जाति और समुदाय इंसानों की बनाई हुई चीजें हैं, भगवान हमेशा निष्पक्ष होते हैं: मद्रास हाईकोर्ट

Written by sabrang india | Published on: August 18, 2025
मद्रास हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अगर किसी मंदिर को आम जनता के लिए खोल दिया गया है, तो वह एक सार्वजनिक मंदिर बन जाता है। भक्तों की जाति या समुदाय चाहे जो भी हो, उन्हें भगवान के सामने अपनी प्रार्थना करने की अनुमति मिलनी चाहिए। हर हिंदू, चाहे वह किसी भी जाति या संप्रदाय से हो, किसी भी हिंदू मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने का हकदार होता है।



एक ऐतिहासिक आदेश में, 17 जुलाई को मद्रास हाईकोर्ट ने यह फिर स्पष्ट किया कि सभी हिंदुओं, जिनमें अनुसूचित जातियों के सदस्य भी शामिल हैं, को सार्वजनिक मंदिरों में प्रवेश करने और पूजा करने का संवैधानिक व आध्यात्मिक अधिकार है। अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता, जो अनुसूचित जाति समुदाय से हैं, को अरुलमिगु पुथुकुडी अय्यनार मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाए ताकि वे 16 जून से 31 जुलाई 2025 तक आयोजित 'टेम्पल केयर फेस्टिवल' में भाग ले सकें।

इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने की। यह सुनवाई वेंकटेशन द्वारा दायर एक रिट याचिका पर हुई थी, जिसमें उन्होंने स्वयं और अपने समुदाय के अन्य सदस्यों को मंदिर उत्सव के दौरान पूजा करने और अनुष्ठान संपन्न करने की अनुमति मांगी थी। इस उत्सव में परंपरागत रूप से स्थानीय लोगों की भागीदारी रहती है।

कुछ लोगों के विरोध और सरकारी वकील की इस दलील के बावजूद कि मंदिर सरकार के HR&CE विभाग के अधीन नहीं आता, कोर्ट ने साफ कहा कि किसी को मंदिर में जाने से रोका नहीं जा सकता। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि धार्मिक स्थलों तक पहुंच का निर्धारण किसी विभागीय नियंत्रण से नहीं, बल्कि संवैधानिक समानता और मानवीय गरिमा के सिद्धांतों से होता है।

जाति और समुदाय इंसानों की बनाई हुई चीजें; भगवान हमेशा निष्पक्ष होते हैं: हाईकोर्ट
अपने आदेश में न्यायमूर्ति वेंकटेश ने कहा कि अगर कोई मंदिर जनता के लिए खुला है, तो वह अपने आप एक सार्वजनिक मंदिर का दर्जा पा जाता है, चाहे वह HR&CE विभाग के अधीन हो या नहीं।

न्यायाधीश ने कहा, “ऐसे हालात में भक्त किसी भी जाति या समुदाय से हों, उन्हें भगवान के सामने प्रार्थना करने की अनुमति मिलनी चाहिए। जाति और समुदाय इंसानों की बनाई हुई व्यवस्था है; भगवान को हमेशा निष्पक्ष माना गया है।”

अदालत ने आगे यह भी जोर दिया कि जाति के आधार पर किसी को पूजा-स्थल में प्रवेश से रोकना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह मानवीय गरिमा का अपमान भी है। यह व्यवहार भारतीय संविधान के मूल मूल्यों और हिंदू धर्म में निहित समावेशिता की भावना के भी खिलाफ है।

अपने विचार को कानून और समाज के न्याय के आधार पर अदालत ने यह स्पष्ट रूप से कहा, “कानून के शासन वाले देश में ऐसा कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

तमिलनाडु मंदिर प्रवेश प्राधिकरण अधिनियम, 1947 की धारा 3 का हवाला देते हुए न्यायाधीश ने दोहराया: “हर हिंदू, चाहे वह किसी भी जाति या संप्रदाय से क्यों न हो, किसी भी हिंदू मंदिर में प्रवेश करने और वहां पूजा करने का हकदार है, भले ही कोई कानून, परंपरा या प्रचलन इसके विपरीत क्यों न हो।”

सभी जातियों के हिंदुओं को मंदिर में प्रवेश करने और त्योहार में भाग लेने की अनुमति है: हाईकोर्ट
अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी को जाति के आधार पर मंदिर में प्रवेश से रोका जाए, तो यह एक कानूनी उल्लंघन माना जाएगा, जिसके लिए नागरिक और आपराधिक दोनों तरह की कार्रवाई हो सकती है। न्यायमूर्ति वेंकटेश ने याद दिलाया कि “यह कानून राज्य सरकार की एक नीति के तहत लागू किया गया था ताकि कुछ वर्गों के हिंदुओं पर मंदिर में प्रवेश को लेकर लगी पाबंदियां हटाई जा सकें।”

हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि सभी हिंदुओं को, चाहे वे किसी भी जाति या समुदाय से हों, मंदिर और त्योहार के दौरान पूजा-अर्चना में पूरी अनुमति दी जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी प्रकार की रोक-टोक या भेदभाव को तुरंत कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।

साथ ही, कोर्ट ने स्थानीय प्रशासन को भी आदेश दिया है कि वे कानून-व्यवस्था बनाए रखें और किसी भी धार्मिक रीति-रिवाज या परंपरा के नाम पर उत्पात या परेशानी न होने दें।

यह फैसला सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं है, बल्कि उस सिद्धांत की पुनः पुष्टि है कि आस्था जाति से ऊपर है। ऐसे समय में जब भेदभाव अभी भी छुपे तौर-तरीकों से मौजूद है, अदालत का यह रुख भारत के संवैधानिक वादे की याद दिलाता है कि समानता और गरिमा कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि सभी का अधिकार हैं।

मद्रास हाईकोर्ट का 17.07.2025 का आदेश यहां पढ़ा जा सकता है:

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