दिल्ली दंगे के दौरान सांप्रदायिक तनाव भड़काने के मामले में 'हिंदुत्व' व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्य को सजा

Written by sabrang india | Published on: July 11, 2025
अदालत ने कहा कि सांप्रदायिक अशांति के समय इस प्रकार का आचरण किसी भी तरह की नरमी के योग्य नहीं है।


प्रतीकात्मक तस्वीर ; साभार : इंडियन एक्सप्रेस

दिल्ली की एक अदालत ने "कट्टर हिंदू एकता" नाम के व्हाट्सएप ग्रुप के एक सदस्य को तीन साल की सजा सुनाई है। यह ग्रुप फरवरी 2020 के दंगों के दौरान कथित रूप से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बनाया गया था। अदालत ने पाया कि अभियुक्त ने मुस्लिम समुदाय के प्रति पहले से मौजूद नफरत और तनाव को और भड़काया।

अभियुक्त लोकेश कुमार सोलंकी को भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (धर्म या अन्य आधार पर वर्गों के बीच वैमनस्य फैलाना) और धारा 505 (सार्वजनिक उपद्रव को प्रोत्साहित करने वाले बयान) के तहत दोषी ठहराया गया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीन सिंह ने कहा कि सोलंकी ने तनाव को कम करने के बजाय, मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत भरे संदेश फैलाकर और दूसरों को अपराध के लिए उकसाकर हालात को और बिगाड़ा।

अदालत ने कहा कि सांप्रदायिक अशांति के समय इस प्रकार का आचरण किसी भी तरह की नरमी के योग्य नहीं है।

8 जुलाई को दिए गए फैसले में कहा गया, “अभियुक्त ने पहले से मौजूद सांप्रदायिक तनाव को और भड़काया और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने वाले संदेश भेजे तथा दूसरों को अपराध करने के लिए प्रेरित किया... इससे यह अपराध बेहद गंभीर हो जाता है।”

अदालत ने उसे प्रत्येक अपराध के लिए 25,000 रूपये के जुर्माने के साथ-साथ तीन साल की जेल की सजा सुनाई।

चूंकि सोलंकी पहले ही तीन साल से ज्यादा समय जेल में बिता चुका है, इसलिए उसके जल्द रिहा होने की संभावना है।

अदालत ने कहा, “हालांकि, यह तथ्य बना रहता है कि अभियुक्त पहले ही तीन साल से ज्यादा की सजा काट चुका है, जो कि धारा 153A और 505 के तहत अधिकतम सजा है।”

दिल्ली में हुए इस मुस्लिम विरोधी दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें से 38 मुस्लिम थे।

कई जांच रिपोर्टों और दिल्ली पुलिस के अनुसार, “कट्टर हिंदू एकता” नामक एक व्हाट्सएप ग्रुप दंगों के दौरान मुस्लिमों की हत्या और उनकी संपत्ति नष्ट करने के लिए कोऑर्डिनेश करने के उद्देश्य से बनाया गया था।

इस ग्रुप में सोलंकी ने हिंसा भड़काने वाले कई संदेश पोस्ट किए थे। 25 फरवरी को उसने दावा किया था कि उसने “अभी-अभी भगीरथी विहार इलाके में दो मुसलमानों की हत्या की है और अपनी टीम की मदद से उन्हें नाले में फेंक दिया है।”

उधर, राजनीतिक दबाव और कथित लीपापोती के आरोपों के बीच, दिल्ली की एक अदालत ने 1 अप्रैल 2025 को भाजपा नेता और दिल्ली के कानून मंत्री कपिल मिश्रा के खिलाफ 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों में कथित संलिप्तता को लेकर आगे की जांच के आदेश दिए। यह निर्णय हिंसा भड़काने और उसमें मिलीभगत के लंबे समय से चले आ रहे आरोपों की जांच की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहला कदम माना जा रहा है।

राउज एवेन्यू कोर्ट के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, “इसका मतलब है एफआईआर,” यह संकेत देते हुए कि अदालत के इस निर्देश का उद्देश्य कपिल मिश्रा के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करना है। न्यायाधीश ने देखा कि शिकायत में दर्ज एक घटना के संबंध में संज्ञेय अपराध (cognizable offence) स्थापित हो चुका है, जो गहन जांच की मांग करता है।

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य स्पष्ट रूप से कपिल मिश्रा को घटनास्थल पर मौजूद दिखाते हैं और "सभी चीजें एक-दूसरे की पुष्टि कर रही थीं।" कोर्ट ने आगे बताया कि पूछताछ के दौरान मिश्रा ने यह स्वीकार किया कि वे उस क्षेत्र में मौजूद थे और यह भी माना कि उनके चारों ओर भीड़ इकट्ठा हुई थी, जिनमें से कई को वे व्यक्तिगत रूप से जानते थे। अदालत ने कहा कि यह स्वीकारोक्ति "शिकायतकर्ता के आरोपों को मजबूती प्रदान करती है।"

अहम बात यह रही कि अदालत ने मिश्रा के बयान की भाषा पर ध्यान देते हुए कहा कि उनका बयान नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के समर्थन या विरोध के संदर्भ में नहीं था, बल्कि वह एक स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक लहजे में था। अदालत ने कहा कि मिश्रा ने अपने बयान को "प्रो-सीएए या एंटी-सीएए" की भाषा में नहीं, बल्कि "दूसरी तरफ मुस्लिम" शब्दों में विभाजित किया, जिसमें स्पष्ट रूप से ‘हम’ और ‘वे’ का भेद बनाया गया, जहां 'वे' का मतलब ‘दूसरी तरफ मुस्लिम’ से था।

न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि इस प्रकार की बयानबाजी "स्पष्ट रूप से पक्ष निर्धारित करती है और सच्चाई उजागर करने के लिए जांच की आवश्यकता को दर्शाती है।"

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