छात्र इकाई एनएसयूआई (NSUI) ने इसका विरोध करते हुए प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसर और प्रशासनिक अधिकारी एबीवीपी का समर्थन कर रहे हैं।
साभार : द मूकनायक
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (MCU) में एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। मध्य प्रदेश के भोपाल स्थित इस विश्वविद्यालय पर प्रबंधन पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के पक्ष में काम करने और एक विशेष विचारधारा को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए हैं। छात्र इकाई एनएसयूआई (NSUI) ने इसका विरोध करते हुए प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसर और प्रशासनिक अधिकारी एबीवीपी का समर्थन कर रहे हैं।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, 9 दिसंबर को विश्वविद्यालय में आयोजित एक सामाजिक समरसता के कार्यक्रम में एबीवीपी की इकाई कार्यकारिणी का गठन किया गया, जिसमें विश्वविद्यालय के कई वरिष्ठ प्रोफेसरों की भागीदारी रही। इन प्रोफेसरों में कुलसचिव डॉ. अविनाश बाजपेई और प्रोफेसर डॉ. आशीष जोशी प्रमुख हैं। कार्यक्रम के दौरान प्रोफेसर डॉ. परेश उपाध्याय को एबीवीपी का गमछा पहने हुए देखा गया, जिससे विवाद और गहरा गया।
एनएसयूआई के नेताओं का आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रबंधन ने एक छात्र संगठन विशेष को खुलकर समर्थन देकर अपने कर्तव्यों का उल्लंघन किया है। उनका कहना है कि यह कदम न केवल विश्वविद्यालय की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि इसका उद्देश्य भी राजनीतिक लाभ उठाना है।
एनएसयूआई के छात्र कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे पर यूनिवर्सिटी कैंपस में विरोध प्रदर्शन किया। स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन एनएसयूआई के विश्वविद्यालय प्रभारी तनय शर्मा ने कहा, "पहले विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अप्रत्यक्ष रूप से एबीवीपी का समर्थन करते थे, लेकिन अब वे खुले तौर पर इसके पक्ष में काम कर रहे हैं। यह न केवल अनुचित है, बल्कि विश्वविद्यालय के राजनीति से मुक्त माहौल को भी बिगाड़ता है।"
तनय ने आगे कहा कि जब वे विरोध करने पहुंचे तो संबंधित अधिकारी या प्रोफेसर मौजूद नहीं थे। इस पर विरोध जताने के लिए एनएसयूआई के नेताओं ने निदेशक प्रोडक्शन डॉ. आशीष जोशी की नेम प्लेट पर कालिख पोत दी और उस पर 'सहायक एबीवीपी' लिख दिया।
एनएसयूआई के इकाई अध्यक्ष, अमन कुमार ने कहा, "विश्वविद्यालय में भगवाकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। हम यह नहीं स्वीकार करेंगे कि शैक्षिक संस्थानों का इस्तेमाल किसी विशेष विचारधारा के लिए किया जाए। यह विरोध प्रदर्शन छात्रों के अधिकारों और विश्वविद्यालय की निष्पक्षता की रक्षा के लिए एक अहम कदम है।"
उन्होंने यह भी कहा कि एनएसयूआई सत्ता व प्रबंधन के दबाव के बावजूद छात्रों की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों के लिए लड़ती रहेगी।
ज्ञात हो कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। द मूकनायक के सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि प्रबंधन इस विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की कोशिश कर रहा है। वहीं, एबीवीपी ने एनएसयूआई के आरोपों को खारिज करते हुए इसे एक "राजनीतिक नौटंकी" बताया है।
बता दें कि राजधानी भोपाल में 4 दिसंबर को बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हुआ। छात्रों को विश्वविद्यालय परिसर से बसों में भरकर इस आंदोलन में शामिल किया गया था। प्रदर्शन में विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने भी भाग लिया, जिसमें एक प्रोफेसर को धार्मिक और अन्य नारे लगाते हुए देखा गया।
रिपोर्ट के अनुसार, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर खुलासा किया कि 4 दिसंबर को प्रोफेसर डॉ. आशीष जोशी के निर्देश पर छात्रों को बांग्लादेश विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया गया था। छात्र ने बताया कि प्रदर्शन के लिए एलएनसीटी ग्रुप की दो बसें दोपहर करीब 2 बजे विश्वविद्यालय परिसर के गेट पर खड़ी की गई थीं। इन बसों में छात्रों को बैठाकर प्रदर्शन स्थल तक ले जाया गया, जहां उन्होंने नारेबाजी की और रैली में भाग लिया।
छात्रों को प्रदर्शन में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हुए प्रोफेसर ने कथित तौर पर कहा कि जो छात्र इसमें भाग लेगा, उसकी उपस्थिति दर्ज की जाएगी। इस कारण कई छात्र प्रदर्शन में शामिल हुए। रैली के दौरान प्रोफेसर स्वयं भी उपस्थित थे। यह घटना विश्वविद्यालय में शिक्षा और राजनीति के मिश्रण पर गंभीर सवाल उठाती है, जहां छात्रों को शिक्षा के बजाय राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए बाध्य किया जा रहा है।
हिंदूवादी संगठनों ने इस प्रदर्शन की अगुवाई की और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को निशाना बनाए जाने पर नाराजगी जाहिर की। इस प्रदर्शन में छात्र संगठन के कार्यकर्ता और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी शामिल हुए।
द मूकनायक से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राजेश बादल ने कहा, "पिछले 40-50 वर्षों में विचारधाराओं का विभाजन कोई नई बात नहीं है, लेकिन आज की राजनीति ने इसे एक शर्मनाक रूप दे दिया है। मौजूदा दौर में प्रतिपक्ष की आवाज़ कहीं सुनाई नहीं देती, और शिक्षण संस्थानों को एक खास राजनीतिक विचारधारा का अखाड़ा बनाया जा रहा है। यह प्रवृत्ति न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है, बल्कि छात्रों के भविष्य पर भी गंभीर खतरा पैदा कर रही है।"
"इस तरह की राजनीति का परिणाम दीर्घकालिक रूप से समाज और शिक्षा प्रणाली दोनों के लिए हानिकारक होगा। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान और प्रगतिशील सोच को बढ़ावा देना है, लेकिन यदि इसे राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ेगा। छात्रों की पढ़ाई और उनके समग्र विकास पर पड़ने वाले इस नकारात्मक प्रभाव को रोकने के लिए शिक्षा क्षेत्र को राजनीति से मुक्त रखना आवश्यक है।"
मीडिया और शिक्षा जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि विश्वविद्यालयों का राजनीतिकरण एक गंभीर समस्या है। शैक्षणिक संस्थानों को एक ऐसा मंच होना चाहिए जहां सभी विचारधाराओं को समान रूप से सम्मान दिया जाए, न कि किसी विशेष विचारधारा का वर्चस्व हो।
पिछले कुछ वर्षों से माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय विवादों में रहा है। स्टूडेंट और मैनेजमेंट के बीच विचारधारा का इस तरह का टकराव न केवल संस्थान की साख को प्रभावित कर रहा है, बल्कि शिक्षा के माहौल पर भी नकारात्मक असर डाल रहा है।
साभार : द मूकनायक
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (MCU) में एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। मध्य प्रदेश के भोपाल स्थित इस विश्वविद्यालय पर प्रबंधन पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के पक्ष में काम करने और एक विशेष विचारधारा को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए हैं। छात्र इकाई एनएसयूआई (NSUI) ने इसका विरोध करते हुए प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसर और प्रशासनिक अधिकारी एबीवीपी का समर्थन कर रहे हैं।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, 9 दिसंबर को विश्वविद्यालय में आयोजित एक सामाजिक समरसता के कार्यक्रम में एबीवीपी की इकाई कार्यकारिणी का गठन किया गया, जिसमें विश्वविद्यालय के कई वरिष्ठ प्रोफेसरों की भागीदारी रही। इन प्रोफेसरों में कुलसचिव डॉ. अविनाश बाजपेई और प्रोफेसर डॉ. आशीष जोशी प्रमुख हैं। कार्यक्रम के दौरान प्रोफेसर डॉ. परेश उपाध्याय को एबीवीपी का गमछा पहने हुए देखा गया, जिससे विवाद और गहरा गया।
एनएसयूआई के नेताओं का आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रबंधन ने एक छात्र संगठन विशेष को खुलकर समर्थन देकर अपने कर्तव्यों का उल्लंघन किया है। उनका कहना है कि यह कदम न केवल विश्वविद्यालय की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि इसका उद्देश्य भी राजनीतिक लाभ उठाना है।
एनएसयूआई के छात्र कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे पर यूनिवर्सिटी कैंपस में विरोध प्रदर्शन किया। स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन एनएसयूआई के विश्वविद्यालय प्रभारी तनय शर्मा ने कहा, "पहले विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अप्रत्यक्ष रूप से एबीवीपी का समर्थन करते थे, लेकिन अब वे खुले तौर पर इसके पक्ष में काम कर रहे हैं। यह न केवल अनुचित है, बल्कि विश्वविद्यालय के राजनीति से मुक्त माहौल को भी बिगाड़ता है।"
तनय ने आगे कहा कि जब वे विरोध करने पहुंचे तो संबंधित अधिकारी या प्रोफेसर मौजूद नहीं थे। इस पर विरोध जताने के लिए एनएसयूआई के नेताओं ने निदेशक प्रोडक्शन डॉ. आशीष जोशी की नेम प्लेट पर कालिख पोत दी और उस पर 'सहायक एबीवीपी' लिख दिया।
एनएसयूआई के इकाई अध्यक्ष, अमन कुमार ने कहा, "विश्वविद्यालय में भगवाकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। हम यह नहीं स्वीकार करेंगे कि शैक्षिक संस्थानों का इस्तेमाल किसी विशेष विचारधारा के लिए किया जाए। यह विरोध प्रदर्शन छात्रों के अधिकारों और विश्वविद्यालय की निष्पक्षता की रक्षा के लिए एक अहम कदम है।"
उन्होंने यह भी कहा कि एनएसयूआई सत्ता व प्रबंधन के दबाव के बावजूद छात्रों की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों के लिए लड़ती रहेगी।
ज्ञात हो कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। द मूकनायक के सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि प्रबंधन इस विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की कोशिश कर रहा है। वहीं, एबीवीपी ने एनएसयूआई के आरोपों को खारिज करते हुए इसे एक "राजनीतिक नौटंकी" बताया है।
बता दें कि राजधानी भोपाल में 4 दिसंबर को बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हुआ। छात्रों को विश्वविद्यालय परिसर से बसों में भरकर इस आंदोलन में शामिल किया गया था। प्रदर्शन में विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने भी भाग लिया, जिसमें एक प्रोफेसर को धार्मिक और अन्य नारे लगाते हुए देखा गया।
रिपोर्ट के अनुसार, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर खुलासा किया कि 4 दिसंबर को प्रोफेसर डॉ. आशीष जोशी के निर्देश पर छात्रों को बांग्लादेश विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया गया था। छात्र ने बताया कि प्रदर्शन के लिए एलएनसीटी ग्रुप की दो बसें दोपहर करीब 2 बजे विश्वविद्यालय परिसर के गेट पर खड़ी की गई थीं। इन बसों में छात्रों को बैठाकर प्रदर्शन स्थल तक ले जाया गया, जहां उन्होंने नारेबाजी की और रैली में भाग लिया।
छात्रों को प्रदर्शन में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हुए प्रोफेसर ने कथित तौर पर कहा कि जो छात्र इसमें भाग लेगा, उसकी उपस्थिति दर्ज की जाएगी। इस कारण कई छात्र प्रदर्शन में शामिल हुए। रैली के दौरान प्रोफेसर स्वयं भी उपस्थित थे। यह घटना विश्वविद्यालय में शिक्षा और राजनीति के मिश्रण पर गंभीर सवाल उठाती है, जहां छात्रों को शिक्षा के बजाय राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए बाध्य किया जा रहा है।
हिंदूवादी संगठनों ने इस प्रदर्शन की अगुवाई की और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को निशाना बनाए जाने पर नाराजगी जाहिर की। इस प्रदर्शन में छात्र संगठन के कार्यकर्ता और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी शामिल हुए।
द मूकनायक से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राजेश बादल ने कहा, "पिछले 40-50 वर्षों में विचारधाराओं का विभाजन कोई नई बात नहीं है, लेकिन आज की राजनीति ने इसे एक शर्मनाक रूप दे दिया है। मौजूदा दौर में प्रतिपक्ष की आवाज़ कहीं सुनाई नहीं देती, और शिक्षण संस्थानों को एक खास राजनीतिक विचारधारा का अखाड़ा बनाया जा रहा है। यह प्रवृत्ति न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है, बल्कि छात्रों के भविष्य पर भी गंभीर खतरा पैदा कर रही है।"
"इस तरह की राजनीति का परिणाम दीर्घकालिक रूप से समाज और शिक्षा प्रणाली दोनों के लिए हानिकारक होगा। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान और प्रगतिशील सोच को बढ़ावा देना है, लेकिन यदि इसे राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ेगा। छात्रों की पढ़ाई और उनके समग्र विकास पर पड़ने वाले इस नकारात्मक प्रभाव को रोकने के लिए शिक्षा क्षेत्र को राजनीति से मुक्त रखना आवश्यक है।"
मीडिया और शिक्षा जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि विश्वविद्यालयों का राजनीतिकरण एक गंभीर समस्या है। शैक्षणिक संस्थानों को एक ऐसा मंच होना चाहिए जहां सभी विचारधाराओं को समान रूप से सम्मान दिया जाए, न कि किसी विशेष विचारधारा का वर्चस्व हो।
पिछले कुछ वर्षों से माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय विवादों में रहा है। स्टूडेंट और मैनेजमेंट के बीच विचारधारा का इस तरह का टकराव न केवल संस्थान की साख को प्रभावित कर रहा है, बल्कि शिक्षा के माहौल पर भी नकारात्मक असर डाल रहा है।