इस्लामिक संगठनों के विरोध के बाद उर्दू संगठनों ने जावेद अख़्तर का कार्यक्रम रद्द करने की निंदा की

Written by sabrang india | Published on: September 5, 2025
पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी ने कोलकाता में आयोजित होने वाले तीन दिवसीय कार्यक्रम ‘हिंदी सिनेमा में उर्दू का योगदान’ को अंतिम क्षणों में स्थगित कर दिया, जिसमें मशहूर पटकथा लेखक और गीतकार जावेद अख्तर को शामिल होना था।


साभार : हिंदुस्तान (फाइल फोटो)

उर्दू भाषा को प्रोत्साहित करने वाले ब्रिटेन स्थित दो संगठनों ने कहा है कि इस्लामिक संगठनों द्वारा जावेद अख्तर के आमंत्रण का विरोध किए जाने के बाद पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी द्वारा उनका कार्यक्रम स्थगित किया जाना, एक लोकतांत्रिक समाज की मूल भावना के लिए अनुचित है।

‘उर्दू कल्चर लंदन’ और ‘अंजुमन तरक्की उर्दू यूके’ ने 3 सितंबर बुधवार को जारी एक संयुक्त बयान में कहा कि वे साहित्यिक और कलात्मक अभिव्यक्ति को दबाने के इस प्रयास की स्पष्ट रूप से निंदा करते हैं।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, संगठनों ने आगे कहा, “मतभेदों का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन किसी भी लोकतांत्रिक समाज में जबरदस्ती, धमकी या सेंसरशिप के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।”

दोनों संगठन पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा संचालित उर्दू अकादमी की उस तीन दिवसीय श्रृंखला की ओर इशारा कर रहे थे, जिसका शीर्षक था ‘हिंदी फिल्मों में उर्दू का किरदार’। इस कार्यक्रम को कोलकाता में आयोजित किया जाना था, लेकिन अंतिम क्षणों में इसे स्थगित कर दिया गया। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, सोमवार को दो सत्र—एक उर्दू कविता-पाठ और एक चर्चा—का आयोजन होना था, जिनमें प्रसिद्ध पटकथा लेखक और गीतकार जावेद अख्तर को भाग लेना था।

हालांकि अकादमी ने कार्यक्रम स्थगित करने के पीछे कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया, लेकिन मीडिया रिपोर्टों में यह कहा गया है कि कोलकाता की जमीयत उलेमा सहित कम से कम दो इस्लामिक संगठनों ने जावेद अख्तर को कार्यक्रम में आमंत्रित किए जाने का विरोध किया था। उनका आरोप था कि अख्तर ने कथित रूप से धार्मिक मान्यताओं और धार्मिक व्यक्तियों का ‘मजाक’ उड़ाया है।

ब्रिटेन स्थित उर्दू संगठनों ने स्वीकार किया कि जावेद अख्तर, जो स्वयं को नास्तिक मानते हैं, ने कभी-कभी ऐसे ढंग से विचार व्यक्त किए हैं जिन्हें कुछ लोग धर्म या आस्था के प्रति असम्मानजनक मान सकते हैं। हालांकि, संगठनों ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आधार पर किसी की आवाज को दबाना या सार्वजनिक मंच से उन्हें बाहर करना किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता।

उन्होंने यह भी कहा, “इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि उर्दू भाषा को किसी विशेष धर्म के साथ जोड़ना न केवल भ्रामक है, बल्कि खतरनाक भी है। इसी धारणा ने भारत में उर्दू के विकास और प्रसार को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।”

उन्होंने कहा, “हममें से जो लोग यूनाइटेड किंगडम में उर्दू संस्कृति और विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, उनके लिए यह बेहद निराशाजनक और पीड़ादायक है कि उर्दू संस्कृति को उसके ही जन्मस्थान में हाशिये पर डालने और दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि कोलकाता जैसे शहर में - जिसे उन्होंने बौद्धिक स्वतंत्रता और बहुलवाद का केंद्र बताया है - ऐसी घटना होना और भी अधिक परेशान करने वाला है।

हस्ताक्षरकर्ताओं - हिलाल फ़रीद, एनी ज़ैदी और सैफ महमूद - के माध्यम से, संगठनों ने पश्चिम बंगाल सरकार, सांस्कृतिक संस्थाओं और आम नागरिकों से अपील की है कि वे यह सुनिश्चित करें कि कलाकार, लेखक और कवि बिना किसी भय या दबाव के स्वतंत्र रूप से अपने दर्शकों से जुड़ सकें। उन्होंने जोर देकर कहा कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों को किसी भी प्रकार की धमकी, सेंसरशिप या बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षित रखा जाना चाहिए, ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रचनात्मकता को संरक्षित किया जा सके।

वहीं, द हिंदू से बात करते हुए जावेद अख्तर ने कहा कि उन्हें कार्यक्रम में बुलाए जाने का विरोध देखकर उन्हें दुख हुआ। उन्होंने आगे कहा कि ‘हिंदू समूह मुझसे कहते हैं कि मुझे पाकिस्तान चले जाना चाहिए, जबकि मुस्लिम समूह मुझसे कहते हैं कि मुझे अपना नाम बदलकर हिंदू नाम रख लेना चाहिए। ‘ये सब मेरे लिए बहुत जाना-पहचाना है।’

उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि कोलकाता जैसे शहर से इस तरह का विरोध प्रदर्शन होगा।

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