SC ST ACT: मुद्दों को भटकाने के काम में भाजपा के मोहरे बने हुए है अगड़े

Written by Shashi Shekhar | Published on: September 8, 2018
फिलहाल, पांच बिन्दु साफ है:  1.सडक पर भारत बन्द कराने उतरे किसी भी सामान्य श्रेणी के युवा को मुद्रा लोन नहीं मिल पाया है.  2.इनमें से किसी ने स्कील डेवलपमेंट योजना का लाभ नहीं उठाया है. 3.किसी के पास भी स्टार्ट अप इंडिया शुरु करने लायक योग्यता नहीं है. 4.तकरीबन सारे अपनी नाकायमाब जिन्दगी के लिए आरक्षण को दोषी मानने वाले है. 
5.इनमें से ज्यादातर को कानून-संविधान की समझ नहीं है.



सबसे पहले दो कहानी.
पहली कहानी. साल 1989. शाहबानो प्रकरण के बाद राजीव गांधी अयोध्या में मन्दिर का ताला खुलवा चुके थे. मुस्लिम समुदाय बेहद नाराज था. ऐसे में लोकसभा का चुनाव सिर पर. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दूल गफूर सीवान से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड रहे थे. उनके आदमियों ने बताया कि मुसलमान सब वोट ना दिह सन. गफूर साहब बोले, हमरा वोट ना दिहन त का अपना........ वोट रखिह सन. मतलब, ये होता है नेता का विश्वास अपने वोट बैंक पर. हालांकि, वे 89 का चुनाव हार गए, लेकिन 91 में गोपालगंज से जीत गए. गफूर साहब कभी भी अपने चुनाव क्षेत्र में मुसलमानों से वोट मांगने नहीं गए.

दूसरी कहानी. 1996 की बात है. मेरे एक करीबी रिश्तेदार है. बिहार सरकार में नौकरी करते थे. साजिशन गांव के ही एक लौंडे ने उन पर अपने एक रिश्तेदार के अपहरण का आरोप लगा दिया. एफआईआर हुआ. पुलिस पहुंची. सीधे मेरे उन रिश्तेदार की गिरफ्तारी हुई. जेल गए. नौकरी से सस्पेंड हुए. 3 महीने बाद हाईकोर्ट से जमानत मिली. 6 महीने बाद एसपी ने अपनी जांच डायरी में पाया कि वे निर्दोष है. उनका नाम केस से हट गया. सब ठीक हो गया.

मतलब, आज जो अगडी जाति के लोग भारत बन्द कराने के लिए सडक पर है, उन्हें अपने ही देश के पुलिस-कानून-अदालत की कार्यप्रणाली की समझ नहीं है. आम भारतीयों के लिए आज कानून (आईपीसी/सीआरपीसी) का सीधा मतलब होता है कानून का डंडा. पुलिस ही गरीबों की माई-बाप है. आपको गिरफ्तार करने के लिए, परेशान करने के लिए पुलिस को किसी एससी/एसटी एक्ट की जरूरत नहीं होती.

वैसे भी यह कानून कोई आज का नहीं है. सर्वोच्च अदालत ने इसकी समीक्षा की, अपना फैसला दिया. सराहनीय फैसला था. लेकिन, राजनीति का दुष्चक्र कहिए कि किसी को शाहबानो में फैसला बदलना पडता है, किसी को एससी/एसटी एक्ट में. वैसे, लोकतंत्र में विधायिका की सर्वोच्चता बरकरार रहनी ही चाहिए.

इस एक्ट का दुरुपयोग होता है, इसमें कोई शक नहीं. लेकिन, किस कानून का दुरुपयोग नहीं होता है. कभी 498 (ए) नाम का डंडा भी अगडी जातियों पर खूब चला. लेकिन, कानून बनने और खत्म होने की एक गति होती है. लोकतंत्र में कानून निर्माण/उन्मूलन का पहिया धीरे-धीरे ही चलना चाहिए. समाज भी इवॉल्यूशन की प्रक्रिया से गुजरता है, लोकतंत्र भी. कभी संसद में भी अटल जी ने कहा था, यूनिफॉर्म सिविल कोड जरूरी है, लेकिन इसे थोपना नहीं है, बल्कि समाज इसके लिए खुद तैयार हो, उस वक्त का इंतजार करना चाहिए.

जनरल कैटेगरी से ले कर एससी/एसटी/ओबीसी तक, ये नहीं समझ पा रहे है कि आरक्षण मिलेगा कहां? लेकिन, एक आरक्षण खत्म करने के लिए, दूसरा आरक्षण बनाए रखने के लिए लड रहा है. आपस में ही. कोई इस बात के लिए आन्दोलन नहीं कर्रहा है, कि देश में फिलवक्त जो 25 लाख नौकरियां रिक्त पडी हुई है, उसे क्यों नहीं भरा जा रहा है. भर्ती होगी तभी तो आरक्षण का लाभ मिलेगा. 50-50 फीसदी सबके हिस्से में आएगा. अब, टाटा, अडानी, अंबानी तो आरक्षण देने से रहा.

तो हे अगडी जाति के योद्धाओं, आपको नहीं मालूम, आप भाजपा के मोहरे बन चुके है. कैसे? पेट्रोल 90 रुपये लीटर हो चुका है. डॉलर 71 रुपये पार कर गया है. आप सडक पर हिंसा फैला रहे है एक कानून को खत्म करवाने के लिए. आप बात कर रहे है नोटा की. करिए. वैसे मैं जानता हूं, आपके पास कोई विकल्प नहीं है. आप वोट तो भाजपा को ही देंगे. दीजिए. मन करें तो गुस्से में कांग्रेस के ही दे दीजिएगा या लालू को या मुलायम को या कमलनाथ को या फिर नोटा ही दबा दीजिएगा. लेकिन, याद रखिए, आप गलत पिच पर बाउंसर फेंक रहे है. सब नो बॉल साबित होगा. क्योंकि, यहां दोनों टीमों में मैच फिक्स हो चुका है. किसी भी राजनीतिक दल में इतनी हिम्मत नहीं कि वह आरक्षण या एससी/एसटी एक्ट से छेडछड कर सके.

वैसे, अगडों का भाजपा के प्रति प्यार देखिए...नोटा दबाएंगे लेकिन एससी/एसटी एक्ट लाने वाले के खिलाफ बटन नहीं दबा सकते. किसे मूर्ख बना रहे हो भाई? खुद को ही...और किसे बनाओगे?

याद रखिए, दिल्ली के एक नेता के शब्दों में, “सब मिले हुए है जी.” हम जनता ही सिर्फ बंटे हुए है. वो भी ऐसे मुद्दे पर जिसका हमारी जिन्दगी से सीधे कोई वास्ता नहीं है...वैसे एक बात तो तय है...आपने खुद को विकल्पहीन बना लिया है, मोहरा बना लिया है....चाल कोई और चल रहा है...आप बस शतरंज की बिसात पर इधर से उधर भटक रहे है...

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