"केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का हवाला देते हुए एक लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया कि 1 अप्रैल, 2017 से 31 मार्च, 2022 तक 5 सालों में देश भर में पुलिस हिरासत में 669 मौत हुईं। गत वर्ष 2021-22 में 175 मामले दर्ज किए गए।"
खास यह है कि पिछले 2 वर्षों में मौतों के आंकड़े में 75% की बड़ी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। नित्यानंद राय ने कहा कि 2021-2022 के दौरान पुलिस हिरासत में मौत के कुल 175 मामले हुए जबकि 2020-2021 में 100, 2019-2021 में 112, 2018-2019 में 136 और 2017-2018 में 146 मामले दर्ज किए गए।
पिछले पांच सालों में पुलिस हिरासत में मौतों का आंकड़ा बढ़ा है। इन पांच सालों में पुलिस हिरासत में 669 मौत दर्ज की गई है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि 3 सालों में इस आंकड़े में 60% और 2 सालों में 75% की बढ़ोत्तरी हुई है। आंकड़े में यह भी खुलासा किया गया है कि महाराष्ट्र में मौतों का सिलसिला दस गुना, केरल में तीन गुना और बिहार, यूपी, गुजरात और कर्नाटक में दो गुना बढ़ा है।
कांग्रेस की राज्यसभा सांसद फूलो देवी नेताम द्वारा पुलिस हिरासत में हुई मौत और कितने लोगों के परिवार वालों को मुआवजा मिला है। इस पर सवाल किया गया था। जिसका जवाब देते हुए गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने राज्यवार आंकड़ों को पेश किया है। साथ ही यह भी बताया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 201 केसों में 5,80,74,998 राहत कोष की सिफारिश की गई थी। साथ ही पिछले पांच वित्तीय वर्षो के दौरान एक मामले में अनुशासनात्मक कारवाई शुरू की गई थी।
कांग्रेस सांसद ने अपने सवाल में पूछा था कि क्या सरकार पुलिस हिरासत में हो रही मौत और प्रताड़ना पर कोई कदम उठा रही है? जिसका जवाब देते हुए नित्यानंद राय ने कहा कि यह सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है और सरकार मानवाधिकार की रक्षा कर रही है। गृह राज्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार समय-समय पर सलाह जारी करती है और मानवाधिकार अधिनियम 1993 का संरक्षण करती है। जो लोक सेवकों द्वारा कथित मानवधिकारों के उल्लंघन को देखने के लिए एनएचआरसी और राज्य मानवाधिकार आयोगों की स्थापना को निर्धारित करती है।
राज्यसभा में पेश किए आंकड़ों में यह भी बताया गया कि अगर पूरे देश में पुलिस हिरासत में हुई मौत का जिक्र किया जाए तो आंकड़ा घटा है। जिसके अनुसार तीन सालों में साल 2017-18 में 146, 2018-19 में 136, फिर 2019-20 में 112 और 2020-21 में 100 मामले है। लेकिन साल 2021-22 में एक फिर आंकड़ा बढ़ा और 175 हो गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले 3 सालों में यह आंकडा़ बढ़कर 60% तक चला गया। तीन सालों में सबसे ज्यादा केस गुजरात (53) में दर्ज किए गए। इसके बाद महाराष्ट्र (46), मध्यप्रदेश (30), बिहार (26), राजस्थान(21), पश्चिम बंगाल(20) और उत्तर प्रदेश (19) मामले दर्ज किये गये हैं। 3 सालों में बढ़ती पुलिस हिरासत में हुई मौत के मामलों की संख्या 2019-20 में तीन से बढ़कर 2021-22 में 30 हो गई। गुजरात में इसी दौरान यह आंकडा़ 12 से बढ़कर 24 हो गया, राजस्थान में 5 से 13, कर्नाटक में 4 से 8, यूपी में 3 से 8 और केरल में 2 से 6 हो गया है।
राज्य सरकार की जिम्मेदारी
गृह राज्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि संविधान की 7वीं अनुसूची के अनुसार पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था राज्य के विषय हैं। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना मुख्य रूप से संबंधित राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। हालांकि, राय ने कहा, केंद्र सरकार समय-समय पर सलाह जारी करती है और मानवाधिकार अधिनियम (पीएचआर), 1993 का संरक्षण भी करती है, जो लोक सेवकों द्वारा कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करने के लिए NHRC और राज्य मानवाधिकार आयोग निर्धारित करते हैं। राय ने कहा, ‘एनएचआरसी मानव अधिकारों की बेहतर समझ और विशेष रूप से हिरासत में व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए लोक सेवकों को संवेदनशील बनाने के लिए समय-समय पर कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन भी करता है।’
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खास यह है कि पिछले 2 वर्षों में मौतों के आंकड़े में 75% की बड़ी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। नित्यानंद राय ने कहा कि 2021-2022 के दौरान पुलिस हिरासत में मौत के कुल 175 मामले हुए जबकि 2020-2021 में 100, 2019-2021 में 112, 2018-2019 में 136 और 2017-2018 में 146 मामले दर्ज किए गए।
पिछले पांच सालों में पुलिस हिरासत में मौतों का आंकड़ा बढ़ा है। इन पांच सालों में पुलिस हिरासत में 669 मौत दर्ज की गई है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि 3 सालों में इस आंकड़े में 60% और 2 सालों में 75% की बढ़ोत्तरी हुई है। आंकड़े में यह भी खुलासा किया गया है कि महाराष्ट्र में मौतों का सिलसिला दस गुना, केरल में तीन गुना और बिहार, यूपी, गुजरात और कर्नाटक में दो गुना बढ़ा है।
कांग्रेस की राज्यसभा सांसद फूलो देवी नेताम द्वारा पुलिस हिरासत में हुई मौत और कितने लोगों के परिवार वालों को मुआवजा मिला है। इस पर सवाल किया गया था। जिसका जवाब देते हुए गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने राज्यवार आंकड़ों को पेश किया है। साथ ही यह भी बताया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 201 केसों में 5,80,74,998 राहत कोष की सिफारिश की गई थी। साथ ही पिछले पांच वित्तीय वर्षो के दौरान एक मामले में अनुशासनात्मक कारवाई शुरू की गई थी।
कांग्रेस सांसद ने अपने सवाल में पूछा था कि क्या सरकार पुलिस हिरासत में हो रही मौत और प्रताड़ना पर कोई कदम उठा रही है? जिसका जवाब देते हुए नित्यानंद राय ने कहा कि यह सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है और सरकार मानवाधिकार की रक्षा कर रही है। गृह राज्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार समय-समय पर सलाह जारी करती है और मानवाधिकार अधिनियम 1993 का संरक्षण करती है। जो लोक सेवकों द्वारा कथित मानवधिकारों के उल्लंघन को देखने के लिए एनएचआरसी और राज्य मानवाधिकार आयोगों की स्थापना को निर्धारित करती है।
राज्यसभा में पेश किए आंकड़ों में यह भी बताया गया कि अगर पूरे देश में पुलिस हिरासत में हुई मौत का जिक्र किया जाए तो आंकड़ा घटा है। जिसके अनुसार तीन सालों में साल 2017-18 में 146, 2018-19 में 136, फिर 2019-20 में 112 और 2020-21 में 100 मामले है। लेकिन साल 2021-22 में एक फिर आंकड़ा बढ़ा और 175 हो गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले 3 सालों में यह आंकडा़ बढ़कर 60% तक चला गया। तीन सालों में सबसे ज्यादा केस गुजरात (53) में दर्ज किए गए। इसके बाद महाराष्ट्र (46), मध्यप्रदेश (30), बिहार (26), राजस्थान(21), पश्चिम बंगाल(20) और उत्तर प्रदेश (19) मामले दर्ज किये गये हैं। 3 सालों में बढ़ती पुलिस हिरासत में हुई मौत के मामलों की संख्या 2019-20 में तीन से बढ़कर 2021-22 में 30 हो गई। गुजरात में इसी दौरान यह आंकडा़ 12 से बढ़कर 24 हो गया, राजस्थान में 5 से 13, कर्नाटक में 4 से 8, यूपी में 3 से 8 और केरल में 2 से 6 हो गया है।
राज्य सरकार की जिम्मेदारी
गृह राज्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि संविधान की 7वीं अनुसूची के अनुसार पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था राज्य के विषय हैं। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना मुख्य रूप से संबंधित राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। हालांकि, राय ने कहा, केंद्र सरकार समय-समय पर सलाह जारी करती है और मानवाधिकार अधिनियम (पीएचआर), 1993 का संरक्षण भी करती है, जो लोक सेवकों द्वारा कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करने के लिए NHRC और राज्य मानवाधिकार आयोग निर्धारित करते हैं। राय ने कहा, ‘एनएचआरसी मानव अधिकारों की बेहतर समझ और विशेष रूप से हिरासत में व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए लोक सेवकों को संवेदनशील बनाने के लिए समय-समय पर कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन भी करता है।’
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