दिशा भ्रम के शिकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भूमिका भ्रम हो गया है। नरेंद्र मोदी प्रेरणा की आपूर्ति के लिए पदासीन नहीं हुए हैं और न ही जनता प्रेरणा की कमी से मरी जा रही थी। उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया है न कि प्रेरक मंत्री। उनका काम लोगों को प्रेरित करना नहीं है। चुनावी भाषणों में दीदी ओ दीदी टाइप की संवैधानिक मर्यादाओं को छोड़ दें तो उनके हर दूसरे भाषण में प्रेरित करने का बोझ दिखाई देता है। जैसे माँ गंगा ने बुलाया ही इसलिए है कि गंगा को छोड़ लोगों को प्रेरित करे। प्रेरक प्रसंग कई बार चाट हो जाते हैं। यह ठीक है कि सफल कैसे हों, अमीर कैसे बनें, तनाव कैसे दूर करें टाइप की किताबें बेस्ट सेलरी होती हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर लेखक इसी मनोभाव से किताब लिखे। प्रधानमंत्री को समझना चाहिए कि प्रेरक प्रसंगों की एक सीमा होती है। आप प्रेरक प्रसंगों से अपनी पराजय के प्रसंगों पर पर्दा नहीं डाल सकते हैं। जबकि यही कर रहे हैं।
नीलांजन मुखोपाध्याय ने क्विंट में सही लिखा है कि दूसरी लहर की कमियों की बात करने के बजाए प्रधानमंत्री मन की बात से लेकर तमाम संबोधनों में प्रेरक प्रसंगों को ले आते हैं। दिल्ली और गोवा के ही अस्पताल में आक्सीजन के नहीं होने से सौ से अधिक लोग मर गए। तड़प कर मर गए। इसके लिए स्वास्थ्य मंत्री से बात करते तो लोगों को ज़्यादा प्रेरणा मिलती। तब आप ख़ुद भी बताते कि आप क्या कर रहे थे। इसकी जगह आक्सीजन ट्रक के ड्राइवर और पायलट से बात कर ज़बरन प्रेरक प्रसंग न बनाए। ऐसे लाखों लोग काम कर रहे थे सिवाय आपको छोड़ कर।
मैं यह बात क्यों कर रहा हूँ। काश इस बात का ऑडिट करने को मिल जाता कि दूसरी लहर के दौरान प्रधानमंत्री ने जितने संबोधन किए हैं, मन की बात की रिकार्डिंग की है, उसके लिए उन्होंने कितना समय दिया। मन की बात के लिए क्या कोई अलग टीम है,
उसकी रिकार्डिंग कहां होती है। कितना खर्च आता है।
यह दुनिया का पहले रेडियो कार्यक्रम है जिसे न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित किया जाता है। वैसे कोई न्यूज़ चैनल ख़ुद से तो मन की बात प्रसारण नहीं करता। आप समझते हैं। चैनलों पर मन की बात का आडियो चलता है तो कुछ वीडियो भी आता है। इसके लिए लाइव कैमरे लगाए जाते होंगे ताकि चैनलों को वीडियो मिले। कई बार आपने देखा होगा कि कुछ लोग रेडियो पर मन की बात सुन रहे हैं। जब टीवी पर मन की बात का प्रसारण हो रहा है तो कुछ लोग टीवी पर भी सुन रहे होंगे, क्या कैमरा इसे दिखाता है? क्या आपने देखा है कि दस लोग बैठकर मन की बात सुन रहे हैं?
देश को जानना चाहिए कि 25 अप्रैल को जनता जब आक्सीजन और वेंटिलेटर के लिए मारी मारी फिर रही थी तब प्रधानमंत्री ने मन की बात की रिकार्डिंग के लिए कितना समय लगाया? उस अफ़सर को आगे चल कर संस्मरण लिखना चाहिए कि मन की बात की रिकार्डिंग के लिए क्या क्या हुआ करता था। अभी से नोट्स बना कर रखना चाहिए। वह किताब शानदार बनेगी।
प्रधानमंत्री फिर से वही राग अलापने लगे हैं। हमने कोरोना को हरा दिया। हम कोरोना को हरा देंगे। इसके बीच की एक लाइन ग़ायब कर देते हैं कि कोरोना ने हमें किस तरह हरा दिया और हमने तो कोई तैयारी ही नहीं की थी। नागरिक ऐसे जुमलों से सावधान रहें। हमने कोरोना को नहीं हराया था। हराया था तो फिर कैसे आ गया। पूछिए कि हराने के लिए आपने क्या किया था। किस तरह के इंतज़ाम किए थे। अस्पताल, आक्सीजन, वेंटिलेटर इन सबका रिकार्ड दीजिए। पीएम केयर्स से वेंटिलेटर की सप्लाई तो हुई थी जिसके घटिया होने की तमाम ख़बरें आई हैं। प्रधानमंत्री को ऐसे वेंटिवेटर की सप्लाई करने वालों के साथ मन की बात करनी चाहिए कि आपने जो घटिया वेंटिलेटर की सप्लाई की है उसकी कमाई का चंदा किस किस पार्टी को देने वाले हैं। सबको पता है कि भारत ने एक साल के दौरान कोई तैयारी नहीं की थी। उसी की तो पोल खुली है दुनिया के सामने। उनसे बात कीजिए जो ऑक्सीजन की तलाश में मारे मारे फिर रहे थे और उनके अपने कार में दम तोड़ रहे थे। ऑक्सीजन ट्रक के ड्राइवर से बात करने का क्या मतलब है।
मन की बात सुनकर लगता है कि देश के प्रधानमंत्री नहीं, नैतिक शिक्षा की कक्षा के मास्टर बोल रहे हैं। वह भी सारी बातें ग़लत या सच से भागती हुईं। प्रेरक प्रसंगों से संघ की शाखा में टाइम कट सकता है, देश का काम नहीं होता है। देश का काम होता है सिस्टम बनाने और उसे चलने देने से। तैयारियों से। प्रेरक प्रसंगों से अगर प्रेरित ही होना होता तो देश के सारे बच्चे स्वीमिंग पुल छोड़ कर चंबल नदी में तैरने चले जाते और मगरमच्छ की पूँछ पकड़ रहे होते।
नागरिकों से गुज़ारिश है कि वे प्रधानमंत्री को याद दिलाएँ कि आप हमारी प्रेरणा की चिन्ता न करें। हम प्रेरित हो लेंगे और काम कीजिए। कहीं ऐसा न हो जाए कि एक दिन उनके ही मंत्री और पार्टी के लोग प्रेरित हो कर सच बोलने लग जाएँ। वैसे होगा तो नहीं। कब तक स्लोगन को काम समझेंगे। स्लोगन पर भरोसा करने के कारण ही तो इतने लोग धोखा खा गए। प्रधानमंत्री को भ्रम से निकलना चाहिए। उनका काम प्रेरित करना नहीं है और न ही मन की बात के लिए प्रेरक प्रसंगों को खोजना। ऐसी ख़बरें अख़बार वाले पाठक तक पहुँचा देते हैं। आपको दोहरी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है।
हाँ तो आपने कोरोना को कैसे हराया था, ज़रा बताएँगे?
नीलांजन मुखोपाध्याय ने क्विंट में सही लिखा है कि दूसरी लहर की कमियों की बात करने के बजाए प्रधानमंत्री मन की बात से लेकर तमाम संबोधनों में प्रेरक प्रसंगों को ले आते हैं। दिल्ली और गोवा के ही अस्पताल में आक्सीजन के नहीं होने से सौ से अधिक लोग मर गए। तड़प कर मर गए। इसके लिए स्वास्थ्य मंत्री से बात करते तो लोगों को ज़्यादा प्रेरणा मिलती। तब आप ख़ुद भी बताते कि आप क्या कर रहे थे। इसकी जगह आक्सीजन ट्रक के ड्राइवर और पायलट से बात कर ज़बरन प्रेरक प्रसंग न बनाए। ऐसे लाखों लोग काम कर रहे थे सिवाय आपको छोड़ कर।
मैं यह बात क्यों कर रहा हूँ। काश इस बात का ऑडिट करने को मिल जाता कि दूसरी लहर के दौरान प्रधानमंत्री ने जितने संबोधन किए हैं, मन की बात की रिकार्डिंग की है, उसके लिए उन्होंने कितना समय दिया। मन की बात के लिए क्या कोई अलग टीम है,
उसकी रिकार्डिंग कहां होती है। कितना खर्च आता है।
यह दुनिया का पहले रेडियो कार्यक्रम है जिसे न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित किया जाता है। वैसे कोई न्यूज़ चैनल ख़ुद से तो मन की बात प्रसारण नहीं करता। आप समझते हैं। चैनलों पर मन की बात का आडियो चलता है तो कुछ वीडियो भी आता है। इसके लिए लाइव कैमरे लगाए जाते होंगे ताकि चैनलों को वीडियो मिले। कई बार आपने देखा होगा कि कुछ लोग रेडियो पर मन की बात सुन रहे हैं। जब टीवी पर मन की बात का प्रसारण हो रहा है तो कुछ लोग टीवी पर भी सुन रहे होंगे, क्या कैमरा इसे दिखाता है? क्या आपने देखा है कि दस लोग बैठकर मन की बात सुन रहे हैं?
देश को जानना चाहिए कि 25 अप्रैल को जनता जब आक्सीजन और वेंटिलेटर के लिए मारी मारी फिर रही थी तब प्रधानमंत्री ने मन की बात की रिकार्डिंग के लिए कितना समय लगाया? उस अफ़सर को आगे चल कर संस्मरण लिखना चाहिए कि मन की बात की रिकार्डिंग के लिए क्या क्या हुआ करता था। अभी से नोट्स बना कर रखना चाहिए। वह किताब शानदार बनेगी।
प्रधानमंत्री फिर से वही राग अलापने लगे हैं। हमने कोरोना को हरा दिया। हम कोरोना को हरा देंगे। इसके बीच की एक लाइन ग़ायब कर देते हैं कि कोरोना ने हमें किस तरह हरा दिया और हमने तो कोई तैयारी ही नहीं की थी। नागरिक ऐसे जुमलों से सावधान रहें। हमने कोरोना को नहीं हराया था। हराया था तो फिर कैसे आ गया। पूछिए कि हराने के लिए आपने क्या किया था। किस तरह के इंतज़ाम किए थे। अस्पताल, आक्सीजन, वेंटिलेटर इन सबका रिकार्ड दीजिए। पीएम केयर्स से वेंटिलेटर की सप्लाई तो हुई थी जिसके घटिया होने की तमाम ख़बरें आई हैं। प्रधानमंत्री को ऐसे वेंटिवेटर की सप्लाई करने वालों के साथ मन की बात करनी चाहिए कि आपने जो घटिया वेंटिलेटर की सप्लाई की है उसकी कमाई का चंदा किस किस पार्टी को देने वाले हैं। सबको पता है कि भारत ने एक साल के दौरान कोई तैयारी नहीं की थी। उसी की तो पोल खुली है दुनिया के सामने। उनसे बात कीजिए जो ऑक्सीजन की तलाश में मारे मारे फिर रहे थे और उनके अपने कार में दम तोड़ रहे थे। ऑक्सीजन ट्रक के ड्राइवर से बात करने का क्या मतलब है।
मन की बात सुनकर लगता है कि देश के प्रधानमंत्री नहीं, नैतिक शिक्षा की कक्षा के मास्टर बोल रहे हैं। वह भी सारी बातें ग़लत या सच से भागती हुईं। प्रेरक प्रसंगों से संघ की शाखा में टाइम कट सकता है, देश का काम नहीं होता है। देश का काम होता है सिस्टम बनाने और उसे चलने देने से। तैयारियों से। प्रेरक प्रसंगों से अगर प्रेरित ही होना होता तो देश के सारे बच्चे स्वीमिंग पुल छोड़ कर चंबल नदी में तैरने चले जाते और मगरमच्छ की पूँछ पकड़ रहे होते।
नागरिकों से गुज़ारिश है कि वे प्रधानमंत्री को याद दिलाएँ कि आप हमारी प्रेरणा की चिन्ता न करें। हम प्रेरित हो लेंगे और काम कीजिए। कहीं ऐसा न हो जाए कि एक दिन उनके ही मंत्री और पार्टी के लोग प्रेरित हो कर सच बोलने लग जाएँ। वैसे होगा तो नहीं। कब तक स्लोगन को काम समझेंगे। स्लोगन पर भरोसा करने के कारण ही तो इतने लोग धोखा खा गए। प्रधानमंत्री को भ्रम से निकलना चाहिए। उनका काम प्रेरित करना नहीं है और न ही मन की बात के लिए प्रेरक प्रसंगों को खोजना। ऐसी ख़बरें अख़बार वाले पाठक तक पहुँचा देते हैं। आपको दोहरी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है।
हाँ तो आपने कोरोना को कैसे हराया था, ज़रा बताएँगे?