समाज के कमजोर वर्ग को और नुकसान पहुंचाएगा उच्च शिक्षा का बाजारीकरण

Published on: April 26, 2017
11 अप्रैल, 2017 को पंजाब यूनवर्सिटी लड़ाई के मैदान में तब्दील हो गई। आंसू गैस, पानी की बौछारें, लाठी चार्ज, पंजाब पुलिस की बेल्ट और बूटों के साथ जातिसूचक और मां-बहन की गालियों के साथ छात्रों का दमन शुरू हो गया। चंडीगढ़ पुलिस ने निर्ममता से सैकड़ों छात्रों पर हमला कर दिया (यहां तक कि पुलिस छात्राओं के हॉस्टल में भी घुस गई)। छात्र-छात्राओं के कसूर यही था कि ये पंजाब यूनवर्सिटी की ओर से फीस में 100 से 1100 प्रतिशत की बढ़ोतरी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे। फीस में आसमान छूती बढ़ोतरी  के खिलाफ आंदोलन पंजाब यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स ज्वाइंट एक्शन कमेटी की अगुवाई में छेड़ा गया था। इसमें स्टूडेंटस फॉर सोसाइटी,एनएसयूआई,पीयूएसयू, एसओआई,आईसा, पीएसयू (ललकार) जैसे छात्र संगठन शामिल थे।

Punjab University
Image: Hindustan Times

शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे छात्र-छात्राओं ने फीस बढ़ोतरी को वापस लेने की मांग की थी। उन्होंने जल्द से जल्द सीनेट की बैठक बुला कर फीस में बेहिसाब इस बढ़ोतरी को तुरंत वापस लेने को कहा था। उन्होंने वाइस चासंलर से मुलाकात की मांग की थी। लेकिन उन्हें चंडीगढ़ पुलिस की क्रूरता का सामना करना पड़ा।

पंजाब यूनिवर्सिटी की घटना को अलग करके नहीं देखा जा सकता। हाल में आईआईटी समेत कई यूनिवर्सिटी में फीस बढ़ाने और इसके बाद विरोध के मंजर दिखे हैं। पिछले साल आईआईटी के बीटेक कोर्सों की फीस बेतहाशा बढ़ा दी गई। इसके अलावा हॉस्टल फीस में भी इजाफा कर दिया गया। इन घटनाओं को एक खास संदर्भ में देखा जाना चाहिए। हायर एजुकेशन का जिस तरह से बाजारीकरण बढ़ रहा है, उसमें यूनिवर्सिटी की फीस बढ़नी ही थी। राज्य अब धीरे-धीरे हायर एजुकेशन सेक्टर में किए जाने वाले खर्चे में कटौती करता जा रहा है। डब्ल्यूटीओ-गेट्स समझौते की लाइन पर बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2016 में राज्य द्वारा वित्त पोषित संस्थानों की वित्तीय स्वायत्तता की सिफारिश की गई है। संस्थानों की वित्तीय स्वायत्तता के नाम पर मेंटनेस चार्ज और वेतन का बोझ छात्रों पर लादा जा रहा है। मौजूदा संस्थानों को मजबूत करने के बजाय यूजीसी विश्वविद्यालयों को कौशल आधारित कोर्स शुरू करने की ओर धकेल रहा है। यह शिक्षा को वोकेशनल ट्रेनिंग में बदल देने की योजना का एक हिस्सा है। विश्वविद्यालयों को कहा जा रहा है कि वे ऑनलाइन कोर्स शुरू करें ताकि शिक्षा देने की लागत घटाई जा सके। सरकार की ओर से बजट कटौती की वजह से केंद्रीय विश्वविद्लायों और केंद्र की ओर से वित्त पोषित कई संस्थानों के कई कोर्सों पर विपरीत असर पड़ा है। अब हायर एजुकेशन फाइनेंस एजेंसी नाम की एजेंसी का गठन किया गया है। एजेंसी का गठन नई शिक्षा नीति 2016 की सिफारिशों पर किया गया है। यह निजी निवेशकों की ओर से हायर एजुकेशन सेक्टर में अपने कर्जे के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। अब आईआईटी और तमाम दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालयों  को एजेंसी की ओर से दस साल के लिए लोन लेने को प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्हें कहा जा रहा है कि विस्तार के लिए अब सरकार से वित्तीय मदद की अपेक्षा की बजाय एजेंसी से लोन लें।

इन परिस्थतियों में पंजाब यूनिवर्सिटी को अपनी फीस में भारी बढ़ोतरी करनी पड़ी। ताकि संसाधन जुटाने और प्रशासनिक खर्चों के लिए पैसे जुटाए जा सकें। पंजाब यूनिवर्सिटी को केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की ओर से पंजाब पुनर्गठन कानून, 1966 के तहत पैसा मिलता है। केंद्र सरकार 60 और राज्य सरकार 40 फीसदी पैसा देती है। जब से पंजाब यूनवर्सिटी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के तहत वर्गीकृत हुई है तब से यूजीसी ने इसके 176 करोड़ रुपये का फंड फ्रीज कर दिया है। यूजीसी के साथ ही राज्य सरकार ने पिछले 15 साल के दौरान 20 करोड़ रुपये देने का जो वादा किया था उसे भी रोक दिया है।

दरअसल ऊंच शिक्षा के बाजारीकरण ने परंपरागत तौर पर समाज के हाशिये के वर्ग के लाखों छात्र-छात्राओं के लिए तबाही मचाने का काम किया है। यह वर्ग उच्च शिक्षा के लिए सार्वजनिक विश्वविद्यालयों पर ही निर्भर था। दरअसल शिक्षा सामाजिक क्रम में ऊपर चढ़ने का एक माध्यम है और वह भी इस देश में हाशिये के लोगों के लिए तो यह और भी जरूरी है। इसलिए स्थापित विश्वविद्यालयों के लिए फंड में कटौती करना इस वर्ग के लिए दिक्कतें पैदा करेगा। दबे-कुचले और पिछड़े वर्ग के बच्चे अब इन विश्वविद्यालयों में नहीं दिखेंगे। विश्वविद्लायों में छात्र-छात्राओं की मौजूदगी का स्वरूप बदल जाएगा। कमजोर आर्थिक वर्ग के छात्र-छात्राएं पीछे रह जाएंगे।
 
 

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