आज के समय में प्रेमचंद कि प्रासंगिकता –किशोर

Published on: July 31, 2016
आज मुंशी प्रेमचंद की सालगिरह है और यह पोस्ट खासकर उस युवा पीढ़ी के लिए है जिसे शायद ही उनकी रचनाओं को पढने का मौका मिले और यह जरूरी है कि किसी भी हाल में उस परंपरा को जिन्दा रखना जरूरी है जो प्रेमचंद ने शुरू की थी



प्रेमचंद के बारे में कुछ ऐसे तथ्य जो ज्यादा लोगों को पता नहीं है-

हिंदी के इस मशहूर लेखक ने अपनी पढाई एक मदरसे से शुरू की थी .

• शुरूआती दौर में यह उर्दू लेखक थे और इन्होने लेखनी की शुरूआत में कई उर्दू नाटकों से करी और इन्होने हिंदी में बाद में लिखना शुरू किया .
• कहते हैं इन्हें उर्दू उपन्यास का ऐसा नशा था कि यह किताब की दुकान पर बैठकर ही सब नॉवल पढ़ जाते थे ।
अपने उपन्यासों और कहानियो के लिए तो सभी लोग इन्हें जानते है पर बहुत कम लोगों को पता होगा की वह साथ ही एक नाटककार भी थे और लोगों का कहना है कि कहानियो से पहले यह नाटक ही लिखते थे
• अंगेजी हुकूमत को इनकी रचनाओं में बगावत की बू आने लगी थी जिस कारण इनकी रचनाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था . इस प्रतिबन्ध से बचने के लिए इन्होने “प्रेमचंद” के नाम से लिखना शुरू किया . .
• वह फिल्मों में खुद अपनी किस्मत आजमाने मुंबई भी गए थे और इन्होने मजदूर नाम की फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिखी थी और प्रदर्शित होने के ठीक बाद इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था क्योंकि यह मजदूरों को मिल मालिकों के खिलाफ भड़का रही थी

मामूली नौकर के तौर पर काम करने वाले अजायब राय के घर प्रेमचन्द ( धनपत राय ) का जन्म ३१ जुलाई सन् 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। कहा जाता है कि घर की माली हालत कुछ ठीक नहीं थी जिस कारण उन्हें मैट्रिक में पढाई रोकनी पड़ी और ट्यूशन पढ़ाने लगे. बाद में इन्होने में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. तंगी के बावजूद इनका साहित्य की ओर झुकाव था और उर्दू का इल्म रखते थे । उनके जीवन का अधिकांश समय गाँव में ही गुजरा और वह सदा साधारण गंवई लिबास में रहते थे।



काफी कम उम्र से ही लिखना आरंभ कर दिया था और यह सिलसिला ताउम्र जारी रहा । पहली कहानी कानपूर से प्रकाशीत होने वाले अखबार ज़माना में प्रकाशित हुई थी । बाद में जब माली हालात कुछ ठीक हुए तो लेखन में तेजी आई। लोग बताते है कि 1907 में इनकी पाँच कहानियों का संग्रह सोजे वतन काफी मशहूर हुआ था और यही से एक लेखक के तौर पर मशहूर होना शुरू हुए ।
 
सामाजिक रचनाओं के साथ साथ इन्होने समकालीन विषयों पर भी अपनी कलम चलाई और अंग्रेज शासकों को इनके लेखन में बगावत की झलक मालूम हुई और एक बार पकडे भी गए. इनके सामने ही आपकी रचनाओं को जला दिया गया और बिना आज्ञा न लिखने का बंधन लगा दिया गया। इस बंधन से बचने के लिए इन्होने प्रेमचन्द के नाम से लिखना शुरू किया ।

इनकी लिखी लगभग 300 रचनाओं में से गोदान , सद्गति , पूस की रात जैसे उपन्यास और दो बैलो का जोड़ा , ईदगाह , गबन , बड़े भाईसाहब , शतरंज के खिलाडी , कर्मभूमि जैसी कहानिया तो सभी जानते है पर सामन्ती और पूँजीवादी प्रवृत्ति की निन्दा करते हुए लिखी “महाजनी सभ्यता” “नमक” नामक लेख उस समय के सामंती पूंजीवादी समाज का सटीक विश्लेषण है । कई मशहूर निर्देशक इनकी कहानियों पर कई फिल्मे भी बना चुके हैं .

प्रेमचंद के वो लेखक थे जिन्होंने कहानी के मूल को परियों की कहानियों से निकालकर यथार्थ की जमीन पर ला खड़ा किया और वह सही मायने में हिंदी आधुनिक साहित्य के जन्मदाता थे.

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