खादी ग्रामोद्योग की बैलेंस शीट को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि असल में अब सरकार ने खादी के दायरे को काफी विस्तारित कर दिया है।
भले मोदी सरकार खादी की रिकॉर्ड तोड़ बिक्री के आंकड़े पेश कर रही हो लेकिन सीएजी की रिपोर्ट में खादी ग्रामोद्योग की हालत भी पतली है। याद करिए 9 जून, 2023 के समाचारपत्रों की सुर्खियां जो कुछ इस प्रकार थीं, “वित्तीय वर्ष 2013-23 तक खादी और ग्रामोद्योग का उत्पादन 26 हजार 109 करोड़ रुपये था। वहीं, 2023 में यह 268% बढ़कर 95 हजार 957 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह इस बात का प्रमाण है कि मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल और स्वदेशी उत्पादों पर देश की जनता का भरोसा बढ़ा है।” लेकिन सीएजी की हालिया रिपोर्ट में कहानी पूरी तरह से उलट है। सीएजी के अनुसार 31 मार्च, 2021 तक खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) के 92 डिपार्टमेंटल ट्रेडिंग यूनिट में से मात्र 18 डिपार्टमेंटल ट्रेडिंग यूनिट्स ही अपना कामकाज कर रही हैं, जबकि 74 डिपार्टमेंटल ट्रेडिंग यूनिट बंद पड़ी हैं। सीएजी ने इन बंद पड़े ट्रेडिंग यूनिट की पड़ताल की है, और उसकी तुलना में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की बैलेंस शीट पूरी तरह से हैरान करने वाली है, जिसमें बिक्री के शानदार आंकड़ों से खादी और गांधी की ‘धूम’ दिखाई देती है।
जनचौक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 से 2020-21 के 4 वर्षों के आंकड़ों में कोई एक वर्ष भी नहीं है, जिसमें खादी ग्रामोद्योग ने लक्ष्य हासिल किया हो। रिटेल सेल के आंकड़ों पर गौर करें तो (मुंबई, गोवा, कोलकाता, पटना, दिल्ली, भोपाल और एर्नाकुलम) की बिक्री का लक्ष्य 2017-18 (163.23 करोड़, बनाम वास्तविक बिक्री 115.14 करोड़) था, जो लक्ष्य का 71% ही हासिल हो सका था। इसी प्रकार वर्ष 2018-19 में लक्ष्य 163.23 करोड़ था, लेकिन बिक्री 126.70 करोड़ के साथ 78% हासिल हो सका था। वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए लक्ष्य को घटाकर 113.71 करोड़ कर दिया गया था, लेकिन उस वर्ष बिक्री पूर्व के वर्षों से भी घटकर 107.76 करोड़ के साथ 95% लक्ष्य हासिल किया जा सका।
कोविड-19 महामारी के मद्देनजर वर्ष 2020-21 के लक्ष्य को 119.35 करोड़ तक सीमित रखा गया, तो उस वर्ष बिक्री महज 55.72 करोड़ के साथ 47% पर सिमट चुका था। सीएजी के अनुसार जुलाई, 2022 में मंत्रालय ने अपने लिखित जवाब में कोरोना महामारी के चलते मुंबई क्षेत्र की बिक्री पर असर की बात स्वीकार की, लेकिन केवीआईसी का प्रदर्शन कोविड-19 से पहले और बाद में भी संतोषजनक नहीं पाया गया, जिसके जवाब में मंत्रालय ने कोई ठोस उत्तर नहीं दिया है।
सीएजी के ये आंकड़े रिटेल सेल के हैं। खादी ग्रामोद्योग के निर्यात के आंकड़े भी हैं। इसमें खादी की बिक्री न के बराबर है। लेकिन पापड़ की बिक्री 52.41 करोड़ रूपये है। शहद 133 करोड़ रूपये और हैंडीक्राफ्ट की बिक्री 19 करोड़ रुपये तक है, जो 2020-21 में कुल निर्यात को 209.28 करोड़ रूपये तक ले जाती है। सीएजी की रिपोर्ट में खादी कोर्नर और खादी प्लाज़ा का भी विश्लेषण किया गया है। इसके अलावा सरकारी विभागों और थोक बिक्री के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया गया है। इसके साथ ही भारतीय रेलवे, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को जाने वाली बिक्री पर भी प्रकाश डाला गया है, और संस्तुति की गई है। लेकिन इन सबको भी मिला दें तो खादी ग्रामोद्योग के जिन आंकड़ों का जिक्र देश के समाचारपत्रों में किया जा रहा है, उसके आस पास भी फटकना संभव नहीं है।
इस गड़बड़झाले को समझने के लिए खादी ग्रामोद्योग की वेबसाइट पर जाने पर जो बात निकलकर आई, वह हैरान करने वाली है। वर्ष 2020-21 और 2021-22 की अपनी बैलेंसशीट में खादी ग्रामोद्योग ने बिल्कुल अलग आंकड़े पेश किये हैं। जहां तक उत्पादन का प्रश्न है वर्ष 2020-21 में खादी का उत्पादन 1,668.61 करोड़ रुपये दिखाया गया है। इसके साथ ही पोलीवस्त्र एवं सोलरवस्त्र के खाते में क्रमशः 230.51 करोड़ एवं 5.37 करोड़ रुपये का जिक्र है। लेकिन असल खेल ग्रामोद्योग नामक अलग खाते में है, जिसमें उत्पादन 70,330.15 करोड़ पहुंच जाता है। अर्थात खादी की तुलना में 4,200% अधिक। ये ग्रामोद्योग का खादी से क्या संबंध है? इसे कब से खादी ग्रामोद्योग से नत्थी कर दिया गया है? सीएजी की रिपोर्ट में इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती।
इसी प्रकार बिक्री के आंकड़े हैं। खादी (3085.53 करोड़ रूपये), पोलीवस्त्र (436.52 करोड़) और सोलरवस्त्र 5.66 करोड़ की बिक्री दिखाता है। लेकिन ग्रामोद्योग में बिक्री 92,213.65 करोड़ रूपये के साथ खादी ग्रामोद्योग को 1 ट्रिलियन रूपये वाली अर्थव्यवस्था के करीब ले जाता है।
वर्ष 2021-22 में 1 ट्रिलियन के लक्ष्य को पार भी कर लिया गया है। सकल उत्पादन 84,289.93 करोड़ रूपये (ग्रामोद्योग के हिस्से में 81,731.62 करोड़ जबकि खादी 2275.74 करोड़ रूपये थी)। 2021-22 में बिक्री के आंकड़े 1,15,415.23 करोड़ रूपये (ग्रामोद्योग 110363.51 करोड़, खादी मात्र 4366.06 करोड़ थी।)
खादी ग्रामोद्योग की बैलेंस शीट को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि असल में अब सरकार ने खादी के दायरे को काफी विस्तारित कर दिया है। ग्रामोद्योग को परिभाषित करते हुए केवीआईसी की वेबसाइट बताती है कि केवीआईसी अधिनियम के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्र में कोई भी उद्योग यदि कोई उत्पादन या सेवा प्रदान करता है, और उस काम के लिए मैदानी क्षेत्रों में 1 लाख रुपये और पर्वतीय क्षेत्रों में 1.50 लाख रुपये से अधिक का निवेश नहीं किया है, तो उसे ग्रामोद्योग की श्रेणी में रखा जायेगा। इसके कार्यक्षेत्र को शहरी क्षेत्र में भी विस्तारित किया जा चुका है। इसमें हनी (शहद), कुम्हार सशक्तीकरण, खादी प्राकृतिक पेंट (गोबर युक्त), बांस का वृक्षारोपण, बायो गैस संयंत्र सहित विभिन्न उद्योगों को शामिल किया गया है।
खादी ग्रामोद्योग में ग्रामीण क्षेत्र में हर प्रकार के उद्यम को (1-1.5 लाख रुपये) शामिल कर आंकड़ों में भारी जालसाजी, वहीं दूसरी तरफ कुल 92 डिपार्टमेंटल ट्रेडिंग यूनिट में से 74 का बंद पड़ा होना बिल्कुल दूसरी तस्वीर पेश करता है। सीएजी की रिपोर्ट हमारे लिए एक तमाचा है, फर्जी आंकड़ों से देश की रंगीन तस्वीर किन लोगों को ख़ुशी का अहसास कराती है, और इससे कितने समय तक देश को घसीटना संभव होगा, यह सोचना हर संवेदनशील नागरिक का काम है।
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भले मोदी सरकार खादी की रिकॉर्ड तोड़ बिक्री के आंकड़े पेश कर रही हो लेकिन सीएजी की रिपोर्ट में खादी ग्रामोद्योग की हालत भी पतली है। याद करिए 9 जून, 2023 के समाचारपत्रों की सुर्खियां जो कुछ इस प्रकार थीं, “वित्तीय वर्ष 2013-23 तक खादी और ग्रामोद्योग का उत्पादन 26 हजार 109 करोड़ रुपये था। वहीं, 2023 में यह 268% बढ़कर 95 हजार 957 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह इस बात का प्रमाण है कि मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल और स्वदेशी उत्पादों पर देश की जनता का भरोसा बढ़ा है।” लेकिन सीएजी की हालिया रिपोर्ट में कहानी पूरी तरह से उलट है। सीएजी के अनुसार 31 मार्च, 2021 तक खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) के 92 डिपार्टमेंटल ट्रेडिंग यूनिट में से मात्र 18 डिपार्टमेंटल ट्रेडिंग यूनिट्स ही अपना कामकाज कर रही हैं, जबकि 74 डिपार्टमेंटल ट्रेडिंग यूनिट बंद पड़ी हैं। सीएजी ने इन बंद पड़े ट्रेडिंग यूनिट की पड़ताल की है, और उसकी तुलना में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की बैलेंस शीट पूरी तरह से हैरान करने वाली है, जिसमें बिक्री के शानदार आंकड़ों से खादी और गांधी की ‘धूम’ दिखाई देती है।
जनचौक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 से 2020-21 के 4 वर्षों के आंकड़ों में कोई एक वर्ष भी नहीं है, जिसमें खादी ग्रामोद्योग ने लक्ष्य हासिल किया हो। रिटेल सेल के आंकड़ों पर गौर करें तो (मुंबई, गोवा, कोलकाता, पटना, दिल्ली, भोपाल और एर्नाकुलम) की बिक्री का लक्ष्य 2017-18 (163.23 करोड़, बनाम वास्तविक बिक्री 115.14 करोड़) था, जो लक्ष्य का 71% ही हासिल हो सका था। इसी प्रकार वर्ष 2018-19 में लक्ष्य 163.23 करोड़ था, लेकिन बिक्री 126.70 करोड़ के साथ 78% हासिल हो सका था। वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए लक्ष्य को घटाकर 113.71 करोड़ कर दिया गया था, लेकिन उस वर्ष बिक्री पूर्व के वर्षों से भी घटकर 107.76 करोड़ के साथ 95% लक्ष्य हासिल किया जा सका।
कोविड-19 महामारी के मद्देनजर वर्ष 2020-21 के लक्ष्य को 119.35 करोड़ तक सीमित रखा गया, तो उस वर्ष बिक्री महज 55.72 करोड़ के साथ 47% पर सिमट चुका था। सीएजी के अनुसार जुलाई, 2022 में मंत्रालय ने अपने लिखित जवाब में कोरोना महामारी के चलते मुंबई क्षेत्र की बिक्री पर असर की बात स्वीकार की, लेकिन केवीआईसी का प्रदर्शन कोविड-19 से पहले और बाद में भी संतोषजनक नहीं पाया गया, जिसके जवाब में मंत्रालय ने कोई ठोस उत्तर नहीं दिया है।
सीएजी के ये आंकड़े रिटेल सेल के हैं। खादी ग्रामोद्योग के निर्यात के आंकड़े भी हैं। इसमें खादी की बिक्री न के बराबर है। लेकिन पापड़ की बिक्री 52.41 करोड़ रूपये है। शहद 133 करोड़ रूपये और हैंडीक्राफ्ट की बिक्री 19 करोड़ रुपये तक है, जो 2020-21 में कुल निर्यात को 209.28 करोड़ रूपये तक ले जाती है। सीएजी की रिपोर्ट में खादी कोर्नर और खादी प्लाज़ा का भी विश्लेषण किया गया है। इसके अलावा सरकारी विभागों और थोक बिक्री के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया गया है। इसके साथ ही भारतीय रेलवे, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को जाने वाली बिक्री पर भी प्रकाश डाला गया है, और संस्तुति की गई है। लेकिन इन सबको भी मिला दें तो खादी ग्रामोद्योग के जिन आंकड़ों का जिक्र देश के समाचारपत्रों में किया जा रहा है, उसके आस पास भी फटकना संभव नहीं है।
इस गड़बड़झाले को समझने के लिए खादी ग्रामोद्योग की वेबसाइट पर जाने पर जो बात निकलकर आई, वह हैरान करने वाली है। वर्ष 2020-21 और 2021-22 की अपनी बैलेंसशीट में खादी ग्रामोद्योग ने बिल्कुल अलग आंकड़े पेश किये हैं। जहां तक उत्पादन का प्रश्न है वर्ष 2020-21 में खादी का उत्पादन 1,668.61 करोड़ रुपये दिखाया गया है। इसके साथ ही पोलीवस्त्र एवं सोलरवस्त्र के खाते में क्रमशः 230.51 करोड़ एवं 5.37 करोड़ रुपये का जिक्र है। लेकिन असल खेल ग्रामोद्योग नामक अलग खाते में है, जिसमें उत्पादन 70,330.15 करोड़ पहुंच जाता है। अर्थात खादी की तुलना में 4,200% अधिक। ये ग्रामोद्योग का खादी से क्या संबंध है? इसे कब से खादी ग्रामोद्योग से नत्थी कर दिया गया है? सीएजी की रिपोर्ट में इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती।
इसी प्रकार बिक्री के आंकड़े हैं। खादी (3085.53 करोड़ रूपये), पोलीवस्त्र (436.52 करोड़) और सोलरवस्त्र 5.66 करोड़ की बिक्री दिखाता है। लेकिन ग्रामोद्योग में बिक्री 92,213.65 करोड़ रूपये के साथ खादी ग्रामोद्योग को 1 ट्रिलियन रूपये वाली अर्थव्यवस्था के करीब ले जाता है।
वर्ष 2021-22 में 1 ट्रिलियन के लक्ष्य को पार भी कर लिया गया है। सकल उत्पादन 84,289.93 करोड़ रूपये (ग्रामोद्योग के हिस्से में 81,731.62 करोड़ जबकि खादी 2275.74 करोड़ रूपये थी)। 2021-22 में बिक्री के आंकड़े 1,15,415.23 करोड़ रूपये (ग्रामोद्योग 110363.51 करोड़, खादी मात्र 4366.06 करोड़ थी।)
खादी ग्रामोद्योग की बैलेंस शीट को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि असल में अब सरकार ने खादी के दायरे को काफी विस्तारित कर दिया है। ग्रामोद्योग को परिभाषित करते हुए केवीआईसी की वेबसाइट बताती है कि केवीआईसी अधिनियम के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्र में कोई भी उद्योग यदि कोई उत्पादन या सेवा प्रदान करता है, और उस काम के लिए मैदानी क्षेत्रों में 1 लाख रुपये और पर्वतीय क्षेत्रों में 1.50 लाख रुपये से अधिक का निवेश नहीं किया है, तो उसे ग्रामोद्योग की श्रेणी में रखा जायेगा। इसके कार्यक्षेत्र को शहरी क्षेत्र में भी विस्तारित किया जा चुका है। इसमें हनी (शहद), कुम्हार सशक्तीकरण, खादी प्राकृतिक पेंट (गोबर युक्त), बांस का वृक्षारोपण, बायो गैस संयंत्र सहित विभिन्न उद्योगों को शामिल किया गया है।
खादी ग्रामोद्योग में ग्रामीण क्षेत्र में हर प्रकार के उद्यम को (1-1.5 लाख रुपये) शामिल कर आंकड़ों में भारी जालसाजी, वहीं दूसरी तरफ कुल 92 डिपार्टमेंटल ट्रेडिंग यूनिट में से 74 का बंद पड़ा होना बिल्कुल दूसरी तस्वीर पेश करता है। सीएजी की रिपोर्ट हमारे लिए एक तमाचा है, फर्जी आंकड़ों से देश की रंगीन तस्वीर किन लोगों को ख़ुशी का अहसास कराती है, और इससे कितने समय तक देश को घसीटना संभव होगा, यह सोचना हर संवेदनशील नागरिक का काम है।
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