महाराष्ट्र: कार्यक्रम में फैज के गीत ‘हम देखेंगे’ गाए जाने पर ‘देशद्रोह’ का मुकदमा

Written by sabrang india | Published on: May 20, 2025
प्रतिरोध की आवाज के रूप में मशहूर फैज अहमद फैज के गीत 'हम देखेंगे' गाने पर अब राजद्रोह का मुकदमा किया गया है।



प्रतिरोध की आवाज के रूप में मशहूर फैज अहमद फैज की क्रांतिकारी गीत ‘हम देखेंगे‘ पर अब राजद्रोह का मुकदमा चलाया जा रहा है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले हफ्ते अभिनेता और कार्यकर्ता वीरा साथीदार की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में युवा सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के एक समूह ने फैज़ के मशहूर गीत ‘हम देखेंगे’ का कुछ हिस्सा गया था। नागपुर पुलिस ने अब आयोजकों और कार्यक्रम के वक्ता पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 के तहत मामला दर्ज किया है, जो राजद्रोह से संबंधित है, साथ ही बीएनएस की अन्य धाराओं के तहत भी मामला दर्ज किया है, जिसमें धारा 196 (समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और धारा 353 (सार्वजनिक उपद्रव के लिए अनुकूल बयान) शामिल हैं।

साथीदार एक सफल अभिनेता, लेखक, पत्रकार और राजनीतिक विचारक थे। उनका 13 अप्रैल, 2021 को कोविड-19 से निधन हो गया था। उनके निधन के बाद से उनकी पत्नी पुष्पा वार्षिक मेमोरियल का आयोजन करती हैं जिसमें इस साल सामाजिक कार्यकर्ता उत्तम जागीरदार को बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। हालांकि एफआईआर में साफ तौर पर लोगों का नाम नहीं है, लेकिन इसमें कार्यक्रम के आयोजक और वक्ता का उल्लेख जरूर है।

13 मई को विदर्भ साहित्य संघ में आयोजित कार्यक्रम में करीब डेढ़ सौ से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। इसमें जागीरदार ने विवादास्पद महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, 2024 के बारे में चर्चा की थी। भाजपा नीत राज्य सरकार इस विधेयक को कानून बनाने और इसे लागू करने के लिए पुरजोर तरीके से कोशिश कर रही है।

हालांकि, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों का मानना है कि अगर यह विधेयक लागू हो जाता है, तो इससे मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन होगा और असहमति जताने वालों को ‘अर्बन नक्सली’ करार दिया जाएगा।

नागपुर के रहने वाले दत्तात्रेय शिर्के द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में मराठी चैनल एबीपी माझा पर प्रसारित एक न्यूज रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। शिर्के ने अपनी शिकायत में दावा किया कि, ‘ऐसे समय में जब देश ने पाकिस्तानी सेना के साथ बहादुरी से लड़ाई लड़ी, नागपुर में कट्टरपंथी वामपंथी पाकिस्तानी कवि फैज़ अहमद फैज़ की कविता गाने में व्यस्त थे।’

शिर्के ने अपने दावे में कहा कि ‘तख्त हिलाने’ वाली पंक्ति सरकार के लिए सीधी धमकी है। हालांकि, एफआईआर में उपरोक्त पंक्ति का हवाला दिया गया है, लेकिन रचना की वास्तविक पंक्ति है ‘सब तख्त गिराए जाएंगे’। इस कविता का प्रदर्शन समता कला मंच के मुंबई स्थित युवा सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजद्रोह पर जारी रोक के बावजूद नागपुर पुलिस ने आयोजकों व वक्ताओं पर इस धारा के तहत मामला दर्ज किया है।

ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को जारी अपने ऐतिहासिक आदेश में इस विवादास्पद कानून पर उस वक्त तक के लिए रोक लगा दी थी जब तक कि केंद्र औपनिवेशिक काल के इस कानून की समीक्षा करने के अपने वादे को पूरा नहीं करता है।

शीर्ष अदालत की एक विशेष पीठ ने कहा था कि हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी एफआईआर को दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत जबरदस्ती कदम उठाने से तब तक परहेज़ करेंगी, जब तक इस पर पुनर्विचार किया जा रहा है। यह उचित होगा कि इसकी समीक्षा होने तक कानून के इस प्रावधान का इस्तेमाल न किया जाए।

भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने आईपीसी को बीएनएस से बदल दिया है। हालांकि, नया कानून राजद्रोह के प्रावधान को खत्म नहीं करता है। इसके बजाय बीएनएस धारा 152 का प्रावधान देता है, जो राजद्रोह कानून से काफी मिलता-जुलता है, लेकिन इसमें ‘राजद्रोह’ शब्द का स्पष्ट रूप से इस्तेमाल नहीं किया गया है।

इस महीने यह दूसरा मामला है जब नागपुर पुलिस ने किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को निशाना बनाया है। इस महीने की शुरुआत में, केरल से नागपुर आए 26 वर्षीय पत्रकार रेजाज एम. शीबा सिद्दीक को दो नकली बंदूकों के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट करने और भारतीय सेना का विरोध करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

नागपुर शहर पुलिस द्वारा शुरू में जांच की गई और अब एटीएस द्वारा जांच किए जा रहे मामले में रेजाज पर ऑपरेशन सिंदूर का विरोध करने का आरोप है।

एजेंसी ने यह भी आरोप लगाया है कि रेजाज के प्रतिबंधित संगठनों से संबंध हैं, जिनमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन शामिल हैं। इन प्रतिबंधित संगठनों की विचारधाराएं बिल्कुल अलग हैं और पुलिस ने रेजाज पर इन प्रतिबंधित समूहों में से प्रत्येक समूह की विचारधाराओं का समर्थन करने का आरोप लगाया है।

साथीदार को अपने जीवनकाल में अपनी राजनीतिक सक्रियता के चलते पुलिस से लगातार उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जिसके कारण वे पुलिस के निशाने पर रहे। अपनी मृत्यु से कुछ महीने पहले द वायर के साथ एक लंबे साक्षात्कार में साथीदार ने सरकार द्वारा नागरिकों को नियंत्रित करने के लिए नए-नए तरीके अपनाने की रणनीति पर चिंता जताई थी। साल 2013 में कोर्ट फिल्म की शूटिंग के दौरान गोंदिया पुलिस मुंबई के सेट पर पहुंच गई और ‘नागपुर के नक्सली’ की तलाश करने लगी। उनके मृत्यु से एक साल पहले नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) मुख्यालय के खिलाफ मुद्दे उठाने के बाद स्थानीय पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा था। छापे के दौरान एक तलवार बरामद हुई थी, लेकिन स्थानीय युवकों ने पुलिस को भगा दिया।

एल्गार परिषद मामले में अक्टूबर 2020 में जब एनआईए ने पूरक आरोपपत्र दाखिल किया, तो साथीदार का नाम तथाकथित ‘अर्बन नक्सलियों’ में शामिल हो गया। यह एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल देवेंद्र फडणवीस सरकार ने असहमति व्यक्त करने वालों को निशाना बनाने के लिए किया है। अब, महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक के साथ राज्य सरकार कानूनी ढांचे के भीतर ‘अर्बन नक्सल’ शब्द को औपचारिक रूप देना चाहती है।

साथीदार को उनकी जिंदगी में अपराधी बनाने के सरकार ने कई प्रयास किए और उनकी मृत्यु के बाद भी ये प्रयास जारी रहे।

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