छत्तीसगढ़ में आदिम जाति विभाग में हुए छात्रवृत्ति घोटाले में खुलासा हुआ है कि इसमें कई अफसर शामिल थे। यहां तक कि छात्रवृत्ति जारी करने से पहले, विभाग के नोडल अधिकारी ने सत्यापन भी नहीं किया था। इस तरह से 31 लाख रुपए की छात्रवृत्ति फर्जी तरीके से निकाली गई थी।
नईदुनिया के मुताबिक ये छात्रवृत्ति घोटाला 2006-07 से 2012-13 के बीच हुआ और इस दौरान कई किस्तों में छात्रवृत्ति की रकम फर्जी तरीके से निकाली गई। जांच के बाद सहायक ग्रेड 2 के एक कर्मचारी को सस्पेंड करके, उससे घोटाले की राशि वसूलने के आदेश भी दिए गए हैं।
ये छात्रवृत्ति एक फर्जी कॉलेज के नाम पर निकाली गई जो कहीं था ही नहीं। कॉलेज ऑफ बायटेक्नॉलॉजी नाम की इस फर्जी संस्था का सत्यापन किए बिना ही नोडल अधिकारी ने छात्रवृत्ति की रकम जारी कर दी थी।
जांच के बाद सारा दोष एक साधारण कर्मचारी पर मढ़ दिया गया और अधिकारियों को बचा लिया गया। इसकी जांच अपर कलेक्टर एसएन राठौर ने भी की, लेकिन उसमें भी अधिकारियों को बचा लिया गया।
निलंबित कर्मचारी का कहना है कि उसने केवल पत्र आगे बढ़ाया था और इसकी जांच की जिम्मेदारी नोडल अधिकारियों की थी। जांच के बाद अभी तक ये भी पता नहीं चला है कि ये राशि किसने हड़प की। पूरे मामले में सहायक को दोषी बताकर मामला रफा-दफा कर दिया गया।
घोटाले इस तरह से हुआ- संस्था की जांच के बगैर छात्रवृत्ति स्वीकृत की गई। फर्जी कॉलेज में 57 छात्रों को अध्ययनरत बताया गया। 2008-09 में एससी श्रेणी के 37 छात्रों के नाम 10 लाख 95 हजार रुपए और 58 छात्रों को 17 लाख 32 हजार रुपए का भुगतान फर्जी तरीके से किया गया।
इसी तरह से 2006-07 में गुस्र्कुल महाविद्यालय रायपुर में भी 21 अनुसूचित जनजाति के छात्रों को फर्जी तरीके से दिखाकर छात्रवृत्ति रकम निकाल ली गई थी।
नईदुनिया के मुताबिक ये छात्रवृत्ति घोटाला 2006-07 से 2012-13 के बीच हुआ और इस दौरान कई किस्तों में छात्रवृत्ति की रकम फर्जी तरीके से निकाली गई। जांच के बाद सहायक ग्रेड 2 के एक कर्मचारी को सस्पेंड करके, उससे घोटाले की राशि वसूलने के आदेश भी दिए गए हैं।
ये छात्रवृत्ति एक फर्जी कॉलेज के नाम पर निकाली गई जो कहीं था ही नहीं। कॉलेज ऑफ बायटेक्नॉलॉजी नाम की इस फर्जी संस्था का सत्यापन किए बिना ही नोडल अधिकारी ने छात्रवृत्ति की रकम जारी कर दी थी।
जांच के बाद सारा दोष एक साधारण कर्मचारी पर मढ़ दिया गया और अधिकारियों को बचा लिया गया। इसकी जांच अपर कलेक्टर एसएन राठौर ने भी की, लेकिन उसमें भी अधिकारियों को बचा लिया गया।
निलंबित कर्मचारी का कहना है कि उसने केवल पत्र आगे बढ़ाया था और इसकी जांच की जिम्मेदारी नोडल अधिकारियों की थी। जांच के बाद अभी तक ये भी पता नहीं चला है कि ये राशि किसने हड़प की। पूरे मामले में सहायक को दोषी बताकर मामला रफा-दफा कर दिया गया।
घोटाले इस तरह से हुआ- संस्था की जांच के बगैर छात्रवृत्ति स्वीकृत की गई। फर्जी कॉलेज में 57 छात्रों को अध्ययनरत बताया गया। 2008-09 में एससी श्रेणी के 37 छात्रों के नाम 10 लाख 95 हजार रुपए और 58 छात्रों को 17 लाख 32 हजार रुपए का भुगतान फर्जी तरीके से किया गया।
इसी तरह से 2006-07 में गुस्र्कुल महाविद्यालय रायपुर में भी 21 अनुसूचित जनजाति के छात्रों को फर्जी तरीके से दिखाकर छात्रवृत्ति रकम निकाल ली गई थी।