प्रशासन से जुड़े लोगों की भैंसे प्रदेश की नाक होती हैं

Written by Mithun Prajapati | Published on: November 29, 2017
एक तेज तर्रार लौंडा था। पढ़ा लिखा था, लेकिन भक्त था। दोस्तों में बताया की आज विधायक जी कहें हैं की एक देशद्रोही की फ़िल्म का विरोध करना है। लौंडे ने पूछा- इससे क्या होगा,,?

Buffalo
 
उसने बताया की देशभक्ति का तमगा हासिल होगा।इस लौंडे को बात जंच गयी और बोला- चल बहुत दिन से देश भक्त बनने की सोच रहे थे आज मौका मिला है।
 
इधर से ये और कुछ लौंडे गए और उधर से भी बहुत सारे लोग थिएटर के पास देशभक्ति दिखाने जमा होने लगे थे। भीड़ धीरे धीरे बढ़ने लगी। अब इकट्ठे हुए लोगों की देशभक्ति भीड़ देखकर उबाल मारने लगी।लौंडे की निगाह फ़िल्म के पोस्टर पर लगे हीरो पर गयी। बड़ा अच्छा चेहरा था। तबतक किसी ने भीड़ में से आवाज लगाई- यही है वो देशद्रोही, यही पोस्टर वाला.. फाड़ दो पोस्टर आग लगा दो इसमें.... जला दो थिएटर........
 
लौंडा इतना सुनते ही जोश में आ गया। इसके हाथ में एक तख्ती थी जिसमें हीरो के नाम के नीचे हाय हाय लिखा था। लौंडा सबसे आगे खड़ा था,,ये हीरो का नाम चिल्लाता और पीछे की भीड़ हाय हाय कहती। यही क्रम बार बार चल रहा था..सब थिएटर के करीब आ गए थे। नारे और जोरों से लगने लगे। लौंडे की देशभक्ति उबाल मारने लगी ,,वो अपने आप को सबसे बड़ा देशभक्त साबित कर देना चाहता था। उसका चेहरा देशद्रोही हीरो को देखते ही लाल होने लगा। वह दौड़ा और पोस्टर को तख्ती से फाड़ने लगा। उसके पीछे भीड़ उग्र हो गयी थी। भीड़ भी तोड़फोड़ कर रही थी।
 
पुलिस को ये सब की सूचना पहले से ही थी। भीड़ को बेकाबू होता देख पुलिस ने लाठियां भाजनी शुरू कर दी। सारे देशभक्त भागना शुरू कर दिए ..देशभक्त बनने का उत्सुक लौंडा पोस्टर फाड़ने में मस्त था। पुलिस ने इसे धर लिया और भरपूर धोया। एक देशभक्त को पुलिस धो रही थी और वह बिचारा कुछ कर भी नहीं पा रहा था...हाय रे लोकतंत्र। पुलिस ने पीटकर उसे छोड़ दिया।
 
किसी तरह वह लड़खड़ाता घर पहुंचा,,,देखा तो बाप भैंस हांकने वाला डंडा लेकर बैठा है। पहुंचते ही बाप ने पूछा- कहां गया था रे..? 
 
लौंडा बोला "देशभक्ति साबित करने"।
 
बाप ने पुछा- वो कैसे,,?
 
उसने कहा- एक देशद्रोही की फ़िल्म का बहिष्कार करके। 
 
बाप ने उसकी कलाई पकड़ी और लगा डंडे से धोने और बोला-स्साले यहाँ तेरी गैर मौजूदगी में कोई खूंटे से भैंस खोल ले गया और तू चला है देशभक्ति दिखाने।
 
"भैंस खोल ले गया..कौन खोल ले गया भैंस..?" उसने प्रश्नवाचक निगाहों से बाप की तरफ देखते हुए पूछा।बाप ने एक चमाट मारते हुए कहा- स्साले अगर यहाँ होता तू तब न मालूम पड़ता की कौन खोल ले गया भैंस,,? 
 
उसे बड़ी ग्लानि हुई,,,ग्लानि इस बात की कि इस देश में भक्तों की भैंसे भी सलामत नहीं हैं। अचानक उसे ध्यान आया ,वह तो देशभक्त है। देशहित में उसने अभी अभी लाठियां खायी हैं। वह दौड़ता हुआ पुलिस थाने गया।
लौंडा क्रोध में था। पहुंचते ही थानेदार पर गरजा, "इसदेश में सुरक्षा नाम की चीज है की नहीं कोई...?" "क्या हो गया", थानेदार ने पुछा..?
 
वह बोला- एक देशभक्त की भैंस कोई दिनदहाड़े खोल ले गया और आप पूछते हैं की क्या हो गया..?
 
थानेदार ने पुछा- कौन देशभक्त और किसकी  भैंस खुल गयी..?
लौंडा तैस में आकर बोला- मैं देशभक्त और मेरी भैंस।
आप जल्दी से मेरी रपट लिखिए और भैंस को खोज निकालिये।
 
थानेदार समझा की लगता है  कोई सनकी है ये। फिर भी उसे माकूल जवाब तो देना ही था। थानेदार बोला, "बेटा तेरी भैंस खुल गयी मैं मानता हूँ, मगर पुलिस का ये काम थोड़ी है की वो लोगों की भैंस ढूंढती फिरे।" लौंडा पढ़ा लिखा था, मगर भक्त था। वह बोला- एक देशभक्त की भैंस आप नहीं ढूंढ सकते मगर आजमखान जैसे लोगों की भैंस पूरे प्रदेश की फ़ोर्स ढूँढने में लग जाती है.. क्या यही है लोकतंत्र..? थानेदार अब थोडा ढीला होते हुए बोला- वे प्रदेश मंत्री थे। उनकी भैंस प्रदेश का गौरव थी..प्रशासन से जुड़े लोगों की भैंसें प्रदेश का सम्मान होती हैं। तू ठहरा आम आदमी,,तुझे तो तेरे गाँव वाले भी सही से नहीं जानते। फिर तेरी भैंस कैसे ढूंढे ? 
 
लौंडा अब देशभक्त था। उसने कहा-  मैं देशभक्त हूँ ,,मैने देश के लिए देशद्रोही के विरोध में लाठियां खाई हैं। 
 
थानेदार बोला- कब खाई थी तूने लाठियां,,,और कहाँ है तेरे पास देश के लिए आंदोलन करके लाठियां खाने का सर्टिफिकेट..?
 
लौंडा गंभीर हो गया और बोला- अभी सुबह ही तो खाई मैंने लाठियां ,,इतना जल्दी सर्टिफिकेट कहाँ से मिल जायेगा। 
 
धीरे धीरे लौंडे ने थानेदार से सारी बात कह सुनाई।
 
थानेदार ने मामला सुनने के बाद कहा- हम इस तरह के केस नहीं दर्ज कर सकते ..हमें भी ऊपर जवाब देना पड़ता है। 
 
लौंडे ने मायूसी से पूछा- तो मैं कहाँ जाऊं,,? इस देश की सरकार क्या इतनी कमजोर हो गयी है की एक देशभक्त की भैंस भी न खोज पाये..?
 
थानेदार ने उसे समझाया की तू एक काम कर ,,तेरी भैंस खुल गयी और पुलिस तेरी मदद नहीं कर रही इस बात को लेकर कल तू आंदोलन कर। प्रशासन का ध्यान इसपर जायेगा तो ऊपर से आर्डर आने पर हम तेरी भैंस को खोजने में लग जायेंगे। 
 
भक्त को सुझाव अच्छा लगा। वह घर आ गया। शाम को अपने उस मित्र के पास गया जिसनें उसे देशभक्ति साबित करने के लिए आईडिया दिया था और सारा मामला समझाते हुए बोला कल हमें इस बात को लेकर  प्रदर्शन करना है की प्रशासन जनता के लिए सही तरीके से काम नहीं कर रही है। कोई प्रशासनिक अधिकारी के साथ कोई हरकत होती है तो पूरा पुलिस महकमा हरकत में आ जाता है ,मगर आम जनता की कोई सुनवाई नहीं है। उसकी रिपोर्ट तक नहीं लिखी जाती।
 
दोस्त ने विधायक से इस बारे में सम्बन्ध साधना चाहा मगर बात न हो सकी। फ़िल्म और देशद्रोही के विरोध में शामिल लोगों से प्रदर्शन के लिए एकत्रित होने को कहा गया मगर कोई तैयार नहीं हुआ। सब जगह से यही जवाब आता की कहीं देशभक्ति साबित करने की बात आये तो कहना। लोकहित के मुद्दे अलग हैं ,,और देशभक्ति के मुद्दे अलग।
 
वह लौंडा देशभक्त आज भी लोकहित के लिए भीड़ जुटाने की कोशिश कर रहा है मगर भक्त लोग किसी ऐसे मौके की तलाश में हैं जहाँ देशभक्ति साबित करने का चांस मिले।

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