कल हुए 5 विधानसभा चुनावों के परिणामों की घोषणा में हिन्दूवादी भाजपा को हिन्दुओं ने ही चारो खाने चित कर दिया। यह काँग्रेस या राहुल गाँधी से अधिक भारतीय लोकतंत्र की जीत है, यह इस विचार की जीत है कि देश बहुत दिनों तक घृणा और तानाशाही बर्दाश्त नहीं कर सकता और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सांप्रदायिक ध्रुविकरण के मीडिया और साधू संतों के सारे प्रयास भी इन राज्यों में भाजपा की वापसी ना करा सके तो यह सिद्ध होता है कि इस देश में धर्मनिरपेक्षता की अभी भी कुछ साँसें बाकी है।
अब यहीं से 2019 में भाजपा और मोदी के पैकअप का रास्ता तैय्यार होगा और काँग्रेस की नयी सरकारें अगले 4 महीने में भाजपा का इन प्रदेशों में बचा खुचा जनाधार भी चाट जाएँगी। फिलहाल अब कुछ दिन सब शांत रहेगा, ना किसी को राम मंदिर याद आएगा ना किसी को हिन्दूराष्ट्र।
हारी पार्टी भाजपा समझ ले कि हिन्दी भाषी क्षेत्र में वह उखड़ चुकी है और यदि वह अब भी अपनी ज़हरीली राजनीति से दूर नहीं हुई तो बचे एक दो राज्यों में भी उसकी दुर्गति निश्चित है।
नरेन्द्र मोदी की बहुत वीभत्स गलतियों में एक है उत्तर प्रदेश में योगी को मुख्यमंत्री बनाना, योगी के ऊलजुलूल कार्यों ने भाजपा और संघ के बौद्धिक नंगेपन को देश दुनिया के सामने रख दिया है। आज यदि उत्तर प्रदेश में चुनाव हो जाए तो यह निश्चित है कि भाजपा और योगी का सूपड़ा साफ हो जाएगा।
त्रस्त है यहाँ की जनता।
तेलंगाना जाकर ओवैसी को हैदराबाद से भगाने का ऐलान करने वाले योगी जी, वहाँ भाजपा के 5 विधायकों में से 4 विधायक हरा आए जो कि 2014 के चुनावों में जीते थे।
दरअसल मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़, भाजपा और संघ का गुजरात के बाद सबसे बड़ी प्रयोगशाला रही है, यहाँ संघ और उसके 36 संगठन प्रदेश की रग रग में घुस चुके हैं, इस कारण इन दोनों राज्यों में भाजपा की हार उसकी पूरी विचारधारा और संघ की हार है।
राजस्थान में भाजपा को रकबर, पहलूखान और उमर की आह लग गयी और वहाँ के हिन्दू भाईयों ने भाजपा और उसके पूरे नाजायज़ संगठनों को एक संदेश दे दिया कि नफरतों की उम्र बहुत छोटी होती है। अब सरकार बनने के बाद काँग्रेस और राहुल गाँधी का संघ के प्रति विरोध कितना ज़मीन पर उतरता है यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
मेरा मानना है कि राहुल गाँधी की "संघ" विरोध को एक मज़बूत आधार मिला है जिस पर अब और आगे तेज़ी से चल कर इस देश को संघ से सुरक्षित कर सकते हैं और देश के नायक बन सकते हैं नहीं तो उनका हाल भी एक जुमलेबाज मोदी से अधिक नहीं होगा।
संघ और भाजपा हिन्दू भाईयों के कुछ लोगों को थोड़े समय के लिए ही बरगला सकते हैं, क्युँकि भूख उनको भी लगती है, पेट उनके पास भी है जिसको संतुष्ट करना भाजपा और संघ के बूते की बात नहीं।
इन 5 राज्यों में तेलंगाना को छोड़कर शेष राज्यों में मुसलमानों की भूमिका लगभग नगण्य ही थी और भाजपा की हार में उनका योगदान ना के बराबर ही है।
मुसलमान केवल खामोश रहें, ओवैसी जैसे भड़काऊ वीरों से दूर रहें तो मुझे यकीन है कि संघ का काम हमारे हिन्दू भाई ही तमाम कर देंगे।
दरअसल केसीआर के रहमों करम पर हैदराबाद शहर की मात्र 7 सीट पर जीते यह लोग पूरे देश में संघ के आदेश पर हिन्दू भाईयों को मुसलमानों के खिलाफ भड़काते हैं और जहाँ मुसलमान अधिक हुआ वहाँ के हिन्दुओं को नाराजगी के बावजूद भाजपा के पक्ष में गोलबंद कर देते हैं।
वक्त इनका भी इलाज करेगा, कट्टरता और नफरत हारेगी।
यही भारतीय लोकतंत्र की खूबी है।
झूठों का नारा हारेगा
अल्लाह का मारा हारेगा
आमीन कहो आमीन कहो
नमरूद दुबारा हारेगा ✍ इमरान
अब यहीं से 2019 में भाजपा और मोदी के पैकअप का रास्ता तैय्यार होगा और काँग्रेस की नयी सरकारें अगले 4 महीने में भाजपा का इन प्रदेशों में बचा खुचा जनाधार भी चाट जाएँगी। फिलहाल अब कुछ दिन सब शांत रहेगा, ना किसी को राम मंदिर याद आएगा ना किसी को हिन्दूराष्ट्र।
हारी पार्टी भाजपा समझ ले कि हिन्दी भाषी क्षेत्र में वह उखड़ चुकी है और यदि वह अब भी अपनी ज़हरीली राजनीति से दूर नहीं हुई तो बचे एक दो राज्यों में भी उसकी दुर्गति निश्चित है।
नरेन्द्र मोदी की बहुत वीभत्स गलतियों में एक है उत्तर प्रदेश में योगी को मुख्यमंत्री बनाना, योगी के ऊलजुलूल कार्यों ने भाजपा और संघ के बौद्धिक नंगेपन को देश दुनिया के सामने रख दिया है। आज यदि उत्तर प्रदेश में चुनाव हो जाए तो यह निश्चित है कि भाजपा और योगी का सूपड़ा साफ हो जाएगा।
त्रस्त है यहाँ की जनता।
तेलंगाना जाकर ओवैसी को हैदराबाद से भगाने का ऐलान करने वाले योगी जी, वहाँ भाजपा के 5 विधायकों में से 4 विधायक हरा आए जो कि 2014 के चुनावों में जीते थे।
दरअसल मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़, भाजपा और संघ का गुजरात के बाद सबसे बड़ी प्रयोगशाला रही है, यहाँ संघ और उसके 36 संगठन प्रदेश की रग रग में घुस चुके हैं, इस कारण इन दोनों राज्यों में भाजपा की हार उसकी पूरी विचारधारा और संघ की हार है।
राजस्थान में भाजपा को रकबर, पहलूखान और उमर की आह लग गयी और वहाँ के हिन्दू भाईयों ने भाजपा और उसके पूरे नाजायज़ संगठनों को एक संदेश दे दिया कि नफरतों की उम्र बहुत छोटी होती है। अब सरकार बनने के बाद काँग्रेस और राहुल गाँधी का संघ के प्रति विरोध कितना ज़मीन पर उतरता है यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
मेरा मानना है कि राहुल गाँधी की "संघ" विरोध को एक मज़बूत आधार मिला है जिस पर अब और आगे तेज़ी से चल कर इस देश को संघ से सुरक्षित कर सकते हैं और देश के नायक बन सकते हैं नहीं तो उनका हाल भी एक जुमलेबाज मोदी से अधिक नहीं होगा।
संघ और भाजपा हिन्दू भाईयों के कुछ लोगों को थोड़े समय के लिए ही बरगला सकते हैं, क्युँकि भूख उनको भी लगती है, पेट उनके पास भी है जिसको संतुष्ट करना भाजपा और संघ के बूते की बात नहीं।
इन 5 राज्यों में तेलंगाना को छोड़कर शेष राज्यों में मुसलमानों की भूमिका लगभग नगण्य ही थी और भाजपा की हार में उनका योगदान ना के बराबर ही है।
मुसलमान केवल खामोश रहें, ओवैसी जैसे भड़काऊ वीरों से दूर रहें तो मुझे यकीन है कि संघ का काम हमारे हिन्दू भाई ही तमाम कर देंगे।
दरअसल केसीआर के रहमों करम पर हैदराबाद शहर की मात्र 7 सीट पर जीते यह लोग पूरे देश में संघ के आदेश पर हिन्दू भाईयों को मुसलमानों के खिलाफ भड़काते हैं और जहाँ मुसलमान अधिक हुआ वहाँ के हिन्दुओं को नाराजगी के बावजूद भाजपा के पक्ष में गोलबंद कर देते हैं।
वक्त इनका भी इलाज करेगा, कट्टरता और नफरत हारेगी।
यही भारतीय लोकतंत्र की खूबी है।
झूठों का नारा हारेगा
अल्लाह का मारा हारेगा
आमीन कहो आमीन कहो
नमरूद दुबारा हारेगा ✍ इमरान