‘आईटी मंत्रालय का यह दावा कि डीपीडीपी एक्ट से आरटीआई कानून कमजोर नहीं होगा, भ्रामक है’

Written by sabrang india | Published on: September 13, 2025
अटॉर्नी जनरल ने आईटी मंत्रालय की इस व्याख्या का समर्थन किया है कि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (डीपीडीपी एक्ट) सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून को कमजोर नहीं करता। हालांकि, पत्रकार संगठनों और विपक्षी दलों ने इस संशोधन पर आपत्ति जताई है।


साभार : लाइव लॉ

अटॉर्नी जनरल ने आईटी मंत्रालय की इस व्याख्या का समर्थन किया है कि भारत का डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (डीपीडीपी एक्ट) सूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर नहीं करता है।

लेकिन आरटीआई कार्यकर्ता और नेशनल कैंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इन्फॉर्मेशन की सह-संयोजक अंजलि भारद्वाज ने अटॉर्नी जनरल के इस समर्थन पर चिंता जताई है। उन्होंने आईटी मंत्रालय के दावे को 'स्पष्ट रूप से भ्रामक' करार दिया है।

आईटी मंत्रालय को अटॉर्नी जनरल का यह समर्थन ऐसे समय में मिला है जब सरकार पर नए निजता कानून को लेकर यह आरोप लग रहे हैं कि वह पारदर्शिता से जुड़े नियमों को कमजोर करता है। आईटी मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, पत्रकार संगठनों और विपक्षी नेताओं की आलोचना के बाद अटॉर्नी जनरल से इस पर राय ली गई थी।

यह समर्थन डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) एक्ट की धारा 44(3) से संबंधित है, जिसे 11 अगस्त 2023 को अधिसूचित किया गया था। इस प्रावधान ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून की धारा 8(1)(j) में मौजूद उस महत्वपूर्ण प्रावधान को हटा दिया, जिसके तहत जनहित में होने पर सूचना अधिकारी व्यक्तिगत जानकारी भी साझा कर सकते थे।

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, आईटी मंत्रालय ने यह तर्क दिया है कि उक्त प्रावधान अनावश्यक था क्योंकि आरटीआई एक्ट की धारा 8(2) पहले से ही अधिकारियों को यह शक्ति देती है कि वे ऐसी कोई भी सूचना- चाहे वह अपवाद के दायरे में ही क्यों न आती हो - साझा कर सकते हैं, यदि जनहित उस सूचना के खुलासे से होने वाले संभावित नुकसान से अधिक हो।

मंत्रालय ने इस विवादित बिंदु पर अटॉर्नी जनरल की राय मांगी थी और उनका समर्थन मंत्रालय की व्याख्या की पुष्टि करता है।

अटॉर्नी जनरल के समर्थन के बाद मंत्रालय को उम्मीद है कि अब डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) एक्ट में किसी तरह का संशोधन नहीं किया जाएगा। आईटी सचिव एस. कृष्णन ने पिछले महीने हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में कहा था, "इससे आरटीआई एक्ट कमजोर नहीं हुआ है, बल्कि एक तरह से उसमें मजबूती आई है।"

जुलाई में कई पत्रकार संगठनों ने आईटी मंत्रालय की इस व्याख्या से असहमति जताई थी और सरकार से मांग की थी कि आरटीआई की मूल धारा को फिर से बहाल किया जाए। इन संगठनों का कहना था कि यह बदलाव पत्रकारों से एक अहम साधन छीन लेता है, जिसकी मदद से वे जनहित से जुड़े मामलों - जैसे कि भ्रष्टाचार, घोटाले, और नागरिकों के जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दे - सामने लाते हैं।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी इस संशोधन को लेकर गहरी चिंता जताई और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखा कि यह बदलाव आरटीआई एक्ट पर ‘बहुत बुरा असर’ डाल सकता है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि इस फैसले को “रोकें, उसकी समीक्षा करें और वापस लें।”

ट्रांसपेरेंसी एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज का मानना है कि डीपीडीपी एक्ट के जरिए आरटीआई कानून में किया गया संशोधन सूचना प्राप्त करने को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा और जवाबदेही सुनिश्चित करने की लड़ाई को और कठिन बना देगा।

आईटी मंत्रालय के दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए वे कहती हैं, "आईटी मंत्रालय का यह दावा कि डीपीडीपी एक्ट लोगों के सूचना पाने के अधिकार को कमजोर नहीं करता, पूरी तरह से भ्रामक है। डीपीडीपी एक्ट की धारा 44(3) ने आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(j) में स्पष्ट रूप से संशोधन कर दिया है और सभी व्यक्तिगत सूचनाओं को खुलासे से छूट दे दी है। यह सूचना तक पहुंच की मौजूदा व्यवस्था पर एक बड़ा हमला है।" वे आगे चेतावनी देती हैं कि इस संशोधन के कारण अब आम लोग संभवतः लोन डिफॉल्टर्स के नाम, भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों में शामिल ठेकेदारों व अधिकारियों के नाम और सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से जुड़ी जानकारी प्राप्त नहीं कर पाएंगे - जबकि ये सूचनाएं भ्रष्टाचार व मानवाधिकार उल्लंघनों को उजागर करने और रोकने के लिए बेहद आवश्यक हैं।

एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता, अमृता जोहरी ने कहा है, “यह सच में चौंकाने वाला है। अगर मंत्रालय और अटॉर्नी जनरल की राय में आरटीआई एक्ट के तहत सूचना पाने के अधिकार में कोई बदलाव नहीं हुआ है, तो फिर इस एक्ट में संशोधन क्यों किया गया? आरटीआई एक्ट पर कई अहम फैसले हो चुके हैं, जिनमें संविधान पीठ के फैसले भी शामिल हैं, जिन्होंने धारा 8(1)(j) की व्याख्या की है। इनमें से किसी भी फैसले में यह नहीं कहा गया था कि आरटीआई एक्ट में संशोधन की जरूरत है। आरटीआई एक्ट भ्रष्टाचार को उजागर करने में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया है, और यह तभी संभव होता है जब आप उन ठेकेदारों और अधिकारियों के नाम प्राप्त कर सकें जिन्होंने नियमों का उल्लंघन किया या फर्जी बिलों के आधार पर भुगतान पास किया। यह संशोधन भ्रष्ट लोगों को निजता के आड़ में छिपने की रक्षा देगा।”

लोकसभा के मानसून सत्र में मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस संशोधन का बचाव करते हुए कहा था कि यह निजता के अधिकार और सूचना के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करता है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस के.एस. पुट्टास्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में निजता को मौलिक अधिकार माना था। अश्विनी वैष्णव ने कहा कि यह बदलाव दोनों कानूनों के बीच होने वाले टकराव को रोकने के लिए है और यह न्यायिक सोच के अनुरूप है।

पिछले महीने मीडिया संगठनों के साथ हुई बैठक में आईटी मंत्रालय ने बताया था कि वह डीपीडीपी एक्ट से जुड़ी चिंताओं, जिनमें आरटीआई एक्ट में किए गए संशोधन भी शामिल हैं, पर ‘अक्सर पूछे जाने वाले सवाल’ (एफएक्यू) प्रकाशित करेगा। मीडिया संगठनों ने मंत्रालय को कुल 35 प्रश्न सौंपे, जिनमें से एक प्रमुख सवाल था, “अगर मंत्रालय का मानना है कि आरटीआई की पहुंच डीपीडीपी एक्ट में बदलाव के बावजूद बनी हुई है क्योंकि धारा 8(2) मौजूद है, तो फिर आरटीआई एक्ट में संशोधन क्यों किया गया?”

डीपीडीपी एक्ट संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है और राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है। सरकार अब इसकी अंतिम नियमावली अधिसूचित करने की तैयारी में है। ये नियम कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने और उसका प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिए जरूरी होते हैं, लेकिन अब तक इन्हें जारी नहीं किया गया है। 

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