जब वोट के लिए फोटो खिंचवाने गरीब अम्मा के द्वार पहुंचे सांसद जी !

Written by मिथुन | Published on: April 2, 2019
चुनाव प्रचार तेज हुआ। सांसद जी को सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए फोटो और वीडियो की जरूरत पड़ी तो कुछ तकनीकी टीम के साथ चल दिये अपने क्षेत्र के एक गांव में। उनका अपना व्यक्ति दो दिन पहले रेकी कर आया था। मामला सिर्फ फोटो और वीडियो लेने का था इसलिए साथ में भाड़े की भीड़ नहीं चल रही थी। 

सांसद जी अपनी टीम के साथ उस घर पर रुके जहां की रेकी उनके लोगों ने दो दिन पहले किया था। अप्रैल लग गया था तो धूप भी तेज थी। वह बूढ़ी अम्मा का घर था। वह मजह छप्पर था जो कई जगह से सड़ चुका था। इस बार मरम्मत नहीं किया गया तो पहली ही बारिश में बह जाएगा। सांसद के लोग जानते हैं कि ऐसे लोगों के घर ठहरने से फोटो प्रभावी खिंच जाती है और वोट बढ़िया मिल जाते हैं। द्वार पर पहुंचकर एक व्यक्ति ने कहा- अम्मा चेयर नहीं दोगी बैठने को  तुम्हारे दुआर पर भगवान आये हैं।

देहात में लोग जनता के प्रतिनिधि को भगवान मानते हैं। वोट मांगते टाइम वे सेवक होते हैं, चुनाव जीतते ही भगवान हो जाते हैं और दिखाई नहीं देते। अम्मा बकरी को पानी पिला रही थी। वह बूढ़ी चेयर जैसा नवीन शब्द कहने वाले की तरफ मुड़ी और कहने लगी- क्या मांग रहा मुआं, जरा खुल के बोल। और कौन भगवान आया है?

वह आदमी अम्मा की नादानी पर नम्रता से बोला- अम्मा कोई कुर्सी हो तो दो, सांसद आये हैं तुम्हारे दुआर पर। 
अम्मा ने पूछा- ये का होत है लल्ला !

वह बोला- अम्मा सांसद वो होत है जो तुम्हारी परेशानी दिल्ली में सरकार के सामने रखत है।

अम्मा बोली- तो सीधे बोल न कि नेता जी आये हैं।
वह आदमी खुश होते हुए बोला- यही तो कह रहे अम्मा, तुम न समझ रही तो का करें। अब लाओ कुर्सी दो बैठन के लिए।

" कुर्सी त ना है लल्ला, हम गरीबन के कुर्सी के का काम, जब से तुम्हार दद्दा मरे हैं एक खटिया भी नसीब न हुई, यह कहते हुए अम्मा की उदासी चेहरे पर आ गयी।

वह आदमी बोला- चलो कोई बात नहीं, कोई बोरी ही बिछा दो। आखिर सांसद जी आये तुम्हारे द्वार पर।

अम्मा बकरी छोड़ लड़खड़ाते पैरों से आगे बढ़ी। आगे तीन आदमी और थे। एक आदमी जो गले में सत्ताधारी पार्टी का गमछा डाले था और एक आदमी उनके बगल में था जिसके हाथ में कैमरा था। तीसरा आदमी  गमछे वाले के बगल में खड़ा था जैसे वह उसका सेवक हो।
अम्मा देखते ही समझ गयी कि ये गमछे वाला ही वह देवता है जिसका जिक्र उस आदमी ने अभी उनसे किया है। 
अम्मा पास आई तो  गमछे वाले ने लपक के उनके पैर धर लिए। गमछे वाले ने कहा- अम्मा हम तुम्हारे सेवक। इस क्षेत्र के सांसद। आये हैं हाल चाल जानने। कैसी हैं आप ?

अम्मा बगल में रखी बोरी खींच लायी। बिछाते हुए कहने लगी- अब बुढ़ापे का क्या हाल बेटा। ढंग से दिखता नहीं, हाथ पैर काम नहीं करते। जैसे तैसे दिन काट रही हूँ।

सांसद बोले- हाँ अम्मा वृद्धावस्था में तो यही चीजें हैं। मेरी मां भी आपकी उम्र की है। वह भी ऐसे ही परेशान।
यह कहते हुए सांसद की निगाह अम्मा के चश्मे पर पड़ी जिसका एक कांच टूटा था और फ्रेम में एक तरफ डंडी न होने के कारण रस्सी से बांध दिया गया था। सांसद ने यह देखकर करुणा से कहा- अम्मा चश्मा तो नया ले लो। कबतक  इन पुराने से काम चलाओगी।

अम्मा बोली- बेटा, इतना पइसा कहाँ जो चसमा बनवाती फिरूँ। 
सांसद ने कहा- क्यों अम्मा, घर में और लोग नहीं हैं क्या ? क्या कोई कमाने वाला नहीं है ?
अम्मा बोली-  हैं तो । पर अब क्या कहें! एक बेटा है सुरत में। कभी फोन करता है तो बताता है कि काम रहा नहीं पहले जैसा। जिस कंपनी में काम करता था नोटबन्दी के बाद वह बन्द हो चली है। अब दिहाड़ी करता है पर उतने में तो उसका ही पूरा नहीं हो पाता। चार महीने पहले पैसा भेजा था सब खर्च हो गया। 

अम्मा बता ही रही थी कि छप्पर के अंदर से एक महिला बाल्टी लिए घूंघट डाले निकली और कुवें की तरफ बढ़ी। अम्मा ने उसे देखते ही कहा- यह बहू है। और एक नाती है जो कहीं खेलने गया होगा।

बातचीत चल ही रही थी कि बहू ने पानी लाकर रख दिया। अम्मा ने पानी पीने का आग्रह किया। सांसद जी गिलास उठाकर पानी पीने ही वाले थे कि उसके अंदर नीचे बैठी गंदगी देखकर ठिठक गए। गिलास मुंह से दूर हटाते हुए कहने लगे- अम्मा ये क्या ! इतना गंदा पानी पीते हैं आप लोग! कोई नल नहीं है क्या ?

अम्मा ने बड़ी मासूमियत से कहा-  बेटा, दो जून की रोटी बड़ी मुश्किल से जुटती है। नल कहाँ से लगवाएं !
सांसद ने कहा- आप हमारे यहां आई क्यों नहीं नल के लिए? आप का एक पैसा नहीं लगता। सांसद निधि से आपका मुफ्त में काम हो जाता।

अम्मा ने उदासी भरे स्वर में जवाब दिया- बेटा अब क्या कहें। हमें क्या पता कि नल कहाँ मिलता है सरकार वाला। एक दिन परधान के पास गई थी घिसते पिटते तो मुआ कहने लगा विधायक के पास जाओ। हम अपने नाती को विधायक के यहां भेजे थे तो उनके आदमी पैसा मांगने लगे। अब हम बूढ़ी कहाँ जाएं पैसा मांगने। तुम्हें तो आज पहली बार देख रही बेटा।

धूप तेज थी तो सांसद जी ने अपने आदमी की तरफ इशारा किया। आदमी समझ गया और बोला- अम्मा हम छप्पर मे चलके बतियाएँ क्या ! अब तो आप के सब काम हो जाएंगे। सांसद जी जो आये हैं तुम्हारे घर। 

अम्मा बोली- जहां बैठना बैठो। मुझे क्या छप्पर, क्या दुआर।
सब दुआर से उठकर छप्पर के नीचे चले गए। सांसद के एक आदमी ने पानी का बोतल निकालर उन्हें पीने के लिए दिया। 
बातचीत जारी थी। थोड़ी देर में छप्पर धुवें से भर गया। सांसद महोदय आंख मलते हुए कहने लगे- किस चीज का धुंआ है अम्मा !
अंदर से बहू  धीमी आवाज में बोली- चावल पक रहे हैं। बस थोड़ी देर में हो जाएगा। 
सांसद बोले- पर धुआं क्यों ? क्या तुम्हें उज्ज्वला योजना की गैस नहीं मिली ? 

बहू ने भीतर से ही कहा- मिली तो थी, पर एक बार खत्म होने पर  भराने का पैसा कहां जुड़ पाया। नौ सौ रुपये हों तो घर की और जरूरत की चीजें न आ जाएं ! 

सांसद जी को दुख हुआ। वे असमंजस में थे कि सरकारी आंकड़े तो कुछ और कहते हैं। प्रधानमंत्री तो कहते हैं कि सब जगह गैस पहुंचाई गई है। तो क्या आंकड़े झूठे हैं!  इतना सब उनके दिमाग मे चल ही रह था कि छप्पर से कुछ फूस चिड़िया के खोदने के कारण उनपर गिरा। वे सिर झाड़ने लगे और कहने लगे- अम्मा, सरकार इतने पैसे देती है, घर क्यों नहीं बनवाया अबतक ? 

तबतक अम्मा का नाती आ गया जो करीब बारह साल का था। वह संसद की आवाज सुनते ही बोला- गए तो थे परधान के पास। वह बीस हजार पहले ही मांगता है। एक्को पइसा हई नहीं घर में। कहां से दें बीस हजार। एक्को कूला खेतो ने है कि बेच के दे दें। 

सांसद महोदय दुःखी थे। कहने लगे ऐसी कोई सहायता अम्मा जो सरकार से मिली हो। अम्मा बोली- वोट देइ वाला कार्ड बना है और  राशन कार्ड। राशन कार्ड से राशन मिल जात है महीना में। 

बगल में खड़ा अम्मा का नाती कहने लगा- कोटेदार चावल राशन कार्ड पर 25 किलो चढ़ावत है और 24 किलो तौलत है। वही हाल गेहूं के है।

इतना कहते हुए वह अंदर गया और चावल की बोरी से टूटे हुए मोटे कंकड़ वाले चावल लाकर दिखाते हुए कहने लगा- यही चावल मिलत है खाने के लिए। चावल की क्वालिटी देखते ही सांसद जी का माथा ठनक गया। वे उठकर जाने को हुए। अम्मा ने कहा- आप जा रहे हैं। मैं खाने के लिए तो पूछ लेती पर ये चावल कैसे खिलाती तुम्हें। 

फोटो खिंचवाने का सारा भूत अब सांसद के ऊपर से उतर चुका था। पांच साल क्षेत्र में न घूमने का दुःख उन्हें अब महसूस हो रहा था। वे उस घर से निकल आये। रास्ते में अपने लोगों से बात करते हुए बोले- पेशाब तो बहुत जोरों से लगी है पर वहां कह न सका। जहां अबतक मूल सुविधाएं नहीं पहुंची हैं वहां टॉयलेट कैसे बन सकता है ! उनके व्यक्तियों में से एक ने कहा- सरकार टॉयलेट बनाने के लिए 12000 रुपये देती है और वह भी दो किस्तों में। एक टॉयलेट बनाने में करीब 40000 का खर्च आ जाता है। ऐसे में आम आदमी कहाँ से शौचालय बनवाये ! 

सांसद उनकी बात सुने जा रहे थे और पांच साल क्षेत्र में काम न करने का दुख महूसस कर रहे थे। माथे पर पसीना भी था, शायद इस बार उन्हें चुनाव में हार जाने का आभाष होने लगा था। उन्हें पता था इस बार व्यक्ति विशेष की आंधी समाप्त जो हो चुकी है।

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