निर्देशक-लेखक अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘आर्टिकल-15’ पर जमकर बहस छिड़ी हुई है। फिल्म रिलीज से पहले ही विवादों में घिरी हुई थी, लेकिन रिलीज के बाद मामला और भी गरम हो गया है। एक ओर अभिनेता आयुष्मान खुराना के अभिनय की तारीफ की जा रही है, वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में शहरों में कई संगठनों ने फिल्म को लेकर आपत्ति जताई है। यहाँ तक की एक संगठन के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है।
आर्टिकल 15 को लेकर मचे बवाल पर चर्चा करने के स्थान पर यह समझना जरूरी होगा है कि, क्या है 'आर्टिकल 15'?
भारतीय संविधान का आर्टिकल 15 व्यक्ति के मौलिक अधिकारों पर आधारित है। ये आर्टिकल यह सुनिश्चित करता है कि, देश के सभी धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के नागरिक के साथ किसी भी प्रकार से कोई भी भेद-भाव न किया जाए। इसके साथ ही, यह सरकार और समाज की जिम्मेदारी है कि वो ऐसा कोई भेदभाव न होने दें। आर्टिकल 15 के निर्देशों का पालन करना हम सभी के लिए बेहद जरूरी है।
फिल्म में इसपर आयुष्मान खुराना का एक डायलॉग है, जिसमें उन्होंने कहा है कि, "धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर राज्य अपने किसी भी नागरिक से कोई भेदभाव नहीं करेगा। ये मैं नहीं कह रहा, भारत के संविधान में लिखा है।"
आर्टिकल 15 के तहत किसी भी व्यक्ति को, किसी दुकान, सार्वजनिक भोजनालय, होटल और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों जैसे सिनेमा और थियेटर आदि जगहों में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता है। इसके साथ ही, किसी भी सरकारी या अर्ध-सरकारी कुओं, तालाबों, स्नाघाटों, सड़कों और पब्लिक प्लेस के इस्तेमाल से भी किसी भी नागरिक को नहीं रोका जा सकता है।
फिल्म में समाज के बेहद अहम मुद्दे को उठाया गया है. देश आज़ाद होने के बावजूद आज भी अल्पसंख्यक वर्ग समाज की रूढ़िवादी सोच के पिंजड़े में कैद है.
आर्टिकल 15 को लेकर मचे बवाल पर चर्चा करने के स्थान पर यह समझना जरूरी होगा है कि, क्या है 'आर्टिकल 15'?
भारतीय संविधान का आर्टिकल 15 व्यक्ति के मौलिक अधिकारों पर आधारित है। ये आर्टिकल यह सुनिश्चित करता है कि, देश के सभी धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के नागरिक के साथ किसी भी प्रकार से कोई भी भेद-भाव न किया जाए। इसके साथ ही, यह सरकार और समाज की जिम्मेदारी है कि वो ऐसा कोई भेदभाव न होने दें। आर्टिकल 15 के निर्देशों का पालन करना हम सभी के लिए बेहद जरूरी है।
फिल्म में इसपर आयुष्मान खुराना का एक डायलॉग है, जिसमें उन्होंने कहा है कि, "धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर राज्य अपने किसी भी नागरिक से कोई भेदभाव नहीं करेगा। ये मैं नहीं कह रहा, भारत के संविधान में लिखा है।"
आर्टिकल 15 के तहत किसी भी व्यक्ति को, किसी दुकान, सार्वजनिक भोजनालय, होटल और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों जैसे सिनेमा और थियेटर आदि जगहों में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता है। इसके साथ ही, किसी भी सरकारी या अर्ध-सरकारी कुओं, तालाबों, स्नाघाटों, सड़कों और पब्लिक प्लेस के इस्तेमाल से भी किसी भी नागरिक को नहीं रोका जा सकता है।
फिल्म में समाज के बेहद अहम मुद्दे को उठाया गया है. देश आज़ाद होने के बावजूद आज भी अल्पसंख्यक वर्ग समाज की रूढ़िवादी सोच के पिंजड़े में कैद है.