बनारस: अस्‍सी घाट पर सर्वधर्म सम्मेलन में 'अली मौला' कव्‍वाली पर भड़के दक्षिणपंथी, पुलिस ने कार्यक्रम रुकवाया

Written by विजय विनीत | Published on: December 2, 2023
"गंगा ने अपने तट पर तमाम संस्कृतियों के देखा है और उन्हें पाला-पोसा है। इस नदी पर किसी धर्म विशेष का एकाधिकार हो ही नहीं सकता। गंगा तो हर उस इंसान की है जो श्रद्धा और आदर से देखे।"



उत्तर प्रदेश के बनारस में जिस गंगा के तट पर बिस्मिल्लाह खां ने सुरों की साधना की हो, जहां नज़ीर बनारसी की शायरी परवान चढ़ी हो, जिस नदी के तीरे मिर्ज़ा ग़ालिब ने अपना लंबा वक्त गुजारा हो और जिस गंगा की शान में तमाम तवारीखी कलाम कलमबंद किया हो उस रवायत को अब तार-तार किया जा रहा है। 29 नवंबर 2023 को अस्सी घाट पर आयोजित सर्वधर्म समभाव कार्यक्रम के दौरान पहले भजन हुआ। फिर शहनाई पर रघुपति राघव राजा राम के गीत बजाए गए और बाद में कव्वाली। 'अली मौला' और 'भर दे झोली मेरी ए मोहम्मद' पेश करते ही वहां कुछ अराजकतत्वों ने हंगामा बरपाना शुरू कर दिया।

मौके पर पहुंची भेलूपुर थाना पुलिस ने गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने के लिए मुहिम चलाने वाली संस्था के सर्वधर्म समभाव कार्यक्रम को न सिर्फ रुकवाया, बल्कि आयोजकों पास परमीशन नहीं होने पर उन्हें सख्त चेतावनी भी दी। आयोजकों का गुनाह सिर्फ इतना था कि सम्मेलन के दौरान सूफी कव्वाली 'अली मौला' और 'भर दे झोली मेरी ए मोहम्मद' का कव्वाली पेश करने की अनुमति दी। मानव गो सेवा समिति और फखरुद्दीन अली मेमोरियल कमेटी ने संयुक्त रूप से बनारस के अस्सी घाट पर सर्वधर्म समभाव सम्मेलन का आयोजन किया था।

सर्वधर्म समभाव सम्मेलन में श्री संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र, नीचीबाग गुरुद्वारा से सरदार धर्मवीर सिंह, बिशप मोरिस एडगर डैन के अलावा नजीब इलाहाबादी ने शिरकत की थी। अस्सी स्थित गंगा घाट पर हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्मगुरुओं को बनारस की गंगा-जमुनी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बुलाया गया था। भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए आध्यात्मिक चिंतन होना था। साथ ही भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह की शहनाई धुन भी सुनाई जानी थी। इसके लिए उनके पौत्र अशफाक हैदर खां को आमंत्रित किया गया था। तबला-हरमोनियनम और कोरस संग सूफी कव्वाली का आयोजन रखा गया था। प्रसिद्ध कव्वाल साबिर अली चिश्ती का कार्यक्रम भी रखा गया था। सर्वधर्म समभाव सम्मेलन अपराह्न एक बजे से शुरू होकर शाम तक चलना था।



'अली मौला' पर भड़के पंडे

सुबह-ए-बनारस के मंच के सामने सभी धर्माचार्य मौजूद थे। श्री संकटमोचन मंदिर के महंत पंडित विशंभर नाथ मिश्रा की मौजूदगी की बार-बार सराहना की जा रही थी। सम्मेलन का आगाज सूफी नज्म वाली कव्वाली से हुआ। कव्वाल ने जैसे ही 'अली मौला' और 'भर दे झोली मेरी ए मोहम्मद' पेश करनी शुरू की तभी कई पंडे और पुरोहित वहां पहुंच गए। गंगा को हिन्दू धर्म की बताते हुए उसके तीरे 'अली मौला' की शान में कलाम पेश करने पर वो भड़क उठे।

सूफी कव्वाली पर हंगामा

अस्सी घाट पर आरती कराने वाले पंडित बलराम मिश्र ने कहा कि यदि गंगा धर्मस्थलों पर कव्वाली हो सकती है, तो फिर हम लोग भी मस्जिदों और दरगाहों में बैठकर राम भजन करने जाएंगे। पुरोहित बलराम ने तीखी आपत्ति दर्ज करते हुए कहा, "अस्‍सी घाट पवित्र जगह है। अली मौला और भर दे झोली मेरे मोहम्मद जैसे कलाम को पेश किए जाने से बनारस का सद्भाव बिगड़ रहा है। हम किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन क्या हमें भी किसी दरगाह या किसी मस्जिद में हनुमान चालीसा या शिव तांडव का पाठ करने के लिए प्रशासन इजाजत देगा? हर धार्मिक जगह का अपना एक महत्व होता है। गंगा के किनारे ऐसे कार्यक्रमों की इजाजत नहीं होनी चाहिए। सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर धर्म विशेष के प्रचार के प्रयास का विरोध हम लोग करते रहेंगे।"

इसी बीच वहां हिन्दू युवा वाहिनी के प्रदेश प्रचारक योगी आलोकनाथ भी पहुंच गए। उन्होंने कहा, "अस्सी घाट पर अल्लाह-हू-अकबर बर्दाश्त नहीं है। इस बार तो हमने सिर्फ कार्यक्रम को बंद कराया है। अगर दोबारा कहीं ऐसा कार्यक्रम आयोजित किया गया तो हमें साम, दाम, दंड और भेद का तरीका अख्तियार करेंगे। गंगा के तीरे अस्सी घाट का मंच हमारे लिए बेहद पवित्र जगह है। यहां इस तरह का कार्यक्रम बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।"



पुलिस ने भी धमकी दी

अस्सी घाट पर आयोजित सर्वधर्म समभाव सम्मेलन में हंगामे की सूचना पर पहुंचे एसीपी भेलूपुर प्रवीण कुमार सिंह ने मानव गो सेवा समिति और फखरुद्दीन अली मेमोरियल कमेटी के लोगों को इस बात के लिए आड़े हाथ लिया कि उनके पास इस आयोजन के लिए प्रशासन की एनओसी नहीं थी। उनका कहना था, "बगैर किसी परमीशन के हम कहीं कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं होने देंगे। आप कव्वाली करो, भजन करो, लेकिन हमें पहले सूचना होनी चाहिए। पुलिस प्रशासन का परमीशन जरूरी है। बगैर परमीशन के सर्वधर्म समभाव सम्मेलन आयोजित करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।"

अस्सी घाट पर भेलूपुर थाना पुलिस के पहुंचने से पहले ही आयोजकों ने कव्वाली का कार्यक्रम बंद कर दिया था। उनका कहना था कि बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की मिसालें समूची दुनिया में दी जाती हैं। सौहार्द्र को बढ़ावा की मुहिम को चलाने के लिए आज तक यहां किसी ने परमीशन नहीं मांगी। हमारे सम्मेलन का मुख्य मकसद ही आपसी सौहार्द बढ़ावा देना था। महंत, मौलवी, सिख गुरु और चर्च के फादर मिलकर सभी मौजूद थे।

गंगा घाट पर सर्वधर्म समभाव सम्मेलन रोके जाने पर शहर प्रबुद्धजनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव का करना है कि इस तरह के कार्यक्रमों को नहीं रोका जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "धर्म भी संगीत से ही पैदा हुआ है। धर्म के विकास में संगीत की बड़ी भूमिका रही है। चाहे वह हिन्दू धर्म हो या ईसाई, सिख अथवा मुस्लिम। इस्लाम धर्म गोरी-गजनवी के जरिये हिन्दुस्तान में नहीं आया। उससे काफी पहले सूफी संत आए, जिनके जरिये इस्लाम आया। सूफी संतों ने हिन्दुस्तान की चीजों को समझा और उसे आत्मसात किया। सूफियाना गानों के जरिये बनारस के लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई। गंगा के पावन तट पर कोई आयोजन हो रहा हो जिसमें सभी धर्मों का समावेश हो उसकी सराहना होनी चाहिए, न कि उस पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए।"

सभी के हैं गंगा के घाट

प्रदीप कहते हैं, "बनारस में कबीर, तुलसीदास और संत रविदास की परंपरा रही है। यहां रामचरित मानस जितनी पढ़ी नहीं गई, उससे अधिक गाई गई। गंगा को आप बांट ही नहीं सकते। गंगा पूरे देश को जोड़ने वाली है। यह तो समूचे बनारस की लाइफ लाइन है। गंगा ने अपने तट पर तमाम संस्कृतियों के देखा है और उन्हें पाला-पोसा है। इस नदी पर किसी धर्म विशेष का एकाधिकार हो ही नहीं सकता। गंगा तो हर उस इंसान की है जो श्रद्धा और आदर से देखे। दुनिया का कोई भी समझदार आदमी यह नहीं कह सकता कि हवा और पानी पर किसी धर्म विशेष का एकाधिकार है। गंगा और उसके किनारे बने सभी घाट सबके हैं, किसी धर्म विशेष के नहीं। बनारस की गंगा जमुनी तहजीब को बढ़ावा वाले कार्यक्रमों को रोकने के बजाय बढ़ावा दिया जाना चाहिए। ऐसे आयोजनों में पहुंचकर उत्पात मचाने वाले बनारसी तो कतई नहीं हो सकते। ये लोग बनारस की स्थापित छवि पर बट्टा लगा रहे है। इस तरह की ऊल-जलूल हरकत पर समूची दुनिया हंसेगी।"

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "प्रेम और सद्भाव को बढ़ाने वाले कार्यक्रमों से किसी भी दशा में कानून व्यवस्था को खतरा नहीं सकता। भेलूपुर थाना पुलिस ने कार्यक्रम को रुकवाकर जो मनमानी की  है, वह खांटी बनारसियों के गले से नीचे नहीं उतर रही है। अस्सी घाट का सुंदरीकरण पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कराया था। सुबह-ए-बनारस का कार्यक्रम करा लेने से क्या कोई घाट और गंगा क्या किसी धर्म अथवा व्यक्ति की निजी जागीर हो जाएगी? बनारस के संकटमोटन मंदिर में तमाम फनकार सूफी कव्वालियां पेश करते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि इस मंदिर का महत्व कम हो जाता है।"

"सच यह है कि एक धर्म विशेष को टारगेट करके पूरे देश में मुहिम चलाई जा रही है और यह बताने होड़ लगी हुई है कि एक खास विशेष के लोग ही धर्म का चोला ओढ़ सकते हैं। बाकी दूसरी कोई पार्टी अथवा संस्था अगर सर्व धर्म की बात करती है तो सत्ता द्वारा पोषित मुट्ठी भर लोग विरोध करने के लिए खड़ा हो जाते हैं। अचरज की बात यह है कि बनारस की कमिश्नरेट पुलिस भले ही बीएचयू में गैंगरेप करने वालों को पकड़ने की हिम्मत नहीं दिखा रही हो, लेकिन गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने वाले कार्यकमों को रोकने में तनिक भी पीछे नहीं हटती। क्या यही है मोदी सरकार का सबका साथ-सबका विकास?"  

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

Courtesy: Newsclick

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