असहिष्णुता बोली— जब ज़रूरत हो, बुला लेना पप्पा

Published on: 11-27-2015


फेसबुक पर शोर उठा। ट्विटर पर तांडव मचा--अब बोलो कहां चली गई असहिष्णुता? विरोधियों के सामने भक्त रक्त पिपासु ही नहीं होते, कई बार परम जिज्ञासु भी हो जाते हैं। बार-बार पूछ रहे हैं, एक ही सवाल। वाकई इस प्रश्न का उत्तर ढूंढना बनता है कि आखिर बिहार चुनाव के बाद असहिष्णुता अपना सारा सामान बांधकर छुट्टी मनाने कहां चली गई? इस सवाल का जवाब जानने के लिए पहले यह जानना होगा कि असहिष्णुता है कौन? भक्तो का कहना है—हमने असहिष्णुता को नहीं देखा, क्योंकि वह सिर्फ एक कल्पना है। भक्तों की इस धारणा ने असिहष्णुता के सवाल में दार्शनिकता का पुट डाल दिया है। असहिष्णुता एक कल्पना है, उसे देखा किसी ने नहीं है, लेकिन महसूस बहुत लोगो ने किया है। इस हिसाब से अजन्मी और अदृश्य असहिष्णुता तो आत्मा की कैटेगेरी में आ गई। हम सब के पास अपनी-अपनी आत्मा है, तो फिर ये असहिष्णुता किसकी आत्मा है? कही असहिष्णुता भारत की आत्मा तो नहीं? खैर, दार्शनिक बहस को परे हटाकर सीधे तथ्यों पर आ जाते हैं। असहिष्णुता विकास की सगी बहन है। तो क्या फिर विकास भी काल्पनिक है? बिल्कुल नही, यह सवाल इतना घटिया है कि दोबारा पूछा गया तो पब्लिक दौड़ा-दौड़कर पीटेगी। कितना गोलू-मोलू क्यूट सा है, विकास। पूरा भारत उस पर जान न्यौछावर करता है। अपने पप्पा की उंगली पकड़कर देश-विदेश घूमता है, विकास। कितनी चर्चा होती है, इंटरनेशनल मीडिया में हमारे विकास की! इसी विकास की सगी बड़ी बहन है, असहिष्णुता, क्योंकि दोनो के पप्पा एक ही हैं। ग़लत मत समझियेगा. पप्पा होने का मतलब मानस पिता होना है, घोषित और अदालत से प्रमाणित जैविक पिता तो इस देश में सिर्फ तिवारी जी हैं। खैर पप्पा के हैं दो बच्चे। विकास सुंदर है, असहिष्णुता बदसूरत। विकास से पप्पा के विरोधी तक प्यार करते हैं और असहिष्णुता से उनके कई समर्थक भी नफरत करते हैं। लेकिन पिता के लिए सभी संताने एक बराबर होती है। मानस पिता अपने दोनो बच्चो पर जान छिड़कते आये हैं।

असहिष्णुता को एक समय पप्पा बहुत लक्की मानते थे क्योंकि 13 साल पहले जब वो आई थी, उसी समय पप्पा ने इलेक्शन जीता था। पप्पा के पावर में आने के बाद विकास भी आ गया। बेचारी असहिष्णुता, भाई के आते ही पराई हो गई। घर की एक काली कोठरी में बंद रहती और अक्सर आवाज़ देती--—पप्पा जब भी बुलाओगे आऊंगी और पुत्री धर्म ज़रूर निभाऊंगी। पप्पा ने कानों में उंगली डाल ली, कलेजे पर पत्थर रख लिया और उंगली पकड़ाकर विकास को पूरी दुनिया में घुमाने लगे। नतीजा बहुत अच्छा हुआ। पप्पा ने दिल्ली तक जीत ली। अब बारी थी, बिहार जीतने की। बिहार में पप्पा के साथ विकास के नाम की भी जय-जयकार हो रही थी। लेकिन विकास ठहरा छोकरा, बीच चुनाव में ही पप्पा की उंगली छुड़ाकर सोनपुर के मेले में ऐसा गुम हुआ कि नज़र ही नहीं आया।

 

विकास के नाम की जय-जयकार फिर से शुरू हो गई और पप्पा की पहली संतान बापू की सबसे बड़ी औलाद की तरह गुमनाम हो गई। बाबुल की बेरुखी पर आंसू बहा रही असहिष्णुता अपने आप से सवाल कर रही है--  अगर मैं बिहार चुनाव जिता देती, क्या तब भी पप्पा मेरे साथ ऐसा ही सलूक करते?


पप्पा ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका विकास इस तरह `पप्पू’ निकलेगा। सिर पकड़कर बैठे थे कि अचानक आवाज़ आई-- —मैं हूं ना पप्पा, संभाल लूंगी। पप्पा ने सिर उठाकर देखा, बड़े-बड़े दांतोवाली असहिष्णुता सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। पप्पा का दिल भर आया—औलाद हो तो ऐसी। असहिष्णुता बिहार आई और अपने ढंग से इलेक्शन संभाला। इसी दौरान पूरे देश से तरह-तरह की ख़बरें आईं, रांची में गाय और सुअर कटे, दादरी हुआ, हिमाचल से हरियाणा तक पूरे देश में गौ तस्कर सक्रिय हुए। कई जगहों पर होटलो में छापे पड़े। बिहार में बड़े पैमाने पर पाकिस्तान और बांग्लादेश टूरिज्म के पोस्टर लगे। दुश्मन पार्टी वाले गाय काटने के लिए छुरियां चमकाने लगे। पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर आतिशबाजी की तैयारियां होने लगीं। असहिष्णुता मुस्कराकर बोली-- मैने कहा था, सब ठीक कर दूंगी। लेकिन रिजल्ट आये तो पप्पा के साथ दादाजी ने भी सिर पीट लिया। असहिष्णुता अपनी नाकामी पर बहुत शरमाई, उसने धीरे से पप्पा के कान में कहा— लगता है, मुझे मेकओवर की ज़रूरत है। मैं अभी जा रही हूं। लेकिन जब भी ज़रूरत होगी आवाज़ देना। उल्टे पांव दौड़ी चली जाउंगी। गुस्साये पप्पा ने बात अनसुनी कर दी और अगले दिन अख़बार में विज्ञापन दे दिया कि असहिष्णुता से मेरा कोई संबंध नहीं है। मेरी इकलौती संतान का नाम विकास है। विकास के नाम की जय-जयकार फिर से शुरू हो गई और पप्पा की पहली संतान बापू की सबसे बड़ी औलाद की तरह गुमनाम हो गई। बाबुल की बेरुखी पर आंसू बहा रही असहिष्णुता अपने आप से सवाल कर रही है--  अगर मैं बिहार चुनाव जिता देती, क्या तब भी पप्पा मेरे साथ ऐसा ही सलूक करते?
 
The writer is a senior journalist, former managing editor India Today group and presently researching at the Jawaharlal Nehru Univreristy (JNU) on Media and Caste relations.

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