आदिवासी समुदाय ने जहां उन्हें वनवासी कहे जाने पर अत्यंत कड़ी टिप्पणी की है और अपनी इस टिप्पणी के लिए गुजरात के भाजपा नेता हार्दिक पटेल से माफी मांगने की मांग भी की है। हार्दिक पटेल के, भगवान श्री बिरसा मुंडा को वनवासी बताए जाने पर ट्राइबल आर्मी आदि ने #हार्दिक_पटेल_माफी_मांगें" ट्रेंड कराया। ट्राइबल आर्मी ने ट्वीट कर कहा कि वनवासी तो कोई भी हो सकता है लेकिन हर कोई आदिवासी नहीं हो सकता है। अत: अपील है कि भारत के आदिवासियों को वननिवासी शब्द से संबोधित न किया जाए। उन्होंने कहा, वनवासी बोलकर उनकी मूल पहचान पर आक्रमण न किया जाए। उधर, आदिवासी नेता हंसराज मीणा ने इसे आदिवासी स्वाभिमान से जोड़ते हुए ट्वीट किया कि वनवासी नहीं आदिवासी हैं हम, यहां के मूलनिवासी हैं हम।
स्वाभिमान और संघर्ष का जज्बा ही है जिसकी बदौलत आदिवासी हलकों से दो अच्छी खबर आई हैं। पहली, हक के लिए महीनों से संघर्ष कर रहे हसदेव अरण्य (जंगल) में छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार के कुछ झुकने की खबर है। दूसरा, वन भूमि (जमीन) पर कब्जे के आरोप में जेल भेजी गई तेलंगाना की 12 आदिवासी महिलाओं ने छूटते ही एक बार फिर से संघर्ष की हुंकार भरी है। उन्होंने कहा है कि वे फिर से वही करेंगे और करते रहेंगे, जिसके लिए वे जेल गई थीं। किसी भी सूरत में वो और उनका परिवार अपनी ज़मीन नहीं छोड़ेगा।
दरअसल हसदेव जंगल के माइनिंग प्रोजेक्ट अनिश्चितकाल के लिए होल्ड पर रखे जाने की खबर है। मीडिया व एमबीबी की एक रिपोर्ट के अनुसार, भूपेश बघेल के क़रीबी सूत्रों ने बताया है कि सरकार ने टीएस सिंह देव के खुले विरोध के बाद यह फ़ैसला लिया है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लेमरू कॉरिडॉर का दायरा 450 वर्ग किलोमीटर से बढ़ाकर 3400 वर्ग किलोमीटर करने का फ़ैसला किया। इस फ़ैसले से इलाक़े में माइनिंग का रास्ता ही बंद हो जाता। लेकिन उस समय टीएस सिंह देव ने फ़ैसले का विरोध किया था। क्योंकि उनका विधानसभा क्षेत्र भी उस दायरे में आ रहा था।
पहले बात तेलंगाना की। जहां बुधवार को 12 आदिवासी महिलाओं ने जेल से छूटते ही दोहराया है कि वो फिर वही करेंगी, जिसके लिए उन्हें पुलिस ने जेल में डाला था। उन्होंने कहा कि किसी भी सूरत में उनका परिवार अपनी ज़मीन नहीं छोड़ेगा। इन आदिवासी महिलाओं का कहना है कि सरकार जिसे वन विभाग की ज़मीन कहती है उस पर वो (आदिवासी) कई पुश्तों से खेती कर रहे हैं। तेलंगाना पुलिस ने 12 आदिवासी महिलाओं को ग़िरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था। इन महिलाओं को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में रखने का हुक्म हुआ था।
प्रशासन की तरफ़ से इन आदिवासी महिलाओं पर ज़मीन क़ब्ज़ा करने का मुक़दमा दायर किया गया है। आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से जंगल की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने का प्रयास किया है। इसी के चलते वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत इन आदिवासी महिलाओं पर मुकदमा कायम किया गया है। अगर इस क़ानून के तहत आरोप साबित हो जाता है तो उन्हें 6 साल की सज़ा हो सकती है। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार इन महिलाओं ने जबरन जंगल की ज़मीन को साफ़ किया। इस ज़मीन पर ये औरतें खेती करना चाहती थीं। वन विभाग का कहना है कि पहले आदिवासी पुरूष ज़मीन क़ब्ज़ा करते थे। कई पुरुष आदिवासी भी गिरफ्तार हुए जो बाद में ज़मानत पर छूट गए थे लेकिन अब महिलाओं को आगे किया जा रहा है। आरोप है कि जिन 12 महिलाओं को जेल भेजा गया है उन्होंने जंगल में घुस कर कम से कम 2-3 हेक्टेयर भूमि को साफ़ कर के खेती लायक़ बना लिया था। अधिकारियों का कहना है कि जनाराम जंगल का यह भाग टाइगर रिज़र्व के तहत आता है। जंगल के इस हिस्से की सैटेलाइट तस्वीरें बताती हैं कि यहां पर पहले खेती नहीं होती रही है। लेकिन आदिवासियों का दावा अलग है।
डांडेंपल्ली ब्लॉक के कोयपोचागुडा आदिवासियों का कहना है कि वन अधिकारी ग़लत सूचना दे रहे हैं। उनका दावा है कि वो कई बरस से इस जंगल में पोडु खेती करते रहे हैं। तेलंगाना में पोडु भूमि के मसले पर वन विभाग, पुलिस और आदिवासियों में संघर्ष की ख़बरें मिलती रहती हैं। आदिवासी कहते हैं कि जंगल में वो बरसों से खेती करते रहे हैं। लेकिन सरकार के अधिकारी आदिवासियों के इन दावों को मानते नहीं हैं। इसकी वजह से इन इलाक़ों में लगातार संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। बहरहाल वन विभाग महिलाओं के संघर्ष के जज्बे को नहीं तोड़ सका है।
उधर, हसदेव जंगल के माइनिंग प्रोजेक्ट अनिश्चितकाल के लिए होल्ड पर रखे जाने की राहत भरी खबर है। सीएम भूपेश बघेल के एक क़रीबी ने बताया है कि सरकार ने टीएस सिंह देव के खुले विरोध के बाद यह फ़ैसला लिया है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लेमरू कॉरिडॉर का दायरा 450 वर्ग किलोमीटर से बढ़ा कर 3400 वर्ग किलोमीटर करने का फ़ैसला किया। इस फ़ैसले से इस इलाक़े में माइनिंग का रास्ता ही बंद हो जाता। लेकिन उस समय टीएस सिंह देव ने इस फ़ैसले का विरोध किया था। क्योंकि उनका विधान सभा क्षेत्र भी उस दायरे में आ रहा था।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हसदेव अरण्य के जंगल में तीन खदान परियोजनाओं को अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने यह फ़ैसला सरगुजा और सूरजपुर के आदिवासियों के विरोध के कारण लिया है। ख़बरों के अनुसार राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के हस्तक्षेप के बाद यह फ़ैसला लिया गया है। टीएस सिंह देव 6 जून को उन गाँवों के दौरे पर गए थे जहां आदिवासी प्रदर्शन कर रहे थे। इस दौरान टीएस सिंह देव ने अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन को समर्थन दिया था।
हालाँकि पहले फ़ेज़ की माइनिंग चालू रहेगी। लेकिन दूसरे फ़ेज़ की माइनिंग के लिए सभी सरकारी प्रक्रिया को रोक दिया गया है। इसमें दूसरे फ़ेज़, पारसा और केट एक्सटेंशन माइनिंग को फ़िलहाल रोक दिया गया है। इस सिलसिले में सूरजपुर के कलेक्टर संजीव झा ने मीडिया को सरकार का फ़ैसला बताया है। उन्होंने कहा कि जो माइनिंग 2013 से चल रही है वो चालू रहेगी। छत्तीसगढ़ सरकार ने 841 हेक्टेयर जंगल पर पारसा माइनिंग की अंतिम अनुमति प्रदान की थी। यह अनुमति इसी साल 6 अप्रैल को ही दी गई थी। इससे पहले मार्च महीने में अनुमति दी गई थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कलेक्टर ने जानकारी दी है कि 1760 हेक्टेयर भूमि पर केंटे एक्सटेंशन माइनिंग के लिए 13 जून को होने वाली जन सुनवाई को भी रद्द कर दिया गया है। ये तीनों ही माइनिंग प्रोजेक्ट राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को अलॉट हुए हैं।
हसदेव बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला ने इस बात की पुष्टि की है कि ज़िला प्रशासन ने इस तरह की घोषणा की है लेकिन अभी तक इस सिलसिले में कोई औपचारिक नोटिफिकेशन नहीं आया है। उन्होंने आगे कहा कि फ़िलहाल प्रशासन जो बता रहा है उसके अनुसार प्रोजेक्ट को होल्ड पर रखा जा रहा है। लेकिन आंदोलन तो इन प्रोजेक्ट्स को रद्द करने के लिए हो रहा है।
मामले में राजनीति भी तेज हो गई है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि अगर टीएस सिंह देव चाहते हैं कि जंगल में एक भी पेड़ ना काटा जाए, तो फिर जंगल में पेड़ तो क्या एक डगाल (शाख़) भी नहीं काटी जाएगी. उसके बाद राज्य के शीर्ष अधिकारियों ने ज़िला प्रशासन को आदेश दिया कि प्रोजेक्ट को होल्ड पर रखा जाए। वही टीएस सिंह देव ने मीडिया से बात करते हुए कहा है कि यह बात सही है कि जब एलिफ़ेंट कॉरिडोर को 3400 वर्ग किलोमीटर करने का फ़ैसला लिया गया था, उस समय लोगों ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि जहां हाथी का निवास नहीं है या जहां से वो आवाजाही नहीं करते हैं, उसे इस दायरे से बाहर रखा जाए। टीएस सिंह देव के अनुसार उन्होंने ग्रामीणों की बात को उठाया था। उनकी अनुमति के बिना हसदेव में खनन की अनुमति को आगे नहीं बढ़ाने के फ़ैसले को उन्होंने बचकाना बताया है। उन्होंने कहा कि प्रशासन किसी एक व्यक्ति की वजह से एक प्रोजेक्ट को होल्ड पर कैसे रख सकता है।
राहुल गांधी की अदालत में मामला!
पिछले दिनों राहुल गांधी से विदेश में हसदेव अरण्य से जुड़ा सवाल पूछा गया था जिस पर उन्होंने कहा था कि इस मसले पर पार्टी के भीतर चर्चा चल रही है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया था कि इस मसले पर जल्दी ही कुछ परिणाम सामने आएगा। राहुल गांधी ने कहा था कि वह व्यक्तिगत तौर पर यह मानते हैं कि जंगल नहीं काटा जाना चाहिए। ऐसा बताया जा रहा है कि राज्य सरकार ने सब कुछ रोक दिया है क्योंकि अब मामला कांग्रेस पार्टी हाईकमान तय करेगी।
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स्वाभिमान और संघर्ष का जज्बा ही है जिसकी बदौलत आदिवासी हलकों से दो अच्छी खबर आई हैं। पहली, हक के लिए महीनों से संघर्ष कर रहे हसदेव अरण्य (जंगल) में छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार के कुछ झुकने की खबर है। दूसरा, वन भूमि (जमीन) पर कब्जे के आरोप में जेल भेजी गई तेलंगाना की 12 आदिवासी महिलाओं ने छूटते ही एक बार फिर से संघर्ष की हुंकार भरी है। उन्होंने कहा है कि वे फिर से वही करेंगे और करते रहेंगे, जिसके लिए वे जेल गई थीं। किसी भी सूरत में वो और उनका परिवार अपनी ज़मीन नहीं छोड़ेगा।
दरअसल हसदेव जंगल के माइनिंग प्रोजेक्ट अनिश्चितकाल के लिए होल्ड पर रखे जाने की खबर है। मीडिया व एमबीबी की एक रिपोर्ट के अनुसार, भूपेश बघेल के क़रीबी सूत्रों ने बताया है कि सरकार ने टीएस सिंह देव के खुले विरोध के बाद यह फ़ैसला लिया है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लेमरू कॉरिडॉर का दायरा 450 वर्ग किलोमीटर से बढ़ाकर 3400 वर्ग किलोमीटर करने का फ़ैसला किया। इस फ़ैसले से इलाक़े में माइनिंग का रास्ता ही बंद हो जाता। लेकिन उस समय टीएस सिंह देव ने फ़ैसले का विरोध किया था। क्योंकि उनका विधानसभा क्षेत्र भी उस दायरे में आ रहा था।
पहले बात तेलंगाना की। जहां बुधवार को 12 आदिवासी महिलाओं ने जेल से छूटते ही दोहराया है कि वो फिर वही करेंगी, जिसके लिए उन्हें पुलिस ने जेल में डाला था। उन्होंने कहा कि किसी भी सूरत में उनका परिवार अपनी ज़मीन नहीं छोड़ेगा। इन आदिवासी महिलाओं का कहना है कि सरकार जिसे वन विभाग की ज़मीन कहती है उस पर वो (आदिवासी) कई पुश्तों से खेती कर रहे हैं। तेलंगाना पुलिस ने 12 आदिवासी महिलाओं को ग़िरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था। इन महिलाओं को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में रखने का हुक्म हुआ था।
प्रशासन की तरफ़ से इन आदिवासी महिलाओं पर ज़मीन क़ब्ज़ा करने का मुक़दमा दायर किया गया है। आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से जंगल की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने का प्रयास किया है। इसी के चलते वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत इन आदिवासी महिलाओं पर मुकदमा कायम किया गया है। अगर इस क़ानून के तहत आरोप साबित हो जाता है तो उन्हें 6 साल की सज़ा हो सकती है। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार इन महिलाओं ने जबरन जंगल की ज़मीन को साफ़ किया। इस ज़मीन पर ये औरतें खेती करना चाहती थीं। वन विभाग का कहना है कि पहले आदिवासी पुरूष ज़मीन क़ब्ज़ा करते थे। कई पुरुष आदिवासी भी गिरफ्तार हुए जो बाद में ज़मानत पर छूट गए थे लेकिन अब महिलाओं को आगे किया जा रहा है। आरोप है कि जिन 12 महिलाओं को जेल भेजा गया है उन्होंने जंगल में घुस कर कम से कम 2-3 हेक्टेयर भूमि को साफ़ कर के खेती लायक़ बना लिया था। अधिकारियों का कहना है कि जनाराम जंगल का यह भाग टाइगर रिज़र्व के तहत आता है। जंगल के इस हिस्से की सैटेलाइट तस्वीरें बताती हैं कि यहां पर पहले खेती नहीं होती रही है। लेकिन आदिवासियों का दावा अलग है।
डांडेंपल्ली ब्लॉक के कोयपोचागुडा आदिवासियों का कहना है कि वन अधिकारी ग़लत सूचना दे रहे हैं। उनका दावा है कि वो कई बरस से इस जंगल में पोडु खेती करते रहे हैं। तेलंगाना में पोडु भूमि के मसले पर वन विभाग, पुलिस और आदिवासियों में संघर्ष की ख़बरें मिलती रहती हैं। आदिवासी कहते हैं कि जंगल में वो बरसों से खेती करते रहे हैं। लेकिन सरकार के अधिकारी आदिवासियों के इन दावों को मानते नहीं हैं। इसकी वजह से इन इलाक़ों में लगातार संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। बहरहाल वन विभाग महिलाओं के संघर्ष के जज्बे को नहीं तोड़ सका है।
उधर, हसदेव जंगल के माइनिंग प्रोजेक्ट अनिश्चितकाल के लिए होल्ड पर रखे जाने की राहत भरी खबर है। सीएम भूपेश बघेल के एक क़रीबी ने बताया है कि सरकार ने टीएस सिंह देव के खुले विरोध के बाद यह फ़ैसला लिया है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लेमरू कॉरिडॉर का दायरा 450 वर्ग किलोमीटर से बढ़ा कर 3400 वर्ग किलोमीटर करने का फ़ैसला किया। इस फ़ैसले से इस इलाक़े में माइनिंग का रास्ता ही बंद हो जाता। लेकिन उस समय टीएस सिंह देव ने इस फ़ैसले का विरोध किया था। क्योंकि उनका विधान सभा क्षेत्र भी उस दायरे में आ रहा था।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हसदेव अरण्य के जंगल में तीन खदान परियोजनाओं को अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने यह फ़ैसला सरगुजा और सूरजपुर के आदिवासियों के विरोध के कारण लिया है। ख़बरों के अनुसार राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के हस्तक्षेप के बाद यह फ़ैसला लिया गया है। टीएस सिंह देव 6 जून को उन गाँवों के दौरे पर गए थे जहां आदिवासी प्रदर्शन कर रहे थे। इस दौरान टीएस सिंह देव ने अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन को समर्थन दिया था।
हालाँकि पहले फ़ेज़ की माइनिंग चालू रहेगी। लेकिन दूसरे फ़ेज़ की माइनिंग के लिए सभी सरकारी प्रक्रिया को रोक दिया गया है। इसमें दूसरे फ़ेज़, पारसा और केट एक्सटेंशन माइनिंग को फ़िलहाल रोक दिया गया है। इस सिलसिले में सूरजपुर के कलेक्टर संजीव झा ने मीडिया को सरकार का फ़ैसला बताया है। उन्होंने कहा कि जो माइनिंग 2013 से चल रही है वो चालू रहेगी। छत्तीसगढ़ सरकार ने 841 हेक्टेयर जंगल पर पारसा माइनिंग की अंतिम अनुमति प्रदान की थी। यह अनुमति इसी साल 6 अप्रैल को ही दी गई थी। इससे पहले मार्च महीने में अनुमति दी गई थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कलेक्टर ने जानकारी दी है कि 1760 हेक्टेयर भूमि पर केंटे एक्सटेंशन माइनिंग के लिए 13 जून को होने वाली जन सुनवाई को भी रद्द कर दिया गया है। ये तीनों ही माइनिंग प्रोजेक्ट राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को अलॉट हुए हैं।
हसदेव बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला ने इस बात की पुष्टि की है कि ज़िला प्रशासन ने इस तरह की घोषणा की है लेकिन अभी तक इस सिलसिले में कोई औपचारिक नोटिफिकेशन नहीं आया है। उन्होंने आगे कहा कि फ़िलहाल प्रशासन जो बता रहा है उसके अनुसार प्रोजेक्ट को होल्ड पर रखा जा रहा है। लेकिन आंदोलन तो इन प्रोजेक्ट्स को रद्द करने के लिए हो रहा है।
मामले में राजनीति भी तेज हो गई है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि अगर टीएस सिंह देव चाहते हैं कि जंगल में एक भी पेड़ ना काटा जाए, तो फिर जंगल में पेड़ तो क्या एक डगाल (शाख़) भी नहीं काटी जाएगी. उसके बाद राज्य के शीर्ष अधिकारियों ने ज़िला प्रशासन को आदेश दिया कि प्रोजेक्ट को होल्ड पर रखा जाए। वही टीएस सिंह देव ने मीडिया से बात करते हुए कहा है कि यह बात सही है कि जब एलिफ़ेंट कॉरिडोर को 3400 वर्ग किलोमीटर करने का फ़ैसला लिया गया था, उस समय लोगों ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि जहां हाथी का निवास नहीं है या जहां से वो आवाजाही नहीं करते हैं, उसे इस दायरे से बाहर रखा जाए। टीएस सिंह देव के अनुसार उन्होंने ग्रामीणों की बात को उठाया था। उनकी अनुमति के बिना हसदेव में खनन की अनुमति को आगे नहीं बढ़ाने के फ़ैसले को उन्होंने बचकाना बताया है। उन्होंने कहा कि प्रशासन किसी एक व्यक्ति की वजह से एक प्रोजेक्ट को होल्ड पर कैसे रख सकता है।
राहुल गांधी की अदालत में मामला!
पिछले दिनों राहुल गांधी से विदेश में हसदेव अरण्य से जुड़ा सवाल पूछा गया था जिस पर उन्होंने कहा था कि इस मसले पर पार्टी के भीतर चर्चा चल रही है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया था कि इस मसले पर जल्दी ही कुछ परिणाम सामने आएगा। राहुल गांधी ने कहा था कि वह व्यक्तिगत तौर पर यह मानते हैं कि जंगल नहीं काटा जाना चाहिए। ऐसा बताया जा रहा है कि राज्य सरकार ने सब कुछ रोक दिया है क्योंकि अब मामला कांग्रेस पार्टी हाईकमान तय करेगी।
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