हिंदुस्तान से पाकिस्तान तक दिखी सर्वोच्च अदालत की ताकत, केंद्र-राज्य रिश्तों पर सुप्रीम कोर्ट के 2 बड़े फैसले

Written by Navnish Kumar | Published on: May 12, 2023
"दिल्ली और महाराष्ट्र से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को उनकी शक्ति की सीमाएं याद दिलाने की कोशिश की है। साथ ही राज्यपालों और उप-राज्यपालों को जनमत द्वारा चुनी हुई सरकार का आदर करने की सीख भी दी है। उधर पाकिस्तान में भी सर्वोच्च अदालत की ताकत दिखी है, जहां पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ़्तारी के कारण पूरा देश सड़क पर है, पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान को तुरंत रिहा करने के आदेश दिए हैं।"



पहले बात हिंदुस्तान की ही करें तो दिल्ली और महाराष्ट्र के दोनों ही मामलों के केंद्र में राजनीतिक खींचतान के अलावा केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति के संतुलन का एक संकट भी था, जिसे अपने दो अलग अलग फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने संबोधित करने की कोशिश की है।

दिल्ली में केजरीवाल वर्षों से चिल्ला रहे हैं- हमारी सरकार का मतलब क्या है? केंद्र सरकार ने जो एलजी बैठा रखे हैं, हर बात में अड़ंगा लगा देते हैं। कोई काम करने नहीं देते। न जन कल्याण का, न सरकार का। उनके इशारे पर तमाम अफ़सर दिल्ली सरकार की फ़ाइलों को अटकाने के सिवाय कुछ नहीं करते। आख़िर हम करें तो क्या करें? किस तरह जनता से किए वादे पूरे करें और किस तरह लोगों के हितों की योजनाओं को लागू करें?

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को न्याय कर दिया। पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा- पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और ज़मीन के मामलों को छोड़कर तमाम मामलों में एलजी को अब दिल्ली सरकार की सलाह पर ही काम करना होगा। यहां तक कि दिल्ली सरकार और विधानसभा के कामकाज में भी एलजी की सलाह के बिना कुछ नहीं किया जा सकता था। कोर्ट के आदेश के बाद अब यह सब खेल ख़त्म हो गया है।

तमाम अफ़सर अब दिल्ली सरकार के अधीन रहेंगे। कोर्ट का कहना था कि चुनी हुई सरकार उसके अफ़सरों को आदेश दे सकती है। इसमें एलजी की कोई भूमिका नहीं होगी। कल को कोई दूसरी सरकार भी आए तो उसे भी यह अधिकार हर हाल में मिलेगा। आख़िरकार केजरीवाल की वर्षों की मुराद पूरी हो गई।

देखा जाए तो दिल्ली में सारे मामले में सवाल दिल्ली की चुनी हुई सरकार और केंद्र द्वारा नियुक्त उप-राज्यपाल के बीच शक्तियों को लेकर खींचतान का था। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने दोनों पक्षों को उनकी सीमाएं याद तो दिलाईं लेकिन यह स्पष्ट रूप से कहा कि चुनी हुई सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही होती है और इसलिए प्रशासन की असली शक्ति उसी के पास होनी चाहिए। लिहाजा, अदालत ने कहा कि सिर्फ तीन क्षेत्रों को छोड़ कर राष्ट्रीय राजधानी में चुनी हुई सरकार का प्रशासनिक सेवाओं के ऊपर लेजिस्लेटिव और एग्जेक्टिव नियंत्रण होना ही चाहिए। जिन तीन क्षेत्रों को इस नियंत्रण से बाहर रखने के लिए बताया गया वो हैं पब्लिक आर्डर, पुलिस और भूमि। इस आदेश का सीधा संबंध दिल्ली में सरकारी अफसरों की नियुक्ति और तबादले से है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि आईएएस अफसर हों या संयुक्त काडर सेवाओं के अफसर, उनके ऊपर चुनी हुई सरकार का नियंत्रण है।

अदालत ने कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत सरकारी अधिकारियों पर भी लागू होता है जो सरकार के मंत्रियों को रिपोर्ट करते हैं। अगर अफसर मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर दें या उनके निर्देश नहीं मानें तो सामूहिक जिम्मेदारी के पूरे सिद्धांत पर असर पड़ता है। अदालत ने माना कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है और इस वजह से सरकार के पास पूर्ण राज्य की सरकारों जैसी शक्तियां नहीं हैं। लेकिन अदालत ने कहा कि इसके बावजूद इस फैसले की रोशनी में उप-राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करने को बाध्य हैं।

दिल्ली में 'आम आदमी पार्टी' सरकार ने इस फैसले का स्वागत किया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी पिछले 8 सालों से इस मुद्दे पर लड़ रही थी और इस दौरान केंद्र को यह शक्ति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश का इस्तेमाल कर दिल्ली में काम को रोका गया। केजरीवाल ने कहा कि अब अगले कुछ दिनों में दिल्ली के प्रशासन में भारी बदलाव लाए जाएंगे, जिनके तहत भ्रष्ट अफसरों को हटाया जाएगा, ईमानदार अफसरों को नियुक्त किया जाएगा और अनावश्यक पदों को या तो रद्द कर दिया जाएगा या रिक्त रख दिया जाएगा।

दूसरा, महाराष्ट्र मामला है। महाराष्ट्र का मामला पूरी तरह से राजनीतिक था लेकिन उसमें भी मूल सवाल केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति के संतुलन का था। जून 2022 में शिवसेना दो धड़ों में बंट गई, उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार गिर गई और शिवसेना के दूसरे धड़े के नेता के रूप में एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली। बाद में विधानसभा उपाध्यक्ष ने शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्यता का नोटिस भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट के सामने उस समय सवाल था कि इन विधायकों को सदन की सदस्यता से अयोग्य करार दिया जाए या नहीं। अदालत ने बाद में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को सदन में विश्वास मत कराने का आदेश देने की अनुमति दे दी। ठाकरे ने विश्वास मत से पहले ही इस्तीफा दे दिया और उनकी सरकार गिर गई। उसके बाद ठाकरे की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं डाली गईं। इनमें से एक में उनके द्वारा विश्वास मत के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने के आदेश को भी चुनौती दी गई।

उद्धव सरकार के गिरने और शिंदे सरकार के गठन के कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की ग़लतियां गिनाई। स्पीकर की ग़लतियां बताईं लेकिन कहा कि ये सरकार तो बनी रहेगी। कोर्ट का कहना था कि उद्धव विधानसभा के फ़्लोर पर आए ही नहीं। उन्होंने पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया तो ऐसी स्थिति में कोर्ट क्या कर सकता है? कोर्ट ने विधायकों की अयोग्यता के मामले में ज़रूर कहा कि इस बारे में समय रहते स्पीकर को निर्णय लेना होगा। अब समय रहते का मतलब कोई डेडलाइन तो होता नहीं, इसलिए माना यही जा रहा है कि सरकार चलती रहेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि राज्यपाल का वह फैसला गलत था जो राज्यपाल ने शिंदे गुट के 34 विधायकों के अनुरोध पर लिया था। अदालत ने कहा कि यह गलत था क्योंकि राज्यपाल के पास यह निर्णय करने के लिए पर्याप्त तथ्य नहीं थे कि उद्धव ठाकरे ने सदन का विश्वास खो दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल को ठाकरे सरकार के बहुमत पर संदेह नहीं करना चाहिए था और कुछ विधायकों की असंतुष्टि विश्वास मत का आदेश देने के लिए काफी नहीं थी। अदालत ने कहा कि राज्यपाल को पार्टियों के अंदरूनी झगड़ों में नहीं पड़ना चाहिए और व्यक्तिपरक आधार की जगह वस्तुनिष्ठ आधार पर फैसला लेना चाहिए।

हालांकि अदालत ने यह भी साफ किया कि इस मामले में अब कुछ किया नहीं जा सकता क्योंकि ठाकरे ने विश्वास मत का सामना करने की जगह खुद ही इस्तीफा दे दिया था। अदालत ने कहा कि इस लिहाज से शिंदे को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने का राज्यपाल का फैसला सही था। महाराष्ट्र में ठाकरे और शिंदे के नेतृत्व में दोनों ही पक्षों ने इस फैसले को अपनी अपनी जीत बताया है।

मुख्यमंत्री शिंदे ने इसे शिवसेना और बालासाहेब ठाकरे की जीत बताया है लेकिन दूसरी तरफ ठाकरे ने कहा है कि इस फैसले के आधार पर शिंदे को नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए और इस्तीफा दे देना चाहिए।

उद्धव ठाकरे की जीत हुई और सुप्रीम कोर्ट की हार?

हालांकि कुछ लोग इसे उद्धव ठाकरे की जीत और सुप्रीम कोर्ट की हार के तौर पर भी देख रहे हैं?। उनका कहना है कि उद्धव ठाकरे के विवेक (नैतिकता) ने सुप्रीम कोर्ट के न्याय की जनता के सामने कलई खोल दी!

लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार व रंगकर्मी मंजुल भारद्वाज के एक लेख के अनुसार, जब सुप्रीम कोर्ट सरकार की जवाबदेही तय करने में नाकाम हो। ऐसे संकट काल में उद्धव ठाकरे की अघाड़ी सरकार ने महाराष्ट्र में शुचिता की मिसाल कायम की। यह बात दीगर है कि ईडी और सीबीआई के दम पर मौजूदा शिंदे सरकार अवैध रूप से महाराष्ट्र में कायम है। मंजुल के अनुसार, अवैध इसलिए...

माननीय उच्चतम न्यायालय
यह कैसा न्याय?
1.शिवसेना में फूट अवैध !
2.गवर्नर का बहुमत सिद्ध करने के लिए दिया आदेश अवैध
3.शिंदे गुट की वीप अवैध
4.शिंदे की पार्टी अवैध
5.चुनाव आयोग का निर्णय अवैध
6.शिव सेना से टूटकर गए विधायक अवैध
...तो फिर, सरकार वैध कैसे?

उद्धव ठाकरे के विवेक ( नैतिकता) ने सुप्रीम कोर्ट के न्याय की जनता के सामने कलई खोल दी! हालांकि कई राजनैतिक घाघ और सत्तापिपासु उद्धव ठाकरे की नैतिकता को राजनैतिक अपरिपक्वता मान रहे हैं। लेकिन आज घनघोर सत्ताभ्रष्ट नेताओं में उद्धव उज्जवल और धवल दिखते हैं। उनका मन इस बात से आहत हुआ कि जिनको पार्टी में सब कुछ दिया वही पीठ में छुरा घोंप कर चले गये, तो फिर सरकार में क्या रहना? मंजुल के अनुसार, उद्धव ने वो गाना चरितार्थ किया ‘ये दुनिया मिल भी जाए तो क्या है?’. 

वह कहते है कि शाबाश उद्धव! बाल ठाकरे ने अपना उत्तराधिकारी चुनते हुए उद्धव के इन्हीं गुणों को देखा होगा। राजनीति में विवेक की शक्ति का लोहा भारत में गांधी जी ने मनवाया था। उसके बाद नेहरु और लाल बहादुर शास्त्री जी तक यह परंपरा चली फिर येन-केन सत्ता प्रकरण हावी हो गया। आज तो इस कदर रसातल में पहुंच गया है कि ‘सत्यमेव जयते’ सलीब पर टंगा है और झूठ देश पर राज कर रहा है। हालांकि यह भी शिव सेना का इतिहास रहा है कि वो एक पार्टी के तौर पर ‘सडक छाप’ न्याय करने के लिए जानी जाती है। पर उद्धव ने एक शालीन सरकार चलाकर देश में मिसाल कायम की। विशेषकर एक हिन्दुत्ववादी पार्टी होते हुए ‘संविधान सम्मत’ शासन किया। उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी ने भीतरघात सहा पर हिंसा ना की ना होने दी।

उद्धव ठाकरे ने अपनी और अपनी पार्टी की एक नई पहचान आज भारत में बनाई है। क्योंकि लोकतंत्र संख्या बल से चलता हैं लेकिन संख्या विवेक हीन भीड़ बन जाए तो लोकतंत्र भीड़ तन्त्र बन जाता है और आज भारत में वही भीड़ तन्त्र और तानाशाह झूठ का परचम फ़हरा रहा है। और बाकी संवैधानिक लोकतान्त्रिक संस्थाएं तानाशाह के सामने रेंग रही हैं, चाहे सुप्रीम कोर्ट हो या चुनाव आयोग।

उद्धव ठाकरे की आज जीत हुई और सुप्रीम कोर्ट की हार। ऐसे में भारत की मालिक जनता भी अपना विवेक जगाए और भारतीय राजनीति में ‘विवेकशील’ राजनेताओं को चुने !

अब बात पड़ोसी पाकिस्तान की करें तो पाकिस्तान, जहां पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ़्तारी के कारण पूरा देश सड़क पर है। देशभर में अराजकता फैली है और कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं है, वहां भी कोर्ट ने न्याय किया। आख़िर कोर्ट के आदेश से इमरान रिहा कर दिए गए। हो सकता है अब एक- दो दिन में पाकिस्तान में अमन लौट आए! 

दरअसल, हुआ यह कि इमरान के वकील एक अर्ज़ी लेकर कोर्ट  पहुंचे। उन्होंने कहा- साहेब, कोई फ़ौज या कोई पुलिस, कोर्ट में सुनवाई चलते वक्त किसी को गिरफ्तार कैसे कर सकती है? पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान को तुरंत रिहा करने के आदेश दिए। कहा यह तो कोर्ट की अवमानना है। कोर्ट ने आदेश दिया कि तुरंत इमरान खान को कोर्ट में पेश किया जाए। जैसे ही इमरान को कोर्ट में लाया गया, कोर्ट ने कहा- अब इन्हें यहीं से तुरंत रिहा कर दें। मनमानी चल रही है। आप कोर्ट से ऊपर हैं क्या? बस, इमरान खान रिहा हो गए।

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