उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित जिलों तक के सपा नेताओं को पुलिस ने सोमवार को ताबड़तोड़ कार्रवाई में हिरासत में लेते हुए घरों या अन्य जगहों पर नजरबंद कर दिया। अखिलेश यादव ने इसे लोकतंत्र की हत्या और अपने नागरिक अधिकारों का हनन बताते हुए, लोकसभा अध्यक्ष से हस्तक्षेप की मांग की तो सपा नेताओं ने नजरबंदी और हिरासत को 'अघोषित आपातकाल' की संज्ञा दी है। उधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कृषि कानूनों के विरोध को सपा आदि राजनीतिक दलों का दोहरा चरित्र बताते हुए कहा कि विपक्षी दल भोले भाले किसानों के कंधे बंदूक चला रहे हैं।

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा है और राजनीतिक दल भी खुलकर इसके समर्थन में आ गए हैं। सपा ने किसानों के समर्थन में 7 दिसंबर को 'किसान यात्रा' निकालने का ऐलान किया था लेकिन सोमवार सुबह किसान यात्रा शुरू होने से पहले ही लखनऊ से लेकर कन्नौज, नोएडा से सहारनपुर तक सपा नेताओं को हिरासत में लेते हुए नजरबंद कर दिया गया है।
लखनऊ में विक्रमादित्य रोड स्थित समाजवादी पार्टी दफ्तर को छावनी में बदल दिया है। चप्पे-चप्पे पर पुलिस के साथ, सपा दफ्तर से अखिलेश के घर तक बैरिकेडिंग कर सील कर दिया गया। किसी को भी आने-जाने की इजाजत नहीं थी। प्रदर्शन जैसी स्थिति के निपटने को वाटर कैनन आदि भी तैनात रहे। इससे आक्रोशित सपा कार्यकर्ताओं ने लखनऊ में कई जगह प्रदर्शन भी किया जिसे लेकर कई जगह पुलिस से झड़प हुई, पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया। वहीं, जिलों में अलग ही नजारा देखने को मिला। बड़े नेताओं के साथ छोटे ब्लॉक स्तर के सपा नेताओं के घर भी सुबह पुलिस बैठी मिली और उन्हें घरों से नहीं निकलने दिया। आलम यह था कि कई सपा नेताओं को नींद से पुलिस ने ही जगाया है।
लखनऊ की बात करें तो सोमवार को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को किसान यात्रा का आगाज करने कन्नौज जाना था, लेकिन पुलिस ने उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने दिया। जैसे ही अखिलेश कन्नौज जाने के लिये अपने घर से निकले तो पुलिस ने उनकी गाड़ी रोक ली। इससे नाराज पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश धरने पर बैठ गये। बाद में उन्हें हिरासत में लेकर पुलिस वैन में आगे बैठाकर इकोगार्डन ले जाया गया। धरने पर अखिलेश ने मीडिया से कहा कि भाजपा ने तानाशाहीपूर्ण रवैये से संविधान की धज्जियां उड़ा दी हैं। उन्होंने कहा भाजपा देश में कहीं भी सभाएं और चुनाव प्रचार कर लें, उसके लिये कोई कोरोना नहीं है। कोरोना सिर्फ विपक्ष के लिए है। कहा कि सरकार कोरोना के सहारे लोकतंत्र का गला घोंटना चाहती है।
अखिलेश ने कहा 'केवल पार्टी कार्यालय में ही नहीं, बल्कि सरकार हर समाजवादी कार्यकर्ता को अपमानित कर रही है। हम अपने घर से निकल कर किसानों में अपनी बात रखते। जिस कानून को लेकर किसान दिल्ली घेरकर बैठा है, सरकार उसे वापस क्यों नहीं ले रही है? सरकार पर अविश्वास बढ़ रहा है। सरकार अब बचने वाली नहीं है।'' इस बीच, अखिलेश ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा ''राज्य सरकार का अलोकतांत्रिक व्यवहार मेरे नागरिक अधिकारों का हनन है। वही, सांसद होने के नाते यह उनके विशेषाधिकार का हनन भी है। कृपया तत्काल हस्तक्षेप करें ताकि अपनी लोकतांत्रिक गतिविधियों को सम्पन्न करने का मेरा अधिकार बहाल हो सके।
खास है कि किसान यात्रा से पहले सुबह अखिलेश यादव ने ट्वीट भी किया था। उन्होंने लिखा, ‘कदम-कदम बढ़ाए जा, दंभ का सर झुकाए जा, ये जंग है ज़मीन की, अपनी जान भी लगाए जा… ‘किसान-यात्रा’ में शामिल हों! #नहीं_चाहिए_भाजपा’।
सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने पुलिस प्रशासन की इस कारर्वाई को अलोकतांत्रिक करार देते हुए कहा है कि सरकार अखिलेश के किसान यात्रा में शामिल होने मात्र से भयभीत हो गई है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना हर किसी का लोकतांत्रिक अधिकार है और सरकार इसका हनन करने पर तुली हुई है। चौधरी ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार किसान यात्रा के सपा के कार्यक्रम से इतनी डरी हुई है कि वह हर जिले में पार्टी कार्यकर्ताओं को रोक रही है।
यही नहीं, लखनऊ पुलिस ने सपा के एमएलसी राजपाल कश्यप और आशू मलिक को पार्टी कार्यालय जाते हुए हिरासत में लिया। इस दौरान एमएलसी राजपाल कश्यप ने कहा कि पुलिस हमें क्यों रोक रही है, ये अघोषित आपातकाल है।
वहीं, कई जिलों में सपा नेताओ को हिरासत में लेते हुए नजरबंद कर दिया गया। सहारनपुर में सपा के इकलौते विधायक व सपा व्यापार सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय गर्ग को घर पर ही नजरबंद कर दिया गया। वही सपा जिलाध्यक्ष चौ रुद्रसेन को मंदिर जाते हुए हिरासत में ले लिया और नजरबंद कर दिया। पूर्व एमएलसी उमर अली खान को लखनऊ जाते समय देवबंद में हिरासत में ले लिया गया। यही नहीं, जसवीर वाल्मीकि, फरहाद आलम गाड़ा, अमित गुर्जर, शाहनवाज खान आदि कई प्रकोष्ठों के नेताओं को भी पुलिस ने हिरासत में लेते हुए घरों में नजरबंद कर दिया।
उधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रदेश में विपक्षी दल माहौल खराब कर रहे हैं। भोले-भाले किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अराजकता फैलाई जा रही है। उन्होंने केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि नए कानूनों का आम आदमी पार्टी सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया था, अब भारत बंद का समर्थन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने लखनऊ में पत्रकार वार्ता में कहा कि दिल्ली में जब शीला दीक्षित हारी तो राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस मंडी कानून में संशोधन करेगी। हार के लिए उन्होंने उसी को कारण माना था। यूपीए और कांग्रेस ने कभी किसानों को हित में कोई कदम नहीं उठाया। अब कृषि संबंधी कानूनों को लागू किया गया तो संसद की स्थाई समिति में इसकी विस्तृत चर्चा हुई। बैठक में अकाली दल, सपा, टीएमसी और कांग्रेस के नेताओं, राष्ट्रवादी कांग्रेस नेताओं ने राज्यों को एक्ट में संशोधन करने और मॉडल एक्ट लागू करने की वकालत की थी। जिसके तहत वन नेशन वन मंडी की परिकल्पना को लागू किया जा सके। अब वही लोग भोले भाले किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अव्यवस्था पैदा करना चाहते हैं।
खैर, सीएम योगी लाख कुछ कहें। किसानों को भोला-भाला बताएं और विपक्ष के नेताओं को दोहरे रवैये वाला बताकर नजरबंद कर दें लेकिन उनकी सोमवार दिन भर की पूरी कवायद से साफ है कि अभी भी उन (भाजपा) की नीयत कृषि कानूनों को लेकर साफ नहीं है। वो अभी भी पूरे मुद्दे को कांग्रेस, केजरीवाल और समाजवादी आदि राजनीतिक दलों में ही उलझाकर रख देना चाहते हैं। किसानों का सामना करने की ताकत उनमें नहीं हैं।
किसान आंदोलन को लेकर भाजपा सरकारों व उसके नेताओं के नैरेटिव बदलने वाले इसी रवैये ने, उनके तथाकथित किसान प्रेम की भी कलई खोल दी है। यही नहीं, अब जब एक ओर केंद्रीय सरकार किसान संगठनों को गम्भीरता से लेते हुए, उनसे वार्ता में हैं वही दूसरी ओर योगी, किसानों को भोला भाला बताकर पूरी वार्ता प्रक्रिया का भी मखौल उड़ा रहे हैं। सवाल यह हैं कि किसान भोले भाले हैं तो सरकार उन्हें क्यों नहीं समझा लेती है। आखिर सरकार को कौन रोक रहा हैं?

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा है और राजनीतिक दल भी खुलकर इसके समर्थन में आ गए हैं। सपा ने किसानों के समर्थन में 7 दिसंबर को 'किसान यात्रा' निकालने का ऐलान किया था लेकिन सोमवार सुबह किसान यात्रा शुरू होने से पहले ही लखनऊ से लेकर कन्नौज, नोएडा से सहारनपुर तक सपा नेताओं को हिरासत में लेते हुए नजरबंद कर दिया गया है।
लखनऊ में विक्रमादित्य रोड स्थित समाजवादी पार्टी दफ्तर को छावनी में बदल दिया है। चप्पे-चप्पे पर पुलिस के साथ, सपा दफ्तर से अखिलेश के घर तक बैरिकेडिंग कर सील कर दिया गया। किसी को भी आने-जाने की इजाजत नहीं थी। प्रदर्शन जैसी स्थिति के निपटने को वाटर कैनन आदि भी तैनात रहे। इससे आक्रोशित सपा कार्यकर्ताओं ने लखनऊ में कई जगह प्रदर्शन भी किया जिसे लेकर कई जगह पुलिस से झड़प हुई, पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया। वहीं, जिलों में अलग ही नजारा देखने को मिला। बड़े नेताओं के साथ छोटे ब्लॉक स्तर के सपा नेताओं के घर भी सुबह पुलिस बैठी मिली और उन्हें घरों से नहीं निकलने दिया। आलम यह था कि कई सपा नेताओं को नींद से पुलिस ने ही जगाया है।
लखनऊ की बात करें तो सोमवार को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को किसान यात्रा का आगाज करने कन्नौज जाना था, लेकिन पुलिस ने उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने दिया। जैसे ही अखिलेश कन्नौज जाने के लिये अपने घर से निकले तो पुलिस ने उनकी गाड़ी रोक ली। इससे नाराज पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश धरने पर बैठ गये। बाद में उन्हें हिरासत में लेकर पुलिस वैन में आगे बैठाकर इकोगार्डन ले जाया गया। धरने पर अखिलेश ने मीडिया से कहा कि भाजपा ने तानाशाहीपूर्ण रवैये से संविधान की धज्जियां उड़ा दी हैं। उन्होंने कहा भाजपा देश में कहीं भी सभाएं और चुनाव प्रचार कर लें, उसके लिये कोई कोरोना नहीं है। कोरोना सिर्फ विपक्ष के लिए है। कहा कि सरकार कोरोना के सहारे लोकतंत्र का गला घोंटना चाहती है।
अखिलेश ने कहा 'केवल पार्टी कार्यालय में ही नहीं, बल्कि सरकार हर समाजवादी कार्यकर्ता को अपमानित कर रही है। हम अपने घर से निकल कर किसानों में अपनी बात रखते। जिस कानून को लेकर किसान दिल्ली घेरकर बैठा है, सरकार उसे वापस क्यों नहीं ले रही है? सरकार पर अविश्वास बढ़ रहा है। सरकार अब बचने वाली नहीं है।'' इस बीच, अखिलेश ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा ''राज्य सरकार का अलोकतांत्रिक व्यवहार मेरे नागरिक अधिकारों का हनन है। वही, सांसद होने के नाते यह उनके विशेषाधिकार का हनन भी है। कृपया तत्काल हस्तक्षेप करें ताकि अपनी लोकतांत्रिक गतिविधियों को सम्पन्न करने का मेरा अधिकार बहाल हो सके।
खास है कि किसान यात्रा से पहले सुबह अखिलेश यादव ने ट्वीट भी किया था। उन्होंने लिखा, ‘कदम-कदम बढ़ाए जा, दंभ का सर झुकाए जा, ये जंग है ज़मीन की, अपनी जान भी लगाए जा… ‘किसान-यात्रा’ में शामिल हों! #नहीं_चाहिए_भाजपा’।
सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने पुलिस प्रशासन की इस कारर्वाई को अलोकतांत्रिक करार देते हुए कहा है कि सरकार अखिलेश के किसान यात्रा में शामिल होने मात्र से भयभीत हो गई है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना हर किसी का लोकतांत्रिक अधिकार है और सरकार इसका हनन करने पर तुली हुई है। चौधरी ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार किसान यात्रा के सपा के कार्यक्रम से इतनी डरी हुई है कि वह हर जिले में पार्टी कार्यकर्ताओं को रोक रही है।
यही नहीं, लखनऊ पुलिस ने सपा के एमएलसी राजपाल कश्यप और आशू मलिक को पार्टी कार्यालय जाते हुए हिरासत में लिया। इस दौरान एमएलसी राजपाल कश्यप ने कहा कि पुलिस हमें क्यों रोक रही है, ये अघोषित आपातकाल है।
वहीं, कई जिलों में सपा नेताओ को हिरासत में लेते हुए नजरबंद कर दिया गया। सहारनपुर में सपा के इकलौते विधायक व सपा व्यापार सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय गर्ग को घर पर ही नजरबंद कर दिया गया। वही सपा जिलाध्यक्ष चौ रुद्रसेन को मंदिर जाते हुए हिरासत में ले लिया और नजरबंद कर दिया। पूर्व एमएलसी उमर अली खान को लखनऊ जाते समय देवबंद में हिरासत में ले लिया गया। यही नहीं, जसवीर वाल्मीकि, फरहाद आलम गाड़ा, अमित गुर्जर, शाहनवाज खान आदि कई प्रकोष्ठों के नेताओं को भी पुलिस ने हिरासत में लेते हुए घरों में नजरबंद कर दिया।
उधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रदेश में विपक्षी दल माहौल खराब कर रहे हैं। भोले-भाले किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अराजकता फैलाई जा रही है। उन्होंने केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि नए कानूनों का आम आदमी पार्टी सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया था, अब भारत बंद का समर्थन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने लखनऊ में पत्रकार वार्ता में कहा कि दिल्ली में जब शीला दीक्षित हारी तो राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस मंडी कानून में संशोधन करेगी। हार के लिए उन्होंने उसी को कारण माना था। यूपीए और कांग्रेस ने कभी किसानों को हित में कोई कदम नहीं उठाया। अब कृषि संबंधी कानूनों को लागू किया गया तो संसद की स्थाई समिति में इसकी विस्तृत चर्चा हुई। बैठक में अकाली दल, सपा, टीएमसी और कांग्रेस के नेताओं, राष्ट्रवादी कांग्रेस नेताओं ने राज्यों को एक्ट में संशोधन करने और मॉडल एक्ट लागू करने की वकालत की थी। जिसके तहत वन नेशन वन मंडी की परिकल्पना को लागू किया जा सके। अब वही लोग भोले भाले किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अव्यवस्था पैदा करना चाहते हैं।
खैर, सीएम योगी लाख कुछ कहें। किसानों को भोला-भाला बताएं और विपक्ष के नेताओं को दोहरे रवैये वाला बताकर नजरबंद कर दें लेकिन उनकी सोमवार दिन भर की पूरी कवायद से साफ है कि अभी भी उन (भाजपा) की नीयत कृषि कानूनों को लेकर साफ नहीं है। वो अभी भी पूरे मुद्दे को कांग्रेस, केजरीवाल और समाजवादी आदि राजनीतिक दलों में ही उलझाकर रख देना चाहते हैं। किसानों का सामना करने की ताकत उनमें नहीं हैं।
किसान आंदोलन को लेकर भाजपा सरकारों व उसके नेताओं के नैरेटिव बदलने वाले इसी रवैये ने, उनके तथाकथित किसान प्रेम की भी कलई खोल दी है। यही नहीं, अब जब एक ओर केंद्रीय सरकार किसान संगठनों को गम्भीरता से लेते हुए, उनसे वार्ता में हैं वही दूसरी ओर योगी, किसानों को भोला भाला बताकर पूरी वार्ता प्रक्रिया का भी मखौल उड़ा रहे हैं। सवाल यह हैं कि किसान भोले भाले हैं तो सरकार उन्हें क्यों नहीं समझा लेती है। आखिर सरकार को कौन रोक रहा हैं?