मालशिरस निर्वाचन क्षेत्र से विजयी उम्मीदवार एनसीपी (एसपी) के मौजूदा विधायक उत्तम राव जानकर ने ईसीआई से अपने निर्वाचन क्षेत्र से केवल पेपर बैलेट के जरिए ही नए सिरे से उपचुनाव कराने की मांग की है। मालशिरस निर्वाचन क्षेत्र में आने वाले मरकडवाडी गांव ने नवंबर 2024 में इतिहास रच दिया था। विधायक ने ईवीएम (उन्हें कम वोट मिले) में हेराफेरी के सबूत के तौर पर मतदाताओं के 1,76,000 शपथ पत्र पेश किए। जानकर ने यह भी कहा कि अगर चुनाव आयोग इसके लिए राजी हो जाए तो वह इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं।
भारत में चुनावों कराने में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) की प्रमाणिकता और सत्यनिष्ठा को चुनौती देने के लिए एक साहसिक कदम उठाते हुए, महाराष्ट्र में 254-मालशिरस विधानसभा क्षेत्र से मौजूदा विधायक एनसीपी (एसपी) के उत्तमराव जानकर ने भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को अपने निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा कानूनी रूप से दिए गए शपथपत्रों के साक्ष्य पेश करते हुए बैलेट पेपर से नए सिरे से उपचुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को कहा है।
जानकर ने यह भी कहा है कि अगर चुनाव आयोग नए सिरे से उपचुनाव कराने के लिए राजी हो जाता है तो वह इस्तीफा दे देंगे। ऐसा न होने पर, विधायक अगले 15 दिनों के भीतर आंदोलन करने का फैसला करेंगे। जनकर के निर्वाचन क्षेत्र में मरकडवाड़ी गांव शामिल है, जिसने 23 नवंबर, 2024 को महाराष्ट्र में परिणामों की घोषणा के बाद इतिहास रच दिया था। मतदाताओं ने मतपत्रों के साथ मॉक-पोल करने का प्रयास किया था, क्योंकि उस गांव से केवल 300 वोट रिकॉर्ड किए गए थे जहां जानकर के समर्थकों ने 2,000 वोट होने का दावा किया था। स्थानीय अधिकारियों और पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। 24 जनवरी, 2025 को नई दिल्ली स्थित दोपहर 3 बजे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में अगले निर्णय की घोषणा करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जाएगी। इस मूवमेंट की ओर से बोलते हुए पूर्व न्यायमूर्ति कोलसे पाटिल ने कहा, "हम राष्ट्र के लिए लड़ रहे हैं और ईवीएम में हेरफेर के खिलाफ ईसीआई के सामने सबूत पेश करना चाहते हैं।" सीईसी से मिलने का समय मांगा है।
जानकर ने यह साफ कर दिया है कि अगर चुनाव आयोग मतपत्रों के जरिए फिर से चुनाव कराने की उनकी मांग पर सहमत होता है तो वह इस्तीफा देने को तैयार हैं। उनका दावा है कि उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों द्वारा डाले गए हर गांव से कम वोट मिले हैं। यदि चुनाव आयोग वैधानिक रूप से निर्धारित विधि यानी बैलेट पेपर से पुनः चुनाव कराता है तो वे पद छोड़ने को तैयार हैं। साक्ष्य के रूप में, उन्होंने उन लोगों से लगभग 1,76,000 नोटरीकृत हलफनामे इकट्ठा किए हैं, जिन्होंने उनके लिए मतदान करने का दावा किया है, जिससे उनका मामला और मजबूत हुआ है। उन्होंने इनमें से 1,300 हलफनामों का एक वॉल्यूम चुनाव आयोग को सौंपा।
यह कदम ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों के गलत इस्तेमाल के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई का हिस्सा है। जानकर के अनुसार, यह चुनाव प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा से समझौता करता है। मूवमेंट की ओर से बोलते हुए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति कोलसे पाटिल ने इस बात पर जोर दिया कि वे देश के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिए लड़ रहे हैं और चुनाव आयोग के समक्ष सबूत पेश करने का उनका इरादा है।
2014 से ईवीएम में हेरफेर के सबूतों का हवाला देते हुए पाटिल ने कहा देश हित में लड़ रहे हैं
बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी.जी. कोलसे पाटिल लंबे समय से ईवीएम में कथित हेरफेर को चुनौती देने के प्रयासों में सबसे आगे रहे हैं। सबरंगइंडिया से बात करते हुए जस्टिस पाटिल ने कहा कि हम पूरी तरह से देश हित के लिए लड़ रहे हैं और 2014 से ही लड़ रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि 2014 के बाद सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम में कई तरह की हेराफेरी करके बदलाव किए जिससे पारदर्शिता नहीं रही। उन्होंने कहा कि कैसे उन्होंने 2014 से पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और जस्टिस रंजन गोगोई ने टिप्पणी की थी कि, 'ईवीएम भरोसेमंद नहीं है।' इसीलिए वीवीपीएटी की शुरुआत की गई। हालांकि वीवीपीएटी की जांच की संभावना सीमित करने और एसएलयू (ईसीआई वेबसाइट से इंटरनेट लिंकेज) के जरिए बाहरी तत्वों को शामिल करने से पूरी प्रणाली असुरक्षित हो गई है।
चुनाव आयोग के समक्ष सबूत पेश करना चाहते हैं: जस्टिस पाटिल
ईवीएम में गड़बड़ी के खिलाफ चल रही लड़ाई के बारे में बोलते हुए जस्टिस पाटिल ने चुनाव आयोग के सामने ठोस सबूत पेश करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने बताया, "अब जबकि वे (जानकर) विधायक चुन लिए गए हैं, उन्हें भी लगता है कि देश के हित के लिए ईवीएम का अस्तित्व नहीं होना चाहिए। यह मामला एक अपवाद है। जब हम हारते हैं, तो चुनाव आयोग कहता है कि हम (ईवीएम का मुद्दा तभी उठा रहे हैं, जब हम हारे हैं), इसलिए हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए! लेकिन यहां हम हारे नहीं हैं। जानकर जीत गए हैं। हम इस व्यवस्था को बदलना चाहते हैं। और हम इसके लिए सबूत पेश करना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि हम लापरवाही से बात कर रहे हैं; हम सबूत पेश कर रहे हैं। उन्होंने हर गांव के हर मतदाता से हलफनामा लिया है और हम यह सबूत चुनाव आयोग के समक्ष पेश करना चाहते हैं। जिस गांव में उन्हें 1200-1500 वोट मिलने चाहिए थे, वहां उन्हें सिर्फ 300 वोट मिले। तो उनके वोट कहां गए? जब हम मॉक पोल के जरिए यह साबित करने की कोशिश कर रहे थे, तो आपने इसे रोक दिया, इसका मतलब है कि आप कुछ छिपा रहे हैं।
जस्टिस पाटिल ने सबरंग इंडिया से कहा, “हाल ही में, एडवोकेट महमूद प्राचा ने भी हरियाणा के सभी निर्वाचन क्षेत्रों से वीडियो फुटेज मांगी थी और हाई कोर्ट ने इसे मंजूरी दे दी। उसके बाद, सरकार ने कानून बदल दिया। इसलिए, सरकार जिस हद तक छिपाने और झूठ बोलने की सारी हदें पार कर गई है, वह अविश्वसनीय है। हम इसके खिलाफ लड़ रहे हैं।”
जस्टिस पाटिल ने कहा चुनाव आयोग से मिलने की कोशिश
जस्टिस पाटिल ने चुनाव आयोग द्वारा प्रतिनिधिमंडल से मिलने से इनकार करने को लेकर भी निराशा जाहिर की। उन्होंने कहा, “हम ईसीआई से मिलने की कोशिश कर रहे हैं। हम आज सुबह आयोग गए थे, लेकिन हमें उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी गई। हम फिर जाएंगे। हम जानते हैं कि आयोग हमसे नहीं मिलेगा। अगर वे सुप्रीम कोर्ट का सम्मान नहीं करते, तो वे हमसे क्यों मिलेंगे? लेकिन हम इसे उजागर करेंगे चाहे कुछ भी हो। यह देश के हित में है; आयोग के साथ हमारी कोई व्यक्तिगत नाराजगी नहीं है।”
उल्लेखनीय है कि मौजूदा विधायक उत्तम राव जानकर और न्यायमूर्ति पाटिल 23 जनवरी की दोपहर को भी आयोग से नहीं मिल पाए थे, लेकिन वे आयोग को सूबत के तौर पर 1,300 हलफनामा सौंपने में सफल रहे। न्यायमूर्ति पाटिल ने बताया कि वे चुनाव आयोग के रिसेप्शन पर पहुंचे और आयोग को ये हलफनामे सौंपे। न्यायमूर्ति पाटिल ने कहा कि यदि अधिकारी मांग करते हैं तो वे शेष हलफनामों से भरा ट्रक भी देने के लिए तैयार हैं।
एनएसपी (एसपी) विधायक उत्तम राव जानकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की घोषणा की
एनसीपी (एसपी) विधायक उत्तम राव जानकर, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) कोलसे पाटिल और अधिवक्ता व मिशन सेव कॉन्स्टिट्यूशन के राष्ट्रीय संयोजक महमूद प्राचा ने मिशन सेव कॉन्स्टिट्यूशन के बैनर तले भारत की चुनाव प्रक्रिया में ईवीएम-वीवीपीएटी मशीनों के गलत इस्तेमाल के खिलाफ चल रही लड़ाई को लेकर एक अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस की घोषणा की है। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में 24 जनवरी, 2025 को दोपहर 3:00 बजे होगी।
मरकडवाड़ी और विरोध की शुरुआत
2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों को लेकर विवाद शोलापुर जिले में स्थित मरकडवाड़ी गांव में शुरू हुआ। मुख्य रूप से एनसीपी (एसपी) समर्थित क्षेत्र मरकडवाड़ी के ग्रामीण इन चुनाव परिणामों से असंतुष्ट हो गए, खासकर मालशिरस निर्वाचन क्षेत्र के परिणाम से। 23 नवंबर को, जब परिणाम घोषित किए गए, तो एनसीपी उम्मीदवार उत्तम राव जानकर विजयी हुए लेकिन कई ग्रामीणों ने अपने ही गांव में मतदान के पैटर्न (जैसा कि मतगणना/परिणामों के दौरान सामने आया) पर सवाल उठाए। करीब 2,000 की आबादी वाले मरकडवाड़ी में 1,900 मतदाता थे और परिणामों से पता चला कि भाजपा के राम सतपुते को 1,003 वोट मिले थे जबकि जानकर को केवल 843 वोट मिले थे। यह परिणाम ग्रामीणों को अविश्वसनीय लगा, क्योंकि जानकर को ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र में काफी समर्थन हासिल था।
मतपत्रों से पुनर्मतदान की योजना
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) से निराश ग्रामीणों ने 3 दिसंबर को मतपत्रों से प्रतीकात्मक "पुनर्मतदान" कराने का फैसला किया ताकि नतीजों और ईवीएम की विश्वसनीयता को चुनौती दी जा सके। उन्होंने आधिकारिक प्रक्रिया की कॉपी करते हुए अस्थायी बूथ और मतदाता सूची स्थापित की। हालांकि, अधिकारियों ने रोकने का आदेश दिया और विरोध को रोकने के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत मतपत्रों के लिए कानूनी समर्थन के बावजूद, प्रशासन ने मॉक पोल को अवैध माना। अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से की गई थी और ग्रामीणों द्वारा पुनर्मतदान कराने के प्रयास को गैरकानूनी घोषित किया।
प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एफआईआर और कानूनी कार्रवाई
नियोजित मॉक चुनाव की प्रतिक्रिया में और मरकडवाडी में भड़की अशांति के बाद सोलापुर ग्रामीण पुलिस ने 4 दिसंबर को नवनिर्वाचित एनसीपी (एसपी) विधायक उत्तम जानकर और करीब 200 अन्य लोगों के खिलाफ बीएनएस की धारा 163 के तहत जारी निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने के लिए एफआईआर दर्ज की। यह तब हुआ जब जिला प्रशासन ने नियोजित पुनर्मतदान को रद्द कर दिया था, जिसका उद्देश्य 20 नवंबर के चुनाव के ईवीएम परिणामों को चुनौती देना था। प्रशासन द्वारा अनुमति देने से इनकार करने के बावजूद, जानकर के नेतृत्व में एमवीए समर्थकों ने मतपत्र मतदान करने का फैसला किया।
संभावित अशांति की आशंका में जिला अधिकारियों ने निषेधाज्ञा भी लागू कर दी और गांव में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया। जानकर जिन्होंने मालशिरस से भाजपा के राम सतपुते को 13,000 से अधिक वोटों से हराया था वे मॉक पोल का समर्थन करने के लिए मौजूद थे। जबकि एमवीए समर्थकों ने एक पंडाल लगाया और आवश्यक व्यवस्था की, पुलिस ने ग्रामीणों और जानकर के साथ कई बैठकें कीं ताकि उन्हें इस कार्यक्रम को रद्द करने के लिए राजी किया जा सके।
पुणे, शोलापुर और अकोला में विरोध प्रदर्शन
ईवीएम के नतीजों का असंतोष मरकडवाड़ी से आगे तक फैल गया। 5 दिसंबर को पुणे, शोलापुर और अकोला में विरोध प्रदर्शन हुए, जहां प्रदर्शनकारी “हेरफेर और फिक्स चुनाव” के खिलाफ अपना असंतोष जाहिर करने के लिए इकट्ठा हुए। विरोध प्रदर्शन नवनिर्वाचित महायुति राज्य सरकार के शपथ ग्रहण के साथ हुआ, जिसने लोगों की नाराजगी को और बढ़ा दिया। पुणे में प्रदर्शनकारियों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) और UBT-शिवसेना के नेता शामिल थे जिन्होंने ईवीएम प्रक्रिया में कथित हेराफेरी की जांच की मांग के लिए हाथ मिलाया।
बढ़ता सार्वजनिक असंतोष और ईवीएम विवाद
पूरे राज्य में ईवीएम में गड़बड़ी और मतदान में हेराफेरी के आरोप में वृद्धि हो गई। शिवसेना (UBT) के जानकर और वरुण सरदेसाई जैसे विजयी उम्मीदवारों ने भी ईवीएम के नतीजों की विश्वसनीयता पर संदेह जताया। सरदेसाई ने पोस्टल बैलेट के रुझानों और ईवीएम के नतीजों के बीच विसंगति को उजागर किया, जिसमें महायुति गठबंधन के पक्ष में बदलाव दिखा, एक ऐसा परिणाम जो पहले के पोस्टल बैलेट डेटा से अलग दिखाई दिया। लोगों का गुस्सा बढ़ता गया क्योंकि कई लोगों को लगा कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी है। सोलापुर में स्थानीय कार्यकर्ता राजू कोहली ने भारी नाराजगी जाहिर की, उन्होंने मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण को लोगों की इच्छा के बजाय ईवीएम के शपथ ग्रहण के बराबर बताया।
जैसे-जैसे विरोध बढ़ता गया चुनाव सुधार की मांगें तेज होती गईं। राज्य भर में 34 से अधिक उम्मीदवारों ने वीवीपीएटी (वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) पर्चियों के सत्यापन के लिए अनुरोध किया, जिससे ईवीएम की विश्वसनीयता पर बढ़ती चिंता को उजागर किया गया। विरोध प्रदर्शनों में राष्ट्रीय नेताओं की भी भागीदारी देखी गई, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल थे, जिन्होंने दिल्ली में “संविधान बचाओ, वक्फ बचाओ, आरक्षण बचाओ, ईवीएम हटाओ” के बैनर तले एक रैली का नेतृत्व किया। इन घटनाओं ने ईवीएम को बदलने और पेपर बैलेट द्वारा मतदान कराने को लेकर बढ़ते आंदोलन को उजागर किया, जिसे मतदान का अधिक भरोसेमंद तरीका माना जाता था।
ईवीएम को लेकर कानूनी और संवैधानिक चिंताए
इन विरोधों का कानूनी आधार इस तर्क पर आधारित था कि ईवीएम का इस्तेमाल कानूनी रूप से उचित नहीं था। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 59 के अनुसार, मतदान पेपर बैलेट के जरिए ही किया जाना चाहिए, जब तक कि चुनाव आयोग ईवीएम के इस्तेमाल को उचित ठहराने के लिए धारा 61 ए के तहत कोई विशिष्ट आदेश जारी न करे। आलोचकों ने यह भी तर्क दिया कि ईवीएम का इस्तेमाल उचित कानूनी प्राधिकरण के बिना किया जा रहा था, जिससे मतदान प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठ रहे थे। इस कानूनी चुनौती ने विरोधों को बल दिया, जिसमें कार्यकर्ताओं और राजनेताओं ने चुनावी प्रणाली के पुनर्मूल्यांकन की मांग की।
भारत में चुनावों कराने में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) की प्रमाणिकता और सत्यनिष्ठा को चुनौती देने के लिए एक साहसिक कदम उठाते हुए, महाराष्ट्र में 254-मालशिरस विधानसभा क्षेत्र से मौजूदा विधायक एनसीपी (एसपी) के उत्तमराव जानकर ने भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को अपने निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा कानूनी रूप से दिए गए शपथपत्रों के साक्ष्य पेश करते हुए बैलेट पेपर से नए सिरे से उपचुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को कहा है।
जानकर ने यह भी कहा है कि अगर चुनाव आयोग नए सिरे से उपचुनाव कराने के लिए राजी हो जाता है तो वह इस्तीफा दे देंगे। ऐसा न होने पर, विधायक अगले 15 दिनों के भीतर आंदोलन करने का फैसला करेंगे। जनकर के निर्वाचन क्षेत्र में मरकडवाड़ी गांव शामिल है, जिसने 23 नवंबर, 2024 को महाराष्ट्र में परिणामों की घोषणा के बाद इतिहास रच दिया था। मतदाताओं ने मतपत्रों के साथ मॉक-पोल करने का प्रयास किया था, क्योंकि उस गांव से केवल 300 वोट रिकॉर्ड किए गए थे जहां जानकर के समर्थकों ने 2,000 वोट होने का दावा किया था। स्थानीय अधिकारियों और पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। 24 जनवरी, 2025 को नई दिल्ली स्थित दोपहर 3 बजे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में अगले निर्णय की घोषणा करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जाएगी। इस मूवमेंट की ओर से बोलते हुए पूर्व न्यायमूर्ति कोलसे पाटिल ने कहा, "हम राष्ट्र के लिए लड़ रहे हैं और ईवीएम में हेरफेर के खिलाफ ईसीआई के सामने सबूत पेश करना चाहते हैं।" सीईसी से मिलने का समय मांगा है।
जानकर ने यह साफ कर दिया है कि अगर चुनाव आयोग मतपत्रों के जरिए फिर से चुनाव कराने की उनकी मांग पर सहमत होता है तो वह इस्तीफा देने को तैयार हैं। उनका दावा है कि उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों द्वारा डाले गए हर गांव से कम वोट मिले हैं। यदि चुनाव आयोग वैधानिक रूप से निर्धारित विधि यानी बैलेट पेपर से पुनः चुनाव कराता है तो वे पद छोड़ने को तैयार हैं। साक्ष्य के रूप में, उन्होंने उन लोगों से लगभग 1,76,000 नोटरीकृत हलफनामे इकट्ठा किए हैं, जिन्होंने उनके लिए मतदान करने का दावा किया है, जिससे उनका मामला और मजबूत हुआ है। उन्होंने इनमें से 1,300 हलफनामों का एक वॉल्यूम चुनाव आयोग को सौंपा।
यह कदम ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों के गलत इस्तेमाल के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई का हिस्सा है। जानकर के अनुसार, यह चुनाव प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा से समझौता करता है। मूवमेंट की ओर से बोलते हुए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति कोलसे पाटिल ने इस बात पर जोर दिया कि वे देश के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिए लड़ रहे हैं और चुनाव आयोग के समक्ष सबूत पेश करने का उनका इरादा है।
2014 से ईवीएम में हेरफेर के सबूतों का हवाला देते हुए पाटिल ने कहा देश हित में लड़ रहे हैं
बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी.जी. कोलसे पाटिल लंबे समय से ईवीएम में कथित हेरफेर को चुनौती देने के प्रयासों में सबसे आगे रहे हैं। सबरंगइंडिया से बात करते हुए जस्टिस पाटिल ने कहा कि हम पूरी तरह से देश हित के लिए लड़ रहे हैं और 2014 से ही लड़ रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि 2014 के बाद सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम में कई तरह की हेराफेरी करके बदलाव किए जिससे पारदर्शिता नहीं रही। उन्होंने कहा कि कैसे उन्होंने 2014 से पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और जस्टिस रंजन गोगोई ने टिप्पणी की थी कि, 'ईवीएम भरोसेमंद नहीं है।' इसीलिए वीवीपीएटी की शुरुआत की गई। हालांकि वीवीपीएटी की जांच की संभावना सीमित करने और एसएलयू (ईसीआई वेबसाइट से इंटरनेट लिंकेज) के जरिए बाहरी तत्वों को शामिल करने से पूरी प्रणाली असुरक्षित हो गई है।
चुनाव आयोग के समक्ष सबूत पेश करना चाहते हैं: जस्टिस पाटिल
ईवीएम में गड़बड़ी के खिलाफ चल रही लड़ाई के बारे में बोलते हुए जस्टिस पाटिल ने चुनाव आयोग के सामने ठोस सबूत पेश करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने बताया, "अब जबकि वे (जानकर) विधायक चुन लिए गए हैं, उन्हें भी लगता है कि देश के हित के लिए ईवीएम का अस्तित्व नहीं होना चाहिए। यह मामला एक अपवाद है। जब हम हारते हैं, तो चुनाव आयोग कहता है कि हम (ईवीएम का मुद्दा तभी उठा रहे हैं, जब हम हारे हैं), इसलिए हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए! लेकिन यहां हम हारे नहीं हैं। जानकर जीत गए हैं। हम इस व्यवस्था को बदलना चाहते हैं। और हम इसके लिए सबूत पेश करना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि हम लापरवाही से बात कर रहे हैं; हम सबूत पेश कर रहे हैं। उन्होंने हर गांव के हर मतदाता से हलफनामा लिया है और हम यह सबूत चुनाव आयोग के समक्ष पेश करना चाहते हैं। जिस गांव में उन्हें 1200-1500 वोट मिलने चाहिए थे, वहां उन्हें सिर्फ 300 वोट मिले। तो उनके वोट कहां गए? जब हम मॉक पोल के जरिए यह साबित करने की कोशिश कर रहे थे, तो आपने इसे रोक दिया, इसका मतलब है कि आप कुछ छिपा रहे हैं।
जस्टिस पाटिल ने सबरंग इंडिया से कहा, “हाल ही में, एडवोकेट महमूद प्राचा ने भी हरियाणा के सभी निर्वाचन क्षेत्रों से वीडियो फुटेज मांगी थी और हाई कोर्ट ने इसे मंजूरी दे दी। उसके बाद, सरकार ने कानून बदल दिया। इसलिए, सरकार जिस हद तक छिपाने और झूठ बोलने की सारी हदें पार कर गई है, वह अविश्वसनीय है। हम इसके खिलाफ लड़ रहे हैं।”
जस्टिस पाटिल ने कहा चुनाव आयोग से मिलने की कोशिश
जस्टिस पाटिल ने चुनाव आयोग द्वारा प्रतिनिधिमंडल से मिलने से इनकार करने को लेकर भी निराशा जाहिर की। उन्होंने कहा, “हम ईसीआई से मिलने की कोशिश कर रहे हैं। हम आज सुबह आयोग गए थे, लेकिन हमें उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी गई। हम फिर जाएंगे। हम जानते हैं कि आयोग हमसे नहीं मिलेगा। अगर वे सुप्रीम कोर्ट का सम्मान नहीं करते, तो वे हमसे क्यों मिलेंगे? लेकिन हम इसे उजागर करेंगे चाहे कुछ भी हो। यह देश के हित में है; आयोग के साथ हमारी कोई व्यक्तिगत नाराजगी नहीं है।”
उल्लेखनीय है कि मौजूदा विधायक उत्तम राव जानकर और न्यायमूर्ति पाटिल 23 जनवरी की दोपहर को भी आयोग से नहीं मिल पाए थे, लेकिन वे आयोग को सूबत के तौर पर 1,300 हलफनामा सौंपने में सफल रहे। न्यायमूर्ति पाटिल ने बताया कि वे चुनाव आयोग के रिसेप्शन पर पहुंचे और आयोग को ये हलफनामे सौंपे। न्यायमूर्ति पाटिल ने कहा कि यदि अधिकारी मांग करते हैं तो वे शेष हलफनामों से भरा ट्रक भी देने के लिए तैयार हैं।
एनएसपी (एसपी) विधायक उत्तम राव जानकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की घोषणा की
एनसीपी (एसपी) विधायक उत्तम राव जानकर, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) कोलसे पाटिल और अधिवक्ता व मिशन सेव कॉन्स्टिट्यूशन के राष्ट्रीय संयोजक महमूद प्राचा ने मिशन सेव कॉन्स्टिट्यूशन के बैनर तले भारत की चुनाव प्रक्रिया में ईवीएम-वीवीपीएटी मशीनों के गलत इस्तेमाल के खिलाफ चल रही लड़ाई को लेकर एक अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस की घोषणा की है। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में 24 जनवरी, 2025 को दोपहर 3:00 बजे होगी।
मरकडवाड़ी और विरोध की शुरुआत
2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों को लेकर विवाद शोलापुर जिले में स्थित मरकडवाड़ी गांव में शुरू हुआ। मुख्य रूप से एनसीपी (एसपी) समर्थित क्षेत्र मरकडवाड़ी के ग्रामीण इन चुनाव परिणामों से असंतुष्ट हो गए, खासकर मालशिरस निर्वाचन क्षेत्र के परिणाम से। 23 नवंबर को, जब परिणाम घोषित किए गए, तो एनसीपी उम्मीदवार उत्तम राव जानकर विजयी हुए लेकिन कई ग्रामीणों ने अपने ही गांव में मतदान के पैटर्न (जैसा कि मतगणना/परिणामों के दौरान सामने आया) पर सवाल उठाए। करीब 2,000 की आबादी वाले मरकडवाड़ी में 1,900 मतदाता थे और परिणामों से पता चला कि भाजपा के राम सतपुते को 1,003 वोट मिले थे जबकि जानकर को केवल 843 वोट मिले थे। यह परिणाम ग्रामीणों को अविश्वसनीय लगा, क्योंकि जानकर को ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र में काफी समर्थन हासिल था।
मतपत्रों से पुनर्मतदान की योजना
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) से निराश ग्रामीणों ने 3 दिसंबर को मतपत्रों से प्रतीकात्मक "पुनर्मतदान" कराने का फैसला किया ताकि नतीजों और ईवीएम की विश्वसनीयता को चुनौती दी जा सके। उन्होंने आधिकारिक प्रक्रिया की कॉपी करते हुए अस्थायी बूथ और मतदाता सूची स्थापित की। हालांकि, अधिकारियों ने रोकने का आदेश दिया और विरोध को रोकने के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत मतपत्रों के लिए कानूनी समर्थन के बावजूद, प्रशासन ने मॉक पोल को अवैध माना। अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से की गई थी और ग्रामीणों द्वारा पुनर्मतदान कराने के प्रयास को गैरकानूनी घोषित किया।
प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एफआईआर और कानूनी कार्रवाई
नियोजित मॉक चुनाव की प्रतिक्रिया में और मरकडवाडी में भड़की अशांति के बाद सोलापुर ग्रामीण पुलिस ने 4 दिसंबर को नवनिर्वाचित एनसीपी (एसपी) विधायक उत्तम जानकर और करीब 200 अन्य लोगों के खिलाफ बीएनएस की धारा 163 के तहत जारी निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने के लिए एफआईआर दर्ज की। यह तब हुआ जब जिला प्रशासन ने नियोजित पुनर्मतदान को रद्द कर दिया था, जिसका उद्देश्य 20 नवंबर के चुनाव के ईवीएम परिणामों को चुनौती देना था। प्रशासन द्वारा अनुमति देने से इनकार करने के बावजूद, जानकर के नेतृत्व में एमवीए समर्थकों ने मतपत्र मतदान करने का फैसला किया।
संभावित अशांति की आशंका में जिला अधिकारियों ने निषेधाज्ञा भी लागू कर दी और गांव में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया। जानकर जिन्होंने मालशिरस से भाजपा के राम सतपुते को 13,000 से अधिक वोटों से हराया था वे मॉक पोल का समर्थन करने के लिए मौजूद थे। जबकि एमवीए समर्थकों ने एक पंडाल लगाया और आवश्यक व्यवस्था की, पुलिस ने ग्रामीणों और जानकर के साथ कई बैठकें कीं ताकि उन्हें इस कार्यक्रम को रद्द करने के लिए राजी किया जा सके।
पुणे, शोलापुर और अकोला में विरोध प्रदर्शन
ईवीएम के नतीजों का असंतोष मरकडवाड़ी से आगे तक फैल गया। 5 दिसंबर को पुणे, शोलापुर और अकोला में विरोध प्रदर्शन हुए, जहां प्रदर्शनकारी “हेरफेर और फिक्स चुनाव” के खिलाफ अपना असंतोष जाहिर करने के लिए इकट्ठा हुए। विरोध प्रदर्शन नवनिर्वाचित महायुति राज्य सरकार के शपथ ग्रहण के साथ हुआ, जिसने लोगों की नाराजगी को और बढ़ा दिया। पुणे में प्रदर्शनकारियों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) और UBT-शिवसेना के नेता शामिल थे जिन्होंने ईवीएम प्रक्रिया में कथित हेराफेरी की जांच की मांग के लिए हाथ मिलाया।
बढ़ता सार्वजनिक असंतोष और ईवीएम विवाद
पूरे राज्य में ईवीएम में गड़बड़ी और मतदान में हेराफेरी के आरोप में वृद्धि हो गई। शिवसेना (UBT) के जानकर और वरुण सरदेसाई जैसे विजयी उम्मीदवारों ने भी ईवीएम के नतीजों की विश्वसनीयता पर संदेह जताया। सरदेसाई ने पोस्टल बैलेट के रुझानों और ईवीएम के नतीजों के बीच विसंगति को उजागर किया, जिसमें महायुति गठबंधन के पक्ष में बदलाव दिखा, एक ऐसा परिणाम जो पहले के पोस्टल बैलेट डेटा से अलग दिखाई दिया। लोगों का गुस्सा बढ़ता गया क्योंकि कई लोगों को लगा कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी है। सोलापुर में स्थानीय कार्यकर्ता राजू कोहली ने भारी नाराजगी जाहिर की, उन्होंने मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण को लोगों की इच्छा के बजाय ईवीएम के शपथ ग्रहण के बराबर बताया।
जैसे-जैसे विरोध बढ़ता गया चुनाव सुधार की मांगें तेज होती गईं। राज्य भर में 34 से अधिक उम्मीदवारों ने वीवीपीएटी (वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) पर्चियों के सत्यापन के लिए अनुरोध किया, जिससे ईवीएम की विश्वसनीयता पर बढ़ती चिंता को उजागर किया गया। विरोध प्रदर्शनों में राष्ट्रीय नेताओं की भी भागीदारी देखी गई, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल थे, जिन्होंने दिल्ली में “संविधान बचाओ, वक्फ बचाओ, आरक्षण बचाओ, ईवीएम हटाओ” के बैनर तले एक रैली का नेतृत्व किया। इन घटनाओं ने ईवीएम को बदलने और पेपर बैलेट द्वारा मतदान कराने को लेकर बढ़ते आंदोलन को उजागर किया, जिसे मतदान का अधिक भरोसेमंद तरीका माना जाता था।
ईवीएम को लेकर कानूनी और संवैधानिक चिंताए
इन विरोधों का कानूनी आधार इस तर्क पर आधारित था कि ईवीएम का इस्तेमाल कानूनी रूप से उचित नहीं था। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 59 के अनुसार, मतदान पेपर बैलेट के जरिए ही किया जाना चाहिए, जब तक कि चुनाव आयोग ईवीएम के इस्तेमाल को उचित ठहराने के लिए धारा 61 ए के तहत कोई विशिष्ट आदेश जारी न करे। आलोचकों ने यह भी तर्क दिया कि ईवीएम का इस्तेमाल उचित कानूनी प्राधिकरण के बिना किया जा रहा था, जिससे मतदान प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठ रहे थे। इस कानूनी चुनौती ने विरोधों को बल दिया, जिसमें कार्यकर्ताओं और राजनेताओं ने चुनावी प्रणाली के पुनर्मूल्यांकन की मांग की।