नए फॉर्मूले से मोदी सरकार का आरक्षण पर सबसे बड़ा हमला

Written by गंगा सहाय मीणा | Published on: March 8, 2018
भी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में में वंचित तबकों के लोग दिखने ही लगे थे कि अकादमिक क्षेत्र की नौकरियों में संविधान प्रदत्त आरक्षण पर सबसे बड़ा हमला कर दिया गया है।


UGC ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के कहे अनुसार अभी परसों ही, यानी 5 मार्च को एक चिट्ठी लिखी है जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण के रोस्टर को विभागवार लागू करने का आदेश दिया है।

यानी अब संस्था को एक इकाई मानने के बजाय विभाग को इकाई माना जाएगा और विभाग में जब आरक्षित श्रेणी की बारी आएगी, तभी संबंधित श्रेणी के लिए एक पोस्ट आरक्षित हो पाएगी।

विभाग को इकाई मानकर 13 पॉइंट रोस्टर लागू करना आरक्षण व्यवस्था की हत्या जैसा है। इसको इस प्रकार समझिए- कल्पना कीजिए कि किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के कुल 200 पद हैं।

संविधान प्रदत्त आरक्षण व्यवस्था के अनुसार उनमें से 56 पद (27%) ओबीसी के लिए, 30 पद (15%) अनुसूचित जाति के लिए और 15 पद (7.5%) अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होने चाहिए। अभी तक जारी रोस्टर (200 पॉइंट) पद्धति के अनुसार ऊपर दी गई संख्या के आसपास सीटें विभिन्न श्रेणियों की बन जाती थी।

संबंधित कॉलेज/विश्वविद्यालय भले ही बहाने बनाकर उन्हें पूरा नहीं भरते थे, लेकिन सीटें तो उतनी ही बनती थी। अब नई पद्धति के अनुसार 13 पॉइंट रोस्टर होगा। विभागवार। यानी विभाग को एक यूनिट मानकर संबंधित श्रेणी के आरक्षण में प्रतिशतानुसार देर सवेर सीट बनेगी।

कॉलेज या विश्वविद्यालय में भले ही कुल पद 200 हो, विभागवार अगर 3 या 4 या 5 सीटें ही अनुमोदित है तो पहली बार की नियुक्तियों में SC और ST को किसी विभाग में कोई सीट नहीं मिलेगी। SC को 6 अध्यापकों के रिटायर होने के बाद पहली सीट मिलेगी और ST को 13 अध्यापकों के रिटायर होने के बाद पहली।

यानी इस पद्धति में सभी आरक्षित श्रेणियों का उचित प्रतिनिधित्व रेगिस्तान के सागर की तरह ही रहेगा। सबसे ज्यादा खामियाजा ST को उठाना पड़ेगा।

जिन विभागों में कुल 3 ही पद अनुमोदित हैं, उनमें ST की सीट बनने में कम से कम 50 साल लगेंगे। तब तक कोई नई पद्धति आ जाएगी और इस तरह आरक्षण को पिछले दरवाजे से खत्म कर दिया जाएगा।

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