क्या भारतीय उपमहाद्वीप में त्योहारों के समय दंगे कराने की परंपरा कभी रूकेगी ?

Written by डॉ. सुरेश खैरनार | Published on: October 25, 2021
13 अक्तूबर को बंग्लादेश में कोमील्ला के पास चांदपूर नाम की जगह दुर्गा पूजा के समय दंगा हो गया! वजह क्या थी? दुर्गा पूजा के पंडाल में मूर्तियों के बीच कुरान शरीफ की कापी रखने का कारनामा सुजान नगर एरिया के इकबाल हुसैन और उसके दो साथियों जिनका नाम फयाज और इकराम हुसैन द्वारा किया गया बताया जा रहा है! 

       

इनकी पहचान पंडाल में लगे सीसीटीवी फुटेज के कारण हुई है! लेकिन इसके पहले 13 अक्तूबर से 17 अक्तूबर तक पूरे बंग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ जो हिंसा हुई वह बंग्लादेश जमाते इस्लामी जो कि 1971 के बंग्लादेश बनने के सख्त खिलाफ संगठनों में से एक है और 71 के युद्ध में यह संगठन पाकिस्तानी सेना के लिए बंग्लादेश हिंदू समाज के महिला और ढाका विश्वविद्यालय के हजारों बुद्धिजीवियों की हत्या करने में शामिल संगठन रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही इस संगठन के बुजुर्ग नेता को उन गुनाहों के लिए शेख हसीना वाजेद ने सत्ता में आने के बाद फाँसी की सजा दी है और उसके बावजूद यह संगठन बंग्लादेश में सक्रिय है और लगातार हिंदुओं के खिलाफ जो हिंसा हुई वह बंग्लादेश जमाते इस्लामी की शह पर हुई है।

इसलिए मेरी भारत के जमाते इस्लामी से विनम्र निवेदन है कि वह अपने बंग्लादेश और पाकिस्तान और कश्मीरी जमाते इस्लामी से अपील करे कि बंग्लादेश और पाकिस्तान से भी ज्यादा मुसलमानों की संख्या भारत में रह रही है और यह भारत के हिंदू सांप्रदायिक संगठनों को उकसाने के लिए बहुत बड़ा कारण हो सकता है! अन्यथा भारत के हिंदू सांप्रदायिक संगठनों को और कोई दूसरा काम नहीं है! सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों की प्रतिक्रिया में अपनी हिंदू सांप्रदायिक राजनीति करने का एक और मौका देने की बात है! 

मैंने पुनः-पुनः लिखा-बोला है कि भारतीय उपमहाद्वीप, भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में सांप्रदायिक संगठनों की सौ साल से भी ज्यादा समय से चल रही एक तरह से मिली भगत रही है। ढाका के नवाब द्वारा 1906 में शुरू की गई मुस्लिम लीग के साथ हिंदू महासभा मुख्यतः श्यामाप्रसाद मुखर्जी और उसके नेता विनायक दामोदर सावरकर की मिलीभगत जगजाहिर है! बंगाल से लेकर सिंध प्रांत तक 1942 के आंदोलन के समय कांग्रेस और समाजवादी जेलों में बंद थे और लीग के साथ हिंदू महासभा की मिली-जुली सरकारें कायम थीं! जबकि 23 मार्च 1940 का पाकिस्तान की निर्मिती का प्रस्ताव पारित होने के बाद ही हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की सरकारों का बनने का इतिहास रहते हुए अकेले महात्मा गांधी को बंटवारे का दोषी करार देना कम-से-कम विनायक दामोदर सावरकर की पहल से ही मुस्लिम लीग के साथ हिंदू महासभा की मिली-जुली सरकारें बनने का इतिहास रहते हुए चोर को छोड़ सन्यासी को फांसी देने की बात लगती है!
        
सौ साल से भी ज्यादा समय हो रहा है और संपूर्ण उपमहाद्वीप के सांप्रदायिक संगठनों की राजनीतिक गतिविधियाँ सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिक राजनीति करने के अलावा और कुछ नहीं हैं! आज भी पाकिस्तान में बेतहाशा गैरबराबरी बदस्तूर जारी है सौ से भी ज्यादा किलोमीटर के हिसाब से जमीनदारों की जमीनों के रहते हुए पाकिस्तान जमाते इस्लामी ने शायद ही कोई जीतने वाले की जमीन या बेरोजगारी, महंगाई तथा आम जनता के सवालों को लेकर कोई आंदोलन किया हो! वही बात बंग्लादेश जमाते इस्लामी की भी है! हालाँकि इनके संस्थापक मौलाना मौदुदी औरंगाबाद (महाराष्ट्र) के पैदा हुए मौलाना रहे हैं और दारूल उलूम और दारूल इस्लाम के प्रवचन देते-देते पाकिस्तान पहुंच गए। मुझे कराची में उनके मजार पर एक कार्यक्रम में जाने का मौका मिला तो यह बात बोला हूँ  !
        
कोमील्ला चांदपुर की कुरान शरीफ की कापी रखने का कारनामा देखकर कुछ साल पहले दिग्रस (महाराष्ट्र के यवतमाल जिले का कस्बा) की घटना याद आ रही है ! वहां पर भी हिंदू-मुस्लिम दंगे के बाद मुझे दिग्रस के लोगों ने तहकीकात करने के लिए बुलाया था और मैंने तहकीकात के बाद लोकल पुलिस स्टेशन से भी भेंट किया और स्टेशन इंचार्ज से मौके पर मिले कुरान शरीफ की कापी मुझे दिखाने के लिए कहा! पहले तो वह आनाकानी कर रहे थे, मैंने कहा कि हो सकता मुझे कापी दिखाने के बाद आज जो अलग-अलग अफवाहों का माहौल बना हुआ है शायद कुछ कम हो, तो स्टेशन इंचार्ज ने डरते हुए लाल कपडे में लपेटकर रखी हुई कुरान शरीफ की कापी मालखाने से निकाल कर मुझे दिखाने के लिए कपड़े को अलग किया और कापी को खोलने के बाद पहले ही पन्ने पर लिखा था कि फलाने अब्बा और अम्मीजान की याद में इस-इस मदरसे को भेंट स्वरूप यह कुरआन शरीफ़ की कापी हमारी तरफ से दी जा रहीं हैं! तो मैंने कहा कि अगर आप खुद यह तथ्य लोगों को बोलोगे तो अच्छा होगा अन्यथा मैं बोलता हूँ! सबसे अच्छी बात है कि शिवाजी बोडखे नाम के एसपी सर्किट हाउस में मुझे मिल गये और आगे की कार्यवाही उन्होंने की और दिग्रस, दारव्हा और पूसद तीनों शहरों में कुछ दिन से जारी तनाव कम करने के लिए यह बात कारगर साबित हुई है!
        
मैं वर्तमान समय में बंग्लादेश की अवामी पार्टी और मुख्य रूप से बंग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को धन्यवाद देना चाहूँगा कि उन्होंने तेरह तारीख की घटना के बाद तुरंत ही एलान कर दिया था कि हम इस घटना के पीछे कौन तत्व है वह उजागर करने के बाद कडी से कडी सजा देंगे। एक सप्ताह के भीतर पंडाल के सीसी टीवी फुटेज के कारण गुनाहगारों की पहचान कर ली गई है! अब मेरी मांग है कि इसके पीछे से कौन संगठनों का हाथ है वह ढूंढकर उनके उपर सख्त कार्रवाई करना जरूरी है क्योंकि बंग्लादेश की आजादी से लेकर आज भी बंग्लादेश के हालात बिगाड़ने वाले तत्वों को बिल्कुल भी छोडना नहीं चाहिए!

भारत के हिंदू सांप्रदायिक संगठनों पर भी आजादी के बाद अगर नकेल कसी हुई होती तो आज घोर सांप्रदायिक दल सत्ता में नहीं होता! कांग्रेस 1885 से ही सांप्रदायिक तत्वों को लेकर चलने की वजह है कि आज बीजेपी को सत्ता में आने का मौका मिला है! पंडित मदन मोहन मालवीय हिंदू महासभा और कांग्रेसी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रखने के साथ ही आरएसएस के लिए दो एकड़ जमीन विश्वविद्यालय परिसर में एलाट करने वाले और आज की भी कांग्रेस में क्या कम संघी हैं? आयोध्या के बाबरी मस्जिद में रात्रि को 1949 के दिन राम मूर्ति रखने का कारनामा पंडित गोविन्द वल्लभ पंत के कार्यकाल में हुआ है और पंडित नेहरू के पत्रों की अनदेखी करके मंदिर के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले और 6 दिसम्बर 1992 के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव की अकर्मण्यता भी बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए जिम्मेदार है। 136 साल पुरानी कांग्रेस के इस तरह के चरित्र के कारण ही भारत की हिंदू सांप्रदायिक संगठनों को उकसाने के लिए बहुत ही अनुकूल वातावरण मिला है और श्रीमती इंदिरा गाँधी के समय एकनाथ रानाडे और निर्मला देशपांडे जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है! इस तरह के इतिहास में और भी बहुत सारे सवाल हैं जो कि भारतीय उपमहाद्वीप के सांप्रदायिक राजनीति करने का कारक तत्व रहे हैं!

आज से बत्तीस साल पहले बिहार के भागलपुर दंगे को 24 अक्तूबर से भारत के स्वाधीनता के बाद सबसे बड़ा दंगा हुआ था! क्या भारतीय उपमहाद्वीप में त्योहारों के समय अक्सर दंगे करने की परंपरा कभी रूकने वाली है?

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