गुजरात: कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसरों के कम वेतन पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सरकार को दिया निर्देश

Written by sabrang india | Published on: August 26, 2025
अदालत ने कहा कि शिक्षकों को सम्मानजनक वेतन न देना न केवल शिक्षा और ज्ञान के महत्व को कमतर आंकना है, बल्कि यह उन व्यक्तियों का अपमान भी है जो देश की बौद्धिक पूंजी के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं।



गुजरात के कुछ कॉलेजों में कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसरों को बेहद कम वेतन दिए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई है। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह इन शिक्षकों के वेतनमान में सुधार करे।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ समारोहों में ‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः’ का पाठ करना ही काफी नहीं है, बल्कि इस भावना को शिक्षकों के साथ व्यवहार में भी दिखना चाहिए।

गुजरात के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसरों के वेतन से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणियां कीं। इस मामले की सुनवाई जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने की।

पीठ ने कहा, ‘यह बेहद चिंताजनक है कि असिस्टेंट प्रोफेसरों को मात्र 30,000 रुपये मासिक वेतन दिया जा रहा है। अब समय आ गया है कि राज्य सरकार इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान ले और शिक्षकों को उनके कार्य के अनुरूप उचित वेतनमान दे।’

अदालत ने 'समान कार्य के लिए समान वेतन' के सिद्धांत को दोहराते हुए उच्च न्यायालय के उस आदेश की पुष्टि की, जिसमें अनुबंध पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसरों को कम से कम नियमित वेतनमान दिए जाने का निर्देश दिया गया था।

गौरतलब है कि अनुबंध पर कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसरों का मासिक वेतन 2012 से अब तक केवल 30,000 रुपये ही बना हुआ है। इसके विपरीत, एड-हॉक पदों पर कार्यरत प्रोफेसरों का वेतन 2012 में 34,000 रुपये था, जो 2025 में बढ़कर 1,16,000 रुपये हो गया है। वहीं, नियमित नियुक्त प्रोफेसरों को 2012 में 40,412 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता था, जो 2025 में बढ़कर 1,36,952 रुपये हो चुका है।

अपने निर्णय में अदालत ने टिप्पणी की कि शिक्षाविद, व्याख्याता और प्रोफेसर किसी भी राष्ट्र की बौद्धिक रीढ़ होते हैं, क्योंकि वही अगली पीढ़ी की सोच को आकार देने का काम करते हैं।

कोर्ट ने कहा कि शिक्षकों का कार्य केवल पढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि छात्रों में आलोचनात्मक सोच विकसित करना और सामाजिक मूल्यों की स्थापना करना भी उनकी जिम्मेदारी है। अदालत ने यह भी कहा कि समाज में उनके योगदान का महत्व बेहद बड़ा है, फिर भी उन्हें उचित सम्मान और मान्यता अक्सर नहीं मिलती।

ईटीवी भारत की रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने कहा कि अपीलों को आंशिक रूप से मंजूर करते हुए, हम निर्देश देते हैं कि अनुबंध पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसरों को असिस्टेंट प्रोफेसरों के न्यूनतम वेतनमान का अधिकार होगा। अदालत ने कहा, "जिस तारीख को रिट याचिका दाखिल की गई थी, उसके तीन वर्ष पूर्व से 8% की दर से देय बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा। इन निर्देशों के साथ, अपीलें मंजूर की जाती हैं।"

बेंच ने जिक्र किया कि अपीलकर्ता वेतन समानता और नियमितीकरण की मांग कर रहे थे, हालांकि पहले के मुकदमों में यह मांग स्वीकार नहीं की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "वर्तमान मामले के तथ्य बेहद गंभीर हैं। 2011 से 2025 तक अनुबंध पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर पिछले दो दशकों से बेहद कम मासिक वेतन पर काम कर रहे हैं। जबकि उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों में उनके नियमित या एड-हॉक सहकर्मियों से कोई भेद नहीं है, फिर भी वे केवल 30,000 रुपये मासिक वेतन प्राप्त कर रहे हैं।"

ज्ञात हो कि इसी साल जनवरी महीने में तेलंगाना के सभी विश्वविद्यालयों में अनुबंध पर कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर पद के अकादमिक कर्मचारी वेतन वृद्धि की मांग को लेकर काले बैज पहनकर प्रदर्शन किए। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार सभी विश्वविद्यालयों के अनुबंध असिस्टेंट प्रोफेसरों के समन्वय समिति की मांग में मूल वेतन, महंगाई भत्ता और आवास भत्ता शामिल था। ये शिक्षक कई वर्षों से शिक्षण, शोध और प्रशासन के क्षेत्रों में कार्यरत हैं, लेकिन पूर्ण वेतन पाने के योग्य नहीं थे।

उन्होंने सरकार से कहा था कि पहले उनके मौजूदा मुद्दों का समाधान किया जाए, उसके बाद नई भर्तियां की जाएं या प्रोफेसरों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाई जाए। समिति के सदस्यों सादू राजेश और ई. उपेन्द्र ने मुख्यमंत्री ए. रेवंथ रेड्डी के नए भर्तियों और विश्वविद्यालय प्रोफेसरों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने की संभावना पर दिए गए बयान का जिक्र किया। “कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में और रेवंथ रेड्डी ने पीसीसी अध्यक्ष के रूप में हमारे मुद्दे सुलझाने का आश्वासन दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री ने कोई चिंता व्यक्त नहीं की, उन्होंने अनुबंध असिस्टेंट प्रोफेसरों के बारे में कुछ नहीं कहा।”

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