वनाधिकार: तेलांगना में वन भूमि पर कब्जे के आरोप में 12 आदिवासी महिलाओं को जेल भेजा

Written by Navnish Kumar | Published on: June 7, 2022
वन भूमि पर अतिक्रमण करने के प्रयास के आरोपों में मंचेरियल की 12 आदिवासी महिलाओं को गिरफ्तार जेल भेज दिया गया। उन पर विभिन्न धाराओं के साथ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत मामला दर्ज किया गया था। अगर इस क़ानून के तहत आरोप साबित हो जाता है तो उन्हें 6 साल की सज़ा हो सकती है।



प्रकरण तेलंगाना राज्य का है जहां 12 आदिवासी औरतों को ग़िरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है। फ़िलहाल इन सभी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में रखने का हुक्म हुआ है। इन आदिवासी महिलाओं पर ज़मीन क़ब्ज़ा करने का मुक़दमा दायर किया गया है। आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से जंगल की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने का प्रयास किया है। हालांकि जानकारों के अनुसार वनाधिकार कानून 2006 के आने के बाद इस तरह कब्जे आदि के आरोप लगाया जाना जितना हास्यास्पद है उतना ही गंभीर भी है। 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वन अधिकारियों का कहना है कि इन महिलाओं ने जबरन जंगल की ज़मीन को साफ़ किया। इस ज़मीन पर ये औरतें खेती करना चाहती थीं। वन विभाग का कहना है कि पहले आदिवासी पुरूष ज़मीन क़ब्ज़ा करते थे। कई आदमी गिरफ्तार भी हुए जो बाद में ज़मानत पर छूट गए थे। लेकिन हाल-फिलहाल में देखा गया है कि औरतें को ज़मीन क़ब्ज़ा करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

बताया गया है कि जिन औरतों को जेल भेजा गया है। उन्होंने जंगल में घुस कर कम से कम 2-3 हेक्टेयर भूमि को साफ़ कर के खेती लायक़ बना लिया था। अधिकारियों का कहना है कि जनाराम जंगल का यह भाग टाइगर रिज़र्व के तहत आता है। जंगल के इस हिस्से की सैटेलाइट तस्वीरें बताती हैं कि यहाँ पर पहले खेती नहीं होती रही है। वन रेंज अधिकारी का कहना है कि "कोइपोचिगुडा बस्ती को वन अधिकार अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त नहीं है।" वन अधिकारियों के अनुसार, कवल टाइगर रिजर्व के मुख्य क्षेत्र में अतिक्रमण वन्यजीवों को परेशान कर रहा है और मानव-पशु संघर्ष का कारण बन रहा है। नतीजतन, उन्होंने अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं, जिनमें से अधिकांश आदिवासी समुदायों से हैं। 

वन क्षेत्र से सटे रहने वाले लोगों ने पिछले चार-पांच महीने से वन भूमि पर खेती करने के लिए पेड़ों को काट दिया है। जब अधिकारियों को लिंगपुर में कंपार्टमेंट 379 में पेड़ काटने का पता चला, तो वे घटनास्थल पर पहुंचे और आदिवासियों को और पेड़ काटने से रोका। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आरोपियों के खिलाफ दस मुकदमे दर्ज किए गए हैं।

उधर, आदिवासी सेना के प्रदेशाध्यक्ष कोवा दौलत राव आदि का कहना है "कोइपोचिगुडा गांव वनाधिकार कानून  के तहत नहीं आता है, तो यह कैसे हुआ?" वही, रिपोर्ट के अनुसार, आदिलाबाद के सांसद और भाजपा नेता सोयम बापू राव ने 12 आदिवासी महिलाओं से मुलाकात की, जिन्हें वन अतिक्रमण के अलग-अलग मामलों में हिरासत में लिया गया था और उन्हें आदिलाबाद जिला जेल भेजा गया था। राव ने महिलाओं को साड़ी और फल दिए और वादा किया कि इस समस्या को एसटी आयोग, एनडब्ल्यूसी और केंद्र के समक्ष उठाया जाएगा।

वन अधिकारियों के अनुसार, पिछले साल मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कहा था कि सरकार पट्टा जारी करेगी, तब से वन भूमि पर अतिक्रमण बढ़ गया है। आवेदन की अवधि समाप्त होने के बावजूद अधिकारियों ने समस्या के समाधान के लिए कोई कदम नहीं उठाया। प्रशासन को कोई समाधान खोजना चाहिए था।

उधर, डांडेंपल्ली के कोयपोचागुडा आदिवासियों का कहना है कि वन अधिकारी ग़लत सूचना दे रहे हैं। उनका दावा है कि वो कई बरस से इस जंगल में पोडु खेती करते रहे हैं। तेलंगाना में पोडु भूमि के मसले पर वन विभाग, पुलिस और आदिवासियों में संघर्ष की ख़बरें मिलती रहती हैं। आदिवासी कहते हैं कि जंगल में वो बरसों से खेती करते रहे हैं। लेकिन सरकार के अधिकारी आदिवासियों के इन दावों को मानते नहीं हैं। इसकी वजह से इन इलाक़ों में लगातार संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। ऐसे में सवाल वन भूमि के अतिक्रमण से ज्यादा आदिवासियों के हक हकूकों और वनाधिकार कानून के अनुपालन का है?, जो आदिवासियों के वन भूमि पर अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है और जिस पर भी सरकारों को सोचना होगा।

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