पांच शिक्षाविदों द्वारा तैयार किए गए मसौदा दिशानिर्देशों के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को न्यायिक वारंट के बाद ही ज़ब्त किया जा सकता है।
Image courtesy: https://theleaflet.in
सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने राम रामास्वामी व अन्य बनाम भारतीय संघ व अन्य की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन को जांच एजेंसियों द्वारा लैपटॉप और सेल फोन जैसे निजी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जब्त करने को लेकर पांच शिक्षाविदों द्वारा तैयार मसौदा दिशानिर्देशों का सेट केंद्र और राज्यों को सर्कुलेट करने का निर्देश दिया है साथ ही इसे शीर्ष अदालत में भी जमा करने को कहा है।
3 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने चीन से फंड प्राप्त करने के आरोप में न्यूज़क्लिक के कार्यालय और दिल्ली-एनसीआर में उसके पत्रकारों, कर्मचारियों, कन्सल्टेंट्स और कंट्रिब्यूटर्स के घरों पर छापा मारा और उनके लैपटॉप और मोबाइल फोन जब्त कर लिए।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने जनहित याचिका पर विचार करने के बाद रामकृष्णन को गुरुवार को इन दिशानिर्देशों को सर्कुलेट करने का निर्देश दिया।
दिशानिर्देशों के मसौदे के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को न्यायिक वारंट के बाद ही जब्त किया जा सकता है।
न्यायिक वारंट प्राप्त न करने की स्थिति में आपातकालीन जब्ती एक अपवाद होनी चाहिए लेकिन इसके कारणों को जरूर बताया जाना चाहिए। हालांकि इनमें से किसी भी मामले में, यह "स्पष्ट रूप से" उल्लेख किया जाना चाहिए कि डिवाइस को क्यों और किस आधार पर जब्त करना आवश्यक है।
मसौदा दिशानिर्देशों के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को इस आधार पर जब्त नहीं किया जाना चाहिए कि सबूत मिल सकते हैं। “दूसरे शब्दों में, सबूत मिलने के अनुमान पर जब्ती किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं होगी, खासकर जहां डिवाइस किसी आरोपी व्यक्ति का नहीं है।”
विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति, पेशेवर, पत्रकारिता या शैक्षणिक संबंधी सामग्री को न्यायिक वारंट के बिना जब्त नहीं किया जा सकता है और केवल तभी जब्त किया जा सकता है जब सामग्री सीधे अपराध से जुड़ी हो।
मसौदा में कहा गया है कि “अगर ऐसे विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति, पेशेवर, पत्रकारिता या शैक्षणिक संबंधी सामग्री की खोज करना उद्देश्य है, तो यह केवल न्यायिक वारंट द्वारा और इस आधार पर होना चाहिए कि उक्त सामग्री सीधे तौर पर जांच के तहत अपराध का हिस्सा है।”
उपकरणों में व्यक्तिगत या विशेषाधिकार प्राप्त सामग्री को रोक रखने की अवधारणा नहीं
जब्त किए गए उपकरण को एक स्वतंत्र एजेंसी के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और सभी अप्रासंगिक, व्यक्तिगत और विशेषाधिकार प्राप्त सामग्री की पहचान की जाएगी।
प्रासंगिक सामग्री और एक प्रति लेने के बाद उपकरण तुरंत वापस कर दिया जाएगा। इसके अलावा, अतिरिक्त सामग्री को नहीं लिया जाना चाहिए।
मसौदा दिशानिर्देश के अनुसार, “एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा प्रारंभिक जांच में, डिवाइस के मालिक (या उनके एजेंट) की उपस्थिति में, सभी अप्रासंगिक, व्यक्तिगत और विशेषाधिकार प्राप्त सामग्री की अलग से पहचान की जाए, जांच के लिए प्रासंगिक सामग्री की निशानदेही की जाए और ऐसी प्रासंगिक सामग्री की केवल एक प्रति ली जाए।”
"इस तरह से अलग की गई अप्रासंगिक, विशेषाधिकार प्राप्त या व्यक्तिगत सामग्री को नहीं रखा जाना चाहिए और जांच या संदिग्ध सामग्री के लिए केवल प्रासंगिक सामग्री की एक प्रति लेने के बाद डिवाइस को तुरंत वापस कर दिया जाना चाहिए।"
पासवर्ड बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता
जब तक सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 जैसे वैधानिक प्रावधानों के तहत बाध्य न हो, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के मालिकों को अपने पासवर्ड देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
“जिस व्यक्ति के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को खोजा/जब्त किया जाना है, उसे किसी भी क्रेडेंशियल या पासवर्ड या जानकारी का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, जिसमें किसी भी क्लाउड-संग्रहीत जानकारी भी शामिल है, सिवाय उसके जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के वैधानिक रूप से निर्धारित है।”
इसके अलावा, सेवा प्रदाताओं/मध्यस्थों से जानकारी प्राप्त करने वाले कानून उन कानूनों में उचित परिस्थितियों में लागू हो सकते हैं।
मसौदा दिशानिर्देशों में यह भी निर्दिष्ट किया गया है कि "गवाह या आरोपी के तौर पर पुलिस द्वारा किसी भी व्यक्ति को अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को सौंपने के लिए नहीं बुलाया जाएगा।"
जांच अधिकारी "प्रासंगिक जानकारी निकालने और मालिक को समय पर लौटाने या किसी अदालत या अन्य प्राधिकारी (जहां मालिक नहीं पाया जा सकता है) को सुरक्षित हिरासत में सौंपने के लिए बाध्य है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसके प्रतियों तक किसी भी अनधिकृत व्यक्ति की पहुंच न हो पाए।"
यदि ऐसी सामग्री के संबंध में सावधानियों का पालन नहीं किया जाता है तो उसका उपयोग आरोपी के खिलाफ नहीं किया जाएगा।
मसौदा दिशानिर्देशों में कहा गया है, "जहां इन बुनियादी सावधानियों का ध्यान नहीं रखा गया है, वहां ऐसी सामग्री का उपयोग किसी भी अदालत में या अपराध के आरोपी किसी भी व्यक्ति के खिलाफ या किसी भी तरह से नहीं किया जाएगा।"
'यह बहुत ही खतरनाक है'
उपकरणों की खोज करने या जब्त करने की पुलिस की शक्ति के विनियमन की मांग करने वाली फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स (FMP) द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा: "यह खतरनाक है कि सभी शक्तियां एजेंसियों के पास हैं... यह बहुत ही खतरनाक है।”
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा कि यह मुद्दा "गंभीर" है क्योंकि मीडिया पेशेवरों के पास उनके उपकरणों में उनके स्रोतों का विवरण होगा।
इसके अलावा, निजता को लेकर भी चिंता है जिसे अब मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है। अदालत ने इस पर गौर किया और दिशानिर्देशों को लेकर कहा कि “कुछ दिशानिर्देश जरूर होने चाहिए। यह निजता का मामला है।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “आपके पास कुछ दिशानिर्देश होने चाहिए। आप हमसे चाहते हैं कि हम कुछ करें। हम इसे करेंगे। लेकिन मेरा विचार यह है कि आपको यह खुद करना चाहिए। ऐसा राज्य नहीं हो सकता जो अपनी एजेंसियों के माध्यम से चलता हो। आपको विश्लेषण करना चाहिए कि (लोगों की) सुरक्षा के लिए किस तरह के दिशानिर्देश आवश्यक हैं...यह विरोधात्मक नहीं है।''
“हितों का संतुलन होना चाहिए और मीडिया पेशेवरों की सुरक्षा के लिए उचित दिशानिर्देश होने चाहिए। हम चाहेंगे कि ASG इस पर काम करें और इस मुद्दे पर विचार करें। यह इस पहलू को ध्यान में रखते हुए भी कि निजता को स्वयं एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है।'’
FMP का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने चिंता जताई कि किसी व्यक्ति के डिवाइस से निजी डेटा का राज्य द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है और कई राज्य सरकारों ने इस तरह के दुरुपयोग का सहारा लिया है। इसके अलावा, डिजिटल डिवाइस में बायोमेट्रिक विवरण का मालिक के खिलाफ गंभीर रूप से दुरुपयोग होने की संभावना हो सकती है।
जब राजू ने कहा कि जांच एजेंसियों को पूरी तरह से बंद नहीं किया जा सकता है और जांच के लिए क्या आवश्यक है इसकी पहचान करने के लिए उपकरणों को स्कैन करने की आवश्यकता है, तो बेंच ने कहा, "एक व्यवस्था दूसरे को सिखाती है", और उनसे कुछ दिशानिर्देश पेश करने पर विचार करने के लिए कहा।
FMP की जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 6 दिसंबर को होगी।
अक्टूबर 2022 में, FMP ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया और दलील दी कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किसी भी फिजिकल स्पेस की तुलना में व्यक्तियों के बारे में अधिक संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा होता है। जनहित याचिका में, वकील राहुल नारायण ने दावा किया कि मौजूदा कानून इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को छोड़कर केवल 'दस्तावेजों' या 'सामग्रियों' या 'स्थानों' तक ही सीमित हैं।
याचिका में कहा गया है कि “भले ही यह मान लिया जाए कि सामान्य और विशेष कानूनों में मौजूदा कानूनी प्रावधान डिजिटल क्षेत्र के संदर्भ में लागू होते हैं जो केवल उपकरणों के उत्पादन/जब्ती से परे नहीं बल्कि उनकी सामग्री के उत्पादन/खोज तक जाते हैं। मौजूदा कानूनी प्रावधान जनहित याचिका में कहा गया है, आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत या विभिन्न विशेष कानूनों के तहत, यह सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त रूप से तैयार किया गया है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां गोपनीयता के मौलिक अधिकार के अनुरूप शक्तियों का प्रयोग करें।'’
इसमें कहा गया है कि ये कार्य संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित निजता के मौलिक अधिकार के विपरीत हैं।
FMP ने आग्रह किया कि गिरफ्तार/आरोपी व्यक्ति के डिजिटल उपकरणों और पासवर्ड/पासकोड/बायोमेट्रिक आईडी की सामग्री को जबरन आत्म-दोषारोपण के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत गारंटी द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए।
Related:
Image courtesy: https://theleaflet.in
सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने राम रामास्वामी व अन्य बनाम भारतीय संघ व अन्य की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन को जांच एजेंसियों द्वारा लैपटॉप और सेल फोन जैसे निजी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जब्त करने को लेकर पांच शिक्षाविदों द्वारा तैयार मसौदा दिशानिर्देशों का सेट केंद्र और राज्यों को सर्कुलेट करने का निर्देश दिया है साथ ही इसे शीर्ष अदालत में भी जमा करने को कहा है।
3 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने चीन से फंड प्राप्त करने के आरोप में न्यूज़क्लिक के कार्यालय और दिल्ली-एनसीआर में उसके पत्रकारों, कर्मचारियों, कन्सल्टेंट्स और कंट्रिब्यूटर्स के घरों पर छापा मारा और उनके लैपटॉप और मोबाइल फोन जब्त कर लिए।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने जनहित याचिका पर विचार करने के बाद रामकृष्णन को गुरुवार को इन दिशानिर्देशों को सर्कुलेट करने का निर्देश दिया।
दिशानिर्देशों के मसौदे के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को न्यायिक वारंट के बाद ही जब्त किया जा सकता है।
न्यायिक वारंट प्राप्त न करने की स्थिति में आपातकालीन जब्ती एक अपवाद होनी चाहिए लेकिन इसके कारणों को जरूर बताया जाना चाहिए। हालांकि इनमें से किसी भी मामले में, यह "स्पष्ट रूप से" उल्लेख किया जाना चाहिए कि डिवाइस को क्यों और किस आधार पर जब्त करना आवश्यक है।
मसौदा दिशानिर्देशों के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को इस आधार पर जब्त नहीं किया जाना चाहिए कि सबूत मिल सकते हैं। “दूसरे शब्दों में, सबूत मिलने के अनुमान पर जब्ती किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं होगी, खासकर जहां डिवाइस किसी आरोपी व्यक्ति का नहीं है।”
विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति, पेशेवर, पत्रकारिता या शैक्षणिक संबंधी सामग्री को न्यायिक वारंट के बिना जब्त नहीं किया जा सकता है और केवल तभी जब्त किया जा सकता है जब सामग्री सीधे अपराध से जुड़ी हो।
मसौदा में कहा गया है कि “अगर ऐसे विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति, पेशेवर, पत्रकारिता या शैक्षणिक संबंधी सामग्री की खोज करना उद्देश्य है, तो यह केवल न्यायिक वारंट द्वारा और इस आधार पर होना चाहिए कि उक्त सामग्री सीधे तौर पर जांच के तहत अपराध का हिस्सा है।”
उपकरणों में व्यक्तिगत या विशेषाधिकार प्राप्त सामग्री को रोक रखने की अवधारणा नहीं
जब्त किए गए उपकरण को एक स्वतंत्र एजेंसी के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और सभी अप्रासंगिक, व्यक्तिगत और विशेषाधिकार प्राप्त सामग्री की पहचान की जाएगी।
प्रासंगिक सामग्री और एक प्रति लेने के बाद उपकरण तुरंत वापस कर दिया जाएगा। इसके अलावा, अतिरिक्त सामग्री को नहीं लिया जाना चाहिए।
मसौदा दिशानिर्देश के अनुसार, “एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा प्रारंभिक जांच में, डिवाइस के मालिक (या उनके एजेंट) की उपस्थिति में, सभी अप्रासंगिक, व्यक्तिगत और विशेषाधिकार प्राप्त सामग्री की अलग से पहचान की जाए, जांच के लिए प्रासंगिक सामग्री की निशानदेही की जाए और ऐसी प्रासंगिक सामग्री की केवल एक प्रति ली जाए।”
"इस तरह से अलग की गई अप्रासंगिक, विशेषाधिकार प्राप्त या व्यक्तिगत सामग्री को नहीं रखा जाना चाहिए और जांच या संदिग्ध सामग्री के लिए केवल प्रासंगिक सामग्री की एक प्रति लेने के बाद डिवाइस को तुरंत वापस कर दिया जाना चाहिए।"
पासवर्ड बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता
जब तक सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 जैसे वैधानिक प्रावधानों के तहत बाध्य न हो, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के मालिकों को अपने पासवर्ड देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
“जिस व्यक्ति के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को खोजा/जब्त किया जाना है, उसे किसी भी क्रेडेंशियल या पासवर्ड या जानकारी का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, जिसमें किसी भी क्लाउड-संग्रहीत जानकारी भी शामिल है, सिवाय उसके जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के वैधानिक रूप से निर्धारित है।”
इसके अलावा, सेवा प्रदाताओं/मध्यस्थों से जानकारी प्राप्त करने वाले कानून उन कानूनों में उचित परिस्थितियों में लागू हो सकते हैं।
मसौदा दिशानिर्देशों में यह भी निर्दिष्ट किया गया है कि "गवाह या आरोपी के तौर पर पुलिस द्वारा किसी भी व्यक्ति को अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को सौंपने के लिए नहीं बुलाया जाएगा।"
जांच अधिकारी "प्रासंगिक जानकारी निकालने और मालिक को समय पर लौटाने या किसी अदालत या अन्य प्राधिकारी (जहां मालिक नहीं पाया जा सकता है) को सुरक्षित हिरासत में सौंपने के लिए बाध्य है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसके प्रतियों तक किसी भी अनधिकृत व्यक्ति की पहुंच न हो पाए।"
यदि ऐसी सामग्री के संबंध में सावधानियों का पालन नहीं किया जाता है तो उसका उपयोग आरोपी के खिलाफ नहीं किया जाएगा।
मसौदा दिशानिर्देशों में कहा गया है, "जहां इन बुनियादी सावधानियों का ध्यान नहीं रखा गया है, वहां ऐसी सामग्री का उपयोग किसी भी अदालत में या अपराध के आरोपी किसी भी व्यक्ति के खिलाफ या किसी भी तरह से नहीं किया जाएगा।"
'यह बहुत ही खतरनाक है'
उपकरणों की खोज करने या जब्त करने की पुलिस की शक्ति के विनियमन की मांग करने वाली फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स (FMP) द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा: "यह खतरनाक है कि सभी शक्तियां एजेंसियों के पास हैं... यह बहुत ही खतरनाक है।”
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा कि यह मुद्दा "गंभीर" है क्योंकि मीडिया पेशेवरों के पास उनके उपकरणों में उनके स्रोतों का विवरण होगा।
इसके अलावा, निजता को लेकर भी चिंता है जिसे अब मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है। अदालत ने इस पर गौर किया और दिशानिर्देशों को लेकर कहा कि “कुछ दिशानिर्देश जरूर होने चाहिए। यह निजता का मामला है।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “आपके पास कुछ दिशानिर्देश होने चाहिए। आप हमसे चाहते हैं कि हम कुछ करें। हम इसे करेंगे। लेकिन मेरा विचार यह है कि आपको यह खुद करना चाहिए। ऐसा राज्य नहीं हो सकता जो अपनी एजेंसियों के माध्यम से चलता हो। आपको विश्लेषण करना चाहिए कि (लोगों की) सुरक्षा के लिए किस तरह के दिशानिर्देश आवश्यक हैं...यह विरोधात्मक नहीं है।''
“हितों का संतुलन होना चाहिए और मीडिया पेशेवरों की सुरक्षा के लिए उचित दिशानिर्देश होने चाहिए। हम चाहेंगे कि ASG इस पर काम करें और इस मुद्दे पर विचार करें। यह इस पहलू को ध्यान में रखते हुए भी कि निजता को स्वयं एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है।'’
FMP का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने चिंता जताई कि किसी व्यक्ति के डिवाइस से निजी डेटा का राज्य द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है और कई राज्य सरकारों ने इस तरह के दुरुपयोग का सहारा लिया है। इसके अलावा, डिजिटल डिवाइस में बायोमेट्रिक विवरण का मालिक के खिलाफ गंभीर रूप से दुरुपयोग होने की संभावना हो सकती है।
जब राजू ने कहा कि जांच एजेंसियों को पूरी तरह से बंद नहीं किया जा सकता है और जांच के लिए क्या आवश्यक है इसकी पहचान करने के लिए उपकरणों को स्कैन करने की आवश्यकता है, तो बेंच ने कहा, "एक व्यवस्था दूसरे को सिखाती है", और उनसे कुछ दिशानिर्देश पेश करने पर विचार करने के लिए कहा।
FMP की जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 6 दिसंबर को होगी।
अक्टूबर 2022 में, FMP ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया और दलील दी कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किसी भी फिजिकल स्पेस की तुलना में व्यक्तियों के बारे में अधिक संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा होता है। जनहित याचिका में, वकील राहुल नारायण ने दावा किया कि मौजूदा कानून इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को छोड़कर केवल 'दस्तावेजों' या 'सामग्रियों' या 'स्थानों' तक ही सीमित हैं।
याचिका में कहा गया है कि “भले ही यह मान लिया जाए कि सामान्य और विशेष कानूनों में मौजूदा कानूनी प्रावधान डिजिटल क्षेत्र के संदर्भ में लागू होते हैं जो केवल उपकरणों के उत्पादन/जब्ती से परे नहीं बल्कि उनकी सामग्री के उत्पादन/खोज तक जाते हैं। मौजूदा कानूनी प्रावधान जनहित याचिका में कहा गया है, आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत या विभिन्न विशेष कानूनों के तहत, यह सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त रूप से तैयार किया गया है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां गोपनीयता के मौलिक अधिकार के अनुरूप शक्तियों का प्रयोग करें।'’
इसमें कहा गया है कि ये कार्य संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित निजता के मौलिक अधिकार के विपरीत हैं।
FMP ने आग्रह किया कि गिरफ्तार/आरोपी व्यक्ति के डिजिटल उपकरणों और पासवर्ड/पासकोड/बायोमेट्रिक आईडी की सामग्री को जबरन आत्म-दोषारोपण के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत गारंटी द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए।
Related: