सैय्यदा हमीद, रोश्मी गोस्वामी, जारजुम जी एट और एंजेला रानगाड की टीम ने मणिपुर हिंसा से प्रभावित लोगों पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है.
इस प्रकाशित रिपोर्ट का विषय है – ‘किसका फ़ायदा, किसका नुक़सान? मणिपुर से अंतरिम प्रतिछाया’. इस रिपोर्ट को 3 अगस्त को मणिपुर में 4 महिलाओं की टीम ने प्रकाशित किया है. इस टीम में डॉक्टर सैय्यदा हामिदा (भारत जोड़ो अभियान की मेंटर और साउथ एशियन्स फॉर ह्यूमन राइट्स की संस्थापक सदस्य), डॉक्टर रोश्मी गोस्वामी (भारत जोड़ो अभियान में नेशनल काउंसिल मेंबर, साउथ एशियन्स फ़ॉर ह्यूमन राइट्स की सदस्य और नार्थ ईस्ट नेटवर्क की सहसंस्थापिका), जारजुम जी एट (AIUFWP – ऑल इंडिया यूनियन ऑफ़ फ़ारेस्ट वर्किंग पीपल) और एंजेला रानगाड (TUR- थमा यू रंगली झुकी, KAM मेघालय) शामिल थीं. ये चार महिलाएं चार अलग धर्मों और तहज़ीबों से नाता रखती हैं.
मणिपुर में सांप्रदायिक हिंसक झड़प के 3 महीने बाद इस टीम ने राज्य का दौरा किया था. इस टीम ने मणिपुर के अनेक ज़िलों का दौरा करने के साथ राहत कैंप्स की पड़ताल भी की और कुकी ज़ो, मैतेयी और नागा समुदाय की महिलाओं से बात की. रिपोर्ट के अनुसार टीम ने अनेक संगठनों, महिलाओं, छात्र नेताओं, जागरूक लोगों और पर्यावरण व मानवधिकार आंदोलन विशेषज्ञों, पत्रकारों, लेखकों, फ़िल्म निर्माताओं, रंगमंच के कलाकारों, छात्रों, चर्च के कर्मचारियों, राहत व शांति की लिए काम कर रहे अनेक लोगों से मुलाक़ात की. इसके अलावा टीम ने लैंगिक हिंसा, हत्या से पीड़ित और गुमशुदा, स्थानांतरित लोगों के परिवार और ड्रग कार्टेल के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले सक्रिय मुखर निवासियों से भी भेंट की.
मणिपुर में अपने अनुभव की रिपोर्ट देते हुए टीम ने कहा कि-
“हमारे दौरे का समय एक जलता हुआ समय था जिसमें हर रोज़ बढ़ती हिंसा, कुकी व मैतेयी समुदाय, मेरिया पैबिस, सशस्त्र आंदोलनकारियों और राज्य व केंद्र व सैन्य बलों की संयुक्त भूमिका के साथ नई चुनौतियां पेश आती थीं. हम वहां सचमुच घटनाओं और हादसों के बीच में थे. ये मणिपुर की जंग में हमारा भोगा हुआ अनुभव है. इससे यह भी तय होती था कि हम कहां जा सकते हैं और कहां नहीं जा सकते हैं.”
इस रिपोर्ट के ज़रिए टीम ने मणिपुर की अवाम के नज़रिए को भी सामने रखा है जो मणिपुर में हिंसा की आग तेज़ करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को दोषी मानती है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि – “मणिपुर संकट नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार की ग़लती और अक्षमता का साफ़ सबूत है. इसके अलावा प्रधानमंत्री की अक्खड़ ख़ामोशी और लोगों के लिए सहानभूति का अभाव भी मणिपुर और जनता का सरासर अपमान है.”
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस हिंसा के बीच दोनों पक्षों में महिलाएं कैसे अपने समुदाय को सहयोग कर रही हैं. इस रिपोर्ट ने मणिपुर राज्य के मुख्य मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए उन सवालों की ओर ध्यान खींचा है जिनका शांति स्थापित करने की प्रक्रिया में ख़ास महत्व है. “राहत और पुनर्वास” के मुद्दे का संज्ञान लेते हुए टीम ने राहत कैंप्स से जुड़े ऐसे मुद्दों की एक सूची भी पेश की है जिन्हें फ़ौरन हल किया जाना चाहिए. टीम ने मोइरंग, तेंगनुपॉल और कांगपोकपी में राहत कैंप्स का दौरा भी किया है. टीम के मुताबिक़ स्कूल और कॉलेज परिसर में राहत कैंप्स बनाए जाने के कारण शैक्षिक गतिविधियां क़रीब 3 महीने से बाधित हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार – “पुनर्वास जैसे अहम सवाल को बिना किसी उत्तर के छोड़ दिया गया है. इन कैंप्स से लोग कैसे और कब सुरक्षित लौट पाएंगे? वो अपने उजड़े हुए घर दोबारा कैसे बना पाएंगे? सामुदायिक राहत कैंप कमेटी के सदस्यों के अलावा अनेक लोग ऐसे प्रश्न उठा रहे हैं.”
इसके अलावा इस रिपोर्ट में ऐसे आकलन, सूचनाओं और कैंप्स में स्वंयसेवकों और सामुदायिक समूहों से बातचीत का भी जिक्र है. इसमें कुछ सुझाव भी पेश किए गए हैं-
यह रिपोर्ट उम्मीद के शब्दों पर खत्म होती है. इसमें लोगों से एकसाथ आने की अपील की गई है-
“हमारे पास उम्मीद है और हम इससे इतनी गहराई से जुड़े हुए हैं कि इसे दोबारा हमसे छीना नहीं जा सकता है. हमारे घर व बसेरे जलने के बाद और खेत व इबादतख़ाने तबाह होने के बाद, सामाजिक जीवन बर्बाद होने के बाद अब हम सिर्फ़ उम्मीद के भरोसे हैं.”
पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है-
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इस प्रकाशित रिपोर्ट का विषय है – ‘किसका फ़ायदा, किसका नुक़सान? मणिपुर से अंतरिम प्रतिछाया’. इस रिपोर्ट को 3 अगस्त को मणिपुर में 4 महिलाओं की टीम ने प्रकाशित किया है. इस टीम में डॉक्टर सैय्यदा हामिदा (भारत जोड़ो अभियान की मेंटर और साउथ एशियन्स फॉर ह्यूमन राइट्स की संस्थापक सदस्य), डॉक्टर रोश्मी गोस्वामी (भारत जोड़ो अभियान में नेशनल काउंसिल मेंबर, साउथ एशियन्स फ़ॉर ह्यूमन राइट्स की सदस्य और नार्थ ईस्ट नेटवर्क की सहसंस्थापिका), जारजुम जी एट (AIUFWP – ऑल इंडिया यूनियन ऑफ़ फ़ारेस्ट वर्किंग पीपल) और एंजेला रानगाड (TUR- थमा यू रंगली झुकी, KAM मेघालय) शामिल थीं. ये चार महिलाएं चार अलग धर्मों और तहज़ीबों से नाता रखती हैं.
मणिपुर में सांप्रदायिक हिंसक झड़प के 3 महीने बाद इस टीम ने राज्य का दौरा किया था. इस टीम ने मणिपुर के अनेक ज़िलों का दौरा करने के साथ राहत कैंप्स की पड़ताल भी की और कुकी ज़ो, मैतेयी और नागा समुदाय की महिलाओं से बात की. रिपोर्ट के अनुसार टीम ने अनेक संगठनों, महिलाओं, छात्र नेताओं, जागरूक लोगों और पर्यावरण व मानवधिकार आंदोलन विशेषज्ञों, पत्रकारों, लेखकों, फ़िल्म निर्माताओं, रंगमंच के कलाकारों, छात्रों, चर्च के कर्मचारियों, राहत व शांति की लिए काम कर रहे अनेक लोगों से मुलाक़ात की. इसके अलावा टीम ने लैंगिक हिंसा, हत्या से पीड़ित और गुमशुदा, स्थानांतरित लोगों के परिवार और ड्रग कार्टेल के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले सक्रिय मुखर निवासियों से भी भेंट की.
मणिपुर में अपने अनुभव की रिपोर्ट देते हुए टीम ने कहा कि-
“हमारे दौरे का समय एक जलता हुआ समय था जिसमें हर रोज़ बढ़ती हिंसा, कुकी व मैतेयी समुदाय, मेरिया पैबिस, सशस्त्र आंदोलनकारियों और राज्य व केंद्र व सैन्य बलों की संयुक्त भूमिका के साथ नई चुनौतियां पेश आती थीं. हम वहां सचमुच घटनाओं और हादसों के बीच में थे. ये मणिपुर की जंग में हमारा भोगा हुआ अनुभव है. इससे यह भी तय होती था कि हम कहां जा सकते हैं और कहां नहीं जा सकते हैं.”
इस रिपोर्ट के ज़रिए टीम ने मणिपुर की अवाम के नज़रिए को भी सामने रखा है जो मणिपुर में हिंसा की आग तेज़ करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को दोषी मानती है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि – “मणिपुर संकट नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार की ग़लती और अक्षमता का साफ़ सबूत है. इसके अलावा प्रधानमंत्री की अक्खड़ ख़ामोशी और लोगों के लिए सहानभूति का अभाव भी मणिपुर और जनता का सरासर अपमान है.”
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस हिंसा के बीच दोनों पक्षों में महिलाएं कैसे अपने समुदाय को सहयोग कर रही हैं. इस रिपोर्ट ने मणिपुर राज्य के मुख्य मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए उन सवालों की ओर ध्यान खींचा है जिनका शांति स्थापित करने की प्रक्रिया में ख़ास महत्व है. “राहत और पुनर्वास” के मुद्दे का संज्ञान लेते हुए टीम ने राहत कैंप्स से जुड़े ऐसे मुद्दों की एक सूची भी पेश की है जिन्हें फ़ौरन हल किया जाना चाहिए. टीम ने मोइरंग, तेंगनुपॉल और कांगपोकपी में राहत कैंप्स का दौरा भी किया है. टीम के मुताबिक़ स्कूल और कॉलेज परिसर में राहत कैंप्स बनाए जाने के कारण शैक्षिक गतिविधियां क़रीब 3 महीने से बाधित हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार – “पुनर्वास जैसे अहम सवाल को बिना किसी उत्तर के छोड़ दिया गया है. इन कैंप्स से लोग कैसे और कब सुरक्षित लौट पाएंगे? वो अपने उजड़े हुए घर दोबारा कैसे बना पाएंगे? सामुदायिक राहत कैंप कमेटी के सदस्यों के अलावा अनेक लोग ऐसे प्रश्न उठा रहे हैं.”
इसके अलावा इस रिपोर्ट में ऐसे आकलन, सूचनाओं और कैंप्स में स्वंयसेवकों और सामुदायिक समूहों से बातचीत का भी जिक्र है. इसमें कुछ सुझाव भी पेश किए गए हैं-
यह रिपोर्ट उम्मीद के शब्दों पर खत्म होती है. इसमें लोगों से एकसाथ आने की अपील की गई है-
“हमारे पास उम्मीद है और हम इससे इतनी गहराई से जुड़े हुए हैं कि इसे दोबारा हमसे छीना नहीं जा सकता है. हमारे घर व बसेरे जलने के बाद और खेत व इबादतख़ाने तबाह होने के बाद, सामाजिक जीवन बर्बाद होने के बाद अब हम सिर्फ़ उम्मीद के भरोसे हैं.”
पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है-
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