राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने कोई और काम किया हो या न किया हो, सांप्रदायिक ज़हर फैलाने का काम पूरी लगन से किया है।
अब चुनाव सिर पर आते देख, वसुंधरा राजे सरकार ने उन गांवों में भी सांप्रदायिक विभाजन कराने की योजना तैयार की है जो अब तक सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल बने हुए थे।
(स्त्रोत: इंडियन एक्सप्रेस)
ताज़ा योजना यह है कि राजस्थान में कई गांवों के मुस्लिम नाम बदले जा रहे हैं और उनका नाम हिंदी में किया जा रहा है।
सरकार अब मोहम्मदपुर को मेदिख खेड़ा, नवाबपुर के नई सरथल, रामपुरा-आज़मपुर को सीतारामजी खेड़ा और मांडफिया को सांवलियाजी बनाने जा रही है।
नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार, विधानसभा चुनावों के चार महीने पहले, गांवों के नाम बदला जाना वसुंधरा सररकार की राजनीतिक पैंतरेबाजी है। इस तरह से वह गांवों में किसानों की बदहाली और अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है। राजस्व विभाग आने वाले समय में कई और गांवों के नाम बदलने जा रहा है।
इसके पहले भी वसुंधरा राजे सरकार कुछ और गांवों के नाम बदल चुकी है। बाड़मेर जिले के मियों का बाड़ा को महेश नगर किया जा चुका है। इसी तरह से झुंझनू के नारपाड़ा को नारपुरा और इस्लामपुर खुर्द को पिछनवा खुर्द किया जा चुका है। इसके साथ ही, अजमेर के सलेमाबाद को श्रीनिंबार्क तीर्थ बनाने की भी तैयारी चल रही है।
राजस्थान सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास 27 गांवों के नाम बदलने का प्रस्ताव भेजा था और इनमें से आठ गांवों के नाम बदलने को केंद्र की मंजूरी मिल भी गई है।
राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि इन गांवों में हिंदुओं की आबादी अधिक होने के कारण इनके नाम बदले गए हैं। इसके अलावा एक तर्क यह भी दिया गया है कि इससे हिंदू समुदाय में शादी के रिश्तों की संभावनाएं बढ़ जाएंगी क्योंकि नाम के कारण बहुत से लोग इन गांवों को मुस्लिम बहुल आबादी वाला गांव समझते थे।
अब चुनाव सिर पर आते देख, वसुंधरा राजे सरकार ने उन गांवों में भी सांप्रदायिक विभाजन कराने की योजना तैयार की है जो अब तक सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल बने हुए थे।
(स्त्रोत: इंडियन एक्सप्रेस)
ताज़ा योजना यह है कि राजस्थान में कई गांवों के मुस्लिम नाम बदले जा रहे हैं और उनका नाम हिंदी में किया जा रहा है।
सरकार अब मोहम्मदपुर को मेदिख खेड़ा, नवाबपुर के नई सरथल, रामपुरा-आज़मपुर को सीतारामजी खेड़ा और मांडफिया को सांवलियाजी बनाने जा रही है।
नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार, विधानसभा चुनावों के चार महीने पहले, गांवों के नाम बदला जाना वसुंधरा सररकार की राजनीतिक पैंतरेबाजी है। इस तरह से वह गांवों में किसानों की बदहाली और अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है। राजस्व विभाग आने वाले समय में कई और गांवों के नाम बदलने जा रहा है।
इसके पहले भी वसुंधरा राजे सरकार कुछ और गांवों के नाम बदल चुकी है। बाड़मेर जिले के मियों का बाड़ा को महेश नगर किया जा चुका है। इसी तरह से झुंझनू के नारपाड़ा को नारपुरा और इस्लामपुर खुर्द को पिछनवा खुर्द किया जा चुका है। इसके साथ ही, अजमेर के सलेमाबाद को श्रीनिंबार्क तीर्थ बनाने की भी तैयारी चल रही है।
राजस्थान सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास 27 गांवों के नाम बदलने का प्रस्ताव भेजा था और इनमें से आठ गांवों के नाम बदलने को केंद्र की मंजूरी मिल भी गई है।
राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि इन गांवों में हिंदुओं की आबादी अधिक होने के कारण इनके नाम बदले गए हैं। इसके अलावा एक तर्क यह भी दिया गया है कि इससे हिंदू समुदाय में शादी के रिश्तों की संभावनाएं बढ़ जाएंगी क्योंकि नाम के कारण बहुत से लोग इन गांवों को मुस्लिम बहुल आबादी वाला गांव समझते थे।