NHRC ने असम सरकार को दिया हेट क्राइम सर्वाइवर को 1 लाख मुआवजा देने का आदेश

Written by Sabrangindia Staff | Published on: September 18, 2020
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने असम सरकार को एक व्यक्ति को एक लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया है। पीड़ित की बिश्वनाथ जिले में अपनी चाय की दुकान में है। उस पर आरोप था कि अप्रैल 2019 में उसने चाय की दुकान में गोमांस बेचा। इसके बाद भीड़ ने उसकी बहुत पिटाई की थी। उसी मामले में एनएचआरसी ने उक्त आदेश दिया है। साथ ही चेतावनी दी है कि यदि चार सप्ताह के भीतर आरोपियों के खिलाफ उसे रिपोर्ट नहीं भेजी जाती है तो आयोग पुलिस महानिदेशक के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर सकता है।



एनएचआरसी ने इस तथ्य का गंभीर संज्ञान लिया कि न तो मुख्य सचिव ने कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया और न ही पुलिस महानिदेशक ने मामले में आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई संबंधी रिपोर्ट जमा की। एनएचआरसी के सहायक पंजीयक (कानून) द्वारा मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा गया कि आयोग असम सरकार को शौकत अली को एक लाख रुपये की राशि देने का आदेश देता है। पिछले साल सात अप्रैल को भीड़ ने शौकत अली (48) को चाय की दुकान पर गोमांस बेचने के कारण कुछ पुलिसकर्मियों के सामने पीटा था। यही नहीं उसे सुअर का पका हुआ मांस भी खिलाया गया था। शौकत अली को दुकान खोलने की अनुमति देने के लिए बाजार के एक ठेकेदार को भी कथित रूप से पीटा गया था।

अपराधियों ने घटना का वीडियो भी बनाया था, जो बाद में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। वीडियो क्लिप में अली को कीचड़ में बैठे देखा जा सकता है, उसके कपड़ों के चारों ओर गंदगी है। वह गुस्साई हुई भीड़ से घिरा हुआ है। भीड़ अली से पूछ रही है कि वह गोमांस क्यों बेच रहा था। क्या उसके पास गोमांस बेचने का लाइसेंस है? भीड़ अली से उसकी राष्ट्रीयता के बारे में भी पूछताछ करती दिखाई देती है। भीड़ पूछती है, क्या आप बांग्लादेशी हैं? आपका नाम NRC (नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर) में है?

इस संबंध में असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देवव्रत सैकिया ने एनएचआरसी से शिकायत की थी। आयोग ने 9 सितंबर को मामले पर विचार करते हुए कहा, ‘मुख्य सचिव ने इस मामले में कारण बताओ नोटिस का जवाब नहीं दिया। पुलिस महानिदेशक ने भी मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की।’ आयोग ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था, उसमें एनएचआरसी ने रेखांकित किया था कि प्रथम दृष्टया मामला पीड़ित के मानवाधिकारों के उल्लंघन का है। इसके लिए राज्य पीड़ित की क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है।

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