगों में 29.21 लोग इन अत्याचारों के शिकार हो रहे थे। जबकि इससे पिछले सालों में यह आंकड़ा 25.23 का था। इस तरह गुजरात दलितों पर अत्याचार के मामले में देश में चौथे नंबर पर था। पहले नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो संपूर्ण एक लाख आबादी (दलित, गैर दलित मिलाकर ) पर दलितों के खिलाफ होने वाले अत्याचार के आंकड़े इकट्ठा करता था। लेकिन अब इसमें सुधार किया गया है और अब यह आंकड़ा अनुसूचित जाति के प्रति एक लाख की आबादी पर जुटाया जाता है। इसलिए नीचे एनसीआरबी के जो आंकड़े दिए गए हैं उनमें सुधार की जरूरत है। इसके बावजूद ये आंक ड़े दलितों के खिलाफ होने वाले अत्याचार के मामले में गुजरात का रिकार्ड सुधार नहीं सकते। हत्या और बलात्कार जैसे बड़े मामलों में गुजरात का रिकार्ड बेहद खराब है।
अनुसूचित जाति की प्रति लाख आबादी के हिसाब से हत्या और रेप के आंकड़ें
Table 1: Rate of incidence of Murders and Rapes (per lakh population of the Scheduled Castes)
Year | 2012 | 2013 | ||
Murder | Rape | Murder | Rape | |
Gujarat | 0.56 | 2.29 | 0.71 | 3.82 |
Andhra Pradesh | 0.39 | 1.49 | 0.38 | 1.64 |
Bihar | 0.16 | 0.49 | 0.30 | 0.85 |
Chhattisgarh | 0.18 | 3.86 | 0.18 | 3.37 |
Haryana | 0.37 | 2.79 | 0.43 | 5.45 |
Jharkhand | 0.03 | 0.41 | 0.15 | 0.31 |
Karnataka | 0.34 | 0.83 | 030 | 1.29 |
Kerala | 0.03 | 6.34 | 0.07 | 7.36 |
Madhya Pradesh | 0.78 | 6.75 | 0.68 | 7.31 |
Maharashtra | 0.27 | 1.49 | 0.30 | 2.75 |
Odisha | 0.15 | 2.21 | 2.26 | 2.77 |
Rajasthan | 0.54 | 3.44 | 0.62 | 5.01 |
Tamil Nadu | 0.26 | 0.47 | 0.19 | 0.39 |
Uttar Pradesh | 0.57 | 1.45 | 0.54 | 1.91 |
इन आंक ड़ों से साफ है कि 2012 में उत्तर प्रदेश (0.57) और मध्य प्रदेश (0.78) को छोड़ कर हत्या के मामले में गुजरात सब राज्यों से आगे था। 2013 में इसका रिकार्ड सबसे खराब रहा। इस साल गुजरात दलितों के खिलाफ अत्याचार के लिए बदनाम रहे उत्तर प्रदेश के बराबर ही था। रेप के मामले में वाइब्रेंट गुजरात, 2012 मेंं छत्तीसगढ़ (3.86) , हरियाणा (2.79), केरल (6.34) मध्य प्रदेश (6.75), राजस्थान (3.44) को छोड़ कर दलितों के खिलाफ अत्याचार में आगे रहा। 2013 में इसने यह केरल (7.36), मध्य प्रदेश (7.31) , हरियाणा (5.45) और राजस्थान (5.01) को छोड़ कर इस मामले में आगे रहा।
मोदी के घडिय़ाली आंसू
ऐसी खबरें हैं कि मोदी ऊना की घटना से विचलित हैं, जैसे उनके मॉडल गुजरात में यह पहली बार हो रहा है। सितंबर, 2012 में सुरेंद्रनगर जिले के एक छोटे शहर थानगढ़ में मोदी की पुलिस 22 और 23 सितंबर को लगातार तीन दलित युवकों को गोलियों से मार गिराया। लेकिन उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा। जबकि घटना के दिन वह उस जगह से महज 17 किलोमीटर दूर विवेकानंद युवा विकास यात्रा की अगुवाई कर रहे थे। 22 सितंबर को पुलिस ने एक दलित युवक की पिटाई करने वाले भारवाड़ों का विरोध में उतरे दलितों पर गोली चलाई। इस घटना में एक 17 वर्षीय दलित किशोर पंकज सुमरा बुरी तरह घायल हो गया। बाद में उसकी राजकोट के एक अस्पताल में मौत हो गई। इस घटना से नाराज दलित फिर सडक़ों पर उतर आए। अगले दिन प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने फिर फायरिंग की और तीन दलित युवक घायल हो गए। इनमें से मेहुल राठौड़ (17) और प्रकाश परमार (26) की राजकोट अस्पताल में मौत हो गई। ये हत्याएं 2012 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुई थीं। पूरे राज्य में इससे शोक फैल गया और चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ शिकायत दर्ज हुई। सीआईडी को जांच का जिम्मा सौंपा गया। पुलिसकर्मियों के खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज होने के बावजूद सिर्फ एक मामले में चार्जशीट फाइल हो पाई। और पुलिसकर्मियों में से एक आरोपी बीसी सोलंकी की तो गिरफ्तारी भी नहीं हो पाई।
गुजरात में दलित समुदाय के खिलाफ सामंती दमन का लंबा इतिहास रहा है। यहां दलितों की आबादी 7.1 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत है 16.6 प्रतिशत। दलित राजनीति में कमोबेश जड़ता की स्थिति है। 1970 में दलित पैंथर्स के उभार के बाद उनकी गांधीवादी नींद 1981 में आरक्षण विरोधी दंगों के दौरान टूटी। उस समय पहली बार राज्य में जगह-जगह गांधी जयंती मनाई गई। लेकिन यह जागरुकता थोड़े समय के लिए ही रही।
जब भाजपा को दलितों की चुनावी अहमियत का अहसास हुआ तो पार्टी ने उन्हें लुभाना शुरू किया। इस रणनीति के बाद दलित1986 में जगन्नाथ रथ यात्रा जैसे उत्सवों में भाग लेने लगे। यहां तक कि दलितों 2002 में गोधरा के बाद भडक़े दंगों के दौरान पार्टी के सैनिकों की तरह काम किया। गुजरात में अब भी दलितों के खिलाफ अपमान, अत्याचार और भेदभाव जारी है। राज्य खुलेआम या ढके-छिपे तौर पर दलित विरोधी कार्यों में शामिल है। लेकिन राज्य में बढ़ती समृद्धि के बीच खुद को अंधेरे भविष्य से घिरा देख कर नई पीढ़ी के दलित अब बेचैन है। दलितों के अंदर भाजपा की चिकनी-चुपड़ी राजनीति के खिलाफ मौजूद गुस्सा भडक़ चुका है। ऊना जैसे मामलों से यह साबित हो चुका है।
दलितों का अभिशाप
हाल की घटनाओं से दलित जागरण के नए संकेत मिल रहे है। भाजपा, कांग्रेस की नकल करते हुए अंबेडकर का स्मारक बनवा रही है। वह खुद को बड़ा अंबेडकर भक्त साबित करने पर तुली है। लेकिन हाल के दलित विरोधी कृत्यों ने उसकी कलई खोल दी है। जब अक्टूबर 2002 में हरियाणा में झज्जर जिले के दुलियाना ने विहिप के गुंडों ने पांच दलितों को पीट-पीट कर मार डाला था तो इसके उपाध्यक्ष गिरिराज किशोर ने इसका समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि हमारे पुराणों में एक गाय की जान की कीमत क ई लोगों की जिंदगी से ज्यादा बताई गई है। उस समय हरियाणा के भाजपा प्रमुख रामबिलास शर्मा ने गोवध को मानव हत्या जैसा जघन्य अपराध घोषित कराने का वादा किया था। शायद दलितों ने इस तरह की घटनाओं को एक-आध घटना मानकर भाजपा को माफ कर दिया था। लेकिन इस बार एक के बाद एक हो रही दलित विरोधी घटनाओं ने उन्हें जगा दिया है और उन्हें भाजपा के असली चरित्र का अहसास होने लगा है।
हालांकि हिंदुत्व कैंप को बाद में हिंदू राष्ट्र निर्माण के अपना एजेंडा लागू करने में दलित वोटों की भूमिका का अहसास हो गया है लेकिन दोनों के बीच जो वैचारिक विरोधाभास है वह आसानी से नहीं सुलझ सकता। बार-बार स्वामी और साध्वी जैसे लोगों की दलित विरोधी भावनाएं या हिंदुत्व के गुंडों का अत्याचार उभर कर सामने आ ही जाते हैं।
सबसे अहम है हिंदुत्व का एजेंडा। उसका दोमुंहापन और अतार्किकता। एक तरफ तो वह मवेशियों पर प्रतिबंध लगा कर बूचडख़ानों को बंद करवा रहा है। इससे लाखोंं मुस्लिमों और दलितों का रोजगार छिन रहा है। दूसरी ओर इस देश में मांस का निर्यात करने वाले छह सबसे बूचडख़ानों में से चार हिंदुओं के हैं। इनमें से दो ब्राह्मणों के हैं। इसके बावजूद मवेशी वध अगर हिंदुत्व का सांस्कृतिक मूल्य है तो भी यह दलित हितों और आकांक्षाओं के विरुद्ध जाता है। बहरहाल, देश में जैसे-जैसे हिंदुत्व का दलित विरोधी रुख सामने आ रहा है, उसकी आंच भाजपा को महसूस होने लगी है। अगले विधानसभा चुनावों में भाजपा को इस आंच की तपिश जरूर मालूम होगी।
आनंद तेलतुंबड़े कमेटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (सीपीडीआर) के जनरल सेक्रेट्री हैं।