मद्रास हाईकोर्ट ने जातिगत भेदभाव के प्रति सख्त रुख अपनाते हुए टेंकासी प्रशासन को पानी के समान वितरण सुनिश्चित करने और दलितों के साथ हो रहे अन्याय को रोकने के निर्देश दिए।

फोटो साभार : नेशनल हेराल्ड
सार्वजनिक जल स्रोतों से पानी लेने में अनुसूचित जाति समुदाय के साथ हो रहे भेदभाव को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने सख्त नारागी जाहिर करते हुए कहा है कि यह "वैज्ञानिक युग में भी हैरान करने वाला और दुखद है" कि कुछ समुदायों को अब भी अपने हक के पानी के लिए इंतजार करना पड़ता है।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति आर. एन. मंजुला ने कहा कि यह बेहद दुःखद है कि आज भी कुछ समुदायों को सार्वजनिक संसाधनों तक पहुंच दूसरों के बाद ही मिलती है, जबकि संविधान और कानून सभी नागरिकों को बराबर के अधिकार प्रदान करते हैं।
अदालत ने कहा, “पानी जैसी प्राकृतिक संपत्ति सभी लोगों के लिए है। यह बेहद हैरान करने वाली बात है कि आज के वैज्ञानिक और आधुनिक युग में भी कुछ समुदायों को केवल अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। क्या हम सभी एक ही मानव समाज का हिस्सा नहीं हैं?”
‘प्रशासन मूकदर्शक नहीं रह सकता’
हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि हालांकि जाति और वर्ग आधारित मानसिकता को पूरी तरह खत्म करना आसान नहीं है, लेकिन जो लोग सत्ता और प्रशासनिक दायित्वों में हैं, वे केवल मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकते।
कोर्ट ने कहा, “अगर प्रशासनिक पदों पर बैठे लोग ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साधे रहते हैं, तो उन्हें भी इस संकीर्ण मानसिकता का सहभागी माना जाएगा। हमें केवल दिखावे की नहीं, बल्कि ठोस, व्यावहारिक और शांतिपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है।”
अदालत ने पानी को 'जीवन का अमृत' बताते हुए कहा कि किसी भी नागरिक को, खासकर वृद्ध महिलाओं को, पीने के पानी के लिए पूरे जीवन संघर्ष नहीं करना चाहिए।
मामला क्या है?
ये टिप्पणियां उस समय की गईं जब न्यायालय थिरुमलाईसामी नाम के व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने टेंकासी की जिला सत्र न्यायालय द्वारा दी गई सजा को स्थगित करने और जमानत देने की मांग की थी।
थिरुमलाईसामी को अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(r) के तहत दोषी ठहराया गया था। आरोप था कि 3 दिसंबर 2016 को उसने खेत में काम कर रहे दो व्यक्तियों को जातिसूचक अपशब्द कहे और उन्हें जान से मारने की धमकी दी। इसके चलते उसे एक वर्ष के कठोर कारावास और 1,000 रूपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।
याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि कथित घटना किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं हुई थी, इसलिए अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराएं उस पर लागू नहीं होतीं। वहीं, शिकायतकर्ता जो कि 65 वर्षीया महिला हैं, ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यदि थिरुमलाईसामी को जमानत दी गई, तो उसे पानी भरने जैसी बुनियादी जरूरतों में भी असुविधा और भय का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि उसे उसके घर के पास से होकर गुजरना पड़ता है।
थिरुमलाईसामी ने न्यायालय को आश्वस्त किया कि वह शिकायतकर्ता के सामने नहीं आएगा और न ही उसे किसी प्रकार की धमकी देगा या कोई आपत्तिजनक इशारा करेगा।
कोर्ट ने यह देखते हुए कि अपील की सुनवाई शीघ्र संभव नहीं है और याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को कोई खतरा न पहुंचाने का वचन दिया है, उसे जमानत देते हुए उसकी सजा को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया। साथ ही, न्यायालय ने यह निर्देश भी दिया कि याचिकाकर्ता प्रत्येक माह नियमित रूप से अदालत में पेश हो।
भेदभाव समाप्त करने को लेकर कोर्ट का निर्देश
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी संकेत किया कि 65 वर्षीय शिकायतकर्ता को पीने का पानी लेने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इस संदर्भ में न्यायालय ने टेंकासी के जिला कलेक्टर को निर्देश दिया कि गांव में जल वितरण व्यवस्था में किसी भी प्रकार का जातीय भेदभाव न हो।
कोर्ट ने अधिकारियों को दिए आदेश में कहा कि सभी गलियों में पर्याप्त जल कनेक्शन और जल आपूर्ति सुनिश्चित की जाए, जल वितरण में किसी भी समुदाय को प्राथमिकता न दी जाए, कोई भी व्यक्ति या समूह अत्यधिक मात्रा में पानी न ले जिससे दूसरों को कठिनाई हो।
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि जल जैसी सार्वजनिक संपदा पर सभी नागरिकों का समान अधिकार होता है, और इस अधिकार की रक्षा करना प्रशासन की जिम्मेदारी है।
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फोटो साभार : नेशनल हेराल्ड
सार्वजनिक जल स्रोतों से पानी लेने में अनुसूचित जाति समुदाय के साथ हो रहे भेदभाव को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने सख्त नारागी जाहिर करते हुए कहा है कि यह "वैज्ञानिक युग में भी हैरान करने वाला और दुखद है" कि कुछ समुदायों को अब भी अपने हक के पानी के लिए इंतजार करना पड़ता है।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति आर. एन. मंजुला ने कहा कि यह बेहद दुःखद है कि आज भी कुछ समुदायों को सार्वजनिक संसाधनों तक पहुंच दूसरों के बाद ही मिलती है, जबकि संविधान और कानून सभी नागरिकों को बराबर के अधिकार प्रदान करते हैं।
अदालत ने कहा, “पानी जैसी प्राकृतिक संपत्ति सभी लोगों के लिए है। यह बेहद हैरान करने वाली बात है कि आज के वैज्ञानिक और आधुनिक युग में भी कुछ समुदायों को केवल अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। क्या हम सभी एक ही मानव समाज का हिस्सा नहीं हैं?”
‘प्रशासन मूकदर्शक नहीं रह सकता’
हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि हालांकि जाति और वर्ग आधारित मानसिकता को पूरी तरह खत्म करना आसान नहीं है, लेकिन जो लोग सत्ता और प्रशासनिक दायित्वों में हैं, वे केवल मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकते।
कोर्ट ने कहा, “अगर प्रशासनिक पदों पर बैठे लोग ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साधे रहते हैं, तो उन्हें भी इस संकीर्ण मानसिकता का सहभागी माना जाएगा। हमें केवल दिखावे की नहीं, बल्कि ठोस, व्यावहारिक और शांतिपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है।”
अदालत ने पानी को 'जीवन का अमृत' बताते हुए कहा कि किसी भी नागरिक को, खासकर वृद्ध महिलाओं को, पीने के पानी के लिए पूरे जीवन संघर्ष नहीं करना चाहिए।
मामला क्या है?
ये टिप्पणियां उस समय की गईं जब न्यायालय थिरुमलाईसामी नाम के व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने टेंकासी की जिला सत्र न्यायालय द्वारा दी गई सजा को स्थगित करने और जमानत देने की मांग की थी।
थिरुमलाईसामी को अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(r) के तहत दोषी ठहराया गया था। आरोप था कि 3 दिसंबर 2016 को उसने खेत में काम कर रहे दो व्यक्तियों को जातिसूचक अपशब्द कहे और उन्हें जान से मारने की धमकी दी। इसके चलते उसे एक वर्ष के कठोर कारावास और 1,000 रूपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।
याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि कथित घटना किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं हुई थी, इसलिए अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराएं उस पर लागू नहीं होतीं। वहीं, शिकायतकर्ता जो कि 65 वर्षीया महिला हैं, ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यदि थिरुमलाईसामी को जमानत दी गई, तो उसे पानी भरने जैसी बुनियादी जरूरतों में भी असुविधा और भय का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि उसे उसके घर के पास से होकर गुजरना पड़ता है।
थिरुमलाईसामी ने न्यायालय को आश्वस्त किया कि वह शिकायतकर्ता के सामने नहीं आएगा और न ही उसे किसी प्रकार की धमकी देगा या कोई आपत्तिजनक इशारा करेगा।
कोर्ट ने यह देखते हुए कि अपील की सुनवाई शीघ्र संभव नहीं है और याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को कोई खतरा न पहुंचाने का वचन दिया है, उसे जमानत देते हुए उसकी सजा को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया। साथ ही, न्यायालय ने यह निर्देश भी दिया कि याचिकाकर्ता प्रत्येक माह नियमित रूप से अदालत में पेश हो।
भेदभाव समाप्त करने को लेकर कोर्ट का निर्देश
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी संकेत किया कि 65 वर्षीय शिकायतकर्ता को पीने का पानी लेने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इस संदर्भ में न्यायालय ने टेंकासी के जिला कलेक्टर को निर्देश दिया कि गांव में जल वितरण व्यवस्था में किसी भी प्रकार का जातीय भेदभाव न हो।
कोर्ट ने अधिकारियों को दिए आदेश में कहा कि सभी गलियों में पर्याप्त जल कनेक्शन और जल आपूर्ति सुनिश्चित की जाए, जल वितरण में किसी भी समुदाय को प्राथमिकता न दी जाए, कोई भी व्यक्ति या समूह अत्यधिक मात्रा में पानी न ले जिससे दूसरों को कठिनाई हो।
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