सरदार पटेल ने गांधीजी के जिन हिन्दुत्वादी क़ातिलों की पहचान की थी आज उनके वारिस देश पर राज कर रहे हैं!

Written by Shamsul Islam | Published on: January 30, 2021
विश्व भर में 30 जनवरी, 2021 के दिन गांधीजी को उनकी शहादत की 73वीं बरसी पर याद किया गया जिन्हें हिन्दुत्वादी आतंकियों ने 30 जनवरी, 2021 को दिल्ली में एक प्रार्थना के दौरान गोली मारकर शहीद कर दिया था। हिन्दुत्वादी राजनीती का सब से प्रमुख झंडाबरदार संगठन, आरएसएस, जिसके सदस्य आज देश पर राज कर रहे हैं, जब भी गांधीजी के क़ातिलों की हिन्दुत्वादी पहचान और उनके आरएसएस तथा वीडी सावरकर के नेतृत्व वाली हिन्दू महासभा के रिश्तों की चर्चा की जाती है तो आपे से बाहर हो जाता है। इस की बजाए की वह शर्मसार हो और हत्या में ज़िम्मेदारी के लिए प्रायश्चित करे; उल्टा चोर कोतवाल को डांटने लगता है। जो लोग इस सच को रेखांकित करते हैं उन्हें अदालतों में घसीटा जाता है ताकि वे इस की चर्चा करना छोड़ दें।  



गांधीजी के हत्यारों का आरएसएस जैसे संगठनों से सम्बन्ध कोई ऐसा राज़ नहीं है जो छुपा रहा हो। इसको जानने के लिए बस हमें देश के पहले ग़ृह-मंत्री और उप-प्रधान मंत्री वल्लभ भाई पटेल के सरकारी काग़ज़ात का अध्ययन करना होगा और उन्होंने गांधीजी की हत्या के बाद आरएसएस के ख़िलाफ़ जो क़दम उठाया था उस को याद रखना होगा। 

याद रहे कि आरएसएस सरदार पटेल पर दुश्मन होने का इलज़ाम नहीं लगा सकती है क्योंकि वे और उसके सबसे शक्तिशाली 'स्वयंसेवक' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस के इस बड़े नेता को पूजते हैं। इनकी शान में मोदी ने दुनिया की सब से बड़ी-ऊंची मूर्ति गुजरात में लगवाई है। यह और बात है कि 'आत्म-निर्भर भारत' और 'मेक-इन-इंडिया' का ढिंढोरा पीटने वाले हमारे प्रधानमंत्री ने इस सरदार की मूर्ति को चीन के एक कारखाने में ढलवाया है।  

निम्नलिखित में सरदार पटेल ने जिस तरह कालक्रम में गाँधीजी की हत्या करने वाले हिन्दुत्वादी आतंकियों की पहचान की उसे पेश किया जा रहा है जो अपने आप में क़ातिलों की वैचारिक और सांगठनिक पहचान को उजागर करता है।  
         
(1) आरएसएस पर प्रतिबन्ध! गांधीजी की हत्या के बाद?
गांधीजी की हत्या के बाद, 4 फ़रवरी 1948 को आरएसएस पर सरदार के मंत्रालय ने प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह प्रतिबंध लगाए जाने के पीछे जो कारण थे उनमें कई राष्ट्र विरोधी कार्य भी शामिल थे। सरकार द्वारा आरएसएस पर प्रतिबंध लगा देने वाला आदेश भी अपने आप में बहुत स्पष्ट थाः

"भारत सरकार ने 2 फ़रवरी को अपनी घोषणा में कहा है कि उसने उन सभी विद्वेषकारी तथा हिंसक शक्तियों को जड़ मूल से नष्ट कर देने का निश्चय किया है, जो राष्ट्र की स्वतंत्रता को ख़तरे में डालकर उसके उज्जवल नाम पर कलंक लगा रहीं हैं। उसी नीति के अनुसार चीफ़ कमिश्नरों के अधीनस्थ सब प्रदेशों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को अवैध घोषित करने का निश्चय भारत सरकार ने कर लिया है। गवर्नरों के अधीन राज्यों में भी इसी ढंग की योजना जारी की जा रही है।" 

सरकारी विज्ञप्ति में आगे चलकर कहा गयाः
"संघ के स्वयं सेवक अनुचित कार्य भी करते रहे हैं। देश के विभिन्न भागों में उसके सदस्य व्यक्तिगत रूप से आगज़नी, लूटमार, डाके, हत्याएं तथा लुकछिप कर शस्त्र, गोला और बारूद संग्रह करने जैसी हिंसक कार्यवाईयां कर रहे हैं। यह भी देखा गया है कि ये लोग पर्चे भी बांटते हैं, जिनसे जनता को आतंकवादी मार्गों का अवलंबन करने, बंदूकें एकत्र करने तथा सरकार के बारे में असंतोष फैलाकर सेना और पुलिस में उपद्रव कराने की प्रेरणा दी जाती है।" 

[Cited in Justice on Trial, RSS, Bangalore, 1962, pp. 65-66.]

(2) सरदार पटेल का का जवाहरलाल नेहरू के नाम दिनांक फ़रवरी 27, 1948 का पत्र 
गाँधी जी की हत्या के 28 दिन बाद लिखे गए इस पत्र जब की हिन्दुत्वादी हत्यारों के सांगठनिक और वैचारिक रिश्तों के बारे में अभी पूरी जानकारियां नहीं मिली थीं, सरदार ने प्रधान-मंत्री नेहरू को जाँच की प्रगति से अवगत करते हुए लिखा:

"तमाम अभियुक्तों ने अपनी हरकतों के लम्बे और विस्तृत ब्यान दिए हैं...इनसे पता लगता है कि साज़िश डिल में नहीं रची गयी। यह भी साफ़ ज़ाहिर होता है की आरएसएस इस में क़तई शामिल नहीं था। इस षड्यंत्र के रचेता और तामील करने वाला हिन्दू महासभा का एक कट्टरवादी गुट था जिसकी रहनुमाई सीधे सावरकर ने की थी।"   

आरएसएस और उसके पिछलग्गू सरदार के इस पत्र को एक सर्टिफ़िकेट के तौर पर यह साबित करने के लिए इस्तेमाल करते हैं की आरएसएस इस हत्या में शामिल नहीं था। लेकिन वे सरदार पत्र के बाद वाले हिस्से को पी जाते हैं जिस में सरदार ने साफ़ लिखा कि,  
"आरएसएस जैसे ख़ुफ़िया संगठन, जिनके कोई रिकॉर्ड, पंजिकाएँ इत्यादी नहीं होते हैं के बारे में पुख्ता तौर पर यह पता करना कि कोई व्यक्ति विशेष इस का सक्रिए सदस्य है या नहीं एक बहुत मुश्किल काम होता है।"

[Shankar, V., Sardar Patel: Select Correspondence 1945-50, Navjivan Publishing House, Ahmedabad, 1977, p. 283-85.]

(3) सरदार पटेल ने हिन्दुत्वादी खेमे के एक बड़े नेता, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, जो उस समय हिन्दू महासभा के अधियक्ष भी थे को साफ़ लिखा कि आरएसएस और हिन्दू महासभा दोनों इस जघन्य अपराध के लिए ज़िम्मेदार थे, उन्होंने आरएसएस को नंबर एक का ज़िम्मेदार ठहराया। सरदार पटेल ने 18 जुलाई सन् 1948 को एक लिखाः

"जहां तक आरएसएस और हिंदू महासभा की बात है, गांधी जी की हत्या का मामला अदालत में है और मुझे इसमें इन दोनों संगठनों की भागीदारी के बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए। लेकिन हमें मिली रिपोर्टें इस बात की पुष्टि करती हैं कि इन दोनों संस्थाओं का, ख़ासकर आरएसएस की गतिविधियों के फलस्वरूप देश में ऐसा माहौल बना कि ऐसा बर्बर काण्ड संभव हो सका। मेरे दिमाग़ में कोई संदेह नहीं है कि हिंदू महासभा का अतिवादी भाग षणयंत्र में शामिल था। आरएसएस की गतिविधियां सरकार और राज्य-व्यवस्था के अस्तित्व के लिए ख़तरा थीं। हमें मिली रिपोर्टें बताती हैं कि प्रतिबंध के बावजूद वे गतिविधियां समाप्त नहीं हुई हैं। दरअसल, समय बीतने के साथ आरएसएस की टोली अधिक उग्र हो रही है और विनाशकारी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है।" 

[Letter 64 in Sardar Patel: Select Correspondence1945-1950, volume 2, Navjivan Publishing House, Ahmedabad, 1977, pp. 276-77.]

(4) गांधीजी की हत्या के 214 दिन बाद जब सरदार के सामने हिन्दुत्वादी हत्यारों के बारे में तस्वीर बहुत साफ़ हो चुकी थी, तो उन्होंने आरएसएस के उस समय के आक़ा, गोलवलकर को उनके हिन्दुत्वादी संगठन की गांधीजी के हत्या में हिस्सेदारी पर बिना किसी संकोच के दिनांक सितंबर 19, 1948 के पत्र में लिखा:

"हिन्दुओं का संगठन करना, उनकी सहायता करना एक प्रश्न है पर उनकी मुसीबतों का बदला, निहत्थे व लाचार औरतों, बच्चों व आदमियों से लेना दूसरा प्रश्न है।

"उनके अतिरिक्त यह भी था कि उन्होंने कांग्रेस का विरोध करके और इस कठोरता से कि न व्यक्तित्व का ख़याल, न सभ्यता व विशिष्टता का ध्यान रखा, जनता में एक प्रकार की बेचैनी पैदा कर दी थी, इनकी सारी तक़रीरें सांप्रदायिक विष से भरी थीं। हिन्दुओं में जोश पैदा करना व उनकी रक्षा के प्रबन्ध करने के लिए यह आवश्यक न था कि वह ज़हर फैले। उस ज़हर का फल अन्त में यही हुआ कि गांधी जी की अमूल्य जान की कु़र्बानी देश को सहनी पड़ी और सरकार व जनता की सहानुभूति ज़रा भी आरएसएस के साथ न रही, बल्कि उनके खि़लाफ़ हो गयी। उनकी मृत्यु पर आरएसएस वालों ने जो हर्ष प्रकट किया था और मिठाई बांटी उस से यह विरोध और भी बढ़ गया और सरकार को इस हालत में आरएसएस के ख़िलाफ़ कार्यवाही करना ज़रूरी ही था।

"तब से अब 6 महीने से ज़्यादा हो गए। हम लोगों को आशा थी कि इतने वक़्त के बाद सोच विचार कर के आरएसएस वाले सीधे रास्ते पर आ जाएंगे। परन्तु मेरे पास जो रिपोर्ट आती हैं उनसे यही विदित होता है कि पुरानी कार्यवाहियों को नई जान देने का प्रयत्न किया जा रहा है।" 

[Cited in Justice on Trial, RSS, Bangalore, 1962, pp. 26-28.]

यह सच है कि गाँधी की हत्या के प्रमुख साज़िशकर्ता सावरकर बरी कर दिए गए। हालांकि यह बात आज तक समझ से बाहर है कि निचली अदालत जिसने सावरकर को दोषमुक्त किया था उसके फ़ैसले के खिलाफ सरकार ने हाई कोर्ट में अपील क्यों नहीं की। सावरकर के गाँधी की हत्या में शामिल होने के बारे में न्यायधीश कपूर आयोग ने 1969 की रिपोर्ट में साफ़ लिखा कि वे इसमें शामिल थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सावरकर का फ़रवरी 26, 1966 को देहांत हो चुका था। 

यह अलग बात है कि इस सब के बावजूद सावरकर की तस्वीरें महाराष्ट्र विधान सभा और भारतीय संसद की दीवारों पर सजाई गयीं और देश के हुक्मरान पंक्तिबद्ध हो कर इन तस्वीरों पर पुष्पांजलि करते हैं। इन्ही गलियारों में सावरकर के चित्रों के साथ लटकी शहीद गाँधी की तस्वीरों पर क्या गुज़रती होगी, यह किसी ने जानने की कोशिश नहीं की है। 

इस ख़ौफ़नाक यथार्थ को झुठलाना मुश्किल है कि देश में हिंदुत्व राजनीति के उभार के साथ गांधीजी की हत्या पर ख़ुशी मनाना और हत्यारों का महामंडन, उन्हें भगवन का दर्जा देने का भी एक संयोजित अभियान चलाया जा रहा है। गांधीजी की शहादत दिवस (30 जनवरी)  पर गोडसे की याद में सभाएं की जाती हैं, उसके मंदिर जहाँ उसकी मूर्तियां स्थापित हैं में पूजा की जाती है। गांधीजी की हत्या को 'वध' (जिसका मतलब राक्षसों की हत्या है) बताया जाता है।

यह सब कुछ लम्पट हिन्दुत्वादी संगठनों या लोगों दुवारा ही नहीं किया जा रहा है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही महीनों में आरएसएस/भाजपा के एक वरिष्ठ विचारक, साक्षी जो संसद सदस्य भी हैं ने गोडसे को 'देश-भक्त' घोषित करने की मांग की। हालांकि उनको यह मांग विश्वव्यापी भर्त्स्ना के बाद वापिस लेनी पड़ी लेकिन इस तरह का वीभत्स प्रस्ताव हिन्दुत्वादी शासकों की गोडसे के प्रति प्यार को ही दर्शाती है। 

इस सिलसिले में गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के महामण्डन की सबसे शर्मनाक घटना जून 2013 में गोवा में घटी। यहाँ पर भाजपा कार्यकारिणी की बैठक थी जिसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को 2014 के संसदीय चनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी चुना गया। इसी दौरान वहां हिन्दुत्वादी संगठन 'हिन्दू जनजागृति समिति' (जिसपर आतंकवादी कामों में लिप्त होने के गंभीर आरोप हैं) का देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए अखिल भारत सम्मलेन भी हो रहा था। इस सम्मलेन का श्रीगणेश मोदी के शुभकामना सन्देश से  7 जून, 2013 को हुआ। मोदी ने अपने सन्देश में इस संगठन को "हिन्दू धर्म के ध्वज, राष्ट्रीयता, देशभक्ति एवं राष्ट्र के प्रति समर्पण" के लिए बधाई दी। 
 
इसी मंच से जून 10 को हिंदुत्व संगठनों, विशेषकर आरएसएस के क़रीबी लेखक के. वी. सीतारमैया का भाषण हुआ। उन्होंने आरम्भ में ही घोषणा की कि "गाँधी भयानक दुष्कर्मी और सर्वाधिक पापी था"।उन्होंने अपने भाषण का अंत इन शर्मनाक शब्दों से किया: "जैसा की भगवान श्री कृष्ण ने कहा है- 'दुष्टों के विनाश के लिए, अच्छों की रक्षा के लिए और धर्म की स्थापना के लिए, मैं हर युग में पैदा होता हूँ' 30 जनवरी की शाम, श्रीराम, नाथूराम गोडसे के रूप में आए और गाँधी का जीवन समाप्त कर दिया"।

याद रहे आरएसएस की विचारधारा का वाहक यह वही वयक्ति है जिसने अंग्रेजी में Gandhi was Dharma Drohi & Desa Drohi(गाँधी धर्मद्रोही और देशद्रोही था) शीर्षक से पुस्तक भी लिखी है जो गोडसे को भेंट की गयी है। 

गांधीजी जिन्होंने एक आज़ाद प्रजातान्त्रिक-धर्मनिरपेक्ष देश की कल्पना की थी और उस प्रतिबद्धता के लिए उन्हें जान भी गंवानी पड़ी थी,  हिन्दुत्वादी संगठनों के राजनितिक उभार के साथ एक राक्षसिये चरित्र के तौर पर पेश किए जा रहे हैं। नाथूराम गोडसे और उसके साथी अन्य मुजरिमों ने गांधीजी की हत्या जनवरी 30, 1948 को की थी लेकिन 73 साल के बाद भी उनके 'वध' का जशन जारी है। जिन लोगों ने गांधीजी की हत्या की थी उनकी वैचारिक संतानें आज देश पर राज कर रहे हैं, इससे बड़ी देश के लिए क्या त्रासदी हो सकती है!

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