अधिकारों को लेकर जागरूकता गोष्ठी में पढ़ी लिखी महिलाओं व लड़कियों की भागीदारी से आयोजक भी खुश नजर आए
प्राचीन काल में भारतीय महिलाओं की स्थिति आधुनिक काल से अच्छी थी। महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर समाज में काम करती थीं। लेकिन आज महिलाओं की स्थिति ख़राब है। हालांकि संविधान और कानून ने महिलाओं को बहुत से अधिकार दिए हैं, लेकिन समाज ने नहीं दिए हैं। इसके लिए महिलाएं खुद भी काफी हद तक ज़िम्मेवार हैं। ऐसे में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाया जा सके, इसके लिए हमें अपने घर से ही शुरुआत करनी होगी।
यह कहना है महिला और शिक्षा के अधिकार पर काम करने वाली महिला अधिकार कार्यकर्ता व उत्तराखंड महिला समाख्या की पहली निदेशक गीता गैरोला का। गीता, हरिद्वार के घाड़ क्षेत्र के बंजारेवाला गांव में अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन और विकल्प सामाजिक संस्था द्वारा महिला अधिकारों के संवैधानिक प्रशिक्षण एवं परिचर्चा विषय पर आयोजित महिला अधिकार गोष्ठी एवं परिचर्चा में बोल रही थीं। गीता महिलाओं के शिक्षित होने के साथ समानता के व्यवहार की शुरुआत अपने खुद के घर से करने की बात कहती हैं। उनका कहना है कि भारत के एक विकसित देश बनने के लिए भी यह आवश्यक है कि भारतीय महिलाएं सशक्त हो और राजनीति से लेकर सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक क्षेत्रों में बराबर की भागीदार बनें।
उन्होंने कहा कि महिलाओं को अपने अधिकार पाने के लिए खुद आगे बढ़ना होगा। नारी आगे बढ़ेगी, तभी देश आगे बढ़ेगा। इसके साथ ही लोगों को भी अपनी सोच बदलनी होगी।
एडवोकेट अनिता ने संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों की विस्तृत जानकारी महिलाओं को दी। महिला सुरक्षा और घरेलू हिंसा आदि की बाबत कानूनी पहलुओं को लेकर जागरूक किया। कहा, महिला हिंसा जैसी बुराईयों की आज समाज में कोई जगह नहीं हो सकती है। याद रहे महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। जरूरत हौसलों के बल पर आगे बढ़ने की है। लड़कियों से किसी भी मामले में पिता की बजाय, मां ज्यादा टोका-टाकी करती है। इसलिए भी महिलाओं का शिक्षित होना, अपने अधिकारों को समझना और उन्हें हासिल करने का प्रयास करना बहुत ज्यादा जरूरी है। तभी वह ऊपर उठ सकती हैं। अनिता ने कहा कि महिलाओं को संविधान और कानून ने बहुत अधिकार दिए हैं, लेकिन समाज उनके इन अधिकारों का हनन करता है। इसके लिए महिलाओं का शिक्षित व जागरूक होना बहुत जरूरी है।
क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तियों में मास्टर ब्रजमोहन ने कहा कि संविधान महिलाओं को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार देता है लेकिन उसके बावजूद, घरेलू हिंसा पर कानून बनाने की जरूरत पड़ती है तो इसे सरकारों और समाज दोनों के लिए शर्मनाक ही कहा जाएगा। महिलाओं के लिए समान अधिकार हैं। जरूरत उन्हें पाने और समझने की है। उन्होंने बालिका भ्रूण हत्या आदि का उदाहरण देते हुए महिलाओं की दुर्दशा के लिए महिलाओं को भी ज़िम्मेवार ठहराया।
मास्टर जगपाल सिंह ने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति महिला व पुरुष जन्म से ही कुछ मूल अधिकारों के साथ इस धरती पर आता है। ये अधिकार उसके जन्म से लेकर मरण तक उसके साथ रहते हैं। जीवन जीने की स्वतंत्रता, समानता का अधिकार, विकास के अवसर प्राप्त करने का अधिकार या अन्य प्रकार के अधिकार, लेकिन आज प्रत्येक अधिकार में महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। इसके लिए महिलाओं को शिक्षित व जागरूक होने की जरूरत है।
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय सचिव मुन्नीलाल ने कहा कि अधिकार न मिलने के पीछे महिलाएं खुद जिम्मेदार हैं। मसलन ग्राम प्रधान महिला होती है, लेकिन प्रधानी उसका पति करता है। अब चुनाव आ रहे हैं तो कम से कम महिला सीट से निर्वाचित महिलाओं को इस बात का संकल्प लेना होगा। उन्होंने भूमि व वनाधिकार के साथ जमीन व सम्पत्ति के मालिकाना हक को लेकर भी महिलाओं को जागरूक किया। कहा, संपत्ति का अधिकार महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।
गोष्ठी में पढ़ी लिखी महिलाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी से आयोजकों के चेहरे खिले दिखे। वहीं, महिलाओं ने अधिकारों के प्रति जिज्ञासा और जागरूकता दिखाते हुए सवाल भी किए। मसलन, युवा महिला बबिता ने प्राइवेट कॉलेजों में महंगी फीस और शिक्षा की स्थिति को लेकर सवाल उठाया तो मोनिका ने महिला स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक गैर-बराबरी को लेकर सवाल उठाया।
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प्राचीन काल में भारतीय महिलाओं की स्थिति आधुनिक काल से अच्छी थी। महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर समाज में काम करती थीं। लेकिन आज महिलाओं की स्थिति ख़राब है। हालांकि संविधान और कानून ने महिलाओं को बहुत से अधिकार दिए हैं, लेकिन समाज ने नहीं दिए हैं। इसके लिए महिलाएं खुद भी काफी हद तक ज़िम्मेवार हैं। ऐसे में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाया जा सके, इसके लिए हमें अपने घर से ही शुरुआत करनी होगी।
यह कहना है महिला और शिक्षा के अधिकार पर काम करने वाली महिला अधिकार कार्यकर्ता व उत्तराखंड महिला समाख्या की पहली निदेशक गीता गैरोला का। गीता, हरिद्वार के घाड़ क्षेत्र के बंजारेवाला गांव में अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन और विकल्प सामाजिक संस्था द्वारा महिला अधिकारों के संवैधानिक प्रशिक्षण एवं परिचर्चा विषय पर आयोजित महिला अधिकार गोष्ठी एवं परिचर्चा में बोल रही थीं। गीता महिलाओं के शिक्षित होने के साथ समानता के व्यवहार की शुरुआत अपने खुद के घर से करने की बात कहती हैं। उनका कहना है कि भारत के एक विकसित देश बनने के लिए भी यह आवश्यक है कि भारतीय महिलाएं सशक्त हो और राजनीति से लेकर सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक क्षेत्रों में बराबर की भागीदार बनें।
उन्होंने कहा कि महिलाओं को अपने अधिकार पाने के लिए खुद आगे बढ़ना होगा। नारी आगे बढ़ेगी, तभी देश आगे बढ़ेगा। इसके साथ ही लोगों को भी अपनी सोच बदलनी होगी।
एडवोकेट अनिता ने संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों की विस्तृत जानकारी महिलाओं को दी। महिला सुरक्षा और घरेलू हिंसा आदि की बाबत कानूनी पहलुओं को लेकर जागरूक किया। कहा, महिला हिंसा जैसी बुराईयों की आज समाज में कोई जगह नहीं हो सकती है। याद रहे महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। जरूरत हौसलों के बल पर आगे बढ़ने की है। लड़कियों से किसी भी मामले में पिता की बजाय, मां ज्यादा टोका-टाकी करती है। इसलिए भी महिलाओं का शिक्षित होना, अपने अधिकारों को समझना और उन्हें हासिल करने का प्रयास करना बहुत ज्यादा जरूरी है। तभी वह ऊपर उठ सकती हैं। अनिता ने कहा कि महिलाओं को संविधान और कानून ने बहुत अधिकार दिए हैं, लेकिन समाज उनके इन अधिकारों का हनन करता है। इसके लिए महिलाओं का शिक्षित व जागरूक होना बहुत जरूरी है।
क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तियों में मास्टर ब्रजमोहन ने कहा कि संविधान महिलाओं को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार देता है लेकिन उसके बावजूद, घरेलू हिंसा पर कानून बनाने की जरूरत पड़ती है तो इसे सरकारों और समाज दोनों के लिए शर्मनाक ही कहा जाएगा। महिलाओं के लिए समान अधिकार हैं। जरूरत उन्हें पाने और समझने की है। उन्होंने बालिका भ्रूण हत्या आदि का उदाहरण देते हुए महिलाओं की दुर्दशा के लिए महिलाओं को भी ज़िम्मेवार ठहराया।
मास्टर जगपाल सिंह ने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति महिला व पुरुष जन्म से ही कुछ मूल अधिकारों के साथ इस धरती पर आता है। ये अधिकार उसके जन्म से लेकर मरण तक उसके साथ रहते हैं। जीवन जीने की स्वतंत्रता, समानता का अधिकार, विकास के अवसर प्राप्त करने का अधिकार या अन्य प्रकार के अधिकार, लेकिन आज प्रत्येक अधिकार में महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। इसके लिए महिलाओं को शिक्षित व जागरूक होने की जरूरत है।
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय सचिव मुन्नीलाल ने कहा कि अधिकार न मिलने के पीछे महिलाएं खुद जिम्मेदार हैं। मसलन ग्राम प्रधान महिला होती है, लेकिन प्रधानी उसका पति करता है। अब चुनाव आ रहे हैं तो कम से कम महिला सीट से निर्वाचित महिलाओं को इस बात का संकल्प लेना होगा। उन्होंने भूमि व वनाधिकार के साथ जमीन व सम्पत्ति के मालिकाना हक को लेकर भी महिलाओं को जागरूक किया। कहा, संपत्ति का अधिकार महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।
गोष्ठी में पढ़ी लिखी महिलाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी से आयोजकों के चेहरे खिले दिखे। वहीं, महिलाओं ने अधिकारों के प्रति जिज्ञासा और जागरूकता दिखाते हुए सवाल भी किए। मसलन, युवा महिला बबिता ने प्राइवेट कॉलेजों में महंगी फीस और शिक्षा की स्थिति को लेकर सवाल उठाया तो मोनिका ने महिला स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक गैर-बराबरी को लेकर सवाल उठाया।
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