मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या में 10वें स्थान पर भारत, मारे गए कार्यकर्ताओं में 33% आदिवासी

Written by Navnish Kumar | Published on: February 15, 2021
हाल में ही फ्रंटलाइन डिफेंडर्स नामक संस्था द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट ‘ग्लोबल एनालिसिस 2020’ के अनुसार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले में भारत दुनिया में 10वें स्थान पर है और इस सन्दर्भ में देश की स्थिति चीन, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, लीबिया, पाकिस्तान और सीरिया से भी बदतर है। रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में दुनिया के 25 देशों में कुल 331 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या की गई, जबकि 2019 में 31 देशों में 304 कार्यकर्ताओं की हत्या की गई थी।



चौंकाने वाली बात यह कि मारे गए 331 कार्यकर्ताओं में 33% आदिवासी वनवासी समुदाय से हैं। नवजीवन अखबार ने महेंद्र पांडेय की रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि दुनिया के बहुत सारे देशों में इन कार्यकर्ताओं को पीटा जा रहा है, बेवजह हिरासत में लिया जा रहा है और उन पर बिना किसी सबूत के आपराधिक मुकदमे चलाए जा रहे हैं। ऐसे देशों की चर्चा में भारत और चीन का विशेष उल्लेख है। मानवाधिकार कार्यकर्ता सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय मुद्दों, नस्ल भेद और लैंगिक समानता के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, पर दुनिया भर में की गई कुल हत्याओं में से 69 प्रतिशत का सरोकार पर्यावरण संरक्षण, जमीन से जुड़े मसलों और आदिवासियों के अधिकारों से था। कुल 331 हत्याओं में करीब तीन-चौथाई दक्षिण अमेरिकी देशों में की गई हैं।

रिपोर्ट के अनुसार ऐसी सबसे अधिक 177 हत्याएं अकेले कोलंबिया में की गई हैं। इसके बाद क्रमवार स्थान पर फिलीपींस (25), होंडुरास (20), मेक्सिको (19), अफगानिस्तान (17), ब्राजील (16), ग्वाटेमाला (15), इराक (8), पेरू (8), भारत (6), चिली (4), इंडोनेशिया (2) और निकारागुआ (2) हैं। बोलीविया, कनाडा, चीन, कोस्टा रिका, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो, लीबिया, नेपाल, पाकिस्तान, साउथ अफ्रीका, स्वीडन, सीरिया और थाईलैंड में से प्रत्येक देश में ऐसी एक-एक हत्याएं की गई हैं।



सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि दुनिया में आदिवासियों और वनवासियों की संख्या कुल आबादी का महज 6 प्रतिशत है, पर मारे गए कुल 331 कार्यकर्ताओं में से लगभग 33 प्रतिशत कार्यकर्ता इसी वर्ग के हैं। साल 2020 में 20 मानवाधिकार कार्यकर्ता ऐसे थे जो अपने देशों में फैले भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार कोलंबिया, अफगानिस्तान और पेरू जैसे देशों में ऐसी हत्याएं साल-दर-साल बढ़ती जा रही हैं। मारे गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में से 13 प्रतिशत महिलाएं हैं, जबकि 28% हत्याएं लैंगिक समानता के लिए आवाज उठाने वालों की हुई है। 6 ट्रांसजेंडर भी हैं।

रिपोर्ट में मारे गए कुल 331 व्यक्तियों की सूची भी दी गई है। भारत में बिहार के आरटीआई एक्टिविस्ट पंकज कुमार, ओडिशा के आरटीआई एक्टिविस्ट रंजन कुमार दास, उत्तर प्रदेश के पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी और पत्रकार राजेश सिंह निर्भीक, कश्मीर के वकील और एक्टिविस्ट बाबर कादरी और गुजरात के अल्पसंख्यक मामलों के वकील और एक्टिविस्ट देवजी माहेश्वरी के नाम सम्मिलित हैं। जितने भी प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता इस दौर में देश की विभिन्न जेलों में कैद किये गए हैं, लगभग सभी के नाम भी रिपोर्ट में उपलब्ध हैं।

रिपोर्ट में चीन में उइगर मुस्लिम आबादी पर किये जाने वाले जुल्म का विस्तृत उल्लेख है। भारत के सन्दर्भ में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों कार्यकर्ताओं को तरह-तरह से प्रताड़ित करने और जेल में बंद करने की बात कही गई है। कोविड 19 के दौर में भी बहुत सारे बुजुर्ग मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को आवश्यकता से अधिक भरी जेलों में बिना किसी सुरक्षा के बंद कर दिया गया। इसमें 80 वर्षीय वरवरा राव का नाम भी है, जिन्हें जेल में ही कोविड का सामना करना पड़ा है।

देश की जेलों में 67% कैदी हिंदू, 18% मुसलमान
केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश की जेलों में बंद 4,78,600 में से 67 प्रतिशत से अधिक कैदी हिंदू जबकि लगभग 18 प्रतिशत मुसलमान हैं। गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने संसद में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 31 दिसंबर 2019 तक के जेलों से संबंधित आंकड़े पेश किये हैं।

आंकड़ों के अनुसार जेलों में बंद कैदियों में 3,21,155 (67.10 प्रतिशत) हिंदू , 85,307 (17.82 प्रतिशत) मुसलमान, 18,001 (3.67 प्रतिशत) सिख, 13,782 (2.87 प्रतिशत) ईसाई और 3,557 (0.74 प्रतिशत) ‘अन्य’ थे। लैंगिक आधार पर देखा जाए तो महिलाओं में 13,416 हिंदू, 3,162 मुसलमान, 721 सिख, 784 ईसाई और 261 ‘अन्य’ थीं। राज्यों के और केन्द्र शासित प्रदेश के लिहाज से उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 72,512 हिंदू और 27,459 मुसलमान कैदी जेलों में बंद थे।

वहीं जातिगत श्रेणी के आधार पर देखा जाए तो जेलों में बंद 4,78,600 कैदियों में 3,15,409 (65.9%) अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित हैं जबकि ‘अन्य’ से आने वाले कैदियों की संख्या 1,26,393 है।

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